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Most memorable matches despite India’s defeat

खेलों तो सिर्फ और सिर्फ जीतने के लिए, क्योंकि हार का ओप्शन (option) लेकर चलोगे तो पीछे रह जाओगे, मुझे लगता है आप में से ज्यादातर लोगों का यही सोचना होगा।
शायद यही वजह है कि हम खेलों की दुनिया में भी जिस टीम के साथ होते हैं उसको हारते हुए नहीं देख सकते, लेकिन क्रिकेट (Cricket) ऐसा खेल है जिसमें आपको हर चीज से प्यार हो जाता है, आपको घायल होते बैट्समैन (Batsman)  को देखकर भी मजा आता है और छक्के पर छक्के लगाते बैट्समैन को देखकर भी मुंह से वाह निकल जाती है।
इसी तरह क्रिकेट में कुछ मैच ऐसे भी होते हैं जिनके बारे में
आप इसलिए बातें करते हो क्योंकि उसमें आपकी टीम को हार का सामना करना पड़ा था या फिर हाथ में आया वो मैच ड्रा (Draw) हो गया था, क्योंकि कुछ मैच आपके मन में काश छोड़कर चले जाते हैं और कुछ मैच ऐसे होते हैं जहां से उस एक बदलाव पर काम शुरू हो जाता है जिसकी जरूरत टीम को या विश्व (World) क्रिकेट को बहुत समय से थी।
भारतीय क्रिकेट इतिहास के कुछ ऐसे ही मैचों के बारे में आज हम बात करने वाले हैं जो अगर मैं कहूं कि आपको इसलिए याद हैं क्योंकि भारतीय टीम को उनमें जीत (Victory)  हासिल नहीं हुई थी।

1] 1976 vs West Indies

20 वीं सदी में अगर वेस्टइंडीज क्रिकेट को दो अलग-अलग कालखंडों (periods of time) में बांटकर देखा जाये तो आपको मालूम होगा कि जिस मैच पर आकर पहला पड़ाव समाप्त (Finish) होता है उस मैच में भारतीय टीम ने चौथी पारी में 400 से ज्यादा का स्कोर (Score) हासिल किया था।
क्लाइव लॉयड ने इस मैच के बाद टेस्ट क्रिकेट में बादशाहत (kingship) हासिल करने वाले उस फार्मूले (Formula) पर काम करने का मन बनाया जिसमें स्पिन (Spin) गेंदबाजों के लिए कोई जगह नहीं थी।
एक मैच में मिली हार अंतरराष्ट्रीय (Intonation)  क्रिकेट में अब वेस्टइंडीज (West Indies) का कद असीम ऊंचाईयों तक ले जाने वाली थी, और इस ऊंची उड़ान की शुरुआत भी भारतीय टीम को हराने से होने वाली थी।
जमैका के सबाइना पार्क में आयोजित इस मैच में क्लाइव लॉयड ने टोस (Toss) जीतकर पहले गेंदबाजी (Bowlings) करने का फैसला (Decision) किया।
होल्डिंग और वैंबन होल्डर ने पहले दिन लंच के बाद और दुसरे दिन भारतीय बल्लेबाजों को जिस तरह परेशान किया और जिस तरह के खूंखार खेल में अंशुमान गायकवाड़ ने साढे सात घंटे तक हेल्मेट के बिना, पत्थर की तरह पक्की पिच पर किल हिम मान के नारों के बीच 81 रन बनाए उस तरह के उदाहरण मैदान पर बहुत कम देखने को मिलते हैं।
इस मैच पर हम एक पुरा पोस्ट जरूर लेकर आयेंगे लेकिन उससे पहले आपको अगर समझना है कि किस तरह के माहौल (environment) में भारतीय टीम ने यह मैच खेला था तो आपको बता दें कि इस मैच की अपनी दूसरी पारी में जब भारतीय टीम का पांचवां विकेट 95 रन पर गिरा तो बिशन सिंह बेदी ने अपने खिलाड़ियों (Players) को वापस बुला लिया और पारी को घोषित (Announce) कर दिया क्योंकि कोई भी खिलाड़ी मैदान पर बल्लेबाजी (Battings) करने की हालत में नहीं था, टीम के तीन चार मुख्य (Main)  बल्लेबाज अस्पताल पहुंच गए थे। लायड की टीम को तेरह रनों का आसान लक्ष्य (Target) मिला और इस जीत के साथ वेस्टइंडीज क्रिकेट (Cricket) के शानदार दौर की शुरुआत हुई थी।
एक हैरतअंगेज लड़ाई के बावजूद भारतीय टीम को मिली हार ने अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट मै (International) नेजमेंट के सामने भी कुछ सवाल खड़े कर दिए थे और इन सवालों का जवाब था वो कुछ जरूरी बदलाव जो तेज गेंदबाजी (Bowling) को लेकर करने जरुरी थे, एक ओवर में बाउंसर (Bouncer) गेंदों की संख्या सिमित करने पर नियम भी उनमें से एक था।

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2] Monkeygate Scandal –

2 जनवरी साल 2008 के दिन सिडनी के मैदान पर भारत और आस्ट्रेलिया (australia) के बीच जो मैच शुरू हुआ उसे मैदान से बाहर मंकी गेट विवाद (Controversy) के कारण याद किया जाता है लेकिन जब हम इस मैच को मैदान पर उतरकर देखते हैं तो हमें सबसे पहले माइकल क्लार्क का वो ओवर (Over) याद आता है जिसकी वजह से भारतीय (Indian) टीम यह मैच हार गई थी, इस मैच में अम्पायरों (Umpires) के द्वारा हुई बेईमानी (Dishonesty) को भी हम शायद आज याद नहीं करते अगर भारतीय खिलाड़ी माइकल क्लार्क का ओवर निकाल देते।
134 पर छः विकेट (Wicket) गंवाने के बाद अम्पायरों की गलती की वजह से आस्ट्रेलिया ने पहली पारी में 400 से ज्यादा रन बोर्ड पर लगा दिए थे, जवाब में सचिन तेंदुलकर और लक्ष्मण ने शानदार बल्लेबाजी (Batting) करते हुए भारतीय टीम को अच्छी स्थिति में पहुंचा दिया।
इस मैच की पुरी कहानी को लेकर एक विडियो चैनल पर आ चुका है तो अगर आप देखना चाहते हैं तो आपको वो विडियो चैनल पर मिल जाएगा।
खैर मैच के आखिरी दिन चारों ओर से नाइंसाफी (injustice) और आरोपों के घेरे में खड़ी भारतीय टीम को 333 रन बनाने थे या फिर 75 ओवर तक टिके रहना था।
लेकिन मैच का सेंकेड लास्ट ओवर (Over) लेकर आये माइकल क्लार्क ने छह गेंदों में बाकि बचे तीन विकेट (Wicket) लेकर यह मैच जीत लिया।
विवादों का सिलसिला चलता रहा लेकिन अगर भारतीय टीम वो मैच जीतने में सफल (Success) हो जाती तो आस्ट्रेलिया को आस्ट्रेलिया में टेस्ट सीरीज हराने का लम्बा इंतजार उसी सीरीज में खत्म हो सकता था, क्योंकि उसके बाद पर्थ टेस्ट में भारतीय टीम को जीत हासिल हुई थी।

3] When Bedi declared the one-day match

बिशन सिंह बेदी ने भारतीय क्रिकेट इतिहास (History)  के कुछ सबसे विवादित (Controversy) मैचों में टीम को लीड (Lead) किया है और ये मैच अंतरराष्ट्रीय (International)  क्रिकेट में कुछ बड़े बदलावों के लिए बहुत जरूरी भी साबित हुए हैं।
साल 1978 में पाकिस्तान और भारत की क्रिकेट (Cricket)  टीम 17 सालों बाद मैदान पर एक साथ आई थी, यह वो सीरीज (Series) भी थी जहां से कपिल देव ने अपना डेब्यू (Debut) किया था और भारत की स्पिन (Spin) चौकड़ी में से तीन का करियर (Career) खत्म हो गया था।
भारतीय क्रिकेट इतिहास के सबसे विवादित पाकिस्तान दौरे पर भारतीय टीम को टेस्ट सीरीज (Series) में हार का सामना करना पड़ा।
न्यूट्रल (Netural) अम्पायर्स (Umpires)  का चलन क्रिकेट में शुरू नहीं हुआ था,
कहा जाता है कि इस सीरीज के दौरान अम्पायर्स ने खुद भारतीय गेंदबाजों को कहा था कि अगर आपको विकेट चाहिए तो बल्लेबाजों (Batsman) को बोल्ड ही करना पड़ेगा।
खैर टेस्ट सीरीज के बाद वनडे श्रृंखला (Series) की शुरुआत (Starting) हुई, अम्पायरों ने यहां भी मोर्चा संभाले रखा और ये कोई नई बात नहीं थी उस समय हर देश के अम्पायर्स अपने खिलाड़ियों का साथ ही देते थे।
वनडे सीरीज के आखिरी मैच में पाकिस्तान टीम ने 205 रनों का लक्ष्य निर्धारित (Fix) कर दिया था, चालीस ओवरों में ये लक्ष्य बहुत अच्छा था लेकिन भारतीय बल्लेबाज भी जबरदस्त प्रदर्शन करते हुए यहां तक पहुंचे थे।

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टोप ओर्डर (Order) के बल्लेबाजों के शानदार प्रदर्शन की बदौलत आखिरी तीन ओवरों (Overs) में टीम को सिर्फ 23 रनों की जरूरत थी, और अंशुमान गायकवाड़ 78 रन बनाकर क्रीज पर मौजूद थे।
यहां से अम्पायर्स ने अपना मोर्चा संभाला और पाकिस्तानी तेज गेंदबाज (Batsman) भी वाईड और बाउंसर (Bouncer)  गेंद डालने वाली घिनौनी हरकत पर उतर आए थे, अम्पार खामोश थे और गेंदों की गिनती घट रही थी।
बेदी जो सच में क्रिकेट को जैंटलमैन्स का खेल समझते थे उनको हार से ज्यादा ये खेल निराश (Sad) कर रहा था, आखिरकार जब अम्पायर्स और पाकिस्तानी खिलाड़ियों पर कोई असर नहीं हुआ तो बेदी ने अपने बल्लेबाजों को वापस बुला लिया और मैच डिक्लेयर (Declare) कर दिया।
भारतीय टीम मैच हार गई, सीरीज हार गई, बिशन सिंह बेदी को कप्तानी (Captaincy) से हटा दिया गया और सुनील गावस्कर टीम के नये कप्तान बनाये गए।
सुनील गावस्कर की कप्तानी में भारतीय टीम ने अगले साल शानदार तरीके से पाकिस्तान से अपना बदला पुरा किया और उनके कप्तान (Captain)  को भी कप्तानी छोड़नी पड़ी लेकिन उस एक हार ने न्यूट्रल अम्पायरिंग को वजूद में लाने की जरूरत को एक बार फिर सामने लाकर खड़ा कर दिया था।

4] 2003 wc final

काश भारतीय टीम को उस मैच में हार का सामना नहीं करना पड़ता तो आज हम दो नहीं तीन बार वनडे विश्व (World) कप चैंपियन (Champions) होते, राहुल द्रविड़, सौरव गांगुली और जवागल श्रीनाथ जैसे महान खिलाड़ियों का सपना (Dream) साकार हो जाता, हमारा 28 सालों का इंतजार आठ साल पहले ही खत्म हो जाता।
अगर मगर किंतु परन्तु और काश की जगह क्रिकेट में नहीं होती लेकिन ये शब्द एक मैच को याद करते हुए अक्सर जुबान पर आ जाते हैं ‌।
आस्ट्रेलिया और भारतीय टीम के बीच यह मैच खेला गया जिसकी कहानी आप सबको मालूम है, आस्ट्रेलिया ने पहले बल्लेबाज़ी (Batsman) करते हुए एक बड़ा लक्ष्य निर्धारित कर दिया और फिर बल्लेबाजी करने उतरी भारतीय टीम के सलामी बल्लेबाज सचिन के आउट (Out) होने के साथ ही भारत की करोड़ों आशाएं (Hopes) टूटना शुरू हो गई थी, जिसका आखिरी छोर सहवाग की विकेट के साथ बिल्कुल खत्म हो गया था।
किसी वनडे विश्व कप में भारतीय टीम पहली बार इतनी शानदार और सशक्त टीम के साथ मैदान पर उतरी थी जिसमें कहीं कोई कमी नहीं थी लेकिन फिर भी एक खराब दिन, एक अच्छी गेंद और एक मैच ने दुसरी बार विश्व चैंपियन बनने का सपना तोड़ दिया।

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5] India vs west indies 1948 Injustice

इस मैच की कहानी आप में से उन लोगों को जरूर पता होगी जिन्हें क्रिकेट को अंदर से कुरेद कर जानकारियां (Informations) जुटाने का शौक है, जो सिमित जानकारी के साथ खुश नहीं रह सकते।
मैं भी उन लोगों में से ही एक हूं जिसे एक दिन खयाल आया कि चलो मान लिया भारतीय टीम को अपना सबसे पहला टेस्ट मैच जीतने के लिए बीस सालों का इंतजार (Wait) करना पड़ा था लेकिन इन बीस सालों में कोई एक मौका (Opportunity) तो आया होगा जहां हम जीत के सबसे नजदीक (near) पहुंच गए थे, सभी मैचों में हमें एकतरफा (one sided) हार मिली हो ऐसा तो नहीं हो सकता।
इन्हीं प्रश्नों (Questions) के जवाब में मुझे साल 1948 में वेस्टइंडीज के खिलाफ खेले गए एक टेस्ट (Test)  मैच की कहानी के बारे में पता चला जो हम विरोधी खिलाड़ियों की बेईमानी और अम्पायर की गलतियों की वजह से ही हार गए थे।
साल 1948 -49 में वेस्टइंडीज टीम लंबे विदेशी दौरे के दौरान भारत 9Inida) भी आई और यह पहला मौका था जब दोनों टीमें मैदान पर आमने-सामने होने वाली थी।
पहले चार मैचों में से एक में वेस्टइंडीज को जीत हासिल हुई थी और बाकि सभी मैच ड्रा (Draw) पर खत्म हुए थे।
सीरीज का आखिरी मैच मुम्बई के ब्रेबोर्न स्टेडियम पर 4 फरवरी साल 1949 से शुरू हुआ, लाला अमरनाथ भारतीय टीम की कप्तानी कर रहे थे।
वेस्टइंडीज ने पहले बल्लेबाजी करते हुए 286 रन बोर्ड (Board) पर लगा दिए थे, जवाब में भारतीय टीम सिर्फ 193 रन ही बना पाई जिसमें विजय हजारे ने सबसे ज्यादा 40 रन बनाए थे।

एक बड़ी बढ़त के साथ वेस्टइंडीज टीम मैदान पर उतरी लेकिन इस बार सुते बनर्जी और वीनू मांकड़ की शानदार गेंदबाजी 9Bowling) के चलते भारतीय टीम वेस्टइंडीज को 267 पर आउट करने में कामयाब हो गई थी।
भारतीय विकेटकीपर (Wicket keeper) सेन के पहले दिन घायल होने की वजह से लाला अमरनाथ ने इस मैच में विकेटकीपर की भूमिका निभाई थी, मैच की आखिरी पारी में 361 का बड़ा लक्ष्य हासिल करने उतरी भारतीय टीम के पहले दो विकेट नौ रन पर गिर गए थे इसलिए लाला अमरनाथ ने खुद को बैटिंग (Batting) ओर्डर में भी प्रमोट किया क्योंकि वो वेस्टइंडीज को आसानी से जीतते (Victory) हुए नहीं देखना चाहते थे।
अमरनाथ की तेज 39 रन की पारी और मोदी के साथ अच्छी साझेदारी (Partnerships) ने टीम को अच्छी स्थिति में पहुंचा दिया था और फिर इस सीरीज (Series) में भारतीय टीम की सबसे सफल जोड़ी हजारे और मोदी ने अपने पैर जमा लिए थे।
मैच के आखिरी दिन भारतीय टीम को 271 रनों की जरूरत थी, लंच तक दोनों बल्लेबाजों ने अर्धशतक (Half century)  पूरा कर लिया था और अब भारतीय टीम टेस्ट (Test)  क्रिकेट में अपनी पहली जीत हासिल करने से 186 रन दूर थी।
मोदी के आउट(Out) होने के बाद हजारे ने अपना शतक (Century) पूरा किया और अब जब भारतीय टीम 250 के स्कोर तक पहुंच गई थी तो वेस्टइंडीज के खिलाड़ियों को हार नजदीक लगने लगी थी, भारतीय टीम के लिए गेंदों की संख्या के साथ साथ आखिरी दिन समय भी बहुत जरूरी था और इसलिए विरोधी खिलाड़ियों ने अलग-अलग तरीके से टाईम (Times) पास करना शुरू कर दिया।
आखिरी घंटे के खेल में भारतीय टीम को 72 रनों की जरूरत थी, वेस्टइंडीज के खिलाड़ी टाइम बीताने की हर संभव कोशिश कर रहे थे, जब मैच के आखिरी पन्द्रह मिनट बचे थे तब वेस्टइंडीज के कप्तान ने ड्रिंक्स (Disk) ब्रेक ले लिया।

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भारतीय टीम के पास अब सिर्फ दो विकेट (Wicket) बाकि थे लेकिन फड़कर क्रीज पर थे इसलिए भारतीय टीम के लिए जीत मुश्किल नहीं नजर आ रही थी।
मैच में जब सिर्फ दो ओवरों (Overs) का समय बाकि था तब अचानक इंटेश सिचुएशन में बापू जोशी की एंट्री (Entry)  होती है जो भारतीय अम्पायर थे।
बापू जोशी ने सेंकेड (Second )  लास्ट ओवर को एक गेंद पहले ही खत्म होने का संकेत (Signal) दे दिया, इस तरह पांच गेंदों के बाद ही एक जरूरी ओवर (Over) पुरा हो गया, और उसके बाद भावनाओं (Emotions) में बहकर बापू जोशी ने ना आव देखा ना ताव बेल्स भी गिरा दिए और मैच के खत्म होने का ऐलान (Announce) कर दिया, जबकि घड़ी में अब भी डेढ मिनट बाकि थे और भारतीय टीम को जीतने के लिए सिर्फ छह रनों की जरूरत थी।
मैच ड्रा (Draw) हो गया, भारतीय टीम सीरीज (Series) हार गई और अपना पहला टेस्ट मैच जीतने का इंतजार (Wait)  चार साल और लंबा हो गया था।
तो दोस्तो ये थी उन पांच मैचों की कहानी जिसमें भारतीय (Indians) टीम को जीत हासिल नहीं हुई लेकिन फिर भी कहीं ना कहीं किसी ना किसी बहाने हमारे दिलों में जगह बनाए हुए हैं, क्योंकि हमने किसी भी मैच में जानबूझकर हार को स्वीकार (Accept) नहीं किया था और ना ही जितने के लिए बेईमानी का सहारा लिया था।
इसी उम्मीद के साथ कि आपको हमारी यह विडियो पसंद आई होगी आज की इस पोस्ट में बस इतना ही मिलते हैं

वीडियो देखे –

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