शरीर के सात चक्रों के रहस्य।
“होता है जब आदमी को अपना ज्ञान , कहलाया वो शक्तिमान”
दर्शकों अगर आपका भी बचपन नब्बे के दशक में बीता होगा तो निश्चित ही ये पंक्तियाँ आपको आज भी रोमांचित करती होंगी। भला शक्तिमान और उसकी अध्भुत शक्तियों को कैसे भूला जा सकता है। बचपन में ये विचार भी उठते थे की काश ये शक्तियाँ हमारे पास भी होती तो मज़ा ही आ जाता।
लेकिन क्या ये सत्य है की अगर किसी इंसान को अपना ज्ञान हो जाये तो वो शक्तिमान बन सकता है ? और शक्तिमान के वो सात चक्र क्या थे जिसके जागृत होने के बाद गंगाधर शक्तिमान बन जाता था ? क्या बचपन के मन में उठने वाली कल्पना सत्य हो सकती है ? क्या कोई ऐसा भी इंसान इस धरती पर था या है जिसने उन सात चक्रों को जागृत किया हो ? तमाम रहस्यों की तरह ही इन सात चक्रों का रहस्य भी अपने सनातन धर्म में छिपा है और आज के इस विशेष अंक में हम इसी विषय पर बड़े विस्तार से चर्चा करने वाले हैं।
हमारे बड़े-बुजुर्गों ने कहा है- की की जान है तो जहान है, जिसका सीधा मतलब है की अगर आपने अपने शरीर को स्वस्थ्य रखा है, और अगर आपकी रोज की दिनचर्या बहुत अच्छी है तो ये शरीर ही आपके हर काम को करने में सक्षम रहेगा जिसका बेहतर परिणाम आपको हमेशा मिलता रहेगा।
इस शरीर को स्वस्थ्य रखने के लिए बड़े-बड़े ऋषि-मुनियों ने भी अलग-अलग तरह की योग-साधना और व्यायाम को अपने जीवन में उतारा और उसी के परिणाम से उन्हें बड़ी बड़ी सिद्धियां प्राप्त हुईं और काफी सालों तक इस धरती पर जीवित भी रह सके। असल में हमारे शरीर में कुछ ऐसी छिपी शक्तियाँ हैं, जिन्हें हम साधारण मनुष्य जानते तक नही और अगर उन शक्तियों को जागृत कर लिया जाएँ तो हम भी किसी सिद्ध पुरुष से कम नही होंगे। ऐसी शक्ति को कुण्डलिनी शक्ति का नाम दिया गया है, जिसके अंतर्गत सात चक्र आते हैं जो की हमारे शरीर के अलग-अलग भागों में स्थित होते हैं।
क्या होते हैं ये सात चक्र
बड़े-बड़े विद्वानों द्वारा कुण्डलिनी के रहस्यों के बारे में बहुत सी पुस्तकें लिखी गयीं हैं, उन्हीं पुस्तकों से शोध करने के बाद हम कुण्डलिनी और उससे जुड़े सात चक्रों के बारे में कुछ महत्वपूर्ण जानकारियां आपके लिए समेट कर लाये हैं। जिनके अनुसार कुण्डलिनी एक प्रकार की ऐसी शक्ति है जोकि मनुष्य में अचेतन अवस्था में रहती है, जिसका अर्थ ये है की ये शक्ति मनुष्य के शरीर में सोयी हुई अवस्था में रहती है, जिसको जगाने के लिए मनुष्य को कठिन योग-साधना करनी पड़ती है। कुण्डलिनी के सुप्त अवस्था में होने के कारण, मनुष्य बहुत ही अज्ञानी रहता है, उसे खुद नही पता होता की वो कितने प्रकार की शक्तियों का मालिक है। कुण्डलिनी को जागृत करने पर इसकी शक्ति शरीर के बीचो बीच से होते हुए ऊपर की ओर आगे बढती है और मार्ग में अलग-अलग चक्रों को पार करते हुए जब वो सस्त्रार चक्र में प्रवेश करती है तब जाकर उस साधक को अपने समाधी की अवस्था में परम शांति और सुख का अनुभव होता है और धीरे धीरे वो स्वभाव से सरल और सहज भी हो जाता है।
आपको बता दें की कुण्डलिनी शक्ति को, कुण्डलिनी के अलावा भुजंगिनी, सर्पिणी, प्रचंडशक्ति, मूलाधार निवासिनी, विद्युत्, अग्निमय, और अपराजिता जैसे बहुत से अलग-अलग नामों से भी संबोधित किया जाता है। अपने शरीर में कुण्डलिनी शक्ति जागृत करने के लिए हमें अपने शरीर में स्थित सात अलग-अलग तरह के चक्रों को जगाना पड़ेगा जो हैं- मूलाधार चक्र, स्वाधिष्ठान चक्र, मणिपूर चक्र, अनाहत चक्र, विशुद्ध चक्र, आज्ञा चक्र और सहस्त्रार चक्र। आइये हम इन सातों चक्रों के बारे में और गहराई से जानें-
पहला मूलाधार चक्र- मूलाधार चक्र का स्थान शरीर के सबसे निचले भाग यानी की गुदा और अंडकोष के बीच बताया गया है जो की रीड की हड्डी के बगल सुषुम्ना नाडी से मिला हुआ है। इस चक्र को कुण्डलिनी शक्ति का आधार होने के कारण मूलाधार के नाम से जाना जाता है। कहा जाता है की इस चक्र में एक प्रकार का स्वयंभू लिंग होता है, जिसमे सारी कुण्डलिनी शक्ति अपने आपको लपेट कर अचेतन अवस्था में पड़ी रहती है। इस चक्र को जागृत करने पर मनुष्य हमेशा निरोग, और सुखी रहने के साथ-साथ एक अच्छा लेखक भी हो सकता है। इस मूलाधार चक्र का तत्व भूमि है।
दूसरा स्वाधिष्ठान चक्र- इस चक्र का मूल स्थान लिंग में बताया गया है, जो की मूलाधार चक्र के थोडा ऊपर है। लिंग के मूल में होने के कारण इस चक्र का नाम मेडाधार चक्र भी है। जब मनुष्य कई तरह के मानसिक उलझनों में परेशान रहता है, तो उस समय अगर वो किसी योग्य गुरु द्वारा इस चक्र को जागृत करने का प्रयास करे तो उसे मानसिक तनाव से मुक्ति तो मिलेगी ही, साथ ही साथ वो एक स्वाभिमानी, साहसी और बुराइयों का नाश करने वाला प्राणी भी बन सकता है लेकिन इस चक्र को पूरी तरह से जागृत करने के लिए मनुष्य को अपने खान-पान, निद्रा, कामेच्छा और दिन भर की अन्य दिनचर्या पर भी नियंत्रण रखना होगा, तभी मनुष्य इस चक्र को जीत कर आगे के तीसरे स्तर के चक्र की ओर बढ़ सकेगा। जल को इस दुसरे चक्र का तत्व कहते है।
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तीसरा मणिपूर चक्र- तीसरे स्तर का ये चक्र मनुष्य की नाभि में स्थित होता है। असल में मनुष्य के शरीर का केंद्र नाभि होता है, जहां से शरीर की बहुत सी नाड़ियाँ मिलती और निकलती हैं और इसलिए इस को निद्रा, सांसारिक मोह, मोक्ष, भय, लज्जा, ईर्ष्या और विश्वासघात का आधार बताया गया है। अगर इस चक्र पर ध्यान लगाकर मनुष्य इसे जागृत करता है तो इससे उसकी बुद्धि शुद्ध होती, इन्द्रियाँ वश में होती हैं और मनुष्य को अपने भौतिक शरीर का ज्ञान भी प्राप्त होता है। इसके साथ ही नाभि और आँतों के जितने भी रोग और विकार होते हैं, वो सब इस चक्र के जागृत होने पर नष्ट हो जाते हैं और मनुष्य को लम्बी आयु प्राप्त होती है। इस तीसरे चक्र का तत्व अग्नि है।
चौथा अनाहत चक्र- ये चक्र मूल रूप से ह्रदय में निवास करता है जहां प्राण और जीवात्मा का स्थान होता है। यहीं अहंकार, चिंता, संदेह और अभिमान जैसे भावों का भी वास होता है। ये चक्र बहुत सारी अनोखी शक्तियों का मालिक होता है क्योकि इस चक्र को जागृत करने पर मनुष्य त्रिकालदर्शी हो सकता है , साथ ही साथ बहुत दूर हुए वार्तालाप को सुनने वाला, सूक्ष्मदर्शी और अपने इच्छानुसार आकाश मार्ग से कहीं भी आने जाने की क्षमता वाला हो सकता है। और इसीलिए इस चक्र को जागृत करना भी बहुत कठिन होता है। इस चक्र का तत्व वायु बताया गया है।
पांचवा विशुद्ध चक्र- पांचवे स्तर का ये चक्र मनुष्य के गले में स्थित होता है, जहां पर मेरुदंड अर्थात रीड की हड्डी की सीमा समाप्त हो जाती है। इस चक्र को जागृत करने पर मनुष्य को दया, क्षमा, साहस, आत्म-नियंत्रण, और शुद्धता जैसे गुण प्राप्त होते हैं और सभी प्रकार के शास्त्रों का ज्ञान भी हो जाता है। इस चक्र का तत्व आकाश बताया गया है, जैसे की चार तत्व शरीर की रचना करने में सहायक होते हैं वैसे ही ये पांचवा तत्व आकाश शरीर को शुद्ध और दीर्घायु बनाने में सहायक होता है।
छठवां आज्ञा चक्र- विशुद्ध चक्र के बाद, आज्ञा चक्र का स्थान दोनों भौहों के बीच भृकुटी के भीतर बताया गया है। इस चक्र पर ध्यान लगाने वाला साधक बहुत महान योगी हो जाता है जिसे हर प्रकार के शास्त्रों का ज्ञान तो होता ही है, साथ ही उसे ब्रम्ह ज्ञान भी हो जाता है। इस तरह मनुष्य सभी तरह के अज्ञान से दूर होकर सीधा ॐ में स्थित हो जाता है। योगशास्त्रों के अनुसार- जिस मनुष्य ने आज्ञा चक्र पर विजय प्राप्त कर ली, उसे योग द्वारा किसी दुसरे के शरीर में प्रवेश करने की विद्या आ जाती है, साथ ही वो मन-वचन और कर्म से परोपकारी, अनोखी सिद्धियों का मालिक और तीनों लोकों का पालक और संहारक भी हो सकता है। इस चक्र का महत्व ही इसका तत्व है क्योकि ये सभी चक्रों में सबसे महत्वपूर्ण शक्तिओं से सम्पन्न है।
अंतिम और सातवां सहस्त्रार चक्र- मस्तिष्क के उपरी भाग में सहस्त्रार चक्र का स्थान है। इस चक्र को भी असीम शक्तियों से सम्पन्न और बहुत ही रहस्यमयी योगचक्र माना जाता है। इस चक्र को ब्रह्म स्थान या निर्वान चक्र के नाम से भी जाना जाता है। इस चक्र पर ध्यान लगाने वाले योगी का सीधा सम्पर्क भगवान् शिव से हो जाता है और इस तरह वो बड़ी ही आसानी से अपना देहत्याग कर सकता है। और सबसे बड़ी बात ये है की ऐसे साधक की मृत्यु के बाद उसका पुनर्जन्म नही होता। आपने अक्सर सुना होगा की बड़े-बड़े साधक और ऋषि-मुनि अपनी इसी साधना के दम पर अपने प्राण त्याग कर परमात्मा में विलीन हो जाते हैं। और इसी के साथ कुण्डलिनी शक्ति बाकि छह चक्रों से होती हुई इस चक्र में आकर समाप्त हो जाती है।
तो दर्शकों ये तो थे वो सात चक्र। जिनको अगर कोई मानव जागृत कर ले तो वो महामानव यानी शक्तिमान बन जाए। शाक्तिमान को तो आपने ऐसा करते हुए देखा होगा लेकिन इस भौतिक संसार में क्या ऐसा कोई मनुष्य है जिसने इन चक्रों को जागृत किया हो। और इन सातों चक्रों को जागृत करने की विधि क्या है?
इन सभी सवालों का जवाब हम आपको आने वाली वीडियो में देंगे अगर इस वीडियो पर सबका रेस्पॉन्स अच्छा रहा तो।
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