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5 Historical Moment Which Changed Indian Cricket

भारत, एक देश जिसके बिना आज की दुनिया में क्रिकेट की कल्पना (Imagination) करना लगभग नामुमकिन (impossible) है। पराधीनता (subjection) की बेड़ियों (shackles) में रहकर बल्ले और गेंद को पहली बार हाथ में लेने वाले इस देश के विशाल क्रिकेट (Cricket) इतिहास (History) का एक बड़ा भाग समय की छलनी (strainer) में ऊपर ही रह गया और हम तक नहीं पहुंच (Reach) पाया, लेकिन हमारा यह फर्ज (duty) बनता है कि क्रिकेट (Cricket) की कहानियां (stories) सुनने (listen to) वाले और सुनाने वाले लोगों के जरिए (through) पीढी (generation) दर पीढी जितना भी हमें मिला उसको हम सहेज (save) कर रखें और नारद टीवी की हमेशा से यही कोशिश (Effort) रही है कि वो ऐतिहासिक (historical) पलों और उनको गढ़ने वाले लोगों की कहानियां आपके सामने पुरी ईमानदारी (Honesty) के साथ रखे। भारतीय क्रिकेट इतिहास को हमने अलग-अलग विडियोज और सीरीज (series) के माध्यम (Channel) से पहले भी आपके सामने रखने का प्रयास (Attempt) किया और अब उसी प्रयास को आगे बढ़ाते हुए नारद टीवी की एक नई सीरीज मार्वेल्स (Marvelous)  मैन एंड मूमेंट्स (Moments) ओफ इंडियन क्रिकेट आज से शुरू हो रही है जिसके पहले पोस्ट में हम बात करने वाले बीसवीं सदी में भारतीय क्रिकेट इतिहास के पहले पांच सबसे यादगार पलों के बारे में जिनका असर आज भी क्रिकेट पर नजर आता है।

Indian cricket team in England in 1932

1] first international test match – भारत में क्रिकेट की शुरुआत (beginning) का पुरा श्रेय (Credit) पारसी (Parsiya) लोगों को दिया जाता है जो पराधीन ((dependent) भारत में अंग्रेजी (English) हुकूमत (government) के सबसे करीबी आम लोगों में से थे, पारसी (Parsiya) लोगों ने भारत में उस समय क्रिकेट को सीखना (Learn) शुरू किया था जब यह खेल दुनिया के नक्शे पर बहुत ज्यादा देशों में अपनी जगह स्थापित (Established) नहीं कर पाया था। पारसी लोगों से निकलकर (coming out) आगे लंबे (long) समय तक यह खेल भारत में राजाओं और नवाबों (Nawabs) का खेल बना रहा और इस दौरान(during)  दलितों (dalits) से लेकर बहुत बड़े घरानों (households) से भी अलग अलग ऐसे लोग सामने आने लगे जो अंतरराष्ट्रीय (international) स्तर(level)  पर क्रिकेट खेल सकते थे। साल 1911 के ऐतिहासिक (historical) इंग्लैंड (England) दौरे से इस बात का अनुमान (Estimate) अंग्रेजों (the englishmen) को भी हो गया था और धीरे धीरे यह बात उठने (get up) लगी कि भारत को भी अंतरराष्ट्रीय (international) क्रिकेट में जगह मिलनी चाहिए। ऐसे में साल 1926 में सी के नायडू ने अपनी एक पारी से इस बात पर मुहर लगा दी थी कि भारतीय खिलाड़ी (player) अंतरराष्ट्रीय स्तर के लिए तैयार (Ready) हैं, इसके बाद साल 1928 में बीसीसीआई (bcci) का गठन (Build) हुआ और भारत को जल्द (Soon) ही टेस्ट स्टेटस (status) मिल गया।

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25 जून साल 1932 के दिन एक लंबे इंतजार (Wait) के बाद भारत से आने वाले ग्यारह (Eleven) खिलाड़ी नायडू (Naidu) की कप्तानी (captaincy) में लोर्डस (lourdes) स्टेडियम (stadium) पर अपना पहला अंतर्राष्ट्रीय (international) मैच (match) खेलने उतरे।
भारत उस समय बहुत से बेहतरीन (excellent) तेज गेंदबाजों (bowlers)का देश था, अमर सिंह को उस समय के बहुत से अंतरराष्ट्रीय स्तर के खिलाड़ियों (players) ने दुनिया का सबसे तेज गेंदबाज (bowler) स्वीकार (Accept) किया था।
भारतीय (Indian) क्रिकेट टीम अपने पहले टेस्ट मैच के लिए जब इंग्लैंड रवाना (depart) हुई तो उसमें सात हिंदु,(hindu)  पांच (Five) मुस्लिम, (Muslim) चार पारसी (Parsiya) और दो सिख खिलाड़ी शामिल थे जिनमें से ग्यारह बेहतरीन खिलाड़ियों को भारत की अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट की पहली टीम में शामिल (Involved) होने का गौरव हासिल हुआ था।

इंग्लैंड ने इस मैच में पहले बल्लेबाजी (Batting) करते हुए 259 रन बनाए थे, सिर्फ दो बल्लेबाज (Batsman) पचास से ज्यादा रन बना पाए थे और भारतीय तेज गेंदबाज (Bowlers) मोहम्मद निसार ने पांच विकेट (Wicket) अपने नाम किए थे। भारत अपनी पहली पारी में सिर्फ 189 रन बनाकर आउट (Out) हो गई थी जिसमें सीके नायडू ने सबसे ज्यादा चालीस रन बनाए थे। अंत में इंग्लैंड (England) के 345 रनों का पीछा करते हुए भारतीय (Indian) टीम (Team) यह मैच 158 रनों से हार गई थी, लेकिन भारतीय गेंदबाजों का दबदबा और ख़ासकर अमर सिंह और मोहम्मद निसार के प्रदर्शन को देखते हुए इंग्लैड (England) के कप्तान (Captain) जार्डिन को भरोसा (Trust) हो गया था कि भारतीय क्रिकेट (Cricket) अगले दस सालों में एक बेहतरीन टीम बन जायेगी। भारतीय टीम ने बेहतरीन खेल दिखाया और यहां से शुरू हुआ एक ऐसा बेहतरीन सफर जो अपने 91 वें साल में प्रवेश (Entry) कर गया है और शानदार गति से आगे बढ़ रहा है।

Lala Amarnath

2] first ever test hundred – साल 1932 के इंग्लैंड (England) दौरे पर भारतीय टीम (Team) ने 37 मैचों में हिस्सा (Part) लिया था जिसमें केवल एक अंतरराष्ट्रीय (International) टेस्ट मैच शामिल था, टीम में शामिल होने वाले बहुत से खिलाड़ियों (Players) के लिए यह मैच उनका आखिरी अंतरराष्ट्रीय (International) मैच बनकर ही रह गया। कहा जाता है कि अगर भारत अपना पहला टेस्ट (Test) मैच कुछ साल पहले खेल लेता तो उस समय (Time) ऐसे बहुत से खिलाड़ी थे जो अंतरराष्ट्रीय (International) स्तर पर बेहतरीन करियर (Career) तैयार कर सकते थे। भारत में पैदा हुए कई तेज गेंदबाज इंतजार (Wait) करते हुए थक गए और आखिर में चंद कागजों (Papers) की कुछ लाइनों में ही दब कर रह गए थे।

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इन बेहतरीन खिलाड़ियों के अलावा जो एक और खिलाड़ी (Player) भारत के पहले अंतराष्ट्रीय (International) क्रिकेट मैच में शामिल होने का हकदार था उनका नाम लाला अमरनाथ था।लेकिन लाला जी की उम्र उन्हें पहला मौका गंवाने (Lose) के बाद भी इंतजार (Wait) की इजाजत (Permission) दे रही थी और इसलिए जब अगले साल इंग्लैंड की टीम ने भारत का दौरा किया तो लाला अमरनाथ को भी टीम में शामिल किया गया। 15 दिसम्बर (December) साल 1933 से इस दौरे का एकमात्र (Only) टेस्ट मैच जिमखाना स्टेडियम (Stadium) पर शुरू हुआ जिसमें भारत ने पहले बल्लेबाजी (Batting) करते हुए 219 रन बनाए थे, लाला अमरनाथ ने सबसे ज्यादा 38 रन बनाए थे। जवाब में इंग्लिश टीम ने भी बेहतरीन प्रदर्शन किया और फिर जब भारतीय टीम अपनी दुसरी पारी में खेलने उतरी तो सीके नायडू और लाला अमरनाथ के बीच साझेदारी (Partnerships) तैयार होना शुरू हुई।

लाला जी इस बार शुरू से ही शानदार टच (Touch) में नजर आ रहे थे, जल्दी ही उन्होंने अपना अर्धशतक (Half century) पूरा किया और फिर जब लाला जी 70 के स्कोर (Score) पर पहुंचे तो पुरे बम्बई शहर (City) में यह खबर आग की तरह फैल गई और लगभग खाली पड़ा जिमखाना मैदान (Field) अचानक लबालब भरना शुरू हो गया था।
लाला अमरनाथ ने दर्शकों (Audience) के जोश को देखते हुए अपनी गति (speed) को बढाया और दिन का खेल खत्म होते होते उनका निजी स्कोर 102 रन था। लाला अमरनाथ का नाम हमेशा के लिए अपने देश के पहले शतकवीर के तौर पर दर्ज हो गया था, आज भारतीय क्रिकेट टीम अंतरराष्ट्रीय (International) स्तर पर सबसे ज्यादा शतक (Century) लगाने वाली टीम (Team) है जिसकी शुरुआत 17 दिसंबर (December) साल1933 के दिन हुई थी।

एक किस्सा यह भी सुनने को मिलता है कि जब लाला जी का शतक (Century) पुरा हुआ तो नायडू उन्हें बधाई (Congrats) देने उनके पास पहुंच गए बिना यह सोचे कि गेंद (Ball) तब तक डेड (Dead) नहीं हुई थी, फिल्डर (Fielder) ने गेंद (Ball) विकेटकीपर (Wicketkeeper) तक पहुंचाई और विकेटकीपर के पास नायडू को आउट (Out) करने का पुरा मौका था, लेकिन कप्तान (Captain) जार्डिन ने मना कर दिया क्योंकि वो जानते थे कि यह अवसर भारतीय (Indian) क्रिकेट के लिए बहुत बड़ा है। अगले दिन जब लाला अमरनाथ 119 मिनट तक खेलने के बाद 21 चौकों (Fours) की मदद (Help) से 118 रन बनाकर आउट (Out) हुए तो मैदान (Field) पर सैंकड़ों (Hundred) दर्शक (Audience) पहुंच गए और उन्हें कंधे पर उठा लिया, कुछ लोगों ने उन्हें रुपए दिए तो कुछ लोगों ने गहने तक मैदान पर उनके लिए फेंक दिए थे। होटल (Hotel) में भी भारत के पहले शतकवीर का शानदार स्वागत (Welcome) हुआ लेकिन इस बल्लेबाजी (Batsman) प्रदर्शन के बाद भी भारतीय (Indian)टीम यह मैच (Match) हार गई थी लेकिन लाला अमरनाथ यहां से एक कीवदन्ती बन गए थे, सैंकड़ों कहानियां, किस्से और यादें इस एक नाम के इर्द-गिर्द आज भी बुनी और बताई जाती है।

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India win First Match

3] first ever test match win – साल 1933 के बाद भारतीय (Indian) टीम (Team) को अपना अगला टेस्ट (Test) मैच (Match) खेलने का मौका साल 1936 में मिला और इस इंग्लैंड (England) दौरे (Tour) को आज भी कप्तान (Captain) विजी और अमरनाथ के बीच हुई बहस (Discussion) की वजह से याद (Memory) किया जाता है। लाला जी को वापस भारत भेज दिया गया था और इसलिए लाला अमरनाथ को अपना अगला टेस्ट मैच खेलने के लिए दस से भी ज्यादा सालों का इंतजार करना पड़ा। द्वितीय (Second) विश्व (World) के बाद आजाद भारत की अंतरराष्ट्रीय (International) क्रिकेट टीम ने आस्ट्रेलिया का दौरा (Tour) किया और लाला अमरनाथ इस टीम की कप्तानी (Captaincy) कर रहे थे।डोन ब्रैडमैन के बेहतरीन प्रदर्शन की बदौलत (thanks to) भारत की टीम को इस सीरीज (Series) में कहीं भी टिकने का मौका नहीं मिला लेकिन लाला अमरनाथ के लिए यह दौरा कितना शानदार गया इसका अंदाजा (guess) आप इसी बात से लगा सकते हैं कि आगे चलकर खुद डोन ब्रैडमैन ने अपनी किताब में लाला की कप्तानी और इनके आलराउंड प्रदर्शन को सराहा था।

1951 52 सीजन में इंग्लैंड ने भारत का दौरा (Tour) किया और इस दौरे के पांचवें मैच में आखिरकार (Finally) बीस सालों के इंतजार के बाद विजय हजारे की कप्तानी (Captaincy) में भारतीय टीम (Team) ने टेस्ट क्रिकेट में अपनी पहली जीत हासिल की थी। इंग्लैंड ने पहले बल्लेबाजी करते हुए 266 रन बनाए और फिर जवाब (Answer) में उतरी भारतीय टीम की तरफ से पोली उमरीगर और पंकज रोय ने शतकीय (Centennial) पारी खेलते हुए स्कोर 457 तक पहुंचा दिया था। यहां से भारतीय गेंदबाजों (Bowlers) ने और खासतौर  (especially) पर वीनू मांकड़ ने इंग्लैंड को आसानी से 183 पर आउट (Out) कर इंग्लैंड को आठ रन और एक पारी के बड़े अंतर (Difference) से हराकर सीरीज को बराबरी (Difference) पर खत्म कर दिया था।वीनू मांकड़ ने इस मैच में 108 रन देकर बारह विकेट अपने नाम किए थे।

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In 1968, India Won Their First Overseas Test

4] first ever test win abroad – भारतीय टीम ने यहां से खुद को तराशने (to carve) की ओर कदम बढ़ा दिए और आगे चलकर इसी साल पाकिस्तान को भी हराया (defeated) और पहली बार टेस्ट सीरीज पर कब्जा (Capture) किया, इस तरह 1952 का साल भारतीय क्रिकेट इतिहास में यादगार (memorable) बन गया था।
लेकिन विदेशी जमीन पर अब भी कोई जीत (Victory) भारत के नाम नहीं थी, साल 1967-68 में भारतीय टीम ने पहली बार न्यूजीलैंड का दौरा किया और यहां सीरीज (Series) का पहला मैच 15 फरवरी साल 1968 से डुनेडिन के मैदान (Field) पर शुरू हुआ जहां पहले बल्लेबाजी (Batting) करते हुए न्यूजीलैंड ने 308 रन बनाए, जवाब में भारतीय टीम ने भी अच्छे से खेलते हुए 359 रन बनाकर बढ़त हासिल कर ली थी। भारतीय टीम को आखिर में 200 रन (Run) बनाने का लक्ष्य (Target) मिला जिसे अजीत वाडेकर और रुसी सुरती के बीच हुई शतकीय (Centennial) साझेदारी (Partnerships) की बदौलत भारत ने आसानी (ease) से हासिल कर लिया था। इस तरह मंसूर अली खान पटौदी की कप्तानी (Captaincy) में भारतीय टीम ने विदेशी जमीन पर अपनी पहली जीत हासिल की और फिर आगे चलकर यह सीरीज भी भारतीय टीम के नाम ही रही।

India-England Oval, August 19-24, 1971

5] 1971 win against England and west indies – भारत अब धीरे धीरे अंतरराष्ट्रीय (International) क्रिकेट में अपने मुकाम (destination) की तरफ कदम बढ़ा रहा था और टेस्ट क्रिकेट में जहां से भारतीय (Indian) टीम का स्वर्णिम दौर सही मायनों (ways) में शुरू हुआ था वो साल 1971 था जिसमें अजीत वाडेकर की कप्तानी में भारतीय टीम ने उस समय की दो सबसे बड़ी टीमों को उन्हीं की धरती पर हराया था। वेस्टइंडीज के खिलाफ नये सीजन (Season) की शुरूआत में भारतीय (Indian) टीम ने पांच मैचों की सीरीज में हिस्सा लिया जिसके दुसरे मैच में भारतीय टीम ने सात विकेटों (Wickets) से जीत हासिल (achieved) कर सीरीज को अपने नाम कर लिया था क्योंकि बाकि सभी मैच ड्रा (Dra)  पर खत्म हो गए थे।

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सुनील गावस्कर, गैरी सोबर्स, दिलिप सरदेसाई, प्रसन्ना और चार्ली डेविस जैसे खिलाड़ियों (Players) ने इस सीरीज (Series) को अपने हरफनमौला (all rounder) प्रदर्शन की बदौलत हमेशा के लिए यादगार (memorable) बना दिया था। वेस्टइंडीज के बाद भारत ने इंग्लैंड का दौरा किया और यहां भी पहले दो टेस्ट ड्रॉ (Draw) होने के बाद भारतीय टीम ने भगवत चन्द्रशेखर के जादुई प्रदर्शन की बदौलत ओवल में चार विकेट (Wicket) से मैच जीतकर सीरीज को अपने नाम कर लिया था। टेस्ट क्रिकेट (Cricket) में अब भारतीय (Indian) टीम ने कहीं भी किसीको भी हराने का साहस पैदा कर लिया था लेकिन आगे वनडे (ODI) क्रिकेट में किस तरह भारत ने खुद को साबित किया, और नई पीढी (generation) ने किस तरह टेस्ट क्रिकेट को आगे बढ़ाया, इस पर हम अगले पोस्ट में विस्तार (Expansion) से चर्चा करेंगे और हमें उम्मीद है कि आपका प्यार इस सीरीज को भी पहले की तरह मिलेगा।

तो दोस्तो आज की इस पोस्ट में बस इतना ही मिलते हैं आपसे अगले पोस्ट में तब तक के लिए नमस्कार।

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