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Wriddhiman Saha : सन्यास के लिए मजबूर क्यों किया गया

Wriddhiman Saha
Wriddhiman Saha Biography

 Wriddhiman Saha Biography: कहानी उस सुपरमैन कीपर की, जिसने 20 गेंद में शतक जड़ कोहराम मचा दिया था। कहानी उस होनहार खिलाड़ी की, जिसे कहकर सन्यास के लिए मजबूर किया गया  जिसका करियर मैदान से ज़्यादा बेंच पर बैठे बैठे निकल गया जिसका करियर धोनी और पंत के बीच फसकर रह गया।

दोस्तों भारतीय क्रिकेट का इतिहास हमेशा से ही महान विकेटकीपर बल्लेबाजों का साक्षी रहा।हर दौर में एक से बढ़कर एक अलौकिक टैलेंटेड विकेटकीपर आए जिन्होंने भारतीय क्रिकेट की प्रतिष्ठा में चार चांद लगाए। चाहे वो 60 के दशक में महान फारुक इंजीनियर हों,या 70-80 के दशक में सैयद किरमानी, या फिर विश्व कप विजेता महेंद्र सिंह धोनी, जिन्होंने भारत को सभी आईसीसी ट्रॉफी जीताई। या फिर मौजूदा दौर में ऋषभ पंत, जिन्होंने मात्र 24 वर्ष को उम्र में कई कीर्तिमान स्थापित किए। विकेटकीपरों की होड़ तो हर दौर लगी रही। स्थापित खिलाड़ियों की तो सबने वाहवाही की,लेकिन इन सबके बीच कुछ खिलाड़ी ऐसे भी रहे जिनका करियर केवल इंतज़ार की भेट चढ़ गया। उन्हें ना ही अधिक मैच खेलने को मिले और ना ही अधिक सराहना। उन्हें मौका तभी मिलता जब ये खिलाड़ी या तो चोटिल होती,या फिर आराम पर।आज हम ऐसे ही एक। अनसंग हीरो की बात करेंगे जो विकेट के पीछे चीते सा फुर्तीला तो था ही,साथ ही बल्ले से भी उपयोगी रन बनाता।उनकी सुपरमैन कीपिंग के चलते विराट कोहली ने भी उन्हें विश्व का सर्वश्रेष्ठ कीपर बताया। लेकिन इसके बावजूद उसका करियर धौनी युग और पंत युग के बीच फंसा रह गया। और तो और, उन्हें कहकर टीम से बाहर किया गया, साथ ही संन्यास लेने पर भी मजबूर किया गया। जी हां हम बात कर रहे हैं ऋद्धिमान प्रसांत साहा की।

जन्म और करियर :

ऋद्धिमान प्रसांत साहा का जन्म 24 अक्तूबर 1984 को पश्चिम बंगाल में सिलीगुड़ी में हुआ। साहा ने अपनी पढ़ाई सिलीगुड़ी बॉयज हाई स्कूल से की।वे बचपन से ही कुछ बड़ा करना चाहते थे। और जनाब को क्रिकेट में रुचि तो थी ही। वे अपना आदर्श विश्व के सर्वकालिन महान खिलाड़ी एवं क्रिकेट के भगवान के नाम से मशहूर सचिन तेंदुलकर को मानते हैं। और भारतीय टीम में खेलने के सपने देखने लगे। उन्होंने अपना क्रिकेटिंग करियर पहले स्कूल क्रिकेट, और फिर बंगाल के लिए एज ग्रुप क्रिकेट खेलते हुए आगे बढ़ाया। उनका विकेट के पीछे ग्लव वर्क तो शानदार था ही,साथ ही उनकी बेखौफ बल्लेबाज़ी उनका स्वभाव था। अंडर 19 और अंडर 22 में कमाल करने वाले साहा को 2006–07 के रणजी सत्र में उस वक्त पदार्पण करने का मौका मिला जब बंगाल टीम के प्रमुख विकेटकीपर दीप दासगुप्ता इंडियन क्रिकेट लीग साइन कर चुके थे।

अपने पहले ही मुकाबले में 111 रनों की यादगार पारी खेल साहा ऐसा कारनामा करने वाले 15वे खिलाड़ी बने। आगे ज़ोनल लेवल टूर्नामेंट में साहा ईस्ट जोन की तरफ से खेले।

लगातार रनों का पहाड़ खड़ा करने वाले साहा को 2008 आईपीएल में कोलकाता नाइट राइडर्स की टीम ने अपने साथ जोड़ा। यह लोकल बॉय तीन साल तक फ्रैंचाइजी का हिस्सा रहा।
2009–10 रणजी सत्र में भी साहा का बल्ला खूब गरजा और 5 मुकाबलों में उन्होंने 318 रन ठोक डाले। उनके इस शानदार प्रदर्शन की बदौलत उन्हें भारतीय टेस्ट स्क्वॉड में जगह मिली।2010 में दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ़ नागपुर टेस्ट में साहा ने पदार्पण किया।अब इसके पीछे भी एक अनोखा किस्सा है दोस्तों। वो कहते हैं ना कि दाने दाने पे लिखा है खाने वाले का नाम। उस स्क्वॉड में युवा रोहित शर्मा भी मौजूद थे।

और क्योंकि साहा बतौर रिज़र्व विकेटकीपर उस टीम में थे, तो इस मुक़ाबले में रोहित को खिलाया जाना था।लेकिन वीवीएस लक्ष्मण चोट से उभर नहीं पाए,और मैच से एक शाम पहले प्रैक्टिस सेशन में अपना टखना चोटिल कर बैठे रोहित मुक़ाबले से बाहर हो गए।और “one man’s loss other man’s opportunity ” बना ऋद्धिमान साहा के लिए। हालांकि बतौर स्पेशलिस्ट बल्लेबाज खेल रहे साहा पहली पारी में खाता भी नहीं खोल पाए।वहीं दूसरी पारी में 150 गेंद खेल उन्होंने गजब का धैर्य दिखाते हुए 36 रन बनाए। भारत मैच तो हारा ही,साथ ही साहा प्लेइंग 11 से भी ड्रॉप।इसी वर्ष उन्होंने न्यूजीलैंड के खिलाफ़ एकदिवसीय में भी पदार्पण किया।हालांकि अपने पहले मुक़ाबले में वे केवल 5 रन बनाकर आउट हो गए।

अब क्योंकि भारतीय कप्तान महेंद्र सिंह धोनी उस वक्त तीनों प्रारूपों में टीम की कमान संभाल रहे थे,साथ ही बतौर विकेटकीपर बल्लेबाज टीम की पहली पसंद भी थे, और दिनेश कार्तिक, पार्थिव पटेल जैसे खिलाड़ियों का टीम से अंदर बाहर लगे रहना इस बात को और पुख़्ता करता कि घरेलू क्रिकेट में अच्छा करने के बावजूद साहा को अधिक मौके मिलने नहीं वाले थे। वे स्क्वॉड में तो होते, लेकिन केवल बेंच पर देखे जाते।यही चीज़ आईपीएल में भी देखने को मिली जब ऋद्धिमान साहा 2011 में सीएसके की टीम से खेले। लेकिन धोनी और अन्य दिग्गजों के टीम में होने के कारण उन्हें अधिक मौके नहीं मिले।2 साल बाद उन्हें 2012 बॉर्डर गावस्कर सीरीज के चौथे मुकाबले में अपना दूसरा टेस्ट खेलने का मौका तब मिला जब स्लो ओवर रेट के चलते धोनी को बैन कर दिया गया। उस मुकाबले में साहा ने 35 रन बनाए। साहा 2013 के दक्षिम अफ्रीकी दौरे, एवं 2014 के इंग्लैंड, न्यूजीलैंड दौरे पर टीम का हिस्सा थे।

लेकिन उन्हें एक भी मुकाबला नहीं खिलाया गया।धोनी के चोटिल होने पर साहा को लगभग 3 साल बाद अगला टेस्ट खेलने का मौका 2014 में बॉर्डर गावस्कर सीरीज के पहला टेस्ट में मिला। इसके बाद धौनी के अचानक संन्यास लेने के बाद साहा चौथा मैच खेले।
2014 आईपीएल में साहा किंग्स इलेवन पंजाब (अब पंजाब किंग्स) की टीम से खेले। उस सीज़न तो साहा अलग ही फॉर्म में थे। मात्र 49 गेंदों में शतक पूरा कर, वे आईपीएल के फाइनल में शतक लगाने वाले पहले बल्लेबाज बने। हालांकि उनकी 115 रनो की पारी टीम को जीत न दिला सकी लेकिन उन्होंने उस सीजन अपनी एक गहरी छाप छोड़ी। जहां 145 के ताबड़तोड स्ट्राइक रेट और 32 की औसत से उन्होंने 362 रन बनाए।अब साहा भारतीय टेस्ट टीम में विकेटकीपर बल्लेबाज के लिए पहली प्राथमिकता बन गए।2015 में श्रीलंका के खिलाफ़ लगातार 2 मुकाबलों में 2 पचासे लगाकर बढ़िया लय में दिखे।

2016 में साहा ने वेस्टइंडीज के खिलाफ़ 104 रनो की पारी खेल अपने करियर का पहला शतक लगाया। ये शतक उस वक्त आया जब भारत 126/5 पर संघर्ष कर रहा था।इसी वर्ष न्यूजीलैंड के खिलाफ़ अपने घरेलू मैदान पर दोनों पारियों में पचासे लगाकर पहली बार साहा मैन ऑफ द मैच बने।वे दोनों पारियों में अर्धशतक जड़ने वाले केवल तीसरे भारतीय विकेटकीपर बल्लेबाज बने ।साल 2017 साहा के लिए काफ़ी अच्छा रहा जहां उन्होंने 2 शतकीय पारियां खेली। पहले बांग्लादेश के खिलाफ़ उनकी शतकीय पारी, उसके बाद ऑस्ट्रेलिया के 451 रनों के विशाल टोटल के आगे उनका महत्वपूर्ण शतक जहां उन्होंने पुजारा के साथ 7वे विकेट के लिए 199 रन जोड़े।2018 में दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ़ टेस्ट में 10 कैच लेकर साहा ने इतिहास रच दिया। वे ऐसा कारनामा करने वाले पहले भारतीय विकेटकीपर बने।साहा का करियर उस वक्त काफ़ी अच्छे दौर से गुज़र रहा था कि तभी उनकी हेमस्ट्रिंग में चोट आ गई। जिसके चलते वे आखरी टेस्ट नहीं खेले। लेकिन चोट के बावजूद उन्होंने आईपीएल खेला, जिससे चोट और बढ़ गई और उन्हें सर्जरी करानी पड़ी। इस गलती का उनके करियर पर काफ़ी प्रभाव पड़ा।

2018 में इंग्लैंड के खिलाफ़ 5 टेस्ट मैच श्रृंखला में उनका चयन नहीं हुआ। और ऋषभ पंत को टीम में शामिल किया गया।ऋषभ के ज़ोरदार आगाज़ और आकर्षक स्ट्रोक प्ले के चलते वे विकेटकीपर बल्लेबाज के लिए टीम की पहली पसंद बन गए,और साहा का चयन 2018-19 ऑस्ट्रेलियाई दौरे में नहीं हुआ।साहा ने 2019 में दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ़ श्रृंखला में वापसी की, और बांग्लादेश के खिलाफ़ उन्होंने कीपिंग में 100 शिकार पूरे भी पूरे किए।अब तक जिस साहा को कप्तान धोनी के लिए बाहर बैठना पड़ता था, अब उन्हें टैलेंटेड युवा ऋषभ पंत के चलते बाहर बैठना पड़ता। साहा की फ़िटनेस में तो कोई कमी नहीं थी,और ना ही उनकी कीपिंग में, लेकिन अब वे बल्ले से इतने कारगर नहीं रहे थे,जिसकी वजह से उन्हें मौके मिलने और कम हो गए।2020-21 की ऐतिहासिक बॉर्डर गावस्कर सीरीज में उन्हें केवल पहले मुकाबले में मौका मिला जहां उन्होंने केवल 9 और 4 रन बनाए।अगले मुकाबलों में ऋषभ का कोहराम देखने को मिला।

साहा 2021 की इंग्लैड श्रृंखला एवं डब्ल्यूटीसी फाइनल के स्क्वाड में तो थे, लेकिन प्लेइंग 11 में नहीं।कौन जानता था कि उसी वर्ष न्यूजीलैंड के खिलाफ़ नवंबर में टेस्ट सीरीज में साहा आखरी बार भारतीय जर्सी में दिखेंगे। उनका चयन बतौर पहली प्राथमिकता हुआ। दूसरी पारी में गर्दन में चोट के बावजूद उन्होंने 61 रनों की शानदार पारी खेली, जिससे उनकी काफी वाहवाही हुई।लेकिन इसके बाद वो हुआ जो काफी कम खिलाड़ियों के साथ देखने को मिलता है।आने वाली श्रीलंका के खिलाफ़ सीरीज के लिए साहा का चयन नहीं हुआ।उनकी जगह के एस भरत को टीम में चुना गया। इसके बाद शुरू हुआ विवादों का सिलसिला।61 रनो की पारी के बाद साहा को एक तरफ़ बीसीसीआई अध्यक्ष सौरव गांगुली ने ये आश्वासन दिया कि उनके कार्यकाल में साहा को मौके मिलते रहेंगे।

जबकि कोच राहुल द्रविड़ ने यह साफ़ कर दिया था कि अब आगे उन्हें भारतीय टीम में कभी शामिल नहीं किया जाएगा, बल्कि युवा खिलाड़ियों को मौका दिया जाएगा।और ये तक कह डाला कि वे संन्यास लेना चाहें तो ले लें।हालांकि साहा ने ये साफ कर दिया कि अभी वे खेलना चाहते हैं।लेकिन इससे एक बात साबित हो गई कि सौरव गांगुली कहते कुछ और है और करते कुछ और।इसके अलावा जर्नलिस्ट बोरिया मझुमदार के साथ उनकी विवादित चैट भी सामने आई जहां बोरिया जबरदस्ती साहा से इंटरव्यू देने को कहते हैं और धमकाते हैं। पर साहा ने उन्हें मीडिया के सामने ला दिया और बोरिया को 2 साल का बैन हो गया। यही नहीं, बंगाल क्रिकेट संघ के किसी अफसर ने जब साहा की निष्ठता पर सवाल उठाए तो साहा ने बंगाल से मुंह मोड़ लिया। हालांकि वे रणजी स्क्वॉड में थे, लेकिन उन्होंने एनओसी लेकर इस कड़वाहट को ख़त्म कर दिया। आगे चलकर वे त्रिपुरा की टीम से रणजी ट्रॉफी खेलेंगे।वहीं वे आईपीएल में विजेता रही गुजरात टाइटंस की टीम का हिस्सा हैं जिनके लिए 2022 सत्र में उन्होंने शानदार प्रदर्शन किया।लेकिन इस दिग्गज का करियर का जिस प्रकार अंत हुआ। ये वाकई दुखद है।
साहा ने अपने करियर में कुल 40 टेस्ट और 9 ओडीआई में क्रमश:1353 और मात्र 41 रन बनाए। उनके नाम घरेलू क्रिकेट में सबसे तेज़ शतक बनाने का भी रिकॉर्ड है जो उन्होंने 2018 में केवल 20 गेंदों में बनाया था।

तो दोस्तों ये थी कहानी भारत के सबसे फिट और फुर्तीले लेकिन बेहद बदनसीब विकेटकीपर बल्लेबाजों में शुमार रिद्धिमान साहा की।

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