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मिथुन की एक घटिया फिल्म जो क्लासिक कल्ट बन गयी ||

कुछ फ़िल्में अपनी कहानी और दमदार डॉयलॉग्स (Dialogs) के लिए याद की जाती हैं तो कुछ, बेहतरीन डायरेक्शन (Direction) और एक्टर्स की परफॉर्मेंस (Performance) के लिए याद रह जाती हैं। वहीं दूसरी ओर बहुत सी ऐसी फ़िल्में भी हैं जो अपने बेसिर-पैर और उटपटांग डॉयलॉग्स के बावज़ूद अपने एक ख़ास दर्शक वर्ग के बीच बार-बार देखी जाती हैं और बदनाम होकर भी किसी कामयाब फ़िल्म की तरह चर्चा में बनीं रहती हैं। इन फ़िल्मों को किस श्रेणी (Category) में रखा जाये यह भी तय कर पाना मुश्किल हो जाता है। चाहे वह दादा कोंड़के की फ़िल्में हों या ‘मस्ती’ सीरीज और ‘क्या कूल हैं हम’ सिरीज की फ़िल्में, आप चाहकर भी ऐसी फ़िल्मों को बी और सी ग्रेड (C-Grade) फ़िल्में नहीं कह सकते क्योंकि उनमें स्टारकास्ट से लेकर प्रेजेन्टेशन (Presentation) तक सबकुछ ए ग्रेड (A-Grade) जैसा ही होता है। ऐसी फ़िल्मों को लेकर हम तो यही कहेंगे कि अगर इन्हें देखना हो तो दिमाग को घर पे छोड़कर ही देखने जाएं या अगर घर पर ही अकेले में देखना पड़ जाए तो दिमाग को कुछ देर के लिए अलमारी में लॉक कर दें। हम ऐसी फ़िल्मों को सपोर्ट तो नहीं करते लेकिन इतना दावा ज़रूर करते है कि बग़ैर दिमाग लगाए देखने पे ऐसी फ़िल्में आपका भरपूर मनोरंजन ज़रूर करेंगी। और इनके डॉयलॉग्स पे आप अपना सिर भी पीटेंगे और पेट पकड़ के हँसने पर भी मजबूर हो जायेंगे। 90 के दशक में एक ऐसी ही फ़िल्म आई थी जिसका नाम था ‘गुण्डा’ जो अपने डॉयलॉग और प्रेजेन्टेशन की वज़ह से रिलीज़ होते ही विवादों में आ गयी थी, लेकिन बाद में दर्शकों द्वारा मज़े लेने के लिए यह बार-बार देखी भी गयी। यहाँ तक कि सालों बाद इस फ़िल्म को दोबारा भी रिलीज़ किया गया। फ़िल्मी फैक्ट्स के अंतर्गत आज हम इस फ़िल्म से जुड़ी कई रोचक बातें लेकर आये हैं इसलिए बने  इस पोस्ट में हमारे साथ ।

नमस्कार…

दोस्तों हालिया (recent) रिलीज़ फ़िल्म आदिपुरुष को सुधार के बाद ही रिलीज़ किया गया था, जिसके बावज़ूद काफी विवाद हुआ और अब उसमें फिर से सुधार की बात की जा रही है। हालांकि यह भी सच है उसको सुधारने में अगर ईमानदारी बरती गयी तो शायद आधे घण्टे की भी फ़िल्म न बचेगी। यहाँ हम आदिपुरुष फ़िल्म की बात इसलिए कर रहे हैं क्योंकि हमने अभी-अभी यह ज़िक्र किया था कि गुण्डा मूवी भी सुधार के बाद फिर से रिलीज़ की गयी थी। और जब सुधार के बाद यह फ़िल्म ऐसी थी तो आप समझ ही सकते हैं कि इसमें क्या और कितना सुधार हुआ होगा। इसीलिए हमने आपसे पहले ही कहा कि ऐसी फ़िल्मों में दिमाग और तर्क की कोई ज़रूरत ही नहीं है। अगर देखना है तो बस मज़े लेने के लिए देखें, न दिल पे लेने की ज़रूरत है न दिमाग ख़राब करने की ही कोई मजबूरी रहेगी। हाँ ‘आदिपुरुष’ फिल्म की बात दूसरी है क्योंकि वहाँ हमारे पवित्र रामायण व हमारी आस्था की बात है और ऐसी फ़िल्मों को देखते समय दिल- दिमाग दोनों खुले रखना बहुत ही ज़रूरी था।

Gunda Movie (1998)

गुण्डा मूवी-
साल 1998 में 4 सितंबर को रिलीज़ हुई फिल्म गुण्डा में मिथुन चक्रवर्ती, मुकेश ऋषि, शक्ति कपूर, दीपक शिर्के, हरीश पटेल, इशरत अली, रामी रेड्डी, रज्जाक खान और सपना सप्पू के अलावा कई सारे जाने-अनजाने चेहरों की भरमार थी। मारुति फिल्म्स के बैनर (Banner) तले (Under) बनी एक्शन-ड्रामा फिल्म ‘गुंडा’ को बशीर बब्बर ने लिखा था और कांति शाह ने डायरेक्ट किया था। फ़िल्म का संगीत आनंद राज आनंद ने तैयार किया था और फ़िल्म के गाने उस दौर के दिग्गज सिंगर्स (Singers) ने गाये थे जिनमें मोहम्मद अज़ीज़, कुमार सानू, उदित नारायण, कविता कृष्णमुर्ति, साधना सरगम और अभिजीत की आवाज़ों के साथ-साथ नयी सिंगर पूनम भाटिया को भी मौक़ा दिया गया था।

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स्टोरी की बात करें तो फिल्म में एक कुली (Coolie) की कहानी दिखाई गयी है जिसके परिवार की हत्या गैंगस्टरों (Gangsters) और राजनेताओं (Politicians) के एक समूह द्वारा की जाती है और बाद में वह उनसे बदला लेता है। गैंगस्टर्स और बदले की एक आम कहानी पर आधारित इस फिल्म का नाम पहले गुंडागिरी रखा गया था लेकिन बाद में इसे बदलकर गुंडा कर दिया गया। हो सकता है ऐसा इसलिए भी किया गया हो क्योंकि इस फ़िल्म से कुछ सालों पहले धर्मेन्द्र और गोविन्दा की एक फ़िल्म आई थी जिसका नाम ‘दादागिरी’ था। दर्शकों को कोई कन्फ्यूजन (Confusion) न हो शायद इसलिए मिलता जुलता नाम न रखा गया हो।

विवाद व बैन-
‘गुण्डा’ फ़िल्म इतनी विवादित (Controversial) हुई थी कि उसे बैन करने तक की मांग की गयी थी और सेंसर बोर्ड की आपत्ति के बाद फिल्म को सुधार के साथ दोबारा रिलीज करना पड़ा था। दरअसल गुण्डा के रिलीज़ के बाद ही फ़िल्म में दिखाई गयी हिंसा और अश्लीलता की वज़ह से हंगामा खड़ा हो गया था और कुछ शोज़ (Shows) के लिए फिल्म को सिनेमाघरों (Movie theaters) से हटा लिया गया था क्योंकि सीबीएफसी (CBFC)  यानि केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड को उस दौरान कॉलेज (College) की लड़कियों से कई ऐसी शिकायतें मिलीं थी, जो फिल्म में हिंसा और अश्लीलता को लेकर थीं, जिनसे वे सभी काफी आहत थीं। साल 1998 की एक मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक फिल्म को पहले ही गंदी भाषा और अश्लीलता के इस्तेमाल के कारण केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड ने खारिज (Reject) कर दिया था, बाद में फिल्म निर्माताओं (Makers) द्वारा फिल्म में बदलाव करने के बाद इसे ए सर्टिफिकेट (A-certificate) के साथ पास कर दिया गया था। हालाँकि मीडिया रिपोर्ट में यह भी बताया गया था कि उस दौरान मुंबई के कुछ थिएटरों में इसे तब भी अस्वीकार (Reject) कर दिया था, जिसे लेकर फिल्म मेकर्स और थियेटर मालिकों के बीच काफी विवाद हुए थे। यह मामला तब इतना बढ़ गया था कि उस वक़्त सीबीएफसी अध्यक्ष रहीं ऐक्ट्रेस आशा पारेख को भी शहर के पुलिस आयुक्त आरएच मेंडोंका को पत्र लिखकर पुलिस विभाग से मदद लेनी पड़ी थी। आपको यह जानकर ताज्जुब (Surprise) होगा कि उस दौरान सीबीएफसी के दखल के बावज़ूद यह आरोप लगाया गया था कि सिनेमाघरों में चल रहे प्रिंट पहले वाले ही दिखाए जा रहे थे जो कि कानूनन ग़लत थे। बाद में मामला शांत होने पर मुंबई, हैदराबाद और बेंगलुरु से दायर मामले वापस ले लिए गए और फिल्म को मंजूरी दे दी गई थी। ख़ैर यह विवाद तो किसी तरह थम गया था लेकिन कुछ ही दिनों में ट्रक ड्राइवर एसोसिएशन (Association) ऑफ इंडिया ने फिल्म के खिलाफ एक मुकदमा दायर (Filed) कर दिया, जिसमें आरोप लगाया गया कि फिल्म के कई डॉयलॉग्स (Dialogs) की तुकबंदी (Rhyme scheme) भारतीय परिवहन ट्रकों, विशेष रूप से खतरनाक पदार्थ ले जाने वाले ट्रकों के पीछे लिखी लाइन्स से नकल की गई थीं। हालांकि यह मामला ज़्यादा आगे नहीं बढ़ सका और जल्द ही मुकदमे को निचली पीठ ने यह कहकर इसे खारिज कर दिया था कि, “यदि शिकायतकर्ता के आरोप सही हैं, जो स्पष्ट रूप से नहीं हैं, तो उन्हें भविष्य में ऐसी अश्लीलता से बचना चाहिए।”

           Mithun Chakraborty

फ़िल्म में डॉयलॉग की तुकबंदी में कितनी नकल हुई या कहाँ से चोरी की गयी इसका दावा तो हम नहीं कर सकते हैं लेकिन यह तो सच है कि इसके बैकग्राउंड म्यूज़िक में इधर-उधर से झोल ज़रूर किया गया जो अमूमन ऐसी फ़िल्मों के बैकग्राउंड (Background) म्यूज़िक में सुनने को मिल ही जाता है। लेकिन आपको यह जानकर हैरानी होगी इस फ़िल्म के कुछ सीन में बैकग्राउंड म्यूज़िक रामानंद सागर के धारावाहिक ‘रामायण’ से उठा लिया गया है। यक़ीन न हो तो आप भी सुन लीजिए।

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फ़िल्म रिलीज़ के कई सालों बाद एक बार फिर तब सुर्खियों में आई जब राइटर चेतन भगत ने अपने टाइम्स ऑफ इंडिया के एक कॉलम में यह दावा किया कि मौजूदा फिल्मों में गुंडा जैसी फिल्मों की तुलना में बेहतर सामग्री होती है।चेतन के इस लेख के बाद इस फ़िल्म के फैन्स ने चेतन भगत की क्लास लगा दी। दरअसल चेतन भगत के कॉलम में जो सबसे बड़ी मिस्टेक थी वह यह थी कि उन्होंने इस फ़िल्म को 80 के दशक की फिल्म बता दिया था। बहरहाल फ़िल्म की पॉपुलरटी को देखते हुए 20 सालों बाद यानि साल 2018 में इसे कुछ सिनेमाघरों में फिर से रिलीज़ किया गया। सोशल मीडिया के इस दौर में जब यह फ़िल्म दोबारा रिलीज़ हुई तो इससे जुड़े कई ऐक्टर्स ने इस फ़िल्म से जुड़ी बहुत सी मज़ेदार बातें बतायीं।

Actor Mukesh Rishi as Bulla

अपने डॉयलॉग पर मुकेश को होती थी शर्मिंदगी-
साल 2017 में ऐक्टर मुकेश ऋषि ने यह खुलासा करते हुए सबको चौका दिया था कि उन्हें अपने किरदार बुल्ला के डायलॉग बोलते समय काफी शर्मिंदगी (Embarrassment)  महसूस होती थी। न केवल शर्म बल्कि अपराध सा भी महसूस होता था, और वे लगातार खुद से सवाल करते थे कि वे ऐसा क्यों कर रहे हैं। मुकेश ऋषि ने यह भी माना कि ‘बुल्ला’ के डायलॉग बोलने के बाद उन्हें कत्तई अच्छा नहीं लगा क्योंकि कई लोगों को यह डबल मीनिंग लगता है। उन्होंने कहा कि “हो सकता है कि डायलॉग बोलकर मैंने गलती की हो, उन पंक्तियों को कहने के बाद मुझे अच्छा नहीं लगा। हालांकि, मैं इस युवा पीढ़ी को धन्यवाद देना चाहता हूं कि उन्होंने मुझे ‘गुंडा’ में बुल्ला डायलॉग देते हुए देखकर मुझे जज नहीं किया, जो वर्षों पहले रिलीज हुई थी। उन्होंने इसमें कॉमेडी पायी और इससे मीम्स बनाए। हालांकि मुकेश ऋषि के डॉयलॉग ‘मेरा नाम है बुल्ला, रखता हूँ खुल्ला..’ को लेकर डायरेक्टर कांति शाह की सफाई भी क़ाबिलेग़ौर है और थोड़ी हास्यास्पद भी है। दरअसल मीडिया से हुई एक बातचीत में उन्होंने बताया था कि  “खुल्ला” शब्द उन्होंने ‘खुले बाजार’ से लिया गया है जो उस इकोनोमिकल मॉडल का रिप्रजेन्ट करता है जिसे भारत ने 1992 में दिवालियापन के कगार पर अपनाया था। ख़ैर कांति शाह फ़िल्म के डबल मीनिंग डॉयलॉग पर कुछ भी सफाई दें लेकिन ऐक्टर्स की शर्मिंदगी उनके बयानों से समझ में आ ही जाती है। जैसा कि गुण्डा फ़िल्म में इबू हटेला बने ऐक्टर हरीश पटेल ने मार्वल स्टूडियोज़ की फिल्म ‘इटर्नल्स’ का हिस्सा बनने के बाद कहा। दरअसल जब ‘इटर्नल्स’ में काम करने के बाद हरीश से इबू हटेला के किरदार से जुड़ा सवाल किया गया तो उन्होंने कहा कि अगर मार्वल वालों इबू हटेला का किरदार देख लिया होता तो अपने प्रोजेक्ट में काम दिया ही नहीं होता। न सिर्फ मार्वल बल्कि और भी कई प्रोजेक्ट मेरे हाथ से निकल जाते।

 

डॉयलॉग्स-
दोस्तों इस फ़िल्म के किस डॉयलॉग की बात की जाए और किसे छोड़ा जाए यह समझ नहीं आता क्योंकि इसके सभी डॉयलॉग ही अपनी कैटेगरी में एक से बढ़कर एक हैं। इस फ़िल्म में राइटर बशीर बब्बर ने लगभग हर किरदार को इंट्रोडक्शन का मौक़ा दिया है जो कि किसी-किसी फ़िल्म में बड़ी मुश्किल से किसी एक कैरेक्टर को मिला करता है। दोस्तों आपको लेजेंडरी ऐक्टर प्रेम चोपड़ा जी का डॉयलॉग तो याद ही होगा ‘प्रेम नाम है मेरा.. प्रेम चोपड़ा’, यह डॉयलॉग इतना हिट हुआ था कि बाद में हर ऐक्टर की यही चाहत बन गयी कि काश ऐसा डॉयलॉग मुझे भी मिल जाए। ख़ैर जैसा कि दीपक शिर्के ने बताया था कि इसकी स्क्रिप्ट (Script) पहले से तैयार नहीं थी तो ज़ाहिर है कि ज़्यादातर डॉयलॉग सेट पर ही लिख दिये गये होंगे और हर ऐक्टर ने राइटर बशीर बब्बर से रिक्वेस्ट (Request) की होगी कि एक लाइन मेरे इंट्रोडक्शन (Introduction) का भी लिख दीजिये तो मज़ा आ जाए। बब्बर ने भी सोचा होगा ठीक है मेरा क्या है लिख देता हूँ बाद एडिटिंग में जो रखना होगा वो रहेगा बाक़ी ख़ुद ही हट जाएगा। अब चूँकि डॉयलॉग्स की बात हो ही रही है तो इंट्रोडक्शन वाले कुछ डॉयलॉग आप भी सुन ही लीजिये-

मेरा नाम है बुल्ला… रखता हूँ खुल्ला,
मेरा नाम है छुट्ट्या… अच्छे-अच्छों की मैं खड़ी करता हूँ खटिया।,
मेरा नाम है लंबू आटा.. साले को दूँगा मौत का चाटा,
मेरा नाम है पोते, जो अपने बाप के भी नहीं होते,
मेरा नाम है इबू हटेला. माँ मेरी चुड़ैल की बेटी, बाप मेरा शैतान का चेला। खाएगा केला?

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मैंने आपसे पहले ही कहा था कि दिमाग नहीं लगाना है तभी मज़ा आयेगा, ख़ैर अभी ये तो कुछ भी नहीं , फ़िल्म में नॉर्मल सीन हो, ऐक्शन हो या सीरियस (Serious) सीन हो, हर जगह ऐसे ही डॉयलॉग्स की भरमार है। फ़िल्म में एक सीन है जब लंबू आटा बुल्ला की बहन के साथ दुष्कर्म करके उसे मार देता है। इस सीन में लंबू आटा बोलता है “अरे मुझे लगा बुल्ला की बहन कोई भंगार की दुकान होगी, लेकिन मां कसम, फेस सोनाली, टाँग रवीना, आंखें करिश्मा। इतना ही नहीं जब बुल्ला की बहन की मौत की ख़बर लेकर इबू हटेला बुल्ला के पास जाता है तो वह क्या कहता है सुनिये- अरे!! बुल्ला भाई जल्दी चलो वाहा लंबू आटा ने तेरी बहन को लंबा कर दिया। इस पर बुल्ला पूछता है- “क्या बोलता है?” तो इबू हटेला कहता है- ‘चुड़ैल की कसम।’

Lambu aata

ख़ैर यहाँ तक भी ठीक है लेकिन इसके आगे जो डॉयलॉग है उसे सुनकर कमजोर दिल वाला इंसान हँस-हँस के मर भी सकता है। सोचिये कि बुल्ला अपनी बहन की डेडबॉडी (Death body) देखेगा तो उसे कितनी तकलीफ पहुँची होगी। बुल्ला उसे देखकर तड़पता है और चिल्लाता है, “मुन्नी मेरी बहन मुन्नी! मुन्नी। तो तू मर गयी? लम्बू ने तुझे लम्बा कर दिया? माचिस की तीली को खंबा कर दिया? अरे मेरे दिल में क्या-क्या अरमान थे तेरे लिए। मैंने तो तेरे लिए तीन-सौ छोकरे देखे थे…वो भी एकदम चिकने, जो तुझे भाता, वही तेरा पति बनता मगर तू तो कटेला गुर्दा (Kidney), यानि मुर्दा हो गई।” दोस्तों इबू हटेला और बुल्ला के इन डॉयलॉग्स से एक बार फिर न चाहते हुए फ़िल्म आदिपुरुष की याद आ ही गयी। हो न हो राइटर मनोज शुक्ला मुंतशिर जी की भी यह फेवरेट मूवी रही हो और उनके जेहन में बुल्ला की बहन मुन्नी के लंबे होने वाला डॉयलॉग रह गया हो, और उसी से इंस्पायर्ड होकर शेषनाग को लम्बा करने वाली लाइन लिख दी हो??

 

क्या हुआ दोस्तों? मैं एक बार फिर याद दिला दूँ कि दिमाग लगाना ही नहीं है बस मज़ा लेना है यहाँ। फ़िल्म की स्क्रिप्ट और डॉयलॉग्स को लेकर मीडिया से हुई एक बातचीत में, ऐक्टर दीपक शिर्के कुछ दिलचस्प किस्से साझा किए थे। दीपक शिर्के , जिन्होंने इस फ़िल्म में राजनेता बच्चूभाई की भूमिका निभाई थी, उन्होंने खुलासा किया कि यह फिल्म उन्हें बिना स्क्रिप्ट के ही ऑफर की गई थी।  दीपक शिर्के ने यह भी बताया कि फिल्म की शूटिंग बिना स्क्रिप्ट के ही की गई थी। उन्होंने बताया कि डायरेक्टर कांति शाह ने उनसे मुलाकात की और एक पंक्ति (Line) में कहानी सुनाई, जिसके बाद वह फिल्म करने के लिए फौरन ही तैयार हो गए थे। शिर्के ने तुकबंदी वाले डॉयलॉग्स पर बताया कि, “फिल्म के राइटर ने इसे डिफरेंट तरीके से लिखा है। यह बहुत हटके था। मैंने कहा, ‘ये कैसी लाइन्स हैं?’ लेकिन उन्होंने कहा कि हमारा विषय यही है। उन्होंने कहा कि ऐसे संवाद ग्रामीण इलाकों में ज्यादा काम करते हैं।” शिर्के ने यह भी बताया कि जब उनसे पूछा गया कि क्या वे इन लाइन्स को बोलने में सहज हो पायेंगे। तो शिर्के ने कहा, “क्यों नहीं? अगर डायरेक्टर को इससे कोई दिक्कत नहीं है और वह यही चाहते हैं तो मैं यह करूंगा। मैं एक डायरेक्टर का ऐक्टर हूँ तो, मैंने बस यह किया। मुझे लगा कि हमें खुद का आनंद लेना चाहिए और ऐसी लाइन्स कहनी चाहिए।” शिर्के ने बताया कि उन्हें ऐसी तुकबंदी वाली लाइन्स सुनाने में काफी आनंद आया था और फिल्म में कोई डायलॉग दोहराया नहीं गया था। दीपक शिर्के की बात चल ही रही है तो उनके किरदार का भी एक डॉयलॉग सुनना तो लाज़मी ही है। “बुल्ला तूने खुल्लम खुल्ला लम्बू आटे को मौत के तवे में सेंक दिया। उसकी लाश को वर्ली के गटर में फेंक दिया।”

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शिर्के ने बताया कि उन्होंने स्क्रिप्ट नहीं पढ़ी थी क्योंकि कोई स्क्रिप्ट थी ही नहीं थी। शिर्के के मुताबिक ”कांति शाह स्क्रिप्ट तैयार करने और उसे कलाकारों को देने के सिस्टम का पालन नहीं करते हैं। फिल्म उनके दिमाग में रहती है। इसकी जानकारी कलाकारों (Artists) को नहीं होती है। वह अपनी फिल्में जल्दी खत्म करने के लिए मशहूर हैं।”
दरअसल 80 और 90 के दशक में यह एक आम बात थी जब अक्सर सेट पर कई सीन की शूटिंग से ठीक पहले लाइनें लिखी जाती थीं। गुंडा फ़िल्म की शूटिंग में यह और भी बड़े पैमाने पर हुआ था। ऐक्टर को उसकी लाइन्स सेट पर मिलतीं जिसे वह थोड़ा सुधार कर अपने अंदाज़ में बोल देता। इसके अलावा गुंडा के ऐक्टर्स और क्रू के सामने सबसे बड़ा चैलेंज था कम बजट में जल्द से जल्द फ़िल्म पूरी करना। शिर्के का मानना है कि यह फिल्म आज भी याद की जाती है, चाहे किसी भी कारण से हो यही बहुत बड़ी कामयाबी है। उन्होंने कहा, “लोग अभी भी फिल्म को याद कर रहे हैं और इसके संवादों को दोहरा रहे हैं, यह फैक्ट इसकी सफलता के बारे में बताता है। लोगों के दिलों में रहना इंपोर्टेंट है । हमने कभी नहीं सोचा था कि ऐसा होगा। हमने सोचा था कि लोग इसे सिर्फ ‘टाइमपास’ के लिए देखेंगे।” दीपक शिर्के की बात सच ही साबित हुई लोग इसे टाइमपास करने के लिए ही देखते हैं।

Namashi chakraborty

जब मिथुन के बेटे ने कहा उन्हें यह फ़िल्म नहीं करनी चाहिए थी-
मीडिया को दिए एक इंटरव्यू (Interview)  में मिथुन चक्रवर्ती के छोटे बेटे नमाशी ने कहा कि ‘गुंडा’ एक बदनाम करने वाली फिल्म थी और उन्हें लगता है कि उनके पिता यानि मिथुन चक्रवर्ती को यह फिल्म नहीं करनी चाहिए थी। नमाशी ने कहा कि, ‘मुझे लगता है कि ‘गुंडा’ एक ऐसी फिल्म है, जो बहुत बदनाम है। यह अपने मटेरियल (Material) के लिए बहुत बदनाम है। आज की पीढ़ी और बहुत सारे लोग सोचते हैं कि मेरे पिता ही इस तरह की फिल्में कर सकते हैं। यह बहुत बदनामी की बात है। हालांकि, फिल्म अच्छी है। मेरा मतलब है कि मुझे फिल्म पसंद है। यह मनोरंजन करने वाली है, लेकिन उनके कद और मुकाम को देखते हुए उन्हें यह फिल्म नहीं करनी चाहिए थी।

दोस्तों इसमें कोई शक़ नहीं कि यह फ़िल्म मिथुन चक्रवर्ती जैसे नेशनल अवाॅर्ड विनिंग ऐक्टर की इमेज के लिए ठीक नहीं थी लेकिन यह वही दौर था जब मिथुन और धर्मेन्द्र अंधाधुंध फ़िल्में करते थे और किसी को भी ना नहीं कहते थे, जिसका फ़ायदा कांति शाह जैसे फ़िल्म मेकर्स जमकर उठाया करते थे। क्योंकि फ़िल्म में इनके डॉयलॉग्स और सीन तो ठीकठाक रहते थे लेकिन बाक़ी फ़िल्म में क्या होगा ये इन्हें फ़िल्म पूरी होने के बाद भी नहीं पता चल पाता था क्योंकि तब तक वे दूसरे कामों में बिजी हो जाते और ये फ़िल्में पैसा वसूल कर या फ्लाप होकर सिनेमाघरों से हट चुकी होती थीं। हम आपको याद दिला दें कि मीडिया में आई ख़बरों के मुताबिक कांति शाह वही डायरेक्टर हैं जिन्होंने अपनी एक फ़िल्म में धोखे से धर्मेन्द्र के बॉडी डबल द्वारा गंदे सीन करवा कर धर्मेन्द्र के सीन के साथ जोड़ दिये थे, जिसके बारे में एक क्रू मेंबर ने सनी देओल को इसकी जानकारी दे दी और सनी देओल ने कांति शाह को बुलाकर अच्छी ख़ासी ख़बर ली थी, जिसके बाद कांति शाह ने वह फ़िल्म हमेशा के लिए बंद कर दी थी। अब आप समझ ही सकते हैं कि ऐसे डायरेक्टर आख़िर और कितनी साफ सुथरी फ़िल्म बना सकते थे।

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बजट और कमाई-
विकिपीडिया के मुताबिक लगभग 2 करोड़ के बजट में बनी यह फ़िल्म 95 स्क्रीन पर रिलीज़ हुई थी। रिलीज के साथ ही फ़िल्म की लगभग 21 लाख 26 हजार टिकटें बिक गईं थीं और इसकी रैंकिंग 1084 हो गई थी।

कमाई की बात करें तो ओपनिंग (Opening) डे में ही इस फिल्म ने एक करोड़ पचास हजार का कलेक्शन कर लिया था लेकिन विवाद के बाद स्थिति बदल गयी और ओपनिंग वीकेंड में इस फ़िल्म का कलेक्शन 58 लाख का ही हुआ जो कि ओपनिंग का आधा ही था। भारत में फिल्म के टोटल नेट ग्रास कलेक्शन की बात करें तो वह दो करोड़ साढ़े तेरह लाख के करीब थी। इस हिसाब से फिल्म को बॉक्स ऑफिस इंडिया पर औसत माना गया था। वहीं वर्ल्डवाइड (World Wide) कलेक्शन की बात करें तो  दुनिया भर में पहले वीकेंड का कलेक्शन 1 करोड़ 34 हजार था तो वहीं पूरे हफ्ते का कलेक्शन 1 करोड़ 73 लाख 86 हजार 500 रुपये था। वर्ल्ड वाइड ग्रास कलेक्शन की बात करें तो वह 3 करोड़ 71 लाख 55 हजार था। इतना ही नहीं गुण्डा फ़िल्म को 10 में से 7.4 की स्टार रेटिंग दी गई थी और यह साल 1998 की 46वीं सबसे ज्यादा कमाई करने वाली फिल्म भी थी।

अन्य फैक्ट्स-
1)- साल 1987 में नेहा आर्ट्स की एक फिल्म लॉन्च हुई थी जिसका नाम “गुंडा” रखा गया था। हालांकि संजय दत्त, आदित्य पंचोली, कंवलजीत सिंह अभिनीत, नितिन मनमोहन द्वारा निर्मित, मुकुल आनंद द्वारा निर्देशित यह फ़िल्म पूरी न हो सकी और बीच में ही बंद कर दी गयी।
2)- इस फ़िल्म में ऐक्टर रामी रेड्डी की आवाज की ओरिजिनल (Original) आवाज़ नहीं है बल्कि उसे एक डबिंग (Dubbing) आर्टिस्ट से डब कराया गया था।
3)- फ़िल्म गुण्डा अपने फ़नी और द्विअर्थी (Double Entendre)  डॉयलॉग्स की वज़ह से बैचलर्स (Bachelors) के बीच भी ख़ासी मशहूर थी इस वज़ह से यह भारत के लगभग हर इंजीनियरिंग कॉलेज में सबसे ज्यादा देखी जाने वाली बॉलीवुड फिल्म भी थी।
4)- फिल्म अपने उटपटांग और मजेदार डायलॉग्स की वजह से सोशल मीडिया पर काफी पॉपुलर हुई थी और अपनी रिलीज से कहीं ज़्यादा सोशल मीडिया पर देखी जानी वाली फ़िल्म भी है।
5)- इस फ़िल्म में लगभग सभी विलेन डबल मीनिंग डॉयलॉग बोलते हुए नज़र आये थे।
6)- फ़िल्म को ब्रिटिश कोलंबिया और कनाडा में रिलीज़ नहीं होने दिया गया था।
7)- फिल्म में शक्ति कपूर का किरदार स्टेनली कुब्रिक की साइंस-फाई क्लासिक ‘ए क्लॉकवर्क ऑरेंज’ से इंस्पायर्ड था।
8)- इस फ़िल्म को रिलीज़ के बाद  “It was so bad, it’s good” का दर्जा दिया गया जो कि अपने आप में एक दिलचस्प बात थी।
9)- फिल्म की पॉपुलरटी का अंदाज़ा आप इससे भी लगा सकते हैं कि, एक ही आउटलेट पर इसकी 2,000 से अधिक वीसीडी बिक गयी थी।

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