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अजगर और महाबली भीम की कथा

जब एक अजगर का शिकार बन गए, महाबली भीम

मित्रों, जैसा कि हम जानते हैं कि, महाभारत का युद्ध कौरव और पांडवों के बीच हुआ था, जो की अट्ठारह दिनों तक चला था| इस युद्ध का मुख्य कारण धृतराष्ट्र का बड़ा पुत्र दुर्यौधन की पांडवों के लिए जलन, और साथ ही साथ पांडवों को उनका राज्य न लौटाने की जिद थी| इसके अलावा दुर्योधन, अपने मामा शकुनी के साथ मिलकर पांडवों को नीचा दिखाने के लिए हर तरह की चाल चलता रहता था, जैसे की- पांडवों की हत्या करने के लिए लाख का महल बनवाकर उसमें आग लगवाना, पांडवों और उनकी पत्नी द्रौपदी को अपमानित करने के लिए जुए में छल-कपट करना| इस तरह से ऐसे बहुत से उदाहरण हैं, जिसमें दुर्योधन, पांडवों के साथ छल करता आया है| पांडवों से उनका सब कुछ छीन लेने की चाहत दुर्योधन के मन में हमेशा रहती थी और इसी के चलते उसने उनके साथ जुए खेलने की योजना बनायीं, जिसमें पांडव बुरी तरह से हार गए थे और उन्हें बारह साल के लिए वनवास और एक साल का अज्ञातवास भोगना पडा था| पांडवों के वनवास के समय, बहुत सी घटनाओं की कथाएं महाभारत में मिलती हैं, उन्ही में से एक बड़ी ही रोचक कथा है, जिसमें एक बार महाबली भीम एक अजगर द्वारा मरते-मरते बचे, जिनकी रक्षा उन्ही के बड़े भाई युधिष्ठिर ने की थी |

महाभारत के वनपर्व के अनुसार-

बात तब की है, जब पांडवों के वनवास का ग्यारहवां वर्ष लगभग खत्म होने को था, उस समय एक बार भीम, वन की सुन्दरता को देखने के लिए वन में घूम रहे थे| घूमते-घूमते अचानक ही एक जगह उन्हें एक बहुत ही बड़ा अजगर सामने दिखाई दिया, वो अजगर बहुत बड़े पर्वत जैसे आकार का था, और अगर वो चाहे तो पूरे एक गाँव को एक साथ निगल ले, इतना ज्यादा खतरनाक था |

ऐसे अजगर को देखकर भीम उसके करीब गए, लेकिन जैसे ही उस अजगर ने भीम को अपने करीब खड़ा पाया, वैसे उस भयंकर अजगर ने भीम को कसकर जकड़ लिया| वैसे तो भीम के पास दस-हजार हाथियों के जितना बल था लेकिन उस अजगर के चंगुल में फसते ही उनकी सारी शक्ति ख़त्म सी हो गयी, वो उससे आजाद होने के लिए छटपटाने लगे, और थोड़ी ही देर बाद वो बेहोश हो गए |

वहीँ जब भीम को अपने आश्रम लौटने पर देर लगने लगी तो युधिष्ठिर बहुत ज्यादा चिंता में पड़ गए, और फिर उन्होंने अर्जुन, नकुल और सहदेव को आश्रम में रहकर द्रौपदी की रक्षा करने की जिम्मेदारी दे दी और खुद ऋषि धौम्य को साथ लेकर भीम को खोजने वन की ओर चल दिए| रास्ते में जाते जाते उन्होंने भीम के पैरों के निशान देखे और उसी के सहारे वो वहाँ जा पहुचे जहां उस अजगर ने भीम को जकड़ रखा था |

भीम को इस हालत में देखकर युधिष्ठिर बहुत दुखी हुए और उन्होंने उस अजगर से पुछा कि- “हे अजगर! तुम कौन हो? तुमने इस तरह से मेरे भाई को क्यों पकड़ रखा है? तुम अपना असली परिचय बताओ, क्या तुम वास्तव में अजगर हो या कोई देवता या दानव हो | तुम मेरे भाई को छोड़ दो, मैं तुम्हे इससे अच्छा भोजन लाकर दूंगा |”

युधिष्ठिर की इन सब बातो को सुनकर वो अजगर बोला-

“हे युधिष्ठिर! मैं वास्तव में अजगर नही हूँ बल्कि मेरा ये शरीर शापित है, मैं पूर्व जन्म में तुम्हारा ही पूर्वज नहुष था| उस समय जब मैंने तीनों लोक पर विजय पा ली थी, तब मुझमे बहुत ज्यादा अहंकार आ गया था, जिसके वजह से मैं किसी को कुछ नही समझता था, यहाँ तक की- ब्रम्हरिशी, देवता, गंधर्व, यक्ष, राक्षस और नाग, इन सभी को मैं अपना दास समझता था और इन सभी का खूब अपमान किया करता था| उसी बीच मैंने अपने घमंड में आकर महर्षि अगस्त का भी अपमान कर दिया था,

जिसकी वजह से उन्होंने मुझे इस अजगर योनी में जन्म लेने का शाप दे दिया, , और साथ ही साथ ये भी कहा की समय आने पर युधिष्ठिर के द्वारा ही मेरे इस शाप से तुम मुक्त होगे, लेकिन शाप देने के बाद भी मुझे अपने पूर्वजन्म के बारे में सब कुछ याद है|”  इसके अलावा अजगर ने युधिष्ठिर से कहा की मैं तुम्हारे साथ शास्त्रार्थ भी करना चाहता हूँ, जिससे मुझे भी पता चले की तुम वास्तव में कितने ज्ञानी हो, अगर तुम मेरे दिए गए सवालों का सही-सही उत्तर दे दोगे, तो मैं तुम्हारे भाई भीम को तुरंत ही अपने चंगुल से मुक्त कर दूंगा |

इतना कहते ही उस अजगर ने युधिष्ठिर से पहला सवाल पुछा की- “हे युधिष्ठिर! मुझे ये बताओ कि आखिर ब्राम्हण किसे कहा जाता है, ऐसे उसके अन्दर कौन से गुण होते हैं, जिसकी वजह से उसे ब्राम्हण कहा जाये |”

इस पर युधिष्ठिर बोले- “हे अजगर! जो इन्सान स्वभाव से ही दानी स्वभाव का है, सच्चाई के रास्ते पर चलने वाला है, जिसके मन में सभी के लिए दया का भाव है, और जो कभी भी, किसी पर भी अत्याचार करने की सोचना तक नही है, असल में वही सच्चा ब्राम्हण है|”

युधिष्ठिर का ये जवाब सुनकर, अजगर बहुत संतुष्ट हुआ और उसने फिर से एक सवाल किया कि- “हे युधिष्ठिर! तुमने मेरे सवाल का बहुत ही अच्छा उत्तर दिया है, लेकिन मुझे ये बताओ की ब्राम्हणों वाले गुण जो तुमने मुझे बताये हैं, अगर यही गुण ब्राम्हण के अलावा किसी और में भी पाए जाएँ, तो क्या वो भी ब्राम्हण है?”

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अजगर के इस सवाल का जवाब देते हुए युधिष्ठिर कहते हैं की- “ब्राम्हणों के अलावा, अगर किसी और में भी ब्राम्हण जैसे गुण पाए जाते हैं तो वो स्वभाव से ब्राम्हण ही कहा जायेगा, भले ही वो किसी भी जाति का हो, लेकिन अगर खुद ब्राम्हण में, ब्राम्हण वाले गुण नहीं है, और वो नीच स्वभाव का है, तो उसे अपने आपको ब्राम्हण कहने का कोई हक़ नही है| ऐसा व्यक्ति केवल नाम भर का ब्राम्हण रहता है |”

इस तरह से युधिष्ठिर ने अजगर के बहुत से सवालों के जवाब बहुत ही होशियारी से दिए, जिससे वो अजगर,बहुत खुश हुआ और फिर उसने भीम को अपने चंगुल से आजाद कर दिया और फिर थोड़ी ही देर में नहुष अपने अजगर का शरीर छोड़कर अपने असली रूप में आ गए, और फिर स्वर्ग को चले गए, और इस तरह भीम भी मुक्त हो गए|

आज की इस कथा से हमें दो चीजें तो सीखने को मिलती ही हैं,जिसमे पहली चीज ये की आप चाहे कितने भी ताकतवर क्यों न हों, लेकिन अपने सामने वाले को कभी कमजोर नही समझना चाहिए, और यही हुआ भीम के साथ|

दस-हजार हाथियों का बल होने के बावजूद उन्हें एक ताकतवर अजगर ने जकड़ लिया, और वो कुछ न कर पाए| वहीँ दूसरी और सबसे ख़ास बात ये सीखने को मिलती है वो ये की, आपकी पहचान आपके व्यवहार और आचरण से ही है, न की जाति से!

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