दोस्तों कहते हैं कि क्रिकेट में लक (Luck) का होना बहुत जरूरी है। हो सकता है आप टैलेंटेड (Talented) हों। हो सकता है आप खूब हार्ड (Hard) वर्क (Work) करते हों। आपकी गेम भी अच्छी होगी। लेकिन अगर मौके ही न आपकोहीं मिल रहे, तो इससे बड़ी बदकिस्मती (bad luck) की बात और क्या हो सकती है। क्रिकेट में, खासतौर पर भारतीय क्रिकेट में रोज आए दिन कोई न कोई टैलेंट सामने आता है,लेकिन टीम में मौका तो सिर्फ 11 लोगों को ही मिलता है ना। बाकी या तो अपना पूरा करियर सिर्फ इंतजार करते रह जाते हैं, या फिर हार कर कोई दूसरी कंट्री (Country) से खेलने चले जाते हैं। और जो मेजॉरिटी (Majority) बच जाते हैं। वो लोकल टूर्नामेंट (Tournament) , रणजी ट्रॉफी (Tournament), या थोड़ी अच्छी किस्मत हो तो आईपीएल (IPL) खेल लेते हैं। और उनका टैलेंट एक दिन ऐसे ही अमोल मजूमदार, देवेंद्र बुंदेला की तरह दम तोड़ देता है। हर किसी का लक उनका साथ दे ऐसा जरूरी नहीं। लेकिन जब किस्मत आपके साथ हो तो कहीं से भी आप का मौका बन ही जाता है। बस जरूरत होती है उसे ग्रैब करने की, कैपिटलाइज (Capitalize) करने की। कहते हैं ना कि वन मेंस लॉस इस अगर मेंस अपॉर्चुनिटी (Opportunity) । एक का नुकसान दूसरे का फायदा। ऐसा ही कुछ क्रिकेट में भी होता रहता है। क्रिकेट इतिहास में कई ऐसे मौके आए जब बड़े खिलाड़ी चोटिल (Injured) हो गए और उनका मैच खेलना संभव न था। तभी कुछ यंग (young) लड़कों को मौके मिले,उन्होंने उन मौकों को खूब भुनाया (Redeemed)और क्रिकेट की दुनिया में अपनी एक अलग छाप छोड़ी, अविस्मरणीय (Unforgettable) पहचान बनाई और खूब नाम कमाया। आज उनमें से कोई हम सबके दिलों पर राज करने वाले किंग कोहली है तो कोई टेस्ट का नंबर एक बल्लेबाज (Batsman) मार्नस लाबुशेन है। जी हां दोस्तों, इन खिलाड़ियों के इंटरनैशनल (International) क्रिकेट में ब्रेकथ्रू का कारण ही दूसरे बड़े खिलाड़ी का अनुअस्थित (bsent), अनअवेलेबल (Unable) होना था। ये बड़े खिलाड़ी आज इसलिए नहीं है क्योंकि इनका नाम बड़ा है। बल्कि इसलिए कि इन्हें जब भी मौक़ा मिला, जैसे भी मौक़ा मिला, इन्होंने परफॉर्म (Performance) किया। और बड़ा तगड़ा किया। आज की पोस्ट में हम आपसे कुछ ऐसे हैरान कर देने वाले नामी खिलाड़ियों (Players) का ज़िक्र करेंगे, जो अपनी टीम में बतौर इंजरी (Injury) रिप्लेसमेंट (Replacement) ही आए थे, बोले तो प्लेइंग (Playing) इलेवन में वह आए तो थे टीम की मजबूरी में, लेकिन फिर ऐसा परफॉर्म (Performance) कर गए कि इन्हें हर प्लेइंग इलेवन (Eleven) में रखना ही टीम की मजबूरी हो गई।
5. जब माइकल वॉन की जगह आए सर एंड्रू स्ट्रॉस: इंग्लैंड की ओपनिंग (Opening) हमेशा से ही बड़ा सरदर्द रही है। हां, जिन्होंने अब से क्रिकेट फॉलो (Follow) करना शुरु किया है उन्हें शायद ये बात हजम न हो। लेकिन ये समस्या (Problem) हमेशा से ही इंग्लैंड (England) क्रिकेट पर मंडराती (Hovering) रही। टैस्ट क्रिकेट में भी अब जाकर एक सही ओपनिंग जोड़ा मिला। लेकिन आज से 15–20 साल पहले से ही ये खोज (Search) चलती आ रही है। बात है 2000–01 की। जब मार्कस (Market) ट्रेसकोथीक (Trescothick) एक छोर संभाल बखूबी अपनी ड्यूटी (Duty) निभा रहे थे। वे तो एक के बाद एक बड़ी पारी खेलते जा रहे थे। दूसरी तरफ़ थे माइकल वॉन। जो कि उनका अच्छा खासा साथ दे रहे थे। सब कुछ ठीक चल रहा था।लेकिन तभी वॉन को 2004 में वो बदकिस्मत (Unfortunately) इंजरी (Injury) हो गई और वे कुछ समय के लिए क्रिकेट से दूर हो गए। यहाँ फिर वोही संकट के बादल मंडराने लगे। और तब एंट्री (Entry) हुई एंड्रयू स्ट्रॉस की। जिन्होंने मौके को दोनों हाथों से भुनाते हुए अपने पहले ही मैच में शतक (Century) जड़ 112 और 83 रनों की मैच विनिंग (Winning) पारियां खेल ओपनिंग में अपनी जगह बिल्कुल पक्की कर ली। और लगभग हर मैच में इंग्लैंड (England) के रेगुलर (Regular) प्लेअर रहे। साल दर साल कंसिस्टेंटली (Constantly) रन बनाकर इंग्लैंड को कई मैच (Match) जिताए। इसके बाद वे इंग्लैंड के सबसे सफलतम (Most Successful) और महानतम कप्तान (Captain) भी बने और 100 टैस्ट मैच खेल 7000 से भी अधिक रन बनाए। स्ट्रॉस ने सालों तक इंग्लैंड बैटिंग (Batting) को सहेजकर रखा और कमाल की शॉट्स (Shorts) से हमें काफ़ी एंटरटेन (Entertenment) भी किया।और आज विश्व (World) उन्हें सर एंड्रू स्ट्रॉस के नाम से पुकारता है। तत्काल मौके पर तत्काल कैसे परफॉर्म (Perform) करते हैं, ये स्ट्रॉस ने दुनिया को सिखाया। और कई लंबी पार्टनरशिप (Partnership) भी लगाई। उनके रिटायर (Retire) होते ही इंग्लैंड की ओपनिंग समस्याएं फिर शुरु हो गई जो सालों साल चलती रही। भले ही रेड बॉल हो, या वाइट बॉल, उनकी बल्लेबाजी (Batting) का हर किसी ने लुत्फ उठाया।
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4. जब भारत को मिली दीवार 2.0: दोस्तों 2010 का वो ऐतिहासिक (Historical) मोहाली टेस्ट (Test) तो याद ही होगा जहाँ इतने हाई (High) वोल्टेज (Voltage) और अत्यंत (Extremely) इंटेंस (Intense) मैच में भारत ने ऑस्ट्रेलिया को 1 विकेट (Wicket) से रौंद दिया था। उस मैच में भले ही जीत टीमवर्क (Team work) ने दिलाई थी। लेकिन सबसे दुर्गम काम किया था वीवीएस (VVS) लक्ष्मण ने, जो एक छोर संभाल कर खड़े रहे और बैक स्पैसम (Spams) से लड़ते हुए 73 रन की पारी खेल भारत को जीत दिलाई। लेकिन इंजर्ड (Injured) लक्ष्मण अगला मुकाबला न खेल सके थे। उनकी जगह मौका मिला सौराष्ट्र के एक 22 साल के युवा चेतेश्वर पुजारा को। जो घरेलू (Domestic) क्रिकेट में लगातार रन बनाता आ रहा था। और अपने दूसरे ही पारी में 81 के तेज़ स्ट्राईक (Strike) रेट से शानदार 72 रन बनाकर अपने टैलेंट का एक नज़ारा पेश किया। इसके बाद पुजारा ने घंटों क्रीज (Crez) पर डटे रहकर अपने संयम (Control) का लाज़वाब प्रदर्शन किया। उनकी पेशेंस ने कई गेंदबाजों (Bowlers) को थकाया। चाहे देश हो या विदेश, सबकॉन्टिनेंट (Subcontinent) हो या बाहर की सपाट पिच, पुज्जी ने डटकर खड़े रहकर भारत को जहां कई मैचों में जीत दिलाई, तो वहीं कुछ मैचों में लड़खड़ाती पारियों को संभालते हुए कई मैच बचाऊ पारियां भी खेली। गाबा की वो विकेट जहां विकेटों के पतझड़ लगे, वहाँ क्रीज पर खड़े रहकर अपने शरीर पर गेंदें खाने वाले पुजारा इस वक्त भारत की अटूट दीवार हैं जिन्होंने अपने कमाल के खेल से टैस्ट क्रिकेट में नंबर तीन की पोजिशन (Positision) को अपना बना लिया है। उस समय किसी ने नहीं सोचा था कि इंजरी रिप्लेसमेंट आया ये युवा आज भारतीय टीम का मिस्टर डिपेंडेबल होगा। आज 102 टैस्ट में उनके नाम 7000 से भी अधिक रन हैं।
3.जब लॉरेंस रोव की एग्जिट विव रिचर्ड्स को टीम में लाई: सर विव रिचर्ड्स, वो नाम जो केवल एक नाम नहीं है। ऑल टाइम ग्रेट क्रिकेटर का टैग है, फीयरलेस (Fearless) क्रिकेट की पहचान है। द एंसिएंट किंग। जिसने विश्व (World) भर के घातक से घातक गेंदबाजी आक्रमण (Attack) को तहस नहस, चकनाचूर कर डाला। वो खिलाड़ी जिसने गेंदबाजों के अंदर खौफ भर दिया था। लेकिन अपने करियर (Career) के शुरुआती दौर में उन्हें टीम से अंदर बाहर होना पड़ा। कारण, लॉरेंस रोव, वेस्टइंडीज क्रिकेट की रीढ़ (Spine) की हड्डी, जिसने सालों विव को टीम से बाहर रखा। लेकिन 1980 की उनकी करियर एंडिंग इंजरी (Injury) ने मौका दिया बेहद ही घातक बल्लेबाज विव रिचर्ड्स को। जिसने अपने बेखौफ स्ट्रोकप्ले (Stroke Play) से विश्व भर के गेंदबाजों की धज्जियां उड़ा डाली। अपनी बारी का इंतजार कर रहे विव को जैसे ही ब्रेकथ्रू मिला, उन्होंने वेस्टइंडीज को एक इनविनसीबल बना दिया। वो दौर जिसके आज भी कसीदे पढ़े जाते हैं। उस दौर में 90 के स्ट्राईक से खेलने वाले विव ने टोपी पहनकर तेज़ से तेज़ गेंदबाजों को खेल 15000 से भी अधिक रन बनाए। ऐसा इंजरी रिप्लेसमेंट दुनिया में फिर कभी ना आया, और न ही आयेगा।
2. *जब स्मिथ की जगह आया स्मिथ 2.0(लबूशेन)*: दोस्तों स्टीव स्मिथ का टेस्ट क्रिकेट में क्या कद है, उनका इस फॉर्मेट (Format) में क्या रुतबा है, ये कहने की बात नहीं है। शब्दों में बयां करने की भी जरूरत नहीं है। और जब बात होती है उनके 2019 एशेज के फॉर्म की, ओए होए होए होए, उस वक्त तो स्मिथ बेहद डिस्ट्रकटीव फॉर्म में थे। आते ही पहले मैच से ही अपने कंधों पर बैटिंग लाइन अप कैरी (Carry) करते हुए पहली पारी में 144,तो वहीं दूसरी पारी में 142 रनों की धाकड़ पारी खेल बिल्कुल अनस्टॉपेबल (Unspotable) लग रहे स्मिथ को जब दूसरे टेस्ट में जोफरा आर्चर (Archer) की वो विनाशकारी बाउंसर (Bouncer) 149 की गति से उनकी गर्दन (Neck) में बुरी तरह जा लगी और वे मैदान पर बेहोश हो/चित हो गए। तो स्मिथ दूसरी पारी से और अगले मैच से भी बाहर हो गए थे। उस पल लगा कि अब क्या होगा।ऑस्ट्रेलिया के 75% रन बनाने वाला बल्लेबाज ही मैच से बाहर। तभी क्रिकेट इतिहास (History) का पहला कनकशन (Connection) सब्स्टीट्यूट (Substitute) 24 साल का एक टैलेंटेड खिलाड़ी, जो डेब्यू (Debut) तो 2018 में कर चुका था, लेकिन अभी तक अपने करियर में प्रभावित न कर सका था। वो मारनस लबूशेन मैदान पर उतरे। उस वक्त ये कनकशन सब्स्टीट्यूट थोड़ा सा मिसमैच लगा क्योंकि 63 की औसत (Average) वाले बल्लेबाज को रिप्लेस करने आए लबूशेन का औसत मात्र 26 का था।
और आते ही जब जोफरा की पहली गेंद उनके मुंह पर लगी, ठीक वैसे ही जैसे स्मिथ को गेंद लगते ही वे गिर पड़े। लेकिन लबूशेन उठ खड़े हुए। और आते ही 59 रनों की जुझारू (Belligerent) पारी खेली। वे क्रीज़ पर घंटों खूंटा गाड़कर खड़े रहे। कई घातक गेंदों को सहजता से नेगोशिएट (Negotiate) किया। और आर्चर के बुलेट को मक्खन की तरह बाउंड्री (Boundary) पर पहुंचाया। इसके बाद 74,80,67,48 की इंपैक्टफुल पारियां खेल अपनी गहरी छाप छोड़ी। और 2019 में खेले 13 मैच में 1104 रन ठोक कोहराम मचा दिया। यही नहीं, लबूशन ने जो रनों का पहाड़ खड़ा किया, वो काबिले तारीफ़ था। आज लबूशेन के नाम 37 टेस्ट में 2 दोहरे शतक,8 शतक समेत 3394 रन हैं। साथ ही 57.5 के अविश्वसनीय (Incredible) औसत से रन बनाकर लबूशेन ने टैस्ट क्रिकेट को ही नई बुलंदियों तक पहुंचा ऑस्ट्रेलिया को लगभग अजय बना ही दिया है। यही नहीं, पिछले कुछ समय से टैस्ट क्रिकेट में एकछत्र राज करते हुए वे रैंकिंग (Ranking) में भी नंबर एक पर काबिज़ हैं। लबूशेन आए तो बतौर स्मिथ की रिप्लेसमेंट (Replacement) थे, लेकिन आज वे स्मिथ से भी कई आगे निकल चुके हैं। ये लॉर्ड्स टेस्ट उनके कैरियर का टर्निंग (Turning) पॉइंट रहा, जहां उन्होंने अपनी असली पहचान बनाई। और कई गेम चेंजिंग पारियां खेली।
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1. *वीरू की जगह वीरू(विराट कोहली)*: वीरेंद्र सहवाग, ये नाम किसी भी गेंदबाज को नाइटमैयर (Nightmare) देने के लिए काफ़ी है। दहशत का दूसरा नाम वीरू जो बड़े से बड़े गेंदबाज को भी नानी याद दिला दिया करते। अपने दिन पर किसी को भी नाकों चने चबवाने वाले इस ओपनर (Opener) का कोई सानी न था। और बेखौफ अंदाज़ से जो वो गेंदबाजों की पिटाई किया करते, उसका आज तक कोई रेप्लिका न कर पाया। लेकिन 2008 वो समय आया जब गेंदबाजों को समस्या में डालने वाले वीरू खुद समस्या में थे और उनका एंकल चोटिल हो गया था। तब मजबूरी में उनकी रिप्लेसमेंट (Replacement) चुनी गई। और ये खिलाड़ी दिल्ली का ही एक 19 साल का युवा (Young) लड़का जो अभी भारत को अंडर 19 विश्व (World) कप (Cup) जीताकर आया था। विराट कोहली। जैसा नाम वैसा ही काम विराट। बतौर ओपनर इस सीरिज (Series) में खेले विराट ने दमबुल्ला में डेब्यू (Debut) किया। हालांकि पहले मैच में वे फ्लॉप रहे और 12 ही रन बना पाए,और 5 मुकाबलों में 154 रन बनाकर भारत के लिए सेकंड हाईएस्ट रन गेटर थे। लेकिन अभी भी विराट का अंदर बाहर होना लगा हुआ था। इसके बाद कुछ समय तक उन्हें तभी मौके मिलते जब कोई खिलाड़ी इंजर्ड (Injured) होता। और 2009 में जब युवराज सिंह इंजर्ड हुए तो उन्हें श्रीलंका के खिलाफ ओडीआई (ODI) में मौका मिला। और इसी मैच में अपना पहला सेंचुरी (Century) लगा विराट ने अपने 75 शतकों का सिलसिला (Continuation) शुरू किया। अब विराट को जो मौके मिले, उन्होंने हमेशा कंसिस्टेंसी (Consistency) से परफॉर्म (Performance) किया। चाहे वो 2011 विश्व कप हो, या 2013 चैंपियंस ट्रॉफी। इसके बाद विराट ने जो कारनामे किए, जिस रफ्तार से शतक लगाए, उनके आगे सिर्फ अब सचिन ही हैं।चाहे वो रनों की बात हो, या फील्डिंग की, विराट आज लगभग हर यंगस्टर की इंस्पिरेशन है। और जो फिटनेस लेवल उन्होंने अपना मेंटेन किया है। उसकी जितनी तारीफ़ की जाए कम है। 25000 से भी अधिक अंतरराष्ट्रीय (International) रन बना चुके रन मशीन (Machine) विराट कोहली ने न केवल भारतीय क्रिकेट, बल्कि विश्व क्रिकेट के स्टैंडर्ड को बदलकर रख दिया है। उनके सेट किए ट्रैंड्स को आज देश विदेश में फॉलो किया जाता है। इस प्रकार किसी समय टीम से अंदर बाहर होने वाले विराट आज हर फॉर्मेट (Format) की हर टीम की प्लेयिंग 11 की एक सर्टेंटी (Certani) है। दुनिया उन्हें किंग कोहली कहती है। इस बात में कोई दोराय नहीं कि वे क्रिकेट इतिहास के सर्वश्रेष्ठ (Best) इंजरी रिप्लेसमेंट हैं। आज के समय में हर टीम ऐसी 3–4 इंजरी रिप्लेसमेंट की कामना करती हैं। लेकिन किंग कोहली तो एक ही है। ऐसा तो दूसरा भारत को ही नहीं मिला। दूसरों की तो बात ही छोड़ दो।
तो दोस्तों ये थे क्रिकेट इतिहास के कुछ सर्वश्रेष्ठ इंजरी रिप्लेसमेंट जो आज जाने माने दिग्गज, नामी खिलाड़ी हैं।वीडियो में। आज की पोस्ट में इतना ही।अब हमें दीजिए इजाज़त। धन्यवाद।
वीडियो देखे –