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1971 टेस्ट सीरीज की कहानी जब इंडिया ने पहेली बार वेस्टइंडीज और इंग्लैंड को घर में घुसकर हराया।

भारत देश का अन्तर्राष्ट्रीय क्रिकेट इतिहास लगभग नब्बे साल पहले शुरू हुआ था जिसके बाद से साल दर साल हमारा देश इस खेल के अन्तर्राष्ट्रीय प्रारुप में अपनी मौजूदगी दर्ज करवाता रहा है।

अपने पहले पचास सालों में भारत भले ही इस खेल की सबसे मजबूत टीम बनकर नहीं उभर पाया था लेकिन इन सालों के दौरान भारतीय टीम का प्रदर्शन दुसरी बहुत सी टीमों से अच्छा था और क्रिकेट पंडित धीरे धीरे ही सही लेकिन यह मानने लगे थे कि क्रिकेट के मैदान पर भारत बहुत जल्दी एक बड़ी शक्ति के रूप में उभरेगा।

आप में से ज्यादातर लोग इस बात की सच्चाई को साल 1983 वर्ल्डकप की जीत से जोड़कर देख रहे होंगे लेकिन उस जीत से 12 साल पहले भी कुछ ऐसा हुआ था जिसने भारत के लोगों में क्रिकेट को अपनाने और इसके बारे में जानने की जिज्ञासा पैदा कर दी थी।

60 के दशक में भारतीय क्रिकेट टीम-

60 के दशक में भारतीय क्रिकेट टीम अपने सबसे अच्छे खिलाड़ियों के शानदार प्रदर्शन की बदौलत एक अच्छी टीम बनकर सामने आ रही थी, उस समय भारतीय क्रिकेट टीम में टाइगर पटौदी और दिलीप सरदेसाई जैसे शानदार खिलाड़ी थे जो अपने करियर की सबसे उम्दा फोर्म से भी गुजर रहे थे लेकिन इस दशक के अंत तक आते आते भारतीय टीम के कुछ अनुभवी खिलाड़ियों का प्रदर्शन जहां उनका साथ देने से मना कर रहा था तो वहीं कुछ खिलाड़ियों की उम्र उनके खेल के आड़े आ रही थी।

ऐसे में साल 1969 – 70 के दौरान यह तय किया गया कि अब भारतीय टीम में कुछ नये खिलाड़ियों को शामिल करना चाहिए और इसलिए कुछ बड़े खिलाड़ियों का टीम से बाहर होना तय था।

यह फैसला इसलिए भी जरूरी था क्योंकि उस समय तक भारतीय क्रिकेट टीम विदेशी जमीन पर एक भी मैच नहीं जीत पाई थी और साल 1971 में  भारतीय टीम को वेस्टइंडीज और इंग्लैंड की जमीन पर उस दौर की दो सबसे बेहतरीन टीमों से सीरीज खेलनी थी।

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टाइगर पटौदी

टाइगर पटौदी

विदेशी जमीन पर अपनी पहली जीत का इंतजार कर रही भारतीय टीम के सलेक्शन बोर्ड के सामने कई सवाल थे, अगर टाइगर पटौदी टीम से बाहर रहेंगे तो अगला कप्तान कौन बनेगा और किस अनुभवी खिलाड़ी की जगह कौनसा नया खिलाड़ी लेगा?

साल 1971

इन सवालों के जवाब से पहले एक किस्सा सुनने को मिलता है कि साल 1971 के पहले महीने में जब वेस्टइंडीज जाने के लिए भारतीय टीम का सलेक्शन होना था उस दौरान एक दिन अजीत वाडेकर जो उस समय अपने खराब फोर्म से गुजर रहे थे उन्होंने भारतीय टीम के कप्तान टाइगर पटौदी को फोन कर उनसे कहा कि वो टीम में उनके लिए यानि अजीत वाडेकर के लिए जगह रखने की कोशिश जरूर करें। इसके जवाब में पटौदी ने कहा कि वो तो ठीक है लेकिन अगर तुम कप्तान बने तो मेरे लिए भी जगह रखना।

कोई टीम बुरी फोर्म से गुजर रहे किसी खिलाड़ी को भला कप्तान क्यों बनायेगी? ये सोचकर वाडेकर ने पटौदी की बात को हंसी हंसी में मान लिया और अपने सलेक्शन का इंतजार करने लगे।

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अजीत वाडेकर

अजीत वाडेकर

13 जनवरी साल 1971 की बात है, वेस्टइंडीज के खिलाफ उनकी धरती पर टेस्ट सीरीज के लिए भारतीय टीम का सलेक्शन हुआ जिसमें अजीत वाडेकर को भारतीय टीम के नये कप्तान के रूप चुना गया और एस वैंकेटराघवन को वाईस कप्तान बनाया गया।

भारतीय टीम की चयन समिति ने पन्द्रह खिलाड़ियों का चयन किया जिसमें सुनील गावस्कर जैसे नये नाम भी शामिल थे और कुछ बड़े खिलाड़ियों को बाहर भी बैठाया गया था।

सोलहवा खिलाड़ी चुनने का अधिकार नये कप्तान वाडेकर को दिया गया और उनके सामने तीन विकल्प रख दिए गए, जिनमें से दो नाम टाइगर पटौदी और दिलीप सरदेसाई के थे।

वाडेकर को अपने कप्तान बनने की खबर भी 13 जनवरी की शाम को जब वो अपने घर के लिए पर्दे लेकर लौटे थे तब दी गई थी, दरअसल हुआ यूं था कि शाम को जब वाडेकर अपने पर्दे लेकर घर लौटे तो उनके घर के बाहर मीडिया और बाकि आम लोगों का हुजूम खड़ा हुआ था।

जब वाडेकर घर आए तो उन्हें शुभकामनाएं दी गई उनसे कई सवाल पुछे गए, वाडेकर को कुछ समझ नहीं आया, लेकिन फिर पुछताछ करने पर उन्हें पता चला कि वो उस भारतीय क्रिकेट टीम के नये कप्तान हैं जिसमें शामिल होना भी उन्हें वेस्टइंडीज दौरे के लिए मुश्किल लग रहा था।

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दिलीप सरदेसाई

दिलीप सरदेसाई

ये सब जानने के बाद जब उनसे सोलहवें खिलाड़ी को चुनने के लिए कहा गया तो उन्होंने सबसे पहले पटौदी जी को फोन किया और उनसे पुछा कि क्या वो वेस्टइंडीज दौरे पर चलेंगे? टाइगर पटौदी ने मना कर दिया जिसके बाद वाडेकर ने दिलीप सरदेसाई को अपने सोलहवें खिलाड़ी के रूप में चुन लिया जो खुद उस समय खराब प्रदर्शन करते आ रहे थे ऐसे में उन्हें चुनने के पीछे वाडेकर की एक ही वजह थी और वो ये कि उन्हें अपनी टीम में अनुभव और सरदेसाई जैसे बेहतरीन बल्लेबाज की जरूरत थी जिस पर वो आंख मुंदकर भरोसा कर सकते थे।

आखिरकार सबकुछ तय होने के बाद भारतीय टीम वेस्टइंडीज के लिए रवाना हुई लेकिन उस समय भारत से सीधे वेस्टइंडीज पहुंचने के लिए हवाई जहाज नहीं हुआ करती थी इसलिए भारतीय टीम भारत से न्यूयार्क पहुंची और वहां बोक्सर मुहम्मद अली और जोफ फ्रेजीयर के बीच का मैच देखा।

अपने समय के ये दो महान खिलाड़ी इस मैच में हैवीवेट टाइटल के लिए खेल रहे थे, इस मैच में जोफ फ्रेजीयर ने सबको चौंकाते हुए मुहम्मद अली को हरा दिया था।

इस मैच के रिजल्ट से भारतीय टीम भी अचंभित थी और साथ ही साथ उस टीम के हर खिलाड़ी के मन में एक सवाल भी उठ रहा था, वो ये कि अगर फ्रेजियर अली को हरा सकता है तो भारतीय टीम वेस्टइंडीज को क्यों नहीं हरा सकती।

वेस्टइंडीज के खिलाफ क्रिकेट के मैदान पर अपनी पहली जीत तलाश रही भारतीय टीम के लिए यह बोक्सिंग मैच भी एक तरह से अहम साबित हुआ और न्यूयॉर्क से यह टीम एक नये जज्बे और जोश के साथ वेस्टइंडीज के लिए रवाना हुई।

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सबाईना पार्क

1971 किंगस्टन का सबाईना पार्क

अब आते हैं पहले मैच पर जो 18 से 23 फरवरी 1971 किंगस्टन के सबाईना पार्क पर खेला गया था।

गुंडप्पा विश्वनाथ के चोटिल हो जाने के कारण इस मैच में दिलीप सरदेसाई को खेलने का मौका मिला लेकिन सुनील गावस्कर इस मैच से अपना टेस्ट डेब्यू नहीं कर पाए थे।

वेस्टइंडीज के कप्तान गैरी सोबर्स ने टोस जीतकर पहले गेंदबाजी करने का फैसला लिया और भारतीय टीम बल्लेबाजी करने उतरी।

लेकिन उस समय वेस्टइंडीज की घातक गेंदबाजी लाइनअप के सामने जो हाल लगभग हर टीम का हो रहा था वही हाल इस मैच में भारतीय टीम का भी नजर आया, भारतीय टीम 75 के स्कोर पर अपने पहले पांच विकेट गंवा चुकी थी।

इसके बाद मैदान पर उतरे दिलीप सरदेसाई ने अपने साथी एकनाथ सोलकर के साथ मिलकर अपने अनुभव और शानदार बल्लेबाजी स्किल की मदद से वेस्टइंडीज की गेंदबाजी लाइनअप को अगले 137 रनों तक सर उठाने का मौका नहीं दिया।

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एकनाथ सोलकर

दोनों बल्लेबाज भारत की पारी को आगे बढ़ा रहे थे जिसमें एक समय ऐसा भी आया जब कैरीबियाई कप्तान नई गेंद लेने वाले थे और सरदेसाई जी को मालूम था कि नई गेंद के साथ वेस्टइंडीज की पेस बैटरी की भी वापसी होगी जो भारत के लिए अच्छी बात नहीं है इसलिए उन्होंने एकनाथ सोलकर को अपने पास बुलाया और कहा कि अब से तुम्हें वेस्टइंडीज के स्पिन गेंदबाजों की हर गेंद पर रन नहीं बनाने है।

जो गेंद तुम्हें विकेट से बाहर निकलती लगे उसे इस तरह छोड़ना है जैसे लगे कि तुम आउट होते होते बचे हो, इससे सोबर्स को लगेगा कि उसके स्पिनर अच्छा कर रहे हैं और वो कभी भी विकेट ले सकते हैं।

अपनी मंशा को पुरा करने के लिए सरदेसाई जी भी कैरीबियाई गेंदबाजों की कुछ गेंदे जानबूझकर छोड़ने लगे और हर छूटती गेंद पर well bowled चिल्लाते, इससे सोबर्स को यह यकीन हो गया कि उनके गेंदबाज अच्छा प्रदर्शन कर रहे हैं और उन्होंने नई गेंद लेने का विचार छोड़कर स्पिन गेंदबाजों को ही अटैक पर लगाए रखा और इससे एकनाथ सोलकर और सरदेसाई को रन बनाने में मुश्किल नहीं हुई।

387 के स्कोर पर भारतीय टीम आलआउट हो गई जिसमें से 212 रन अकेले सरदेसाई जी ने बनाए थे और 61 रन सोलकर के बल्ले से निकले थे।

मुश्किल समय पर विकट स्थितियों में विश्व क्रिकेट की सबसे बड़ी टीम के खिलाफ खेलते हुए सरदेसाई जी भारत की तरफ से विदेशी जमीन पर दोहरा शतक लगाने वाले पहले खिलाड़ी बन गए थे और इस पारी का प्रभाव यह रहा कि कैरीबियाई टीम इस चोट से कभी उबर नहीं पाई और पहली पारी में सिर्फ 217 रन ही बना पाई।

इस चोट की आग में घी डालने का काम वाडेकर ने वेस्टइंडीज के ड्रेसिंग रूम में पहुंचकर किया और अपने आइडल सोबर्स से कहा कि आपकी टीम को फोलोओन खेलना पड़ेगा तैयार हो जाओ, यह बात वेस्टइंडीज के अहम पर एक करारा थप्पड़ था जिससे कैरीबियाई टीम पुरी सीरीज के दौरान जूझती रही।

आखिरकार यह मैच ड्रा पर खत्म हुआ लेकिन भविष्य की पटकथा में भारत के लिए यह मैच सबसे ज्यादा अहम साबित हुआ था।

अगला मैच 6 मार्च को शुरू हुआ जिसमें वेस्टइंडीज ने एक बार फिर टोस जीतकर पहले बल्लेबाजी करने का फैसला किया लेकिन भारतीय गेंदबाजों के सामने बड़ा स्कोर खड़ा नहीं कर पाई और सिर्फ 214 रन ही बना पाई, इरापल्ली प्रसन्ना ने चार विकेट लिए थे।

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सुनील मनोहर गवास्कर
सुनील मनोहर गवास्कर

सुनील मनोहर गवास्कर ने इस मैच से अपने अन्तर्राष्ट्रीय क्रिकेट करियर की शुरुआत की और पहली पारी में वेस्टइंडीज के खिलाफ खेलते हुए शानदार 65 रन बनाए, दिलीप सरदेसाई के नाम एक बार फिर सेंचुरी लिखी गई और भारतीय टीम एक बड़ी बढ़त हासिल करने में कामयाब रहा।

वेस्टइंडीज टीम इस मैच में अपनी बल्लेबाजी से किसी भी पारी में छाप नहीं छोड़ पाई और आखिरकार भारतीय टीम ने यह मैच सात विकेट से अपने नाम कर लिया और दुसरी पारी में भी गवास्कर के बल्ले से शानदार अर्धशतकीय पारी आई थी।

तीसरा मैच ड्रा रहा जिसकी पहली पारी में सुनील‌ गवास्कर ने अपने टेस्ट करियर का पहला शतक लगाया था और दुसरी पारी में भी इस बल्लेबाज का प्रदर्शन जारी रहा और इन्होंने अपने नाम के आगे एक अर्धशतक दर्ज करवा लिया।

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गैरी सोबर्स

गैरी सोबर्स

चौथा मैच एक अप्रैल से शुरू हुआ जिसमें इस सीरीज में पहली बार वेस्टइंडीज टीम अपनी बल्लेबाजी से प्रभाव छोड़ने में कामयाब रही थी, पहले खेलते हुए वेस्टइंडीज ने पांच सौ एक रनों का पहाड़ खड़ा कर दिया था जिसमें गैरी सोबर्स ने शानदार नाबाद 178 रन बनाए थे।

भारतीय बल्लेबाजी इस मैच में पिछड़ी हुई नजर आई लेकिन इस सीरीज में लगातार शानदार प्रदर्शन करते आ रहे दो बल्लेबाज दिलीप सरदेसाई और गवास्कर ने यहां भी अपना काम बखूबी पुरा‌ किया अपनी शतकीय पारियों की मदद से मैच ड्रा कराने में सफल रहे।

13 अप्रैल से इस सीरीज का अंतिम मैच शुरू हुआ जिसमें दोनों ही टीमें टोस जीतकर पहले बल्लेबाजी करना चाहती थी, वेस्टइंडीज अपने घर में पहली बार भारत से हार गया था लेकिन सीरीज गंवाना सोबर्स को मंजूर नहीं था तो दूसरी तरफ भारत यह मैच भी जीतना चाहता था।

टोस के लिए दोनों कप्तान मैदान पर उतरे और ज्यों ही सिक्का उछला वाडेकर ने पिछले चार मैचों की तरह हेड्स बोलने की जगह टेल्स बोल दिया, सोबर्स का ध्यान सिक्के पर था उन्होंने वाडेकर की आवाज पर ध्यान नहीं दिया क्योंकि उन्हें लगा कि वाडेकर ने इस बार भी हमेशा की तरह हेड्स ही बोला होगा, सिक्का गिरा तो टेल्स नजर आ रहा था दोनों कप्तानों को लगा कि वो टोस जीत गए हैं और इसीलिए दोनों कप्तानों ने एक साथ अपना निर्णय बताया कि वो बैटिंग करना चाहते हैं।

अब दोनों टीमें एक साथ तो बैटिंग नहीं कर सकती थी इसलिए कुछ समय के लिए मैदान पर सन्नाटा छा गया सभी लोग ये सोचने लगे कि आखिर टोस किसने जीता है।

आखिरकार सोबर्स ने बड़ा दिल रखते हुए भारत के‌ निर्णय को स्वीकार कर लिया और भारतीय टीम पहले बल्लेबाजी करने उतरी।

सुनील गावस्कर ने पहली पारी में एक और शतक लगाया तो वहीं सरदेसाई ने भी शानदार अर्धशतक पूरा कर भारत का स्कोर 360 तक पहुंचा दिया था।

जवाब में वेस्टइंडीज टीम ने भी शानदार खेल दिखाया और  526 रन बनाए जिसमें सोबर्स के बल्ले से शतक आया था।

अपनी दुसरी पारी में खेलने उतरी भारत की शुरुआत अच्छी नहीं रही लेकिन यहां सरदेसाई की वो भविष्यवाणी सही हो गई जो उन्होंने पहले मैच के दौरान वेस्टइंडीज के खिलाड़ियों के सामने सुनील गावस्कर के लिए बताई थी।

दरअसल पहले मैच के दौरान सरदेसाई ने वेस्टइंडीज के खिलाड़ियों को गवास्कर का परिचय देते हुए कहा था कि तुम लोग मुझे छोड़ दो ये इक्कीस साल का लड़का भी तुम्हारी टीम के खिलाफ दोहरा शतक लगाएगा, आखिरी मैच की दुसरी पारी में गवास्कर ने शानदार 220 रन बनाए।

आखिरकार यह मैच भी ड्रा रहा और भारतीय टीम वेस्टइंडीज के खिलाफ पहली बार सीरीज जीतने में कामयाब रही।

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वाईस कैप्टन वैंकटराघवन

वाईस कैप्टन वैंकटराघवन

सुनील गावस्कर ने इस सीरीज के चार मैचों में 774 रन बनाए थे तो वहीं सरदेसाई ने भी 642 रनों का योगदान दिया था। भारत के वाईस कैप्टन वैंकटराघवन ने सबसे ज्यादा बाईस विकेट अपने नाम किए थे।

इस सीरीज में लिटिल मास्टर सुनील गावस्कर के खेल से खुश होकर वेस्टइंडीज के एक संगीतकार ने गवास्कर की बैटिंग पर आधारित एक गाना भी रिलीज किया था।

वेस्टइंडीज के बाद भारतीय टीम इंग्लैंड के लिए रवाना हुई और वहां भी तीन मैचों की टेस्ट सीरीज भी एक जीरो से अपने नाम करने में सफल रही।

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गणेश चतुर्थी

गणेश चतुर्थी

तीसरे मैच के आखिरी दिन गणेश चतुर्थी थी और इस दिन जब भारतीय टीम मैच से पहले प्रेक्टिस कर रही थी तभी रसियन सर्कस से निकला एक हाथी अचानक मैदान में घुस गया जिसे देखकर भारतीय टीम के मैनेजर ने वाडेकर से कहा कि आज गणेश चतुर्थी का त्योहार है और हाथी के रूप में शायद भगवान गणेश जी ही हमें आशीर्वाद देने आये है, ये सुनकर वाडेकर हाथी के पास गये और उनका आशीर्वाद लिया।

आखिरी दिन गणेश जी के आशीर्वाद से भगवत चन्द्रशेखर ने छः विकेट लेकर इंग्लैंड को 101 पर आलआउट कर दिया और भारत पहली पारी में पिछड़ने के बाद भी यह मैच जीतने में कामयाब रही।

अपने देश से खाली हाथ निकली भारतीय टीम जब फिर से अपने देश पहुंची तो दो बड़ी टीमों के खिलाफ शानदार प्रदर्शन और जीत उनके साथ थी जिसे देखते हुए उनका मुम्बई में शानदार स्वागत किया गया, साथ ही रेडियो के जमाने में जो लोग अपने खिलाड़ियों को खेलते हुए नहीं देख पाए थे उनके लिए सिनेमाघरों में एक मीनी फिल्म चलाई गई जहां लोग अपने हीरोज को देख सकते थे।

साल 1971 शायद वह पहला मौका था जब भारतीय लोगों ने क्रिकेट खिलाड़ियों को अपना हीरो, सुपरस्टार और अपना आइडल माना था।

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