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शेन वॉर्न: कलाइयों के जादूगर की अनसुनी कहानियाँ।

यादें, इंसानी दिमाग़ की सबसे बड़ी ताकत। यादें, टूटे हुए हौसलों का सबसे मज़बूत साथी। यादें, गुज़र चुके इंसान के खोने के एहसास को कम करने का एकमात्र सहारा। वो सहारा जिसकी ज़रुरत पिछले कुछ दिनों में क्रिकेट को जानने वाले हर शख़्स को पड़ी है। क्योंकि, 4 मार्च को विश्व क्रिकेट ने शेन वॉर्न नाम का सितारा खो दिया।

वो सितारा जो अपनी घूमती गेंदों के लिये हर फ़ैन की यादों में है।

वो सितारा जिसके बॉलिंग स्टाइल को शायद ही किसी बच्चे ने कॉपी ना किया हो।

वो सितारा जो आज आसमान के किसी कोने पर चमक रहा है, तो कहीं अपने चाहने वालों के दिल मे भी धड़क रहा है।

यूँ तो शेन वॉर्न की महानता को चंद लम्हों में समेट पाना मुमकिन नहीं है। फिर भी नारद टी.वी. आज ‘हीरोज़ ऑफ़ क्रिकेट’  सिरीज़ के इस ख़ास एपिसोड में शेन वॉर्न की ज़िंदगी से जुड़े हर उस पहलू पर रौशनी डालने की कोशिश करेगा। वो हर पहलू जिस पर क्रिकेटर्स समेत हर फ़ैन को भी नाज़ (गर्व) है, कि शेन वॉर्न ने उनके दौर में जन्म लिया।

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Shane Warne

शेन वॉर्न का शुरुआती जीवन-

      दोस्तों, शेन वॉर्न का जन्म साल 1969 में सितम्बर महीने की 13 तारीख़ को मेलबॉर्न में रहने वाले कीथ और ब्रिगेट वॉर्न के घर हुआ था। वॉर्न को पैदाइशी हेटेरोक्रोमिया बीमारी थी। जिसमें इंसान की एक आँख का रंग नीला और दूसरी का हरा होता है। क़ुदरत के इस नयाब कारनामे के साथ जन्में शेन वॉर्न को बचपन में फ़ुटबॉल और टेनिस का बहुत शौक था।

शेन वॉर्न पर फ़ुटबॉल का दीवानापन इस क़द्र था कि उन्होंने बचपन में ही ए.एफ़.ल. (ऑस्ट्रेलिया फ़ुटबॉल लीग) का बड़ा खिलाड़ी बनने की ठान ली थी। हालाँकि, शेन वॉर्न मेंटन ग्रामर स्कूल में स्पोर्ट्स स्कॉलरशिप मिलने के बाद से क्रिकेट में भी वक़्त देने लगे थे।

इस दौरान ही शेन वॉर्न ने 16 साल की उम्र में यूनिवर्सिटी ऑफ़ मेलबॉर्न क्रिकेट क्लब की ओर से अपना पहला अच्छे स्तर का क्रिकेट मैच भी खेला था। उन दिनों वॉर्न की पहचान लेग स्पिन और ऑफ़ स्पिन का मिश्रण डालने वाले स्पिन गेंदबाज़ के तौर पर होती थी।

जो कभी-कभी लोअर ऑर्डर में रन बनाने के लिये भी जाना जाता था। इसके बाद कुछ सालों तक वॉर्न की ज़िंदगी सही ट्रैक पर चल रही थी। क्योंकि, वो सेंट किल्डा के क्रिकेट क्लब के साथ फ़ुटबाल क्लब का भी हिस्सा थे और मशहूर फ़ुटबॉलर बनने का सपना सच होते देख रहे थे। लेकिन, महान हस्तियों की ज़िंदगी इतनी आसन नहीं होती है और यही हुआ 1988 में सिर्फ़ 18 साल के वॉर्न के साथ भी।

शेन का दिल तब बुरी तरह टूट गया। जब सेंट किल्डा फ़ुटबॉल क्लब ने वॉर्न को डीलिस्टेड (बाहर) कर दिया। कम उम्र वॉर्न ने इस वक़्त को समझदारी से हैंडल किया और अब पूरी तरह से क्रिकेट पर फ़ोकस करना (ध्यान देना) शुरू कर दिया। वॉर्न ने अब एक लेग स्पिनर बनने की ठानी और रुमाल के साथ सिक्के रखकर प्रैक्टिस शुरू कर दी।

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Shane Warne

शेन वॉर्न का क्रिकेटर बनने का सफर-

      कई महीनों तक टप्पे पर पकड़ पाने के बाद वॉर्न ने  बॉल स्पिन कराने का अभ्यास शुरू किया। मगर, इतनी मेहनत के बाद भी वॉर्न की गेंदबाज़ी तकनीक में बहुत कमियाँ थीं। जिसके चलते साल 1990 में शेन को अकेडमी ने आख़िरी चेतावनी दी। इस दौरान ही शेन की मुलाक़ात हुई पूर्व ऑस्ट्रेलियाई स्पिनर टेरी जेनर से। ये वो ही टेरी जेनर थे जो कई नौकरियाँ बदलने के बाद ख़ुद को बर्बाद करते हुए फ़्रॉड के आरोप में जेल में 18 महीने गुज़ार कर आये थे।

फ़िल्मी कहानियों की तरह वॉर्न को जेनर में वो कोच नज़र आया जो उनकी कमियाँ दूर कर सकता था। फिर क्या था! जेनर ने वॉर्न की गेंदबाज़ी पर जमकर काम किया और साल 1991 में वॉर्न को विक्टोरिया की तरफ़ से पहला फ़र्स्ट क्लास मैच खेलने का मौका मिला।

उस मैच में वॉर्न का प्रदर्शन बेहद ही साधारण रहा। लेकिन, चयनकर्ताओं ने वॉर्न को एक आख़री मौका देते हुए ऑस्ट्रेलिया-बी की तरफ़ से ज़िम्बाब्वे भेजा। वहाँ वॉर्न ने तेज़ गेंदबाज़ों को मदद करने वाली पिच पर भी एक पारी में 7 विकेट लेकर सनसनी मचा दी।

ऑस्ट्रेलिया लौटने के बाद वॉर्न ने वेस्टइंडीज़ के विरुद्ध एक अभ्यास मैच में फिर 7 विकेट लेकर नेशनल टीम में अपनी दावेदारी पेश की। इस दौरान ही भारतीय टीम 5 टेस्ट मैचों की श्रृंखला खेलने ऑस्ट्रेलिया गई हुई थी और पहले दो मैचों में तब के ऑस्ट्रेलियाई स्पिनर पीटर टेलर सिर्फ़ 1 विकेट हासिल कर बुरी तरह फ़्लॉप साबित हुए थे। ऐसे में चयनकर्ताओं की निगाह वॉर्न की तरफ़ गयी और इस तरह साल 1992 में वॉर्न को सिडनी टेस्ट से डेब्यू करने का मौका मिला।

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वॉर्न का डेब्यू बेहद निराशाजनक रहा-

      दोस्तों, 92 किलो के भारी भरकम और 6 फ़ुट लम्बे शेन वॉर्न ने जब सिडनी क्रिकेट ग्राउंड में पहली बार गेंद थामी थी। तो, पूरे ऑस्ट्रेलिया ने उन से एक नये युग की उम्मीद की थी और वॉर्न ने अपने पहले विकेट के रूप में रवि शास्त्री जैसे बड़े खुलाड़ी का विकेट भी हासिल किया था। लेकिन, शास्त्री का विकेट वॉर्न के डेब्यू की एकमात्र कामयाबी साबित हुआ और कई घंटों तक गेंदबाज़ी के बावजूद वॉर्न को कोई अन्य कामयाबी नहीं मिली। वॉर्न का डेब्यू बेहद निराशाजनक रहा। हालाँकि, वॉर्न को इसके बाद भी मौके मिलते रहे। लेकिन, वो बुरी तरह फ़्लॉप रहे।

एक वक़्त तो ऐसा था जब वॉर्न के अंतर्राष्ट्रीय आँकड़े उनके नाम के आगे 93 ओवरों में 346 रन लुटाने के बाद भी सिर्फ़ एक विकेट दिखा रहे थे। उस दौरान ऐसा लग रहा था कि वॉर्न का कैरियर शुरू होने से पहले ही ख़त्म हो जायेगा।

लेकिन, 17 अगस्त 1992 को कप्तान एलन बॉर्डर ने श्रीलंका के विरुद्ध वॉर्न की तरफ़ गेंदबाज़ी के लिये जब गेंद उछाली थी। तब शायद ख़ुद बॉर्डर को भी नहीं पता होगा कि वो शेन वॉर्न के युग की शुरुआत करने जा-रहे हैं। दरअसल, उस स्पैल में वॉर्न ने सिर्फ़ 5 ओवरों में 11 रन देकर 3 विकेट हासिल किये और अपनी प्रतिभा का अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रदर्शन किया। इसके बाद उसी साल वॉर्न ने स्टार बल्लेबाज़ों से सजी वेस्टइंडीज़ टीम के सामने मेलबॉर्न टेस्ट की दूसरी पारी में 7 विकेट लेकर सनसनी मचा दी।

विश्व क्रिकेट में अब वॉर्न की चर्चा शुरू हो गयी थी। अख़बार वॉर्न की तारीफ़ में क़सीदे लिख रहे थे। लेकिन, वॉर्न तैयारी कर रहे थे आने वाले दिनों के मुक़ाबलों की और वॉर्न की इस तैयारी का परिणाम ये रहा, कि 1993 साल में वॉर्न ने विकेटों और रिकॉर्डों की झड़ी लगा दी।

बॉल ऑफ़ द सेंचुरी-

उस साल वॉर्न ने न्यूज़ीलैंड और इंग्लैंड जैसी बड़ी टीमों के सामने करिश्माई गेंदबाज़ी करते हुए 71 विकेट हासिल किये। उस दौरान ही वॉर्न ने माइक गेटिंग को लेग स्टम्प के बाहर से लगभग 90 डिग्री के जादुई एंगल पर बॉल टर्न करते हुए वो मशहूर बोल्ड किया था। जिसे आज ‘बॉल ऑफ़ द सेंचुरी’ का ख़िताब दिया जाता है।

इसके बाद शेन वॉर्न विश्व क्रिकेट के लिये कोई आम खिलाड़ी नहीं रहे। वॉर्न आये दिन हर श्रृंखला में कोई-ना-कोई कारनामा करते रहते और कोई पुराना रिकॉर्ड तोड़कर नया कीर्तिमान स्थापित करते ही रहते थे।

      शेन वॉर्न की गेंदबाज़ी की सबसे ख़ास बात ये थी कि वो पाटा (फ़्लैट) पिच पर भी गेंद टर्न कराकर अपने किये मदद ढूंढ ही लेते थे। साथ ही वॉर्न की एक्यूरेसी, वैरिएशन और चालाकी के आगे बड़े से बड़ा दिग्गज बल्लेबाज़ भी पनाह मांगता था।

इसके अलावा वॉर्न का एटीट्यूड ऐसा था कि बल्लेबाज़ उनके मुस्कुराते हुए चेहरे को देखकर सुकून महसूस करता था। तो, वॉर्न की घूरती हुई आँखें बल्लेबाज़ों को ख़ौफ़ में डालती थी।

यहाँ वॉर्न की चालाकी भरी एक घटना का ज़िक्र ज़रूरी है। हुआ ये था कि एक भारत और ऑस्ट्रेलिया मुक़ाबले में गाँगुली सचिन के साथ सँभलकर खेलते हुए वॉर्न की हर ललचाती हॉफ वॉली गेंद को डिफेंस कर रहे थे।

कुछ देर बाद वॉर्न गाँगुली के पास गये और सचिन की ओर इशारा करते हुए कहा “ग्राउंड में मौजूद सभी दर्शक तेंदुलकर को स्ट्रोक्स खेलते देखने आये हैं। तुम्हें ब्लॉक करते देखने नहीं”। इसके बाद गुस्साये गाँगुली ने आगे बढ़कर वॉर्न को हिट करना चाहा और वॉर्न के जाल में फँसकर स्टम्प आउट हो गये।

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शेन वॉर्न का क्रिकेट में प्रदर्शन-

एक बार शेन वॉर्न ने अपने इस निराले अंदाज़ पर बात करते हुए कहा था “स्पिन की असल कला वो है जब तुम बल्लेबाज़ के मन में बैठा दो कि तुम्हारे पास घूमती हुई जादुई गेंदों का पिटारा है। लेकिन, अगली गेंद तुम घुमाओ नहीं, सीधी फेंक दो”। वॉर्न के इस लाजवाब क्रिकेट सेंस की ही वजह है कि साल 2007 में उन्होंने जब इंटरनेशनल क्रिकेट से संन्यास लिया। तो, आंकड़े वॉर्न के नाम के आगे 194 वनडे मैचों में 293 और 145 टेस्ट मैचों में 708 यानी कुल मिलाकर 1001 अंतर्राष्ट्रीय विकेट दिखा रहे थे।

शेन वॉर्न के ये करिश्माई आँकड़ें चीख-चीख कर गवाही देते हैं, कि शेन वॉर्न को सर्वकालीन (क्रिकेट इतिहास का) महान स्पिनर कहा जाये तो ग़लत नहीं होगा।

      दोस्तों, हर कामयाब खिलाड़ी की ज़िंदगी की तरह वॉर्न की कहानी में भी कई विवाद और कई इंजरीज़ (चोटें) हैं। जिसमें साल 2003 में ड्रग्स के चलते विश्व कप से ठीक पहले लगे बैन और उस दौरान ही लगी चोट ने शेन वॉर्न को सबसे ज़्यादा परेशान किया था।

तब विश्व क्रिकेट ने शेन वॉर्न का कैरियर ख़त्म मान लिया था। लेकिन, हर बार की तरह उस बार भी शेन वॉर्न ने जादुई वापसी की और 2005 एशेज़ में 40 विकेटों के साथ 249 रन बनाकर सभी आलोचकों के मुँह बंद कर दिये थे।

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Shane Warne

आईपीएल

इसके बाद आलोचकों के ये मुँह ज़्यादा खुल नहीं पाये। क्योंकि, क़रीब डेढ़ साल बाद ही वॉर्न ने 2007 एशेज़ में सिडनी टेस्ट से संन्यास की घोषणा कर दी थी। संन्यास के बाद वॉर्न फ्रैंचाइज़ क्रिकेट से अगले कुछ सालों तक जुड़े रहे। जिसमें सबसे ख़ास वॉर्न की कप्तानी में राजस्थान रॉयल्स का साल 2008 आईपीएल जीतना था। इसके अलावा वॉर्न बेहद शानदार कमेंटेटर और कोच होने के साथ एक अच्छे इंसान भी थे।

शेन उन चुनिंदा खिलाड़ियों में थे जो सोशल मीडिया पर भी काफ़ी एक्टिव रहते थे। शेन के ट्वीट से जुड़ी एक मशहूर घटना साल 2011 विश्व कप में तब हुई थी।

जब वॉर्न ने भारत बनाम इंग्लैंड मुक़ाबले से पहले मैच के टाई होने की भविष्यवाणी की थी और संयोगवश वो मशहूर मैच टाई हो भी गया था। इस मैच के अगले दिन फ़ॉक्स स्पोर्ट्स ने हैडलाइन लिखी थी “शेन वॉर्न: कोई जीनियस या फिर एक मैच फिक्सर”।

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   दोस्तों! शेन वॉर्न के कारनामे और उनके किस्से इतने हैं कि घंटो उनपर बात की जा-सकती है। क्योंकि, ज़िंदादिल वॉर्न की शख़्सियत ही ऐसी थी। यही वजह है कि वॉर्न के गुज़र जाने की ख़बर ने हर शख़्स को अंदर से हिलाकर रख दिया था। सोचने पर मजबूर कर दिया था कि खुशमिज़ाज इंसानों की ज़िंदगी कम क्यों होती है? लेकिन, फिर दिमाग कहता है कि “क्या हुआ वॉर्न आज हमारे बीच नहीं हैं। उनकी यादें तो हमारे साथ हैं। उनके किस्से तो हमें याद हैं। इसलिये, मुस्कुराओ और ये दुआ करो कि शेन वॉर्न अब जिस दुनिया में भी हैं, सुकून से रहें”।

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