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Gadar 2 Movie More Than REVIEW:

फिर वही तूफ़ान उठा है फिर वही मंजर है | ऐसा लगता ही नहीं कि बाईस साल गुजर चुके हैं | लगता है जैसे कल की ही बात हो | पिछली बार अशरफ अली के मंसूबों को धोया था इस बार मेजर जनरल हामिद इक़बाल के इरादों को नेस्तोनाबूत कर दिया है | वही जज्बा वही जूनून वही दम खम वही फ़ौलादी इरादे | गदर 2 ने वाकई रिलीज (Release) होते ही बॉक्स ऑफिस (Office) पर गदर मचा दिया है | उम्मीद तो थी कि ये फिल्म बाईस साल पहले वाली उसी कामयाबी (Success) को दोहराएगी लेकिन एक अनजान सा डर भी था लेकिन अंजाम इतना भयानक इतना खतरनाक होगा ये शायद ही किसी ने सोचा होगा | सारे के सारे शो हाउसफुल (Housefull) | मल्टी (Multi) स्क्रीन से लेकर सिंगल स्क्रीन थियेटर (Movie Theater) तक सब की टिकट खिड़की (Window) पर हाउसफुल का लटकता बोर्ड खिलखिला रहा है | बॉक्स ऑफिस पर रौनक आ गई है | वाकई अब इसमें कोई शक नहीं रह जाता कि गदर 2 ब्लाक (Block) बस्टर (Buster) बन चुकी है | आज के पोस्ट में हम आपके लाये हैं एक अलग तरह का रिव्यु (Review)| रिव्यु तो तमाम चैनल करते हैं लेकिन हमारा रिव्यु सिर्फ रिव्यु नहीं बल्कि रिव्यु से कुछ ज्यादा है | तो बने रहिये हमारे साथ इस पोस्ट के आखिर तक |

                                                                                                                Gadar 2

हम आगे बढ़ें इससे पहले आपको सबको स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनायें | हमारा आपसी भाईचारा प्रेम सौहार्द यूँ ही बरक़रार रहे | हम सब कंधे से कंधा मिलाकर अपने देश को विकास के नए पथ पर ले जाएँ इन्हीं उम्मीदों के साथ शुरू करते हैं आज का पोस्ट |

सबसे पहले बात अपने सनी पाजी यानी तारा सिंह की | गदर एक प्रेम कथा भले ही आज से बाईस साल पहले रिलीज हुई हो लेकिन तारा सिंह आज भी लोगों के दिलों में रचा (Fabricate) बसा है | गदर 2 में सनी पाजी पहले फ्रेम (Frame) से तारा सिंह के किरदार में घुस जाते हैं | उन्हें देखते ही हाल हिंदुस्तान जिंदाबाद के नारों से गूँज उठता है | भले ही फिल्म के फर्स्ट हाफ में वो कम दिखे हों लेकिन सेकंड हाफ में भरपाई हो जाती है | सनी देओल ने अपने पूरे कैरियर (Career) में अपनी एक अलग इमेज बनाई है | उनका विनम्र (Polite) स्वभाव देखकर अच्छे अच्छों का दिल पिघल जाये तो रौद्र रूप देखकर बड़े से बड़ा तुर्रम खां भी काँप उठे | वो जाने जाते हैं अपनी मसल पॉवर (Muscle) के लिए | दर्शक (Audience) मानते हैं कि वो कुछ भी कर सकते हैं | ये जानते हुए भी कि हम जो देख रहे हैं वो असलीयत में मुमकिन नहीं लेकिन फिर भी हम बिना चूं किये यकीन कर जाते हैं | यही सनी पाजी की असली कमाई है | वरना फिल्म इंडस्ट्री (Industry) में ये रुतबा भला कितनों को नसीब है | यही वजह है कि जब गदर में उन्होंने हैण्डपम्प (Handpump) उखाड़ दिया था तब भी किसी को कोई हैरानी परेशानी नहीं हुई हाँ तालियाँ जरूर जमकर पीटी गईं | और इस बार तो पाकिस्तान में उनका इतना खौफ था कि उन्होंने हैण्ड पम्प को हाथ भर लगाया था और उन्हें पकड़ने आई भीड़ फिर उलटे पाँव भाग खड़ी हुई | सच कहा जाये तो ये फिल्म का वो सीन था जिसमें सबसे ज्यादा तालियाँ बजीं |

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पिछली गदर में जहाँ तारा सिंह अपनी मोहब्बत (Love) अपनी बीवी शकीना को वापस लेने पाकिस्तान में घुसा था वहीँ इस बार अपने बेटे जीते को लेने | सनी पाजी ने केवल पहिया और खम्भा (Pole) ही नहीं उखाड़ा या फिर केवल हथौड़ा ही नहीं चलाया बल्कि एक जवान बेटे के बाप का रोल भी बखूबी निभाया | बाप और बेटे के रिश्ते पर बात कम ही होती है | लेकिन ये फिल्म उस पर भी पूरी शिद्दत (Strength) से बात करती है और बहुत कुछ कह जाती है | तारा भी सब बापों की ही तरह अपने नाकारे बेटे की फ़िक्र (Concern) करता है | वो चाहता है कि वो पढ़ लिखकर कुछ बन जाये लेकिन उसकी सुनता कौन है | बेटे पर तो एक्टर बनने का भूत सवार है | तारा उसे चपेट मारने में भी पीछे नहीं हटता यहाँ तक की उसे कमरे में बंद कर देता है लेकिन जन्म दिन पर गिफ्ट में मोटर साइकिल (Cycle) भी देता है | ऐसा ही तो होता है एक बाप | दुनिया (World) का हर एक बाप इससे खुद को रिलेट (Relate) कर सकता है | सनी पाजी ने इस फिल्म से एक बाप के रोल को नई ऊँचाइयाँ बख्शी हैं | पाकिस्तान में दौड़ता भागता जित्ते जित्ते चिल्लाता तारा कलेजा छलनी कर देता है | फिल्म में एक डायलाग (Dialogue) है कि एक बाप के होते हुए भला एक बेटे को क्या फ़िक्र हो सकती है | वाकई ये इस दुनिया का सबसे बड़ा सच है | एक बाप के होते हुए दुनिया का हर बेटा बेटी अपने आपको एकदम बेफिक्र (Carefree) महसूस करते हैं | उन्हें कोई फ़िक्र कोई चिंता छू भी नहीं सकती | फ़िक्र और चिंताओं के लिए बाप है ना | फिल्म में ये पक्ष बड़ी ही खूबसूरती से दिखाया गया है |

सनी देओल 65 साल के हैं लेकिन उनको देखकर कहीं से ऐसा नहीं लगता | बॉक्स ऑफिस पर सफलता के ऐसे झंडे गाड़ने वाले शायद वो सबसे उम्रदराज (Aging) कलाकार होंगे | इसमें कोई दोराय नहीं कि गदर के बाद गदर 2 भी उनकी यादगार फिल्मों की फेहरिस्त में शामिल हो चुकी है | अगर हम ये कहें कि ये उनके स्टारडम (Stardom) का चरम है तो गलत नहीं होगा |

अब बात करते हैं फिल्म के डायरेक्टर (Director)अनिल शर्मा की | इसमें कोई दोराय नहीं कि गदर एक प्रेम कथा के बाद इसका सिक्वेल (Sequel) बनाने का कोई इरादा नहीं था | कोई सोच भी नहीं रहा था कि इसका सिक्वेल भी आएगा | लेकिन हालात कुछ ऐसे बने कि आज गदर 2 पर्दे पर है | असल में देखा जाये तो पिछले कुछ समय से अनिल शर्मा का कैरियर (Career) डांवाडोल (Wavering) चल रहा था | उन्होंने अपने बेटे उत्कर्ष को फिल्म जीनियस से बतौर हीरो लांच भी किया लेकिन कामयाब नहीं हो सके | इसके बाद से उत्कर्ष भी खाली ही थे | शायद एक अदद हिट (Hit) की तलाश ने ही उन्हें गदर 2 बनाने के लिए प्रेरित किया | देशभक्ति से ओत प्रोत फ़िल्में बनाने में अनिल शर्मा को महारथ हासिल है | वो धर्मेन्द्र के जमाने से ही ऐसी फ़िल्में करते रहे हैं लेकिन इस बार हालात बदले हुए थे | एक ब्लाकबस्टर (Blockbuster) फिल्म का सिक्वेल (Sequel) बनाना कतई आसान काम नहीं | यकीन मानिये एक सफल फिल्म बनाने से कहीं ज्यादा मुश्किल काम है उसकी सफलता को रिपीट (Repeat) करना | बल्कि इस कोशिश में फिसलने का खतरा कहीं ज्यादा होता है | और बात जब गदर जैसी फिल्म की हो तो हालात और ज्यादा मुश्किल हो जाते हैं | जबसे गदर 2 की शूटिंग शुरू हुई है तभी से लोगों की उम्मीदें आसमान छूने लगी थीं | लेकिन तारीफ करनी होगी अनिल शर्मा की जो उम्मीदों पर पूरी तरह खरे उतरे |

सबसे अच्छी बात ये रही कि उन्होंने मूल फिल्म से बहुत ज्यादा बेहतर करने को कोशिश नहीं की | यही बात फिल्म के लिए सबसे अच्छी साबित हुई | क्योंकि सच यही है कि चाहे जितनी कोशिशें कर ली जाएँ गदर से बेहतर कुछ भी नहीं बनाया जा सकता | कुछ कृतियाँ (Creations) ऐसी बन जाया करती हैं जिनसे बेहतर कुछ भी तमाम कोशिशों के बावजूद नहीं बनाया जा सकता | रामानंद सागर की रामायण इसी का उदाहरण (Example) है | कोशिशें तो लोगों ने जरूर कीं लेकिन उसका अंजाम (Result) आदिपुरुष ही रहा | ये अच्छा रहा कि अनिल शर्मा पहले दिन से ही एकदम क्लियर थे कि उन्हें गदर एक प्रेम कथा से बेहतर नहीं बनाना है | लेकिन इस कोशिश में गदर को रिपीट कर जाने का खतरा भी था | लेकिन फिल्म की कहानी लगभग एक जैसी होते हुए भी उन्होंने पूरी चालाकी (Finesse) से फिल्म को संभाला |

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अशरफ अली का किरदार –

अशरफ अली को भला कौन भूल सकता है | एक तरफ तारा सिंह था तो दूसरी तरफ अशरफ अली | ये दोनों ही वो पिलर थे जिन पर पूरी फिल्म खड़ी थी | गदर 2 के बनने की चर्चा (Discussion) जबसे शुरू हुई सबके दिमाग में एक ही सवाल था कि अशरफ अली का किरदार कौन निभाएगा | जरूर मेकर्स के मन में भी ये सवाल आया होगा | उस कालजयी किरदार के बिना भला फिल्म कैसे बन सकती थी | लेकिन अशरफ अली के किरदार में स्वर्गीय अमरीश पूरी साहब इस कदर लोगों के दिलों में रचे बसे हैं कि उन्हें रिप्लेस (Replace) कर पाना किसी के बूते की बात नहीं | ऐसा अदाकार तो सदियों में एक बार पैदा होता है | अगर उन्हें रिप्लेस किया जाता तो यकीनन (Of course) उसकी तुलना अमरीश पूरी साहब से होती और अपनी लाख कोशिशों के बावजूद वो असफल ही रहता | मेकर्स ने यहाँ पर बड़ी ही समझदारी का परिचय देते हुए अशरफ अली का किरदार ही खत्म कर दिया | और बदले में मेजर जनरल हामिद इक़बाल को खड़ा कर दिया | और इससे बड़ा गेम प्लान (Plan) तो ये रहा कि मेजर जनरल के किरदार में किसी नामी गिरामी कलाकार को लेने के बजाय एक ऐसे कलाकार को लिया जिसे कम ही लोग जानते थे | भले ही उन्हें कम लोग जानते हों लेकिन वो एक्टिंग की फील्ड में तपे और मंझे हुए खिलाड़ी थे | जिसका फायदा ये रहा कि किसी तरह की तुलना या पूर्वाग्रह (Prejudice) की सारी शंकाए ही समाप्त हो गईं | हालाँकि फिल्म शुरू होने से पहले लोगों ने अमरीश पूरी और मनीष वाधवा की तुलना वाली बातें फैलानी शुरू कर दी थीं लेकिन वाधवा ने बड़ी चालाकी से इन बातों को ये कहकर ख़ारिज कर दिया कि मेरे जैसे सौ कलाकार मिलकर भी अमरीश पूरी नहीं बन सकते |

VFX 

फिल्म की एक और बात पर चर्चा करना बेहद जरूरी है | ये वो बात है जो इस फिल्म को खास बनाती है | आजकल फिल्मों में vfx का चलन बढ़ा है | एक होड़ सी लगी है फिल्मों में vfx और cgi को कूट कूट कर भर देने की | लेकिन आप जानकर हैरान होंगे कि एक्शन (Action) पैक्ड (Packed) थ्रिलर (Thriller) फिल्म गदर 2 में vfx का इस्तेमाल बेहद कम किया गया है | शायद यही वो खूबी है जो इस फिल्म को बाकी फिल्मों से अलग बनाती है | डायरेक्टर अनिल शर्मा कहते हैं कि उन्होंने चीजों को ज्यादा से ज्यादा रियल रखने की कोशिश की है जैसा उन्होंने गदर में किया था | वाकई में अगर देखा जाये तो असली लड़ाइयाँ ऐसी हो होती हैं | जो मिला फेंक के मार दिया | तभी तो सनी पाजी ने हैण्डपम्प ही उखाड़ डाला था | और वो लोगों को इतना रियल (Real) लगा कि सब बिना चूं किये चुपचाप देखते रहे उलटे तालियां पीट दीं | कोई माने या न माने लेकिन सच यही है | vfx फिल्मों से रियलिटी (Reality) को दूर करता जा रहा है | इससे फिल्म को तो कोई मदद नहीं ही मिलती अलबत्ते फिल्म का बजट (Budget) जरूर बढ़ जाता है | अगर vfx ही सब कुछ होता तो आदिपुरुष कभी फ्लॉप (Flop) न होती और रामायण जैसी सीरियल न बनते जिस दौर में vfx लगभग न के बराबर मौजूद था |

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फिल्म देखने के बाद ये कहा जा सकता है कि मेकर्स (Makers) ने फिल्म को बनाने में जबर्दस्त मेहनत की है | उन्होंने फिल्म के हर पहलू को अच्छे से जांचा परखा है | इसीलिए बाईस साल बाद भी फिल्म के कलाकारों (Artists) के साथ कम से कम छेड़छाड़ की गई है | यहाँ तक कि गुल खान और उसकी बीवी का किरदार भी गदर एक प्रेम कथा वाले मुश्ताक खान और डॉली बिंद्रा ने ही निभाया है | इसका फायदा ये रहा कि दर्शक उसे देखते ही उससे कनेक्ट (Connect) हो जाता है | उसे कुछ बताने समझाने की जरूरत नहीं पड़ती | उसे मालूम है कि गुल खान का किरदार (Character) हर थोड़ी देर में ये बोलेगा ही बोलेगा कि ‘किसको कह रहा है तू किसको?’ | फिल्म गदर में उसकी बीवी बनी डॉली बिंद्रा का रोल भले ही महज कुछ सेकंड का था लेकिन फिर भी वो याद गई थीं | लेकिन इस बार जब पता चलता है कि गुल खान अपनी बीवी को मायके छोड़ आया है तो एक बार को उदासी सी छा जाती है लेकिन अनिल शर्मा यहाँ भी खेल गये | थोड़ी देर में अपने चिर परिचित (Familiar) अंदाज और तीखे तेवरों से लैस उसकी बीवी जब स्क्रीन पे प्रकट होती है तो बरबस ही हँसी छूट जाती है | असल में गदर एक प्रेम कथा के हर एक किरदार को इतनी खूबसूरती से गढ़ा गया था कि वो जेहन में बस गया था | उन्ही कलाकातरों को बरक़रार रखने से काम और आसान हो गया |

बात अगर सनी पाजी को छोड़कर बाकी कलाकारों की करें तो सबने बेहतरीन काम किया है | शकीना बनी अमीषा के हिस्से भले ही कम काम आया हो लेकिन जितना भी आया उन्होंने उसके साथ न्याय (Justice) किया है | हाँ उम्र का असर साफ़ दिखता है | लेकिन उनका रोल भी उम्र के मुताबिक ही है | सबसे surprising एलिमेंट रहे उत्कर्ष शर्मा | जीनियस फ्लॉप हो जाने के बाद जिस तरह से वो गायब हुए उससे तो यही लगा था कि शायद उनका कैरियर (Career) खत्म हो गया | लेकिन अनिल शर्मा ग़दर से जहाँ सबके कैरियर को वापस पटरी पर लाये वहीँ अपने बेटे का कैरियर भी संवार दिया | वास्तव में जीते के किरदार में उत्कर्ष कहीं भी फीके नहीं पड़े हैं | एक जांबाज बाप के बहादुर बेटे का किरदार उन्होंने बखूबी निभाया है | वरना सनी पाजी के सामने खड़े रहना कोई आसान काम नहीं है | गदर 2 उन चुनिन्दा (Selected) फिल्मों में से है जिसका हर किरदार अजर अमर हो जाता है | कुछ ऐसा ही रुतबा साल 1975 में आई फिल्म शोले को हासिल है जिसका हर एक किरदार लोगों के जेहन में आज भी बसा है | गदर के छोटे छोटे किरदार भी याद रह जाते हैं | चाहे वो तारा सिंह का ट्रक क्लीनर (Cleaner) हो या फिर पाकिस्तान की वो महिला जिसे जीते मौसी बुलाता है |

म्यूजिक – 

मेकर्स के सामने म्यूजिक (Music) भी बहुत बड़ी चुनौती रही होगी | उत्तम सिंह इस फिल्म से नहीं जुड़ सके | और गदर के संगीत की बराबरी करना किसी के बस की बात नहीं | ऐसे में मेकर्स ने गदर के ही गाने री क्रिएट (Recreate) करना ठीक समझा | उड़ जा काले कांवां और मैं निकला गड्डी लेके दोनों ही गानों को म्यूजिक डायरेक्टर (Director) मिथुन ने री क्रिएट (Recreate) किये | अच्छी बात ये रही कि इन गानों की आत्मा से जरा भी छेड़छाड़ नहीं की गई |

फिल्म में ये बताने की कोशिश भी की गई कि दोनों मुल्कों की आवाम (Population) तो अमन चैन चाहती है लेकिन हुक्मरान बार बार दोनों देशों को युद्ध की आग में झोंक रहे हैं | फिल्म के एक सीन में जब जीते पाकिस्तान के घर में छुप जाता है तब उस घर में रहने वाली महिला उसे खाने के लिए कहती है | घर से निकलते हुए जीते उस महिला को मौसी बुलाता है और पाकिस्तान को अपना ननिहाल बताता है | ये सीन अपने आपमें बहुत कुछ कह जाता है |

राइटर – 

फिल्म के लेखक शक्तिमान तलवार ने अपनी कलम से एक बार फिर से कालजयी (Classic) कहानी लिखी है | यकीनन ये उनके लिए बेहद मुश्किल काम रहा होगा | हालाँकि मेकर्स ने कभी भी कहानी को छुपाने की जरा सी भी कोशिश नहीं की | पहले दिन से ही कहानी सबको पता थी | वरना आजकल के फ़िल्मकार तो पहले ही लिखवा के ले लेते हैं कि फिल्म की कहानी की चर्चा किसी से नहीं करेंगे | फिल्म की कहानी तो शानदार है ही डायलाग्स (Dialogues) भी जबर्दस्त हैं | फिल्म के सेकंड हाफ में एक से बढकर एक डायलाग्स हैं जिन पर हाल में बैठे दर्शक पागल हो उठते हैं | तालियों की गड़ागड़ाहट और हिंदुस्तान जिंदाबाद के नारों से पूरा हाल हिल उठता है | वैसे भी जब अपना तारा सिंह पाकिस्तान में घुसेगा और वहाँ घुसकर दुश्मनों को पटक पटक कर धोएगा तो हाल में तालियाँ और नारे तो गूंजने ही हैं |

फिल्म में गदर एक प्रेम कथा के सीन्स का भी बड़ी ही खूबसूरती से इस्तेमाल किया गया है | जब जब वो सीन आते हैं दर्शक वापस उन्हीं बाईस साल पुरानी यादों (Memories)  में खो जाता है |

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फ़िलहाल तो ये फिल्म बॉक्स ऑफिस पर कमाई के नए रिकॉर्ड (Record) बना रही है | इस फिल्म से लोगों के इमोशंस (Emotions) जुड़े हुए हैं | उनके लिए ये सिर्फ एक फिल्म नहीं है बल्कि जज्बात हैं | जिसने भी गदर एक प्रेम कथा का वो दौर देखा था जब टिकट खिड़की पर मेला लगता था वो उसी दौर को दोबारा से जी रहा है | कोई फिल्म तभी कामयाब होती है जब उसकी कहानी और किरदार लोगों के दिलों में उतर जाएँ और गदर ने तो लोगों को लोगों के दिलों पर इस कदर कब्जा (Capture) कर लिया था कि बाईस साल बाद फिर एक बार गदर मचा दिया है लोगों के दिलों में भी और बॉक्स ऑफिस पर भी | हम उम्मीद करते हैं कि गदर 2 सफलता के नए रिकॉर्ड बनाएगी

हमने फिल्म की रिलीज से पहले एक पोस्ट  किया था जिसमें ये जानने समझने की कोशिश की थी कि क्या दूसरी गदर बन सकती है और क्या गदर 2 को भी वही कामयाबी हासिल हो सकेगी जैसी गदर को हुई थी | हालाँकि हमें उम्मीदें जरूर थीं लेकिन बहुत सारी आशंकाएं भी थीं और हमें ख़ुशी है कि फिल्म ने हमारी सारी आशंकाओं को गलत साबित कर दिया है | और यकीन मानिये हम गलत साबित होकर भी बहुत खुश हैं | बाकी हिंदुस्तान जिंदाबाद था हिंदुस्तान जिंदाबाद है और हिंदुस्तान जिंदाबाद रहेगा | धन्यवाद्


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