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Lappu Sa Sachin: Why Indian Media Is So Addicted

हो सकता है वो लप्पू सा हो | हो सकता है वो झींगुर सा हो | हो सकता है उसे बोलना न आता हो | लेकिन क्या जरूरी है कि इन बातें का दुनिया (World) के सामने ढोल पीटा जाये? किसी के बारे में हर किसी की अपनी निजी राय (Opinion) हो सकती है लेकिन उस राय को ढोल नगाड़े बजा बजा कर बताना आखिर कितना सही (Correct) है? और भारतीय (Indian) मीडिया के तो क्या ही कहने हैं? बस भनक भर लग जाये कि किसी चीज में वायरल (Viral) हो जाने के सारे तत्व मौजूद हैं बस फिर इनकी चाल देखते ही बनती है | फिर ये किसी के मान मर्दन से भी संकोच (Hesitation) नहीं करते | और समाज (Society) को तो आदत हो गई है ऐसी मसालेदार (spicy) खबरें चटखारे के साथ देखने और सुनने की | जहां मसाला मिला वहीं रुक गये | फिर उसे केवल देखा ही नहीं जाता बाकी लाइक और शेयर किया जाना तो परम धर्म बन जाता है | आखिर हम किस युग में जी रहे हैं? ये डिजिटल (Digital) क्रांति हमें किस दिशा (Direction) में ले जा रही है | क्या वायरल होना ही सब कुछ है | एक ओर सचिन की वो पड़ोसन वायरल (Vira) होने के बाद अपने उन्ही डायलाग्स (dialogues) को रट्टू तोते की तरह बार बार बोले जा रहीं हैं | दूसरी ओर मीडिया तो उन्हें बकायदे अपने स्टूडियो (Studio) में बिठाकर उनके मुँह से वही चार लाइन्स उगलवा रही है तो समाज उस पर बनी रील्स (Reels) को मजे ले लेकर देख रहा है | आज के इस पोस्ट हम इसी मुद्दे को जानने समझने की कोशिश (Effort) करेंगे | हम इस बात की तह तक जाने की कोशिश करेंगे कि ये जो कुछ भी हुआ सही हुआ या फिर गलत | तो बने रहिये हमारे साथ इस पोस्ट में शुरू से आखिर तक |

Lappu sa sachin

हम इस मुद्दे (issues) को तीन नजरिये (viewpoints) से जानने समझने की कोशिश करेंगे | पहले एक व्यक्ति के नजरिये से दूसरे एक समाज (Society) के नजरिये से और तीसरे मीडिया के नजरिये से | तो सबसे पहले बात निजी यानी एक व्यक्ति के नजरिये से | मिथलेश भाटी सचिन की ही पडोसी हैं | ध्यान देने की बात ये है कि सचिन ग्रेटर नोएडा के रबुपुरा गाँव के रहने वाले हैं | गांवों में इस तरह के मुद्दे अक्सर ही चर्चा की विषय होते हैं | लोगों के बीच खुसर पुसर होती है और बात इतनी बढती है कि एक गाँव की सीमा पार करके आसपास के तमाम गांवों (villages) तक आग की तरह फ़ैल जाती है | अगर बात गलत अर्थों (meanings) में न ली जाये तो सच्चाई यही है कि कि महिलाओं को इस काम में महारथ हासिल है | और ये भी सच्चाई है कि किसी के व्यक्तित्व (Persona) को नापने के सबके अपने पैमाने हैं | अब हर व्यक्ति खास होता है | सबकी अपनी बनावट खासियत होती है | कोई बहुत पतला तो कोई बहुत मोटा होता है | किसी की आवाज (Sound) पतली तो किसी की हद से ज्यादा मोटी होती है | अब कुछ लोगों को इसी में मजा आता है | पतले को पतलू मोटे को मोटू कहकर चिढ़ाना किसी एक व्यक्ति का शौक नहीं बल्कि इस समाज की स्याह हकीकत बन चुकी है | यही काम सचिन की पड़ोसन (Neighbor) मिथलेश भाटी ने भी किया | बस उन्होंने स्थानीय (local) बोली और मुहावरों (idioms) का प्रयोग किया | हो सकता है हममे से ज्यादातर लोगों ने लप्पू जैसा शब्द पहली बार सुना हो लेकिन बहुत सम्भावना (possibility) है कि ये शब्द रबूपुरा और उसके आसपास के गांवों में बेहद आम हो | ये बात मिथलेश भाटी खुद भी कह रही हैं |

किसी के बारे में सबके अपने विचार होते हैं लेकिन उन्हें जाहिर करने की भी सही जगह और वक्त होता है | हमें ये ध्यान रखना चाहिए कि किसी के बारे में कही जा रही कोई बात उस पर बुरा असर न डाले | जब तक हमारी बात चारदीवारी के अंदर हो तब तक तो ठीक लेकिन जैसे ही इस तरह की बातें बाहर निकलती हैं वो उस व्यक्ति के मान सम्मान (Respect) और व्यक्तित्व पर सीधा हमला होता है | मिथलेश से पहली गलती तो ये हुई तो उन्होंने भरे समाज में सबके सामने सचिन के बारे में आपत्तिजनक (objectionable) बातें कहीं | दूसरी गलती ये हुई कि उन्होंने ये बातें बार बार कहीं | पहली बार जब वो वायरल हुईं तो उनके पीछे मीडिया पड़ गया और उनसे बार बार वही बातें कहलवाई गईं | और फिर तो उन पर वायरल होने का ऐसा शौक और जूनून चढ़ा कि वो बिना कुछ सोचे समझे अपनी वही बात दोहराती गईं | पहली बार जब मीडिया से वो मुखातिब हुई तब तो एक बार समझ में भी आता है कि जोश जोश में वो ये सब बोल गईं | और उस वक्त उन्होंने जो भी कहा वो उनका नेचुरल (Natural) रिएक्शन (Reaction) था | लेकिन वही बात बार बार दोहराकर उन्होंने जान बूझकर सचिन का सार्वजनिक (Public) अपमान किया |

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हो सकता है कि मिथलेश भाटी की नजरों में सचिन लप्पू हो, झींगुर हो लेकिन अपनी मानसिकता दूसरों पर थोपने की कोशिश उन्हें नहीं करनी चाहिए थी | इनके बारे में इनके पड़ोसियों की भी कुछ राय होगी | किसी की अच्छी तो किसी की ख़राब (bad) होगी | सोचिये अगर हर पडोसी (Neighbour) यूँ ही पूरी दुनिया के सामने इनकी कमियों का ढिंढोरा (Trumpet) पीटता फिरे तो भला इनको कैसा लगेगा | यही हुआ भी जब कुछ लोगों ने उनकी पति को लेकर टीका टिप्पणी (Comment) की तो उन्हें बुरा लगा | बुरा लगना भी चाहिए | अपने पति को लेकर किसी तरह की गलत बात भला एक पत्नी (Wife) कैसे सह सहती है | हम उनके पति पर की गई किसी टीका टिप्पणी को सही नहीं ठहरा रहे लेकिन इससे मिथलेश भाटी को अंदाजा (guess) जरूर हो गया होगा कि किसी पर टीका टिप्पणी (Comment) सोच समझ कर ही की जानी चाहिए | सचिन जैसा भी है उसमें उसका कोई योगदान (Contribution) नहीं है | दुबला पतला होने में उसकी कोई गलती नहीं है | हाँ बात कम या ज्यादा करना मानव स्वभाव (temperament) है | कोई कम बोलता है तो कोई ज्यादा | लेकिन इससे भला उनके पड़ोसियों को क्यों दिक्कत होने लगी | और मीडिया के सामने तो सचिन ने सवालों के जवाब बड़ी ही सरलता (Simplicity) और सहजता (spontaneity) से दिए थे ऐसे में उसे बोलना नहीं आता ये मानने का कोई कारण (Reason)  नहीं है | वो दुनिया के सामने खुलेआम (openly) अपने प्यार का इजहार (expression) कर रहा है लेकिन मिथलेश कहती हैं कि उसे बोलना नहीं आता |

Lappu sa sachin

मिथलेश को सीमा के सचिन से प्यार करने में भी ऐतराज है | उनके हिसाब से सचिन जैसे लप्पू और झींगुर जैसे लड़के से भला सीमा (Limit) जैसी लड़की कैसे प्यार कर सकती है | तो क्या अब कौन किससे प्यार करेगा ये भी मिथलेश तय करेंगी | हर लड़की की अपनी पसंद (Like) होती है | अब सचिन चाहे जैसा हो सीमा को पसंद है तो है | कहावत (Proverb) भी है कि मियां बीवी राजी तो क्या करेगा काजी | मोहब्बत शादी जैसी चीजें बेहद निजी बातें हैं | बेहतर है कि इसे दो लोग दो परिवार ही मिल बैठकर तय करें | अगर मिथलेश जैसे पड़ोसियों के भरोसे (trust) रहे तो यकीन मानिये शादियाँ (weddings) होनी मुश्किल हो जाएँगी |

हाल ही में एक और विडियो वायरल (Viral) हुआ जिसमें पडोसी महिला मिथलेश पर हमले कर रही है | वो न सिर्फ मिथलेश को ही गलत ठहरा रही है बल्कि उनके लड़के पर भी तरह तरह के आरोप (Blame) लगा रही है | हम ये नहीं कहते कि वो आरोप सही है या गलत लेकिन अगर आप किसी पर कीचड़ (mud) उछालेंगे तो बदले में भला आप पर कोई फूल क्यों बरसायेगा (will rain)| जरूर मिथलेश को अपनी पड़ोसी (Neighbour) की बातों का बुरा लगा होगा | अब सोचने की बारी उनकी है | उनका सोचना चाहिए कि जब वो बार बार सचिन के बारे में कुछ बातें कह रही थीं तब सचिन और उसके परिवार (Family) को कैसा लगा होगा | लेकिन उन्हें तो वायरल होने का रोग लग चुका था | वो हर चैनल में गईं और वही डायलाग (dialogue) दोहराती (repeating) रहीं |

अब जरा इस मुद्दे को समाज के नजरिये (viewpoints) से समझने की कोशिश करते हैं | ये सच है कि कहीं न कहीं समाज भी ऐसी बातों का आदी (addicted) हो चुका है | जैसे राह चलते कोई फिसल (slipped) कर गिर पड़े तो उसे उठाने वालों से ज्यादा संख्या (Number) उसकी खिल्ली उड़ाने वालों की होगी | खासकर किशोर और युवा अपने साथियों को चिढाने का कोई मौका नहीं छोड़ते | क्लास में कोई मोटा है तो वो मोटू, पतला है तो पतलू, लम्बा है तो लम्बू, काला है तो कल्लू | ऐसे उपनाम बेहद कॉमन (common) हो चले हैं | बल्कि अब तो इन्हें समाज में मान्यता (Recognition) प्राप्त हो चुकी है | चलो मान लिया ये अभी किशोर हैं युवा है | समझ थोड़ी है | लेकिन जब यही काम समाज के वो लोग करने लगें जिन पर समाज को आगे ले जाने की जिम्मेदारी (Responsibility) है तो सोचिए इस समाज का क्या होगा |

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दरअसल अब समाज बंट चुका है | मोहल्ले में गुटबाजी (groupism) होना आम बात है | हिलमिल कर रहना, सुख दुःख में साथ निभाना गुजरे ज़माने (era) की बातें हो चुकी हैं | अब तो एक पडोसी का सुख ही दूसरे पड़ोसी का सबसे बड़ा दुःख है | हो सकता है आपको हमारी बातें ज्यादा तीखी और कड़वी (bitter) लग रही हों लेकिन सच कड़वा ही होता है | वरना क्या मिथलेश भाटी सचिन की पड़ोसन (Neighbor) नहीं है या मिथलेश के खिलाफ जहर उगल रही महिला मिथलेश की पड़ोसन नहीं है | मिथलेश भाटी को आखिर दूसरे के घर में झाँकने (peeping) से कौन सा सुख मिला? हो सकता है सचिन बिना उन्हें बताये पाकिस्तानी दुल्हन (Bride) ले आया इससे वो नाराज हों? हो सकता है उन्हें दुल्हन देखने का बुलावा न मिला हो इस लिए वो दुखी हों | लेकिन एक पड़ोसी के प्रति दूसरे पड़ोसी की ऐसी चिंता देखकर किसी का भी पड़ोसी शब्द से ही भरोसा उठ सकता है |

असल में मिथलेश भाटी आज के समाज का आईना (mirror) हैं | वो उस पड़ोसी कौम की अगुआ हैं जिसे अपने घर से ज्यादा फ़िक्र अपने पड़ोसी की होती है | ऐसे पडोसी जिन्हें दूसरों के घरों पे पत्थर फेंकने का तो खूब शौक होता है लेकिन वो ये भूल जाते हैं कि उनके घरों में भी शीशे हैं | हर पड़ोसी की एक मर्यादा (dignity) होती है | और उसके दायरे में ही रहा जाये तो अच्छा | जहाँ वो दायरा पार करने की कोशिश होती हैं वहीं समाज बिखरने लगता है |

अब बात करते हैं इस पूरे मुद्दे को यहाँ तक पहुँचाने की जिम्मेदार (Responsible) मीडिया की | शायद आपको मालूम होगा कि हाल ही में जारी वर्ल्ड प्रेस (Press) फ्रीडम (freedom) इंडेक्स  (index) 2023 में दुनिया के 180 देशों में भारतीय मीडिया (Media) को 161 वाँ स्थान हासिल हुआ है | जबकि पिछले साल इसी इंडेक्स में भारतीय मीडिया 150 वें स्थान पर थी | बताने समझाने की जरूरत नहीं कि उसकी ये हालत क्यों हुई | पहले जब सचिन सीमा को लेकर आया तब मीडिया को मसाला मिला | इसके बाद तो मीडिया ऐसा टूटा कि हमारे न्यूज़ (News) चैनलों पर और कोई खबर बची ही नहीं | किसी भी समय टीवी खोलिए कोई भी न्यूज़ चैनल लगाइये बस सीमा सचिन | ऐसा लग रहा था कि सीमा ने सिर्फ सचिन को ही दीवाना नहीं बनाया था बल्कि भारतीय (Indian) मीडिया भी उनका दीवाना बन गया था | तभी तो हर पल चौबीसों घंटे न्यूज़ चैनलों की ov वैन रबूपुरा गाँव में एक दम तैनात थीं | मजाल है जो एक भी लम्हा (v) कैमरे में कैद करने से छूट जाये | ऐसा लग रहा था कि देश विदेश (Foreign) में इसके अलावा कुछ और हो ही नहीं रहा है | कोई खबर बची ही नहीं है | प्राइम टाइम पर बड़े बड़े धुरंधर पत्रकार (Journalist) सीमा जाप करते देखे जा रहे थे |

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फिर मामला किसी तरह कुछ ठंडा पड़ा तो एक महाशय ने मिथलेश भाटी से प्रेरित होकर गाना ही बना डाला | बस रील्स (Reels) में खोई रहने वाली इक्कीसवीं सदी (Century) की इस पीढ़ी (generation) को फिर से मसाला मिल गया | जमकर व्यूज (Views) मिले, भर भर के लाइक्स (Likes)  मिले और दुनिया जहाँ में शेयर (Share) हुआ | देखते ही देखते लप्पू सा सचिन, झींगुर सा सचिन वायरल हो गया | शायद हमारी मीडिया ने ऐसे गंवई शब्द पहली ही बार सुने थे | उसे इसमें अवसर दिखाई दिया | सारे के सारे चैनल मौके को सबसे पहले लपकने के लिए एक पैर पर भागे | सबमें होड़ लग गई मिथलेश भाटी से वही शब्द बुलवाने की | मिथलेश भाटी की ख़ुशी का भी ठिकाना नहीं था | आखिर वो सेलेब्रिटी (the celebrity) जो बन गईं थीं | वो टीवी पर थीं और दुनिया उनकी बातों पर हंस रही थी ताली बजा रही थी | कुछ टीवी एंकर (anchor) तो चार कदम आगे निकल गये | उन्होंने मिथलेश से विनती की कि वो उनको भी लप्पू और झींगुर सा बोलकर उनका जीवन कृतार्थ करें | मिथलेश भाटी समझ ही नहीं सकीं कि टीआरपी का भूखा मीडिया उनका इस्तेमाल कर रहा है | उन्हें बाकायदा हर चैनल के स्टूडियो में आमंत्रित किया गया | वो हर जगह पहुंची |

भारतीय मीडिया से एक सवाल (Question)| क्या अगर सचिन किसी बड़े घर से होता, या वो कोई सेलेब्रिटी (the celebrity) होता क्या तब भी मीडिया उनका ऐसे ही मजाक उड़ाता | क्या तब भी वो इसी तरह लप्पू, झींगुर कर रहे होते और सचिन की ही तरह उसकी खिल्ली उड़ा रहे होते | नहीं हरगिज नहीं | ये दोहरा पैमाना क्यों? क्या इसलिए कि सचिन एक गाँव (Village) का रहने वाला है | उसके पास महंगे वकीलों (lawyers) की फ़ौज नहीं है | जो काम रबूपुरा गाँव की रहने वाली सचिन की पड़ोसन मिथलेश भाटी ने किया उसी काम को हमारी अव्वल दर्जे की मीडिया ने ढोल नगाड़े बजाकर किया और दुनिया भर में अपने खोखलेपन को उजागर किया | क्या मीडिया को इस तरह के प्रपंच करना शोभा देता है | किसी एक व्यक्ति के पीछे हाथ धोके पड़ जाना कहाँ तक सही है | मान लिया कि मिथलेश भाटी सचिन की पडोसी है | मीडिया को देखकर अति उत्साह में उनके मुँह से कुछ निकल गया | लेकिन क्या मीडिया की कुछ भी जिम्मेदारी नहीं | एक व्यक्ति के मान सम्मान की सरेआम धज्जियाँ उड़ाने का अधिकार उसे किसने दिया | ये तो अच्छा हुआ कि मिथलेश भाटी को सचिन के वकील द्वारा नोटिस (Notice) भेज दिया गया जिसके बाद मिथलेश भाटी के सुर ही बदल गये | वो उसे बेटा और न जाने क्या क्या बताने लगीं | लेकिन बेशर्म मीडिया माहौल बिगड़ता देख चुपचाप बोरिया बिस्तर समेटकर निकल लिया | वो मीडिया जिस पर जिम्मेदारी होती है समाज को जोड़ने की वही चटखारे लेकर समाज को बाँटने में लगा है | क्या उम्मीद रखी जाए ऐसे मीडिया से जिसे सिर्फ और सिर्फ टीआरपी चाहिए वो भी हर कीमत पे |

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एक बात और गौर करने लायक है कि जब भी कोई पुरुष महिला के खिलाफ किसी भी तरह की आपत्तिजनक (objectionable) भाषा (Language) या शब्दों का प्रयोग करता है तो दुनिया भर के महिला हितों के ठेकेदार (Contractor) हाथों में मशाल लेकर उठ खड़े होते हैं वहीं जब इसका ठीक उल्टा होता है तो उन सबको सांप क्यों सूंघ जाता है | क्या पुरुष जाति का मान मान नहीं उसका सम्मान सम्मान नहीं | अब वो समय आ गया है जब इस पर बात होनी ही चाहिए |

इस पूरे मुद्दे में गलत कौन है इसका फैसला हम आप पर छोड़ते हैं | अपने विचार कमेंट बॉक्स में जरूर लिखिए |


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