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Babul Supriyo: जिन्हें कुमार सानू का कार्बन कॉपी कहा गया

अगस्त 1992 की बात है कोलकाता के पिन ड्रोप साइलेंस के बीच लोगों से भरे पैराडाइज सिनेमा हॉल में एक 22 साल का लड़का कुछ ऐसा देख रहा था, जिस पर उसकी आंखें यकीन नहीं कर पा रही थी, क्योंकि पर्दे पर कोई कमर्शियल फिल्म नहीं बल्कि वैम्बलीन एरिना में हुए एक शो का रिकोर्डेड वर्जन दिखाया जा रहा था जिसकी भव्यता को देखकर वह लड़का सोच रहा था कि ऐसा कहां और कैसे होता है?

कई सम्भावनाओ और जिज्ञासाओं से भरा यह लड़का कौन था जो आगे चलकर हिंदी सिनेमा जगत के संगीत की नई आवाज बनने वाला था, एक ऐसी आवाज जिसे एक बार अगर कोई सुन ले तो उसके होंठों पर अचानक वह गीत और उसके दिल में इस गायक का नाम ठहर जाता है।

तो चलिए दोस्तों आजआपको ले चलते हैं सत्तर के दशक की तरफ जहां एक खूबसूरत कहानी ने भारत के पश्चिमी भाग में जन्म लिया था।

Babul Supriyo

हिमालय की सुंदर पहाड़ियों और बंगाल की खाड़ी के बीच पश्चिमी बंगाल में बहती हुगली नदी के किनारे उत्तरपारा कस्बे में 15 दिसंबर 1970 को एक खुबसूरत आवाज का जन्म हुआ नाम रखा गया बाबुल सुप्रियो.

पिता सुनील चंद्र बराल और मां सुमित्रा के संगीत प्रेमी परिवार का यह लड़का जिसके दादाजी बंगाली संगीत के जाने माने संगीतकार थे, खिलौनों से अलग इस लड़के ने चार साल की उम्र से ही संगीत को अपना दोस्त बना लिया था।

अपने दादा बानिकनाथ जी और किशोर कुमार को गुरु मानकर सुप्रियो गायकी में कामयाबी की तरफ कदम बढ़ रहे थे।

बाबूल सुप्रीयो ने अपनी प्रतिभा के निखार को दुनिया के सामने रखने के लिए पहला मैदान चुना आल इंडिया रेडियो और फिर दुरदर्शन, आगे साल 1983 और 1985 में इन्हें अपनी गायकी के लिए पहले पुरुस्कार भी मिलें।

अपने कोलेज के दौरान बोलीवुड की एक आवाज ने इनका ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया, क्योंकि वह आवाज इन्हें किशोर कुमार की याद दिला रही थी, यही वह मौका था जब इनका परिचय एक नये गायक कुमार सानू से हुआ और किशोर कुमार के इस शिष्य को ये लगने लगा कि अब वो भी भारत के पश्चिमी भाग से दुर पूर्व की तरफ जायेंगे जिसके बारे में उन्होंने सुना था कि एक शहर है जहाँ  बहुत से लोगों की किस्मत उनकी आवाज के दम पर बदल जाती है।

फिर क्या था बाबूल की आंखों ने एक नये शहर, नये सफर के सपने बुनना शुरू कर दिया, लेकिन यहां उनका सामना अपने पिता के उन सवालों और बातों से हुआ जो चाहते थे कि उनका लड़का डोक्टर इंजीनियर भले ही ना बने लेकिन कहीं न कहीं सैटल हो जाए, आखिरकार अपने पिता की बात मानकर सुप्रियो पढ़ाई पूरी करने के बाद बैंक में काम करने लगे।

कुछ समय के लिए नाइन टू फाईव‌ जोब के जरिए जिंदगी को बड़ी जल्दी अपने सामने से गुजरते देखकर बाबूल सुप्रीयो  कुछ समय के लिए ठहरे और इस निर्णय पर पहुंचे कि वो अगर ऐसे ही भागते रहे तो बहुत जल्दी मर जायेंगे फिर उनके सपनों का क्या? इतना सब सोचने के बाद

एक दिन सबकी बातों को नजरंदाज कर अपना सामान पैक किया और हावड़ा रेलवे स्टेशन की तरफ चल दिए साथ में उनका परिवार भी आया जो कहने को तो उन्हें छोड़ने जा रहा था लेकिन असल में वो लोग सुप्रीयो को रोकने का अंतिम मौका गंवाना नहीं चाहते थे।

Babul Supriyo

जब कुछ नहीं हुआ और रेलगाड़ी के निकलने का समय हो गया तो सुप्रीयो ने अपनी मां के हाथ से खाने का टिफीन लिया और शुरू हुआ  संघर्ष से सफलता का सफर, जिसमें कई पड़ाव आने वाले थे।

लगभग बाईस घंटे बाद सुप्रियो दादर स्टेशन पहुंचे और मुम्बई की धरती पर अपना पहला कदम रखा, सपनों में देखें इस शहर की फितरत उनके हर सपने से परे थी, सुप्रियो ने एक टैक्सी ड्राइवर को पकड़ा और कहा जहां फिल्मों की शूटिंग होती है वहां चलो, टैक्सी ड्राइवर को कुछ समझ नहीं आया और उन्होंने सुप्रीयो को मेहबूब स्टुडियो छोड़ दिया।

मेहबूब स्टुडियो से निकलकर सुप्रीयो ने अपना ठिकाना अंधेरी वेस्ट में एसिक नगर को बनाया जहां उनकी ही तरह के की लोग बोलीवुड में अपनी बारी का इंतजार कर रहे थे।

यहां दिन में दो बार फोन करने का मौका मिलता तो सुप्रीयो अपने घर की जगह म्यूजिक डायरेक्टर्स के ओफीस को खटखटाने की कोशिश करते और जब बात नहीं बनती तो अपने आसपास लोगों को देखकर सोचने लगते कि इस भीड़ में उनकी बारी शायद कभी नहीं आयेगी।

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दौड़ती भागती जिंदगी अचानक एक छोटी सी बाल्कनी में आकर थम गई ,जहां से निकलने का कोई रास्ता नहीं सूझ रहा था, और फिर एक दिन इस जिंदगी को बहाव देने का काम किया एक फोन कॉल ने जिसके दुसरी तरफ म्यूजिक डायरेक्टर कल्याण जी भाई थे जो एक वर्ल्ड टूर की तैयारी कर रहे थे, सुप्रियो ने उनसे मिलने की अनुमति ली और उनके ओफीस पहुंच गए।

वहां पहुंचकर सुप्रीयो ने उन्हें उन्हीं का एक गाना मेरा जीवन कोरा कागज सुनाया बात बन गई,, कल्याण जी ने उन्हें अपने साथ वर्ल्ड टूर पर जाने को कह दिया।

मार्च 1993 में  सुप्रियो के पासपोर्ट पर पहली बार ठप्पा लगा और उनकी जिंदगी का सबसे यादगार सफर शुरू हो गया, अमिताभ बच्चन के साथ स्टेज शेयर करने वाला यह वही लड़का था जो छः महीने पहले कोलकाता के किसी सिनेमा हॉल में बैठकर सोच रहा था कि वर्ल्ड टूर आखिर क्या बला होती है।

कल्याण जी ने जिस लड़के को स्टेज शोज में मौका दिया फिल्मों में उसका हाथ पकड़ा बप्पी लहरी और अनु मलिक ने और एक के बाद एक अपनी फिल्मों में गाने का मौका देते रहे।

यहां से फिर नदीम श्रवण, वीजू शाह और ए आर रहमान जैसे दिग्गजों का साथ भी बाबूल सुप्रियो को मिला।

Babul Supriyo

साल 1999 में आई फिल्म हैलो ब्रदर में साजिद वाजिद की नई जोड़ी के लिए हटा सावन की घटा गाना गाया, गाना सुपरहिट रहा लेकिन उसके पीछे की आवाज से लोग अब भी अंजान थे, साल 2000 में आई फिल्म कहो ना प्यार है के गीत दिल ने दिल को पुकारा ने सुप्रीयो की इस शिकायत को भी दुर कर दिया, बोक्स ओफीस और अवार्ड शोज में हिट रहे इस फिल्म के म्यूजिक ने सुप्रियो जी के सुपरहिट करियर को आगे बढ़ाया।

यहां से फिर कोलकाता की गलियों में आवारा घूमने वाले लड़के के लिए मुम्बई की सड़कें भी दोस्त बन गई, एक स्टुडियो से दुसरे स्टुडियो, एक फिल्म से दुसरी फिल्म और एक हिट से दुसरी हिट .सुप्रियो का नाम और उनके गीत हर किसीकी जुबान के लिए कभी ना भूलने वाली बात बन गई ।

चोरी चोरी चुपके चुपके, हम तुम और जीना सिर्फ मेरे लिए जैसे गीत लोगों के होंठों पर इस कदर ठहरे की फिर उतर ही नहीं पाये।

हिंदी फिल्मों के अलावा इस आवाज का जादू बंगाली सहित ग्यारह भाषाओं में लगातार चलता रहा जहां इनका साथ जीत गांगुली और शांतनु मोइत्रा जैसे लोगों ने दिया।

लेकिन इतना सबकुछ होने के बावजूद भी आज हम इनके करियर को टटोल कर देखें तो पता चलता है कि बाबुल सुप्रियो के साथ हिट गीत गाने वाले गायकों की झोलिया जहां हमेशा अवार्ड्स से भरी रही तो वहीं इन्हें सिर्फ एक या दो नामांकन से ही संतोष करना पड़ा।

बाबूल सुप्रीयो के करियर का बड़ा हिस्सा उनके और कुमार सानू की आवाज में मौजूद समानताओं से अलग अपनी पहचान बनाने में बिता है, इसे सयोंग कहे या कुछ और लेकिन काफी हद तक बाबुल की आवाज़ कुमार सानू से मिलती जुलती है काफी श्रोताओं को इनके कई गानों को लेकर ये भ्रम रहता है की ये कुमार सानू की आवाज़ है।

इस पर बात करते हुए इन्होंने कहा कि आप जिससे कुछ सीखते हैं उसका कोई ना कोई अंश आप में आ ही जाता है, मैंने किशोर कुमार और कुमार सानू से बहुत कुछ सीखा है उनकी कैसेट्स को पन्द्रह बीस रुपए में लाकर एकटक सुनना मेरी दिनचर्या का हिस्सा हुआ करता था, लेकिन अब मुझे खुशी है कि मैं अपनी अलग पहचान बनाने में कामयाब रहा लेकिन एक बात का दुख भी है कि मैं अपने दो सबसे पसंदीदा कलाकारों के साथ कभी काम नहीं कर पाया।

Babul Supriyo

28 फरवरी 2014 के दिन जब सुप्रीयो अपने किसी शो के बाद हवाई जहाज में बैठे तो वहां इनकी मुलाकात बाबा रामदेव से हुई, जो चुनाव से जुड़ी चर्चा में फोन पर व्यस्त थे थोड़ा समय मिला तो इन्होंने भी अपनी जिज्ञासा को शांत करने के लिए एक प्रश्न पुछ लिया जिसका जवाब आया कि वो बंगाल चुनाव के लिए किसी अच्छे आदमी की तलाश में हैं, अटल बिहारी वाजपेई के बड़े प्रशंसक रहे सुप्रियो ने मजाक मजाक में बाबाजी से कह दिया कि आप उनका नाम लिख लीजिए।

मजाक में कही अपनी बात को सुप्रीयो भूल गए लेकिन बाबाजी ने उनमें एक अच्छे राजनेता को शायद पहचान लिया और कुछ ही दिनों में फोन करके पुछा कि क्या वो आसनसोल सीट से चुनाव लड़ना चाहते हैं, दुसरी तरफ से जवाब आया कि वो चुनाव लड़ना चाहते हैं लेकिन पैसा लगाने के लिए तैयार नहीं है, इसके जवाब में बाबा रामदेव ने उन्हें भरोसा दिलाया और इस तरह आवाज का एक जादुगर राजनीति दुनिया में किस्मत आजमाने पहुंच गया।

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बाबुल सुप्रियो अपने पहले चुनाव में बड़े अंतर से जीत गए और एक मजाक उन्हें केन्द्रीय मंत्री की कुर्सी तक ले आया।

साल 1995 में शाहरुख खान के साथ एक वर्ल्ड टूर पर सुप्रीयो की मुलाकात अपनी पहली हमसफ़र रिया से हुई जिनसे इनके घर में एक बेटी का जन्म हुआ।

2015 में तलाक के बाद किसी दोस्त की तलाश में घूम रहे बाबूल सुप्रीयो का हाथ रचना शर्मा ने थाम लिया जो एक एयरहोस्टेस थी और इतेफाक से इनकी पहली मुलाकात उसी दिन हुई थी जब सुप्रियो को बाबा रामदेव ने बंगाल चुनाव के लिए चुन लिया था।

तो इस तरह ये कहा जा सकता है और सुप्रियो भी इस बात से सहमत होंगे कि हवा और हवाई जहाज से इनका अलग ही कनेक्शन है।

र अपने राजनीतिक करियर के दौरान कई विवादों और म्यूजिक एल्बम का हिस्सा रहे सुप्रियो की बेटी भी अब संगीत की  दुनिया में कदम रखने की कोशिश में लगी हुई है और हाल ही में राजनीतिक गलियारों से थककर संन्यास लेने  वाले सुप्रियो के लिए भी कहा जा सकता है कि इनकी जादुई आवाज हमें एक बार फिर फिल्मों के जरिए सुनाई दे सकती है।

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