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Dark side of MS Dhoni Captaincy

महेंद्र सिंह धोनी, द लीजेंड (Legend)। ये नाम किसी इंट्रोडक्शन (Introduction) का मोहताज नहीं है।जब भी कैप्टन (Captain), विकेटकीपर (Wicketkeeper),या फिनिशर (Finisher) शब्द बोला जाता है,उसका प्रायवाची यानी सीनोनिम हम एमएस धोनी को ही कहते हैं। अब हो भी क्यों न, न केवल इंडिया (India) का, बल्कि विश्व (World) का इतना बड़ा कप्तान रहा है ये दिग्गज खिलाड़ी। जिसने इंडियन टीम को अपने राज़ में हर बड़ी आइसीसी (ICC) ट्रॉफी (Trophy) जीताई। ट्रॉफी जीतना आसान नहीं है,लेकिन धोनी ने उसे आसान बना दिया था। उनके कप्तानी (Captaincy) के मास्टरमाइंड (Mastermind) तो किसी से भी नहीं छुपे। दुनियाभर के कप्तान उनसे इंस्पिरेशन (Inspiration) लेते हैं। एक से एक क्रिकेट (Cricketer) पंडित उनकी तारीफों के पुल बांधते हैं। पर कहते हैं न, कि चांद में भी दाग होता है। होता तो वो भी बड़ा शीतल, बड़ा ठंडा और बड़ा प्यारा है। लेकिन उसकी शख्सियत पर एक विपरीत प्रभाव डालता है दाग। ठीक वैसे ही एमएस (MS) धोनी (Dhoni) की कप्तानी, उनकी पर्सनेलिटी (Personality) चाहे कितनी भी तगड़ी, नंबर वन क्यों न हो। लेकिन एक दाग उनके भी ऊपर है, जिससे वे बच नहीं पाए। और चाहे वे ख़ुद कितना भी इस बात को झुठला दें,लेकिन बच नहीं पाएंगे। नकार नहीं पाएंगे, जो उन्होंने अपनी कप्तानी के दिनों में कर दी थी। जिससे उनके रिश्ते सीनियर (Senior) प्लेयर्स (Players), खास तौर पर सचिन, सहवाग और गंभीर के साथ खट्टे हो गए थे। मीडिया में भी इस कंट्रोवर्सी (Controversy) को खूब उछाला गया था।
आज हम धोनी की कप्तानी की उसी डार्क (Dark) साइड (Side) के बारे में बात करेंगे जिसने धोनी द प्लेयर, धोनी द पर्सन और धोनी द कैप्टन पर कई सवाल खड़े कर दिए थे। और ये दाग ऐसा लगा कि आज तक धूल नहीं पाया।

Ms Dhoni

तो साल था 2011, इंडिया विंस (Wins) वर्ल्ड कप आफ्टर (After) 28 इयर्स (Years)। अ मैग्निफिसेंट हिट इंटू द क्राउड। पार्टी स्टार्ट्स (Party)  इन द ड्रैसिंग (Dressing) रूम (Room)। कहने को अभी तो पार्टी स्टार्ट हुई थी, मगर इसके कुछ ही समय बाद शुरू होने वाली थी टैंशन (Tension),कंट्रोवर्सी (Controversy) और धोनी की बिना सिर पैर की स्टेटमेंट (Statement)। हां ये सच है कि वर्ल्ड कप के बाद हम इंग्लैंड और ऑस्ट्रेलिया में क्लीन (Clean) स्वीप कराकर शर्मनाक तरीके से टैस्ट (Test) सीरीज (Series) हारकर आए थे।
अब दिक्कत थी ये कि उस टीम में भरे थे एक से बढ़कर एक धुरंधर। जिन्हें साफ़ मुंह पर कहकर टीम (Team) से निकालना मुश्किल था। इसीलिए सिलेक्टर (Selectors) कृष्णमचारी श्रीकांत और कप्तान (Captain) धौनी ने इंडायरेक्ट (Indirect) तरीके से इनकी छुटी करनी शुरु कर दी। अश्विन को खिलाने के लिए हरभजन को, और पीयूष चावला, यूसुफ पठान,को तो बिना कोई नोटिस (Notice) के ही टीम से बेदखल (Evict) कर दिया। युवी कैंसर के चलते उस वक्त अवेलेबल (Available) नहीं थे। द्रविड़ इंग्लैंड सीरीज, और लक्ष्मण ऑस्ट्रेलिया सीरीज (Series) के टाइम पर ही रिटायर (Retire) हो गए थे, तो काम आसान हो गया। लेकिन अब एक बहुत बड़ी समस्या आन खड़ी थी। क्योंकि आधे से ज्यादा प्लेयर्स (Players) को रास्ते से साफ करने के बावजूद ले दे कर अब बचे थे 3– सचिन, सहवाग और गंभीर। अब क्योंकि ये कोई मामूली प्लेयर्स तो थे नहीं,और इनके आंकड़े धोनी से कई अधिक अच्छे थे। इनको बाहर करते भी तो किस मुंह से। अब जो आगे भी हम कहने जा रहे हैं, हो सकता है आपको हार्ष लगें हमारे वर्ड (Words),उसके लिए धोनी के टॉक्सिक (Toxic) फैंस और कई अंधभक्त कॉमेंट्स (Comments) में हमें बहुत गालियां देंगे, लेकिन हमारी ये रिक्वेस्ट (Request) हैं कि एक न्यूट्रल (Neutral) फैन (Fan) के तौर पर समझिएगा, किसी इंडिविजुअल (Individual) के फैन के पॉइंट (Point) ऑफ़ व्यू से नहीं,तो हमारी बात की सैंस और सही मतलब समझ में आएगा। हां ये सच है कि रोहित शर्मा, जो कि आज वर्ल्ड क्रिकेट में एक ग्रेट (Great) ओपनर के तौर पर जाने जाते हैं।

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उनका ओडीआई (ODI) में ऐवरेज (Average) 50 के करीब है। उनके नाम 3 ट्रिपल (Triple) सेंचुरी (Century), टी 20 में दुसरे सर्वाधिक रन, उनकी एक बड़ी तगड़ी लेगेसी है। हां, हम ये भी मानते हैं कि उन्हें इस मुकाम पर पहुंचाने में बड़े भाई, एक मेंटोर (Mentor) का रोल (Role) निभाया उनके कप्तान एमएस धोनी ने। लेकिन ये भी सच है कि एक रोहित शर्मा का करियर बनाने के लिए धोनी ने कितनों के करियर (Career) की वाट लगा दी, ये आप सोच भी नहीं सकते। माना कि रोहित एक बहुत ही बड़े टैलेंटेड प्लेयर थे, लेकिन उस वक्त वे कुछ नहीं थे, उनकी परफोर्मेंस (Performance) थी, न ही कोई खास एवरेज था, न ही स्ट्राइक  (Strike) रेट। वन मैच वंडर की तरह 10–12 मैच में एक आध बार चलते, वरना बहुत मैच ख़राब किए उस समय रोहित ने। लेकिन धोनी के थे वो लाडले। किसी भी क़ीमत पर धोनी उन्हें ज़्यादा से ज़्यादा मैच (Match) खिलाना चाहते थे। और एक 0 प्लेयर के लिए बने बनाए हीरोज का कैरियर तबाह करना शुरू किया। जिसके लिए आस्ट्रेलिया में हुई 2012 की कॉमनवेल्थ (Commonwealth) बैंक (Bank) सीरीज के एक पोस्ट (Post) मैच इंटरव्यू (Interview) में उन्होंने ये कह दिया कि हमारे टॉप 3 स्लो (Slow) हैं, मैं उन तीनों को साथ नहीं खिला सकता। क्योंकि रोहित को ज़्यादा से ज़्यादा मैच खिलाने हैं। तब किसी मैच में सचिन, किसी में सहवाग, तो किसी में गंभीर को बदल बदल कर खिलाया जाने लगा। अब माना सचिन तब 38, सहवाग 34 के हो चुके थे। लेकिन गंभीर सिर्फ 29 के थे,अपने करियर की पीक (Peak) पर। जो कि एक के बाद एक मैचेज (Matches) जीता रहे थे हमें। उस सीरीज में भी उनकी 92 और 91 की मैच विनिंग (Wining) पारी ने उनका फ़ॉर्म (Form)  दर्शा दिया था। सेहवाग अभी भी तूफानी शुरुआत दे रहे थे, और सचिन तो थे ही रन मशीन। पर क्योंकि धोनी को ये रास नहीं आया तो उन्होंने फिर से रेस्ट के नाम पर इन्हें ड्रॉप (Drop) करना शुरू कर दिया। जिससे इनके परफॉमेंस (Performance) में भी थोड़ा बैड (Bad) फेस दिखा।

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लेकिन हाइपोक्रिसी तो देखिए,जब इंडिया एक के बाद एक मैच हारता गया सवाल उठे माही की कप्तानी पर, तो जनाब ने तीनों को उठाकर को ही प्लेइंग 11 में डाल दिया। ख़ैर हम फाइनल (Final) में पहुंच न सके।लेकिन उस टीम के उप कप्तान गौतम गंभीर अब भी रेडार में थे। जिन्हें उस सीरीज में इंडिया का टॉप स्कोरर (Scorer) होने के बावजूद आते ही वाइस (Voice) कैप्टन से हटा दिया गया। परफोर्मेंस तो पुरी टीम का ख़राब था।लेकिन इसके बाद गंभीर की टीम से परमानेंट (Permanent) छूटी हो गई। सहवाग का भी बोरिया बिस्तर बंद। सचिन तो खुद ही रिटायर हो गए। लेकिन कप्तान को नहीं बख्शा गया।धोनी कि रोटेशन (Rotation) पॉलिसी (Policy) पर दबाकर क्रिटिसिज्म हुआ। बिशन सिंह बेदी ने उन्हें शीयर नॉन (Non) सेंस कह दिया। गावस्कर ने तो ये तक कह दिया कि अगर यंगस्टर (Youngster) की इतनी चिंता है तो खुद क्यों नहीं बाहर बैठ जाते। माना कि धोनी ने एक यंग टीम खड़ी करनी थी,लेकिन जो बर्ताव (Behave) इन दिगजों के साथ किया गया क्या वो ऐसा भी कुछ डिजर्व (Deserb) करते थे? इससे ये बात तो साफ़ हो गई थी कि धोनी इन सीनियर (Senior) प्लेयर्स से खुश नहीं थे। ये रन बना रहे थे, उसके बावजूद भी नहीं। ये बात भी क्लीयर हो गई कि धोनी का रवैया इनके साथ सही नहीं था। सहवाग तो पहले भी 2008 के अपने हार्ट ब्रेकिंग ड्रॉप (Drop) होने पर खुलासा कर चूके है। गंभीर को वैसे ही कोई बैकिंग (Banking) नहीं मिली। पॉलिटिक्स (Politics) से ही इनका कैरियर (Career) खत्म हो सकता था। बदकिस्मती से वही हुआ। इस पर समय समय पर आज भी प्लेयर्स अपने बयान (Statement) देते हैं। सहवाग आज भी साफ़ कहते हैं कि उनसे धोनी ने कोई डायरेक्ट (Direct) बात नहीं की थी, स्लो फील्डिंग (Fielding) या बैटिंग के बारे में। सीधा मीडिया (Meadia) में जा बोला था। गंभीर तो सरेयाम इस रोटेशन पॉलिसी को कबाड़ा कहते हैं। तो इस तरह एक रोहित शर्मा को बनाने के लिए धोनी ने सचिन, सहवाग और गंभीर के करियर की लंका लगा दी। आप ही कॉमेंट करके बताइए कि क्या बेतुके तरीके से इनकी छुट्टी करना, और बिना सिर पैर वाली रोटेशन पॉलिसी से टॉप 3 का कैरियर ख़त्म करना कोई सेंस था इस बात का।

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