DharmikFacts

पिंडदान का महत्व:आखिर क्यों किया जाता है पिंडदान

हिंदु धर्म में एक मान्यता है कि किसी व्यक्ति की मृत्यु के बाद उसके परिजनों द्वारा पिंड दान करने से मरने वाले की आत्मा को पितृ लोक तक पहुंचने में किसी भी प्रकार के कष्ट का सामना नहीं करना पड़ता है।

ऐसी मान्यता है कि यदि इस अनुष्ठान को किया जाए तो मरने वाले व्यक्ति की आत्मा को नर्क की यातनाओं का सामना नहीं करना पड़ता है और इस अनुष्ठान से दिवंगत आत्मा को मोक्ष की प्राप्ति होती है। 

वहीं एक मान्यता यह भी है कि पिंड दान से मृत व्यक्ति की आत्मा को मुक्ति मिल जाती है वरना वह मोह माया के बंधनों में उलझकर भटकती रहती है। पिंड दान कब कब किया जाता है? पिंड दान का क्या महत्व है? और पिंडदान कहाँ और क्यों करना आवश्यक है?

Pind Daan

पिंड का अर्थ है गोल और दान का अर्थ है किसी को उसके उपयोग की वस्तु देकर फिर न लेना। पूर्वजों की मुक्ति हेतु किये जाने वाले दान को पिंड दान इसलिए कहा जाता है क्योंकि इसमें आटे से बने गोल पिंड का दान किया जाता है।

चावल, गाय के दूध, घी, शक्कर और शहद को मिलाकर तैयार किये गए पिंडों को श्रद्धा भाव के साथ अपने पितरों को अर्पित करना ही पिंडदान कहलाता है।

जैसा कि हम सभी जानते हैं कि हिंदू धर्म में प्रत्येक जीव जन्तु का अपना एक महत्व है और उनमें देवी देवताओं का वास भी माना जाता है इसलिए पिंडदान और श्राद्ध के समय गाय को भोजन अवश्य करवाया जाता है।

कौवे को पितरो का रूप  मानने के साथ ही यमदूत का संदेशवाहक भी कहा जाता है इसलिए कौए को भी भोजन करवाया जाता है। इसके अतिरिक्त कुत्तों को भी खाना खिलाते हैं क्योंकि मान्यता है कि वे यम के साथ रहा करते हैं।

Pitru Paksha

भाद्रपद महीने के कृष्णपक्ष के पंद्रह दिनों को पितृ पक्ष कहा जाता है। इन्हीं दिनों में लोग अपने पूर्वजों की मृत्युतिथि पर श्राद्ध सम्पन्न कराते हैं। ऐसा माना जाता है कि अगर इन दिनों श्राद्ध किया जाए तो परिजनों द्वारा किया गया पिंडदान सीधे उनके पूर्वजों तक पहुंच जाता है। शास्त्रों और पुराणों के अनुसार पिता की मृत्यु के बाद मुक्ति के लिए पुत्र द्वारा पिंडदान करने का विधान है।

पिंड दान और श्राद्धकर्म के अभाव में जहां पिता की आत्मा को मोक्ष नहीं मिलता,  वहीं पुत्रों को भी अपने पितृऋण से छुटकारा नहीं मिल पाता है। यही कारण है कि पिंडदान को पुत्र को उसका कर्तव्य कहा गया है। हालांकि शास्त्रों में पिंडदान के लिये पुत्र के साथ-साथ पौत्रों का उल्लेख मिलता है।

शास्त्रों और पुराणों के अनुसार दाह संस्कार के बाद तीसरे दिन को उठावन या तीसरा कहते हैं। 10 वें दिन मुंडन करवा कर शुद्धि और शांतिकर्म किया जाता है तथा 12वें दिन पिंडदान आदि कर्म करने के बाद तेरहवें दिन मृत्युभोज का आयोजन किया जाता है।

इन सब कार्यों के पूर्ण होने के पश्चात सवा महीने का कर्म होता है फिर बरसी मनाई जाती और मृतक को श्राद्ध में शामिल कर उसकी तिथि पर श्राद्ध मनाते हैं। तीन वर्ष बाद उसका गया में पिंडदान कर उससे मुक्ति पाई जाती है।

Read this also-पांडवों की स्वर्ग यात्रा: दुर्योधन को क्यों मिला स्वर्ग?

इन दिनों में होने वाले इन सभी कार्यों के पीछे धार्मिक मान्यताओं के साथ साथ वैज्ञानिक कारण भी छुपे हुए हैं। वैज्ञानिक मान्यताओं के अनुसार मृत व्यक्ति का दिमाग तीन दिन तक सक्रिय रहता है तो वहीं धार्मिक मान्यता भी यही कहती है कि, मृत व्यक्ति की चेतना अधिकतम तीन दिन में लुप्त हो जाती है और आत्मा नया जन्म ले लेती है।

यदि यह क्रिया 3 दिन में न हो सकी तो वह आत्मा तेरह दिन में या फिर सवा माह में दूसरा जन्म ले लेती है। और यदि तब भी ऐसा न सका तो वर्षभर लग सकता है, और तब तक वह आत्मा पितरों में सम्मिलित हो जाती है। इसीलिए आत्मा की मुक्ति हेतु गया में श्राद्ध और पिंडदान करने का प्रावधान बनाया गया है। गरुड़ पुराणा के अनुसार, व्यक्ति मरने के बाद एक लम्बी यात्रा करता है, और पिंड दान से उसको आगे बढ़ने की शक्ति मिलती है। 

देश में पिंडदान के लिए हरिद्वार, गंगासागर, जगन्नाथपुरी, कुरुक्षेत्र, चित्रकूट, पुष्कर, बद्रीनाथ सहित 55 स्थानों को महत्वपूर्ण माना गया है। विभिन्न शास्त्रों और पुराणों में पिंडदान के लिए इनमें से तीन स्थानों को सबसे विशेष माना गया है वे पवित्र स्थान हैं- बद्रीनाथ के पास स्थित ब्रह्मकपाल,  हरिद्वार में नारायणी शिला और  बिहार की राजधानी पटना से 100 किलोमीटर दूर स्थित ‘गया’।

ऐसी मान्यता है कि अगर बिहार के गया में पूर्वजों का पिंडदान किया जाए तो उन्हें सीधा मोक्ष की प्राप्ति होती है इसीलिए गया में पिंडदान को एक विशेष महत्व दिया जाता है। कहते हैं कि जिस व्यक्ति का पिंडदान यहां हो जाता है उसकी आत्मा को बहुत ही सरलता से शांति मिल जाती है। 

गया में पिंडदान इस कारण भी किया जाता है, क्योंकि गया को भगवान विष्णु का नगर माना जाता है और इस स्थान को मोक्ष की भूमि भी कहा जाता है।

विष्णु पुराण के अनुसार जिन लोगों का श्राद्ध यहाँ सच्चे हृदय से किया जाता है, वह मोक्ष को प्राप्त हो जाते हैं। ऐसा इसलिए भी कहा जाता है क्योंकि गया में भगवान विष्णु स्वयं ही पितृ देवता के रूप में विराजमान रहते हैं।

Read this also-राजा दशरथ और वानर राज बाली के युद्ध की कथा

इसलिए गया में पिंडदान हो जाने से पितरों को इस संसार से मुक्ति मिल जाती है। गरुण पुराण के अनुसार गया जी जाने के लिए परिजनों द्वारा घर से गया जी की ओर चलने की शुरुआत होते ही पितरों के लिए स्वर्ग की ओर जाने की सीढ़ी बनना भी शुरु हो जाती है।

पिंड दान के लिये सबसे पवित्र स्थान गया जी को मानने के पीछे एक पौराणिक कथा भी है जो इस प्रकार है।

कहा जाता है कि भस्मासुर के एक वंशज गयासुर नामक असुर ने कठिन तपस्या कर भगवान से वरदान मांगा था कि उसका शरीर देवताओं की तरह पवित्र हो जाए और लोग उसके दर्शन मात्र से पाप मुक्त हो जाएं।

उसे यह वरदान तो मिला, लेकिन इस वरदान का दुष्परिणाम यह हुआ कि लोग भयविहीन होकर के पाप करने लगे और गयासुर के दर्शन कर लेने मात्र से पाप मुक्त होने लगे। इस कारण प्राकृतिक नियम भी बिगड़ने लगा और स्वर्ग में पापियों की संख्या भी बढ़ने लगी।

इस प्रकृतिक असंतुलन से बचने के लिए देवताओं ने एक योजना बनाई जिसके अंतर्गत उन्होंने यज्ञ के लिए स्थल के रूप में गयासुर से उसके पवित्र शरीर की मांग की।

गयासुर ने बिना किसी विरोध के अपना शरीर देवताओं को यज्ञ के लिए दान दे दिया। गयासुर जब लेटा तो समस्त देवगण उसके ऊपर विराजमान हो गये जिससे उसका शरीर पांच कोस में फैल गया। यही पांच कोस में फैला स्थान आगे चलकर गया नामक तीर्थस्थली बन गया।

यज्ञ पूर्ण हो जाने के बाद गयासुर ने विष्णु जी से वरदान मांगा कि उसे एक शिला बना कर इसी स्थान पर स्थापित कर दिया जाए। साथ ही उसने यह भी मांगा कि भगवान विष्णु सभी देवताओं के साथ अप्रत्यक्ष रूप से इसी शिला पर विराजमान रहें।

विष्णु जी ने गयासुर के इस समर्पण और भक्ति भाव से प्रसन्न होकर उसकी सभी मांगों को पूरा कर दिया तथा यह आशीर्वाद भी दिया कि जिस स्थान पर गया स्थापित होगा उस स्थान पर पितरों के श्राद्ध-तर्पण और पिंडदान आदि कार्य करने से मृत आत्माओं को पीड़ा से मुक्ति मिलेगी और मोक्ष की प्राप्ति होगी।

Watch On You Tube-

ऐसी मान्यता भी है कि त्रेता युग में भगवान राम, लक्ष्मण और सीता राजा दशरथ के पिंडदान के लिए गया आये थे। इस कारण से भी पिंडदान के लिये गया को सबसे अधिक महत्वपूर्ण स्थान कहा जाता है और इसीलिए आज दुनियां भर के लोग अपने पूर्वजों के मोक्ष के लिए यहाँ निरंतर आते रहते हैं।

Show More

Prabhath Shanker

Bollywood Content Writer For Naarad TV

Related Articles

Back to top button