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कहानी क्रिकेट के पहले मास्टर ब्लास्टर की |

दोस्तों आज क्रिकेट में पावर हिटिंग एक आम सी बात लगती है।चाहे ओडीआई (ODI) हो या टी 20, पर अब तो ये मिजाज़ (Mood) टेस्ट में भी देखने को मिलता है, खिलाड़ी अच्छे से अच्छी गेंद को भी सीमा (Limit) रेखा (Line) के पार मारने का दम रखते हैं। जहां पहले अधिक ध्यान तकनीक (Technique) और टाइमिंग पर दिया जाता था, वहीं आज ताकत (Strength) को अधिक तवज्जो (Attention) दी जाती है। लेकिन आज हम जिस खिलाड़ी की बात करेंगे उसने आज से 30 साल पहले ही टी 20 बल्लेबाज़ी (Batting) की, और अपने समय से काफ़ी आगे की अटैकिंग (Attacking) क्रिकेट खेल बैलगाड़ी के दौर में ही दौर में उस वक्त रॉकेट चला डाले, जब क्रिकेट में अधिक दबदबा (Dominance) गेंदबाजों (Bowlers) का था। जिस वक्त ऑस्ट्रेलिया,पाकिस्तान और वेस्टइंडीज के गेंदबाजों के खिलाफ़ लगभग हर बल्लेबाज़ रन बनाने को जूझता (Battling) था, उस वक्त इस दिग्गज ने आतिशी अंदाज़ (Style) में पहली गेंद से ही खूब रन बटोर उनके मन में भी डर पैदा कर दिया। ब्रेट ली की 160 की गति हो या वसीम अकरम की बनाना स्विंग (Swing) से लेकर शेन वॉर्न की फिरकी (Spin) को मैदान के पार कराने वाले उस दिग्गज ने 90 के दशक में ओवर डिफेंसिव हो रहे खेल को अपने ताबड़तोड अंदाज़ से मशहूर (Famous) कर दिया। जिसने एक गेंदबाज की इतनी बेरहमी से पिटाई की, कि वह पेस छोड़ स्पिन कराने लगा। जी हां दोस्तों, हम बात कर रहे हैं क्रिकेट के पहले मास्टर ब्लास्टर सनथ जयसूर्या की। जयसूर्या विश्व (World) के उन हरफनमौला (All Rounder) खिलाड़ियों में शामिल हैं, जिन्होंने अपना करियर (Career) तो बतौर बल्लेबाज शुरू किया, मगर अंत तक आते आते विश्व के महान बल्लेबाज के रूप में जाने गए जिनके नाम अनेकों रिकॉर्ड बने, साथ ही वे हर गेंदबाज के लिए नाइटमेयर (Nightmare) भी बने। और उनकी क्रांतिकारी बल्लेबाज़ी को हर खिलाड़ी ने फ़ॉलो किया। तो आज हम नारद टीवी के इस पोस्ट में आपको रूबरू कराते हैं इस घातक खिलाड़ी के जीवन के कुछ अनछुए (Untouched) पहलुओं  (Aspects) से। साथ ही जानेंगे वो अजीब किस्सा, जब एक पेसर ने जयसूर्या के आतंक के आगे घुटने टेक स्पिन गेंदबाजी की। तो चलिए शुरूआत करते हैं इस महान जीवन के प्रारंभ से।

                                                                                                        Sanath Jayasuriya

सनथ जयसूर्या का जन्म 30 जून 1969 को दक्षिण श्रीलंकाई शहर मटारा में हुआ। उनका पूरा नाम देशबंधु सनथ तेरन जयसूर्या है। और ताजुब की बात तो ये है कि उनके परिवार का दूर दूर तक क्रिकेट से कोई नाता (Relation) नहीं था। उन्होंने अपनी पढ़ाई मटारा के सेंट सर्वेशियस कॉलेज से पूरी की। वहीं उनके क्रिकेट के जुनून और गुणों (Properties) को सींचने और उनके टैलेंट को तराशने का काम किया उनके प्रिंसिपल जीएल गलप्पथी और कोच (Coach) लायनेल वागासिंघे ने। यहां वे पढ़ाई के साथ साथ इंटर स्कूल टूर्नामेंट (Tournament) भी खेला करते थे। स्कूली दिनों से ही कमाल का खेल दिखाने वाले जयसूर्या ने 1988 में “बेस्ट बैट्समैन” एवं “बेस्ट ऑल राउंडर ” जैसे अवॉर्ड भी जीते। इसी वर्ष उन्होंने अंडर 19 विश्व कप में श्रीलंका का प्रतिनिधित्व भी किया। इसके बाद उन्हें पाकिस्तान दौरे पर जाने वाली श्रीलंका बी टीम में शामिल किया गया। जहां उन्होंने 2 नाबाद दोहरे शतक (Century) ठोक। इसी की बदौलत उन्होंने श्रीलंका की नेशनल टीम में जगह बनाई।

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साल 1989 में उन्होंने ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ़ पदार्पण (Debut) किया। हालांकि अपने पहले एकदिवसीय (ODI) मैच में वे केवल 3 रन बनाकर आउट हो गए। जयसूर्या शुरुआती कुछ वर्ष अंतरराष्ट्रीय (International) क्रिकेट में गेंदबाजी तो अच्छी करते, लेकिन बल्ले से कुछ ख़ास कमाल नहीं कर पाए। परंतु घरेलू क्रिकेट में उनके लाजवाब प्रदर्शन को देख टीम मैनेजमैंट ने उन्हें बैक किया और 1991 में जयसूर्या ने न्यूजीलैंड के खिलाफ़ अपना पहला टेस्ट खेला। जहां उन्होंने 35 रन बनाए। परंतु इसी वर्ष पाकिस्तान के खिलाफ़ टैस्ट में 77 और नाबाद 35* रन बनाकर अपनी बेहतरीन स्ट्रोकप्ले का नज़ारा पेश (Present) किया। अधिकतर नंबर 6 और 7 नंबर पर बल्लेबाजी करने वाले जयसूर्या को मौके तो लगातार मिल रहे थे,उन्हें शुरूआत भी अच्छी मिलती, परंतु टेस्ट क्रिकेट की तरह वे ओडीआई में उसे बड़े स्कोर में तबदील करने में असफल रहते। साल 1993 में नंबर 3 पर बल्लेबाज़ी करते हुए उन्होंने अपना पहला एकदिवसीय अर्धशतक (Half Century) जड़ा। अब जो होने वाला था, उसने आने वाले बल्लेबाज़ों को सही मायनों (Ways) में गेंदबाजों (Bowlers) के मन में खौफ पैदा करना सिखाया। यहीं से जयसूर्या ने सलामी बल्लेबाजी शुरू की। अब तक केवल मिडिल ऑर्डर या लोअर ऑर्डर में खेलने वाले जयसूर्या का करियर (Career) जो फीका (Pale) जा रहा था। उसे 1994 में उस वक्त एक नई उड़ान मिली जब उन्होंने न्यूज़ीलैंड के खिलाफ़ 140 रन की लाज़वाब (Amazing)पारी खेल अपना पहला ओडीआई (ODI) सैंकड़ा (Hundreds) जड़ा। वहीं 1996 में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ़ 112 रन की पारी खेल उन्होंने अपना पहला टेस्ट शतक भी बनाया। इसी वर्ष उन्होंने केवल 17 गेंद में सबसे तेज़ अर्धशतक जड़ दिया जो रिकॉर्ड (Record) 19 साल तक कायम रहा। ये उनके करियर की पीक (Peak) का मात्र एक ट्रेलर (Trailer) था। इसी साल विश्व (World) कप भी होना था। जो जयसूर्या के करियर का टर्निंग (Turning) प्वाइंट (Point) साबित हुआ। श्रीलंका को विश्व विजेता बनाने में उनका काफ़ी अहम योगदान (Contribution) था। अपने शानदार ऑल राउंड प्रदर्शन के चलते वे मैन ऑफ़ द टूर्नामेंट भी बने। इस दौरान भारत के खिलाफ उस मैच को भला कौन भूल सकता है। अरुण जेटली स्टेडियम में जब सचिन के लाज़वाब शतक के दम पर भारत ने 272 रन का लक्ष्य (Target) खड़ा किया था,जो उन दिनों काफी बड़ा माना जाता था।पारी का आगाज़ करने आए जयसूर्या और रमेश कालुविथारन की जोड़ी 90 के दशक की सबसे घातक जोड़ी थी। और उन्होंने इस बात का सबूत पेश करते हुए उस दिन एक गेंदबाज का करियर (Career) ही खत्म कर दिया। गेंदबाजी की शुरूआत करने आए लोकल (Local) बॉय मनोज प्रभाकर के पहले ही ओवर में 11 रन पड़ गए। कप्तान (Captain) अज़हर ने मनोज पर भरोसा दिखाते हुए दोबारा ओवर (Over) दिया जहां जयसूर्या ने काफ़ी बेरहमी से उनकी पिटाई करते हुए उनके ओवर में 22 रन लूट (Heist) लिए। क्राउड (Crowed) भी इतने गुस्से (Angry) में आ गया कि प्रभाकर मुर्दाबाद के नारे लगने लगे और दिल्ली की स्टेट टीम के कप्तान को केवल 2 ओवर में 33 रन पड़ गए। अब तक जो मनोज तेज़ गेंदबाजी कर रहे थे, वे मिडिल ओवर्स में अचानक स्पिन गेंदबाजी (Bowling) करने लगे और वहां भी उन्होंने 2 ओवर में 14 रन लुटा दिए। भारत तो मैच हारा ही, साथ ही प्रभाकर का 12 साल का करियर भी उस मुकाबले में ताबड़तोड़ 79 रन बनाने वाले जयसूर्या ने केवल 12 गेंदों में ख़त्म कर दिया। ये मैच उनके करियर का आखरी (Last) मैच साबित (Proven) हुआ जिसके बाद उन्हें कभी टीम में शामिल (Involved) नहीं किया गया और अंदर से टूट चुके प्रभाकर ने सन्यास (Retirement) ले लिया।

                                                                                                          Manoj Prabhakar

वहीं क्वार्टर (Quarter) फाइनल में केवल 44 गेंदों में 82 रन की आतिशी पारी ने इंग्लैड की कमर तोड़ दी। वहीं सेमिफाइनल में इनफॉर्म सचिन तेंदुलकर और अजय जडेजा, संजय मांजरेकर का विकेट चटका कर उन्होंने श्रीलंका को फाइनल पहुंचाया। पूरे टूर्नामेंट में 7 विकेट लेने वाले जयसूर्या ने 131 के ताबड़तोड स्ट्राइक (Strike) रेट से 221 रन उस वक्त बनाए जब टी 20 का जन्म भी नहीं हुआ था,और ना ही पावरप्ले का कॉन्सेप्ट (Concept) ।अब तो वे गेंदबाज़ों के लिए दहशत (Panic) का दूसरा नाम बन गए। वसीम अकरम हों या ग्लेन मैकग्रा, जयसूर्या के आतंक से कोई न बच सका। वे पहले 15 ओवरों की फील्डिंग रिस्ट्रिक्शंस (Restriction) का पूरा फ़ायदा उठाते हुए चौकों, छक्कों की बारिश करते हुए तेज़ी से रन बटोर करते। उनके कट, हुक और पुल शॉट सबसे शानदार हुआ करते। अपने करियर के सबसे अच्छे दौर में चल रहे जयसूर्या ने अब रनों की बरसात करनी शुरू कर दी। पहले 1996 में पाकिस्तान के खिलाफ़ मात्र 48 गेंदों में उन्होंने विश्व का सबसे तेज़ शतक बना डाला। जिसे कुछ ही समय बाद शाहिद अफरीदी ने तोड़ डाला। और 1997 में भारत के खिलाफ विस्फोटक 340 रन की पारी खेल जयसूर्या ने अपना सर्वाधिक (Most)  टेस्ट स्कोर (Score) भी बनाया और मैन ऑफ़ द मैच बने। इसी वर्ष वे विजडन क्रिकेटर ऑफ़ द इयर भी बने।

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जयसूर्या को रोकना किसी भी गेंदबाज के लिए बेहद मुश्किल होता, क्योंकि वे पहली ही गेंद से हमला बोल दिया करते। केवल 5 ओवरों के अंदर मैच का रुख पलट देने वाले जयसूर्या सारा मोमेंटम श्रीलंका के हक में ला दिया करते। 1999 में वे श्रीलंका के कप्तान भी बने। साल 2000 में इतिहास बनते बनते रह गया। जब कोका कोला चैंपियंस ट्रॉफी फाइनल में उन्होंने भारत के खिलाफ 189 रन ठोक डाले। वे दोहरा (Double) शतक लगाने वाले पहले खिलाड़ी बन सकते थे। लेकिन अंतिम ओवरों में आउट हो गए। जयसूर्या कभी रिकॉर्ड्स के लिए खेलते ही नहीं थे,वे चुप चाप आते और अपना काम कर चले जाते। साल 2001–02 में जिम्बाब्वे के खिलाफ़ टैस्ट में 9 विकेट लेकर जयसूर्या ने अपना सर्वश्रेष्ठ (Best) प्रदर्शन किया। 2003 विश्व कप में भी जयसूर्या का कोहराम जारी रहा जहां उन्होंने टीम को शानदार शुरूआत दिलाई और टीम की कप्तानी (Captaincy) भी की रन बनाए और 10 विकेट भी लिए। 2005 में बंग्लादेश के खिलाफ़ वे 100 टैस्ट खेलने वाले पहले श्रीलंकाई खिलाड़ी बने। 2006 में उन्होंने इंग्लैड के खिलाफ़ टी 20 में भी अपना कदम रखा। ये फॉर्मेट जयसूर्या के लिए कुछ नया नहीं था, क्योंकि वे तो एक दशक से भी अधिक से ये ताबड़तोड़ खेल दिखा रहे थे। और अपने पहले ही मुकाबले में 41 रन बनाकर और 2 विकेट लेकर मैन ऑफ़ द मैच बने। इसी वर्ष उन्होंने इंग्लैड के खिलाफ़ 152 रन की विस्फोटक पारी खेल उन्होंने पहले विकेट के लिए थरंगा (Tricolor) के साथ रिकॉर्ड 286 रन जोड़े। ये दौरा काफ़ी यादगार रहा जहां श्रीलंका ने इंग्लैड को उसी की सरजमीं (Land) पर 5–0 से शिकस्त दी। अपने बल्ले से आग उगलने वाले जयसूर्या मैन ऑफ़ द सीरीज (Series) बने। 2007 विश्व कप में उन्होंने शानदार 98 के स्ट्राइक रेट से 467 रन बनाए। श्रीलंका को फाइनल में पहुंचाने में उनका काफ़ी अहम योगदान रहा। पर दूसरी बार श्रीलंका चैम्पियन बनते बनते रह गए। और जयसूर्या के आउट होते ही ऑस्ट्रेलिया ने मुक़ाबला जीत लिया। इसी वर्ष जयसूर्या ने टेस्ट क्रिकेट से संन्यास (Retirement) लिया। अपने आख़री मुकाबले में उन्होंने एक अदभुत रिकॉर्ड बनाया जिसे काफ़ी कम लोग जानते हैं। इंग्लैड के खिलाफ़ एक टैस्ट में उन्होंने जेम्स एंडरसन को एक ओवर में 6 चौके जड़ ये करनामा करने वाले पहले श्रीलंकाई खिलाड़ी बने। लेकिन बढ़ती उम्र के साथ सनथ को मौके मिलने कम हो गए और ओपनिंग स्लॉट भी छीन गया।

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2008 में उनका करियर लगभग ख़त्म माना जा रहा था। लेकिन आईपीएल (IPL) में मुंबई इंडियंस की ओर से खेलते हुए उनका प्रदर्शन शानदार रहा और 514 रन बनाने के बाद एशिया कप में उनके सिलेक्शन (Selection) के लिए खेल मंत्री को हस्तक्षेप (Interference) करना पड़ा।और उन्होंने प्रेशर (Pressure) में लाजावाब शतकीय (Century) पारी खेली जिसके दम पर श्रीलंका विजेता बना। आईपीएल में फैंस ने दो मास्टर ब्लास्टर (सचिन तेंदुलकर और सनथ जयसूर्या) की एक ही टीम शानदार बल्लेबाज़ी का काफ़ी आनंद उठाया। जहां जयसूर्या की 114(48) रन की पारी आज भी सभी को याद है।41 की आयु में जयसूर्या की 2011 में टीम में फिर वापसी हुई। उन्होंने 2011 का विश्व कप खेल सन्यास लेने की इच्छा जताई थी।लेकिन उन्होंने टीम में शामिल नहीं किया गया और इस दिग्गज ने 2011 में क्रिकेट से संन्यास की घोषणा (Announcement) करदी। भले ही विस्फोटक बल्लेबाज़ी के एक युग का अंत हो गया परंतु उनकी लैगेसी (Legacy) आज भी बरकरार है जिसे लगभग हर खिलाड़ी फॉलो (Follow) करता है। पावरप्ले (Powerplay) का सही उपयोग (Use) करना जयसूर्या ने ही दुनिया को सिखाया (Taught)। अपने 22 वर्ष के करियर में जयसूर्या ने अनेकों यादगार (Memorial) लम्हें (Moments) दिए और अविश्वसनीय (Incredible) कीर्तिमान (Record) भी कायम किए।अपने करिश्माई करियर में इस बेखौफ ऑलराउंडर ने 110 टेस्ट,445 एकदिवसीय (ODI) और,31 टी 20 मुकाबलों में क्रमश: 6973,13430 और 629 रन बनाए। साथ ही उनके गेंदबाजी आंकड़े भी लाजवाब हैं। जहां उन्होंने ओडीआई में 323, टेस्ट में 98 और टी 20 में 19 विकेट लिए। अपनी इन उपलब्धियों (Achievements) के बावजूद उनकी इतनी सराहना नहीं होती और वे एक अंडररेटेड (Underrated) ऑलराउंडर हैं। कमाल की बात तो ये है कि उनके ओडीआई विकेट शेन वॉर्न से भी ज़्यादा हैं।

आइए उनके रिकॉर्ड्स पर एक नजर:
एकदिवसीय क्रिकेट में 10000 रन और 300 से अधिक विकेट लेने वाले जयसूर्या एकलौते (Only ones) खिलाड़ी हैं। वे एकदिवसीय क्रिकेट के सबसे सफ़ल बाएं हाथ के स्पिनर (Spiner) हैं। उनके नाम श्रीलंकाई बल्लेबाज द्वारा सर्वाधिक एकदिवसीय स्कोर (189) और सर्वाधिक शतक(28) का भी रिकॉर्ड है। टेस्ट में तिहरा शतक लगाने वाले भी वे पहले श्रीलंकन है। एक वक्त उनके नाम सबसे तेज़ 50,100,और 150 रनों का भी रिकॉर्ड था। विश्व (World) कप मुकाबलों में वे 1000 रन और 25 विकेट लेने वाले इकलौते हरफनमौला (All rounder) हैं। ओडीआई में 90 से भी अधिक स्ट्राइक रेट से 10000 रन बनाने वाले वे पहले खिलाड़ी हैं।

तो दोस्तों ये थी कहानी विश्व के सबसे विस्फोटक खिलाड़ियों में शुमार सनथ जयसूर्या की। आज की पोस्ट में इतना ही।आशा करते हैं कि आपको ये पोस्ट पसंद आई होगी, इसे अपने दोस्तों में शेयर ज़रूर करें।

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