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Journey Of Virat Kohli: Kohli से King Kohli तक

क्रिकेट, एक खेल जिससे जुड़ी कहानियां (Stories), जिससे जुड़े अनुभव और जिससे जुड़े लोग इसे दुसरे सभी खेलों से अलग और ऊपर का स्थान (Place) देते हैं, क्योंकि ऐसी कहानियां बाकि किसी भी खेल के इतिहास (History) में मिलना मुश्किल है और ऐसे खिलाड़ी बहुत मुश्किल से दुसरे किसी भी खेल को नसीब होते हैं जैसे क्रिकेट (Cricketer) के पास है। आप में से बहुत से लोगों ने सचिन तेंदुलकर को खेलते हुए देखा होगा, किसीने उनकी सिर्फ़ कहानियां सुनी होगी, किसीने विव रिचर्ड्स को खेलते हुए देखा होगा तो किसीने अपने पापा या दादाजी से उनकी कहानियां सुनी होगी।
एक ऐसा ही खिलाड़ी हमारी पीढ़ी को भी नसीब हुआ है जिससे जुड़ी कहानियां, किस्से और अनुभव (Experience) बेसुमार है लेकिन ये आप पर निर्भर (Depend) करता है कि आप विराट कोहली नाम के उस खिलाड़ी को किस तरह याद रखोगे, उनके करियर के कौनसे पहलू से उनको परिभाषित (Defined) करोगे और क्या बताकर अपनी अगली पीढ़ी को इस खिलाड़ी का परिचय (Introduction) दोगे, ये सवाल पिछले बहुत दिनों से मेरे मन में भी था तो आज इस पोस्ट के जरिए मैं बताना चाहता हूं कि मेरे लिए विराट कोहली कौन है।

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विराट कोहली, हर आम भारतीय के लिए जो क्रिकेट पसंद करता है उसके लिए इस खिलाड़ी (Player) की कहानी साल 2008 से शुरु होती है जब इस खिलाड़ी की कप्तानी (Captaincy)  में भारत की अंडर (Under) नाइनटीन (Nineteen) टीम ने विश्व (World) कप  (Cup) अपने नाम किया था, लेकिन जो लोग इस खिलाड़ी को करीब से जानने और समझने की कोशिश (Try) करते हैं उन्हें पता चलता है कि विराट कोहली के बनने की कहानी (Stroy) इससे बहुत पहले ही शुरू हो गई थी।
5 नवम्बर साल 1988 को नई दिल्ली में एक लोयर पिता प्रेम कोहली के घर पैदा हुआ सबसे छोटा सदस्य (Member) जिसे 3 साल की उम्र में ही क्रिकेट से प्यार हो गया था और प्यार भी इतनी शिद्दत (Passion) वाला था कि 9 साल की उम्र तक विराट कोहली के पिता (Father) ने भी ये मान लिया था कि उनका यह बेटा इस खेल में कुछ बड़ा करने के लिए ही पैदा हुआ है।
विराट कोहली के पिता को क्रिकेट (Cricketer) का खेल बहुत पसंद था और अपने पिता के नक्शे कदम पर विराट कोहली को भी यह खेल समझने में समय नहीं लगा लेकिन यहां जैसे जैसे यह समझ बढ़ने लगी विराट ने अपनी पसंद से प्यार करना शुरू कर लिया।
नौ (Nine) साल (Age) की उम्र में अपने पिता की ऊंगली पकड़कर विराट राजकुमार शर्मा के पास गए और जहां प्रेम कोहली ने यह कहकर अपने बेटे को राजकुमार शर्मा के हवाले कर दिया कि आज से विराट ने जो सपना (Dream) देखा है वो कहां तक पुरा होगा और किस तरह पुरा होगा ये आप पर निर्भर (Depend) करता है, आज से विराट आपका है।
राजकुमार शर्मा उस समय (Time) बहुत से लड़कों को क्रिकेट सिखा रहे थे और यह लड़का भी उन्हें आम लड़कों जैसा ही लगा लेकिन एक सप्ताह (Week)  के बाद विराट कोहली राजकुमार शर्मा के सबसे चहेते स्टूडेंट (Student) बन गए थे, विराट की काबिलियत (Ability) बढ़ती गई तो अलग अलग जगहों से अलग-अलग ओफर्स (Focus) भी बढ़ते गए लेकिन विराट के पिता ने अपने बेटे को एक ही जगह बनाये रखा।
ग्यारहवीं कक्षा में पढ़ाई लिखाई छोड़कर विराट कोहली ने जब क्रिकेट को अपना पुरा समय (Time) देना शुरू किया तो अंडर 14 के लिए दिल्ली की टीम में शामिल नहीं होने वाली बात उनके लिए एक धक्के की तरह थी।
लेकिन विराट कोहली ने कभी भी खुद को अंतरराष्ट्रीय (International)  क्रिकेट से पहले ठहर (Stay) जाने के लिए तैयार नहीं किया था, अंडर 15 में विराट ने अपनी जगह बनाई, घंटों अपने कोच (Coach) की डांट के बावजूद मैदान (Field) पर प्रैक्टिस (Practice) करते रहना विराट की आदत बन गई थी, अपने पिता के साथ क्रिकेट खेलने के लिए दुर दराज सफर करना, पिता के साथ क्रिकेट को लेकर बातें करना विराट कोहली के लिए क्रिकेट जैसे सबकुछ हो गया था।
लेकिन यहां आकर साल 2006 में जब विराट अपनी टीम को फोलोओन (Follow on ) से बचाने के लिए खेल रहे थे तब उनके पिता (Father) का निधन (Death) हो गया, यह वो पल था जो सही मायनों में विराट के सपनों (Dreams) की कीमत और हैसियत मालूम करने वाला था, विराट ने यहां पर अपने पिता के सपनों को अहमियत (Importance) दी और 90 रन बनाए, टीम मुश्किलों से बाहर आ गई तब विराट कोहली अपने घर पहुंचे और एक बेटे (Son) का फर्ज निभाया।
जुलाई 2006 में विराट कोहली अंडर (Under) नाइनटीन (Nineteen) टीम का हिस्सा बन गए थे जहां दो सालों बाद अपनी कप्तानी (Captaincy) में देश को विश्व (World) चैंपियन (Champion) बनाया, विराट कोहली को विश्व (World) चैंपियन (Champion) बनने के बाद वाली दुनिया का कोई अनुभव नहीं था, हर कोई अब इस नौजवान (Young) को पहचानने लगा था, विराट कोहली को आईपीएल (IPL) में चयनित (Selected) किया गया,जिन खिलाड़ियों (Players) को विराट टेलीविजन (Television) पर देखते हुए बड़ा हुआ था वो अब उनके साथ खेल रहे थे।
विराट कोहली शोहरत की दुनिया में आकर थोड़े समय (Time) के लिए ही सही लेकिन बहक गए थे, लेकिन फिर उन्होंने खुद को संभाला और हर स्टेज (Stage) पर अच्छे प्रदर्शन को देखते हुए विराट कोहली को साल 2008 में ही श्रीलंका जाने वाली भारतीय (Indian) टीम में शामिल कर लिया गया।
श्रीलंका के खिलाफ वीरेंद्र सहवाग की जगह और फिर इंडिया ए में शिखर धवन की जगह 19 साल के विराट को जहां भी मौका मिला उन्होंने खुद को बेहतरीन साबित (Proved) किया।
अलग अलग सीरीज (Series) में अलग-अलग कारणों (Resion) के चलते विराट को अंतरराष्ट्रीय (International) क्रिकेट (Cricket) में जगह मिलने लगी थी और साल के अंत तक आते आते बीसीसीआई (BCCI)  ने विराट को ग्रेड (Grade) डी कोन्ट्रेक्ट (Contract) भी सौंप दिया था लेकिन अंदर बाहर का सिलसिला फिर भी चलता रहा।
युवराज सिंह की जगह दिसम्बर 2009 में श्रीलंका के खिलाफ अपने देश में खेलते हुए वनडे (ODI) क्रिकेट में अपना पहला शतक (Century)  लगाया और गंभीर के साथ मिलकर अपनी टीम को जीत दिलाने में अहम (Importance) भूमिका निभाई थी।
कुछ साल पहले जो सपना पिता और बेटे ने मिलकर देखा था उसे अब पुरा करने का दारोमदार विराट कोहली अकेले उठा रहे थे, लेकिन अभी तक विराट सिर्फ बड़े खिलाड़ियों (Players) की जगह भरने के लिए नेशनल (National) टीम में खेल रहे थे और इसलिए हर एक मौका उनके लिए आखिरी (Last) मौके (Chance) की तरह था, विराट खेलते रहे, वनडे (ODI) क्रिकेट में उन्होंने खुद की क्षमता को साबित कर दिया था, विराट जल्द ही भारतीय टीम के लिए इस फोर्मेट (Format)  में सबसे तेज 1000 रन (Run) पुरे करने वाले बल्लेबाज (Bowlers) भी बन गए थे।

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विराट का मकसद (Motive)  अब भारत के लिए विश्व (World) कप खेलने वाली टीम में शामिल (Involved) होना था जिसके लिए यह खिलाड़ी साल 2010 में अपने देश (Country)  के लिए वनडे क्रिकेट में सबसे ज्यादा रन बनाने वाला बल्लेबाज (Batsman) बना।
वनडे (Oneday) रैंकिंग (Ranking) में दुसरे स्थान (Place) पर पहुंचने के साथ ही विराट कोहली ने विश्व (World) कप (Cup) के लिए टीम (Team)  में अपना स्थान पक्का कर लिया और हर मैच में टीम का हिस्सा बने रहे, बांग्लादेश के खिलाफ सहवाग ने अपना वादा पूरा किया तो वहीं विराट कोहली भी विश्व कप के डेब्यू (Debut)  मैच में शतक (Century) लगाने वाले पहले भारतीय (Indian) बल्लेबाज (Batsman) बन गए थे।
भारतीय टीम फाइनल (Final) में पहुंचीं तो वहां भी एक खराब स्थिति में विराट कोहली ने 35 रन (Run) बनाए जो मेरे लिए शानदार अर्धशतकीय (Half century) पारियों के बीच उस मैच में भारत की जीत (Victory) में बहुत अहम जगह रखती है।
साल 2012 विराट कोहली के करियर (Career) के लिए सबसे अहम समय था, होबार्ट में श्रीलंका के 321 रनों के लक्ष्य (Target) का पीछा करते हुए विराट कोहली ने मलिंगा जैसे गेंदबाजों (Bowlers) के आगे खुद को सबसे बेहतरीन अंदाज में पेश किया और अब तक दुसरे खिलाड़ियों की जगह आने वाले कोहली ने खुद के दम पर हमेशा के लिए अपना स्थान (Place) पक्का कर लिया था, विराट कोहली अब टीम के लिए सभी फोर्मेटस (Formats) खेल रहे थे, इसी साल कोहली ने एशिया (Asia) कप (Cup)  में पाकिस्तान के 330 रनों लक्ष्य (Target) हासिल करने के लिए अपने करियर (Career) का 11 वां शतक (Century) लगाया और कुल 183 रन बनाकर महानतम चेज (Chase) मास्टर साबित किया।
विराट कोहली के पास अब सबकुछ था, भारतीय क्रिकेट का भविष्य (Future) उनकी तरफ टकटकी लगाए बैठा हुआ था, लेकिन कोहली खुद से खुश नहीं थे।
उन्होंने एक दिन खुद को शीशे में देखा लेकिन शीशे में नजर आ रहा विराट अंतरराष्ट्रीय (International) खेल के किसी भी स्तर को मेच नहीं कर रहा था, यहां से विराट ने खुद को पुरी तरह से बदलने का सिलसिला शुरू किया जिसका परिणाम आज सबके सामने है।
साल 2013 में आस्ट्रेलिया के खिलाफ वनडे (ODI) सीरीज (Series) में कोहली ने सबसे तेज शतक (Century) का रिकॉर्ड (Record) अपने नाम किया, सबसे तेज 17 शतक लगाने का कारनामा किया, आस्ट्रेलिया के खिलाफ वो सीरीज इस सदी में भारतीय जमीन पर हुई सबसे यादगार (Memorable) सीरीज थी जिसका एक कारण कोहली के रिकॉर्ड्स (Records) और रन भी थे।
आस्ट्रेलिया के खिलाफ सीरीज के बाद कोहली वनडे रैंकिंग (Raninking) में पहली बार शीर्ष पर पहुंच गए थे, अगले साल इंग्लैंड के खिलाफ टेस्ट सीरीज (Deries) में कोहली ने अपने करियर का सबसे खराब समय भी देखा, अचानक भारतीय टीम के सबसे बेहतरीन बल्लेबाज की एबिलिटी पर प्रश्न चिन्ह खड़े हो गए थे, कोहली ने अपने छ साल के छोटे से करियर में रिकॉर्ड्स बनाए, तोड़े, लोगों के ताने भी सुने, सबकुछ देखा लेकिन अब भी बहुत कुछ सफर में था।
साल 2014 के आखिरी दिनों में आस्ट्रेलिया के खिलाफ एडिलेड में कप्तान (Captaincy) के तौर पर शतकीय (Century) पारी खेलना, कप्तान (Captain) के तौर पर अपनी पहली टेस्ट सीरीज में 692 रन बनाने वाले विराट की निगाहें अब अगले विश्वकप (World cup) पर थी जहां भारत डिफेंडिंग (Defending) चैंपियन (Champion) के तौर पर उतरने वाली थी।

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पहले मैच में कोहली ने शतकीय पारी खेली लेकिन आखिरी मैच में कुछ बड़ा न करने के कारण कोहली के बारे में बोला जाने लगा कि यह बल्लेबाज (Batsman) बड़े मैचों का खिलाड़ी नहीं है, आईपीएल (IPL) में भी अपनी टीम के लगातार बुरे प्रदर्शन का ठीकरा भी विराट कोहली पर फोड़ा गया, और फिर अगले साल जब कोहली के बेहतरीन प्रदर्शन के बावजूद भी टीम फाइनल (Final) में हार गई तो कोहली को सबसे बदकिस्मत खिलाड़ी का टैग (Tag) मिल गया।
यानि कि अब विराट दुनिया (World) की नजर में अपनी टीम की हार का एकमात्र कारण बन गए थे, रिकार्ड्स (Records)  का सिलसिला जारी था, हर सीरीज में कोहली बेहतरीन प्रदर्शन कर रहे थे लेकिन दुनिया अब इस बल्लेबाज की खामियां पकड़ने निकल गई थी।
साल 2017 चैम्पियनश (Champions) ट्राफी (Trophy) में पाकिस्तान के खिलाफ फाइनल (Final) में एक बार फिर विराट बड़े मौके पर अच्छा नहीं कर पाये तो एक बार फिर दुनिया की नजरों में आ गए, लेकिन विराट को बड़े मौकों का खिलाड़ी नहीं मानने वाले लोगों को 2014 टी20 विश्वकप (World Cup) , पाकिस्तान के खिलाफ आस्ट्रेलियाई धरती पर 76 रनों की उस ऐतिहासिक (Historical) पारी को याद करना चाहिए।
विराट फिर भी सबकुछ पिछे छोड़कर खेल रहे थे, उनके खराब प्रदर्शन का कारण अनुष्का शर्मा को बताया गया, मैदान पर इस खिलाड़ी के बिहेवियर (Behaviour) पर सवाल उठाए गए और आखिर में विराट कोहली की कप्तानी (Captaincy) में जब भारतीय टीम कोई भी बड़ा टूर्नामेंट (Tournament) जीतने (Win) में सफल (Success) नहीं हो पाई तो सभी आंकड़ों को दरकिनार कर दुनिया (World) ने कोहली को असफल कप्तान मान लिया।
आंकड़ों की तरफ देखे तो कोहली दक्षिण अफ्रीका में वनडे सीरीज (Series) जीतने वाले पहले भारतीय कप्तान है, विराट कोहली का एक टेस्ट कप्तान के तौर पर सबसे बड़ा विनिंग (Wining) परसेंटेज (Percentage)  है, कोहली की कप्तानी में भारतीय टेस्ट (Test) टीम हर मायने में दुनिया की सबसे बेहतरीन टीम बनी, इनके अलावा भी अनेकों ऐसे आंकड़े हैं जो विराट को भारतीय क्रिकेट इतिहास (History) का सबसे महानतम कप्तानों की फेहरिस्त में शामिल करते हैं।
टेस्ट क्रिकेट में भारत को अविश्वसनीय उपलब्धियां देने के मामले में विराट कोहली को मैं टाइगर पटौदी के समकक्ष मानता हूं जिन्होंने अपने दौर में टीम को बिना डरे अपने अंदाज में खेलना और जीतना सिखाया था, कोहली की कप्तानी में आस्ट्रेलियाई धरती पर हमारे दबदबे की कहानी भूला देने वाली दास्तां नहीं है।

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शानदार कप्तानी करियर (Career)  होने के बावजूद भी इस खिलाड़ी ने जिस माहौल से तंग (Narrow) आकर कप्तान के पद से इस्तीफा (Resign)  दिया वो भारतीय क्रिकेट और इससे प्यार करने वाले लोगों की मानसिकता को बहुत अच्छे से बयां करती है।
विराट कोहली एक ऐसा इंसान जिसने अस्पताल में अपने पिता को आखिरी सांस लेते हुए देखा और फिर भी मैदान पर उतरने की हिम्मत जुटाई, भारतीय टेस्ट क्रिकेट को उच्चतम स्तर पर ले जाने के बाद भी एक असफल कप्तान मानकर खुद को कप्तानी से दुर कर लिया, जिसने हर मैच में बेहतरीन प्रदर्शन किया यह जानते हुए कि एक खराब मैच आयेगा और यह दुनिया सबकुछ भूल जायेगी, विराट कोहली एक इंसान जिसका जो सचिन तेंदुलकर के उन रिकार्ड्स (Records) को तोड़ने वाले सबसे बड़े खिलाड़ियों की सूची में सबसे आगे खड़ा है जो कभी असंभव से लगते थे।
विराट कोहली ने 70 से 71 वें शतक तक पहुंचने के लिए 1000 से ज्यादा दिनों का इंतजार किया और अब यह सफर लगातार आगे बढ़ते जा रहा है।
भारतीय टेस्ट क्रिकेट इतिहास के सबसे सफल कप्तान पद्म श्री विराट कोहली के नाम आज 76 शतकीय पारियां है, लगभग 26000 रन है और 500 मैच है जिन्हें अगर तोड़कर देखें तो इतने रिकार्ड्स निकलकर आते हैं जिनकी गीनती कर पाना संभव नहीं है।
आखिर में मेरे लिए विराट कोहली इस जेनरेशन का सबसे महानतम खिलाड़ी हैं, और मुझे नहीं लगता मुझे इस वाक्य को बदलने की जरूरत भविष्य में पड़ने वाली है।
आप अपनी राय कमेंट बॉक्स में जरुर साझा कीजिए, आप से फिर मिलेंगे अगले पोस्ट में तब तक के लिए नमस्कार।

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