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स्टेडियम की छत ढक क्यों नहीं दी जाती

“ये मौसम की बारिश, ये बारिश का पानी, ये पानी की बूंदें, तुझे ही तो ढूंढें” साल 2017 में आई मूवी हाफ़ (Half) गर्लफ्रेंड (Girlfriend) का ये सॉन्ग (Songs) इस वक़्त एशिया (Asia) कप के मैचो पर एक दम सटीक बैठ रहा है। ख़ासकर इंडिया (India) के मैचो में तो मानो ऐसा लग रहा है कि बारिश (Rain) की चाहत इंडियन (Indian) क्रिकेटर्स को भिगाने (Dampness) की ऐसी हो गई है कि उसे फ़ैन्स (Fans) के आँसू भी नहीं दिख रहे हैं। वैसे तो हम चाहते हैं कि इंडिया हर मैच जीते (Victory), लेकिन वर्ल्डकप (World Cup) जब मुहाने पर हो तो सबसे पहली चाहत ये है कि स्क्वाड (Squad) में आये सभी बड़े नाम कम से कम मैच तो खेले। कोहली रिदम पकड़े, अय्यर रंग (Colour) में आये, जडेजा (Jadeja) का भी बल्ला चले, बुमराह (Bumrah) का कमाल वनडे (ODI) क्रिकेट को फिर से दिखे और रोहिल-गिल वाली जोड़ी कॉन्फिडेंस (Confident) फिर हासिल करे। मगर, पहले पाकिस्तान की बौलिंग (Bowling) के सामने फ्लॉप (Flop) होने के बाद दूसरे बैटर्स (Batters) को नेपाल के सामने मौका नहीं मिला। जबकि, हमारे बौलर्स को पाकिस्तानी (Pakistani) बैटिंग के आगे एक भी बॉल (Ball) कराने का चांस (Chance) ही नहीं मिला। इन दोनों मैचो में ही विलेन वाला सबसे बड़ा रोल (Role) रही बारिश का। जैसे ही दिन ढलने वाला होता था, शाम से पहले बारिश आ-जाती थी और मज़ा किरकिरा कर देती थी। वैसे! बारिश और क्रिकेट (Cricket) का पुराना नाता नहीं है। इंडिया को 2019 वर्ल्डकप (Worldcup) सेमीफाइनल (Semifinal) और 2003 फ़ाइनल हरवाने का क्रेडिट (Credit) बारिश को दिया जा सकता है। वैसे ही साउथ (South) अफ़्रीका (Africa) को चोकर्स बनाने में तो बारिश का अहम (Main) रोल है। यहां तक कि कितने ही रोमांचक (Exciting) टेस्ट मैच बारिश के चलते लास्ट मूमेंट (Moment) में आकर ड्रॉ (Draw) करने पड़ते हैं। बारिश ने कितने ही कैरियर (Career) भी बर्बाद कर दिए हैं। सीधे सीधे कहें तो इतिहास (History) गवाह है, बारिश का क्रिकेट और क्रिकेटर्स (Cricketers) पर काफ़ी इम्पैक्ट (Impact) पड़ता है। कल रात जब मैच (Match) बीच मे रुका था तो इस सब को सोचते सोचते ही हमारे दिमाग़ में आईडिया (Idea) आया कि 100 ज़्यादा नेशन्स (Nations) में खेले जाने वाली क्रिकेट (Cricket) जो एक दर्जन (Dozen) से ज़्यादा देशों में हाई क्लास (Class) इंटरनेशनल (International) स्टेडियम लिए बैठी है, उसके पास अभी तक एक भी रूफ़ (Roof) टॉप यानी परफेक्ट (Perfect) इंडोर क्रिकेट स्टेडियम नहीं है। जहाँ बारिश मैच में खलल ही नहीं डाल सके और फ़ैन्स (Fans) मज़े लूट सकें। अब यहाँ एक दूसरा और बड़ा सवाल ये है कि रूफ़ (Roof) टॉप या पैक्ड (Packed) क्रिकेट स्टेडियम बनाने का आईडिया (Idea) तो काफ़ी पहले से घूम रहा है। फिर, ऐसे क्रिकेट स्टेडियम (Stadium) बनवाये क्यों नहीं जाते। जो वर्ल्डकप (Worldcup) सरिखे बड़े टूर्नामेंट (Tournament) के नॉकआउट (Knockout) मैच तो कम से कम होस्ट कर ही लें। उधर! दूसरी तरफ़ दूसरे स्पोर्ट्स (Sports) में इंडोर वर्ज़न (Verson) काफ़ी बेहतर और मशहूर (Famous) है। तो, इस सवाल का जवाब है कि पैक्ड (Packed) स्टेडियम जान के इग्नोर (Ignore) किये गए है। यहां एक दुसरा और गुस्सा दिलाने वाला सवाल (Question) आता है कि क्यों! क्यों पैक्ड (Packed) स्टेडियम में क्रिकेट नहीं खेली जा सकती ? क्योंकि, ये सवाल (Question) काफ़ी पुराना है। इसलिये, जब हम रिसर्च (Research) करने बैठे तो कई इंटरेस्टिंग (Interesting) फैक्चुअल (Factual) जवाब मिले। तो हमने सोचा क्यों ना नारद टी वी के सभी क्रिकेट के पक्के फ़ैन्स को फ़ुर्सत (Leisure) से बतायें कि बारिश से बचने के लिए “रूफ़ पैक्ड क्रिकेट स्टेडियम कारगर क्यों नहीं है ?”

Stadium

तो दोस्तों! रिसर्च (Research) के दौरान रूफ़ पैक्ड क्रिकेट स्टेडियम (Stadium) में क्रिकेट ना होने की हमें 5 बड़ी वजहें नज़र आती है। जिसमें कुछ फैक्चुअल (Factual) तो कुछ टेक्निकल (Technical) भी हैं। इसलिये, पोस्ट ऐंड तक ज़रूर पढ़े। तो चलिये! अब ज़रा सभी वजहों को ग़ौर से समझते हैं;

#वजह नम्बर-1: इंडोर स्टेडियम का ख़र्चा:-

दोस्तों! आज क्रिकेट ग्लोबल (Globel) स्पोर्ट्स होने के चलते 100 ज़्यादा नेशन्स (Nations) में खेले जाने की बड़ी वजह यही है कि क्रिकेट उन चुनिंदा (Choose) स्पोर्ट्स (Sports) में है, जहाँ लोकल (Local) वर्ज़न और प्रोफेशनल (Professional) वर्ज़न दोनों ही इतने ज़्यादा महंगे नहीं हैं, जितने दूसरे स्पोर्ट्स (Sports)। लेकिन, जब प्रोफेशनल (Professional) क्रिकेट होस्ट (Host) करने की बात हो तो नज़ारा कुछ और होता है। स्टेडियम की मेंटेनेंस (Maintenance) से लेकर पिच (Pitch) के रख रखाव में ही, बजट का एक बड़ा हिस्सा (Part) लग जाता है। ऐसे में सेफ़ साइड (Side) के लिए एक मेटल (Metla) का रूफ़ टॉप स्टेडियम बनाने का ख़र्चा कई देशों की इकोनॉमी (Economic) तक को इफ़ेक्ट (Infacat) कर सकता है। रूफ़ टॉप (Top) पैक्ड क्रिकेट (Cricket) स्टेडियम का खर्चा (Expense) आप इस बात से समझ लीजिए कि रिसर्च (Research) के दौरान मिले एक एस्टीमेट (Estimate) के हिसाब से अगर हम वानखेड़े (Wankhede) या चिन्नास्वामी (Chitraswami) जैसे स्टेडियम को पैक (Pack) करने गए, तो उन्हें बनाने में जो ख़र्चा लगा था उससे डेढ़ गुना ज्यादा खर्चा पैक (Pack) करने में लगेगा। जबकि, ईडन (Indian) गार्डन्स और नरेंद्र (Narendra) मोदी (Modi) स्टेडियम (Stadium) का साइज़ (SIze) देखते हुए ये ख़र्चा दो गुना हो जायेगा। जबकि, इस ख़र्चे बाद बात रिटर्न (Return) की करें तो वो इतना ज़्यादा नहीं होगा। साल में एक आईपीएल (IPL) फ़ाइनल (Finl) , चार या तीन साल में एक आईसीसी (ICC) ट्रॉफी (Trophy) फ़ाइनल एक कुछ नौक (Knowk) आउट मैचेज़ के अलावा इन स्टेडियम का ऑडियन्स से फ़ुल पैक्ड होना पॉसिबल नहीं है। ऐसे में स्टेडियम और बोर्ड को नुकसान ज़्यादा होगा फ़ायदा कम।

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#वजह नम्बर-2: अनसर्टेन एल्टीट्यूड यानी अनिश्चित ऊंचाई:-

क्रिकेट में ऊँचाई बहुत अहम (Main) रोल (ole) निभाती है। बॉल (Ball) कैच के लिए ऊपर जाए या छक्के (Sixes) के लिए, जब तक वो आसमान को अपनी  पहुँच वाली पीक (Peak) को छूकर वापस लौटती है तब तक फ़ैन्स (Fans) और प्लेयर्स (Players) की जान हलक में रहती है। दूसरे स्पोर्ट्स (Sports) में इंडोर स्टेडियम (Stadium) की ऊंचाई 40 फीट (Fit) से सवा सौ फीट तक होती है। जोकि, क्रिकेट में चल सकती है। लेकिन, कई मौकों पर एक ही मैच (Match) में कई बार बॉल डेढ़ सौ फीट या उस से ज़्यादा तक सफ़र कर लेती है। ऐसे में बेहद ऊंचा स्टेडियम (Stadium) बनाना टफ काम है। ऊपर से मजबूती के लिए साइड (Side) में थोड़ा स्लोप (Slope) देना होगा। मगर, गेल जैसे बड़े छक्के (Sixes) मारने वाले प्लेयर्स (Players) तो स्टेडियम के पार बॉल हिट (Hit) करते हैं। ऐसे में उस स्लोप से से बॉल टकरा कर वापस ग्राउंड (Ground) में लौट आई तो सवाल (Question) खड़े होंगे अलग। सिमिलरी ऊंची कैच छत से टकरा कहीं भी जा सकती है और एक बड़ा विकेट टीम के हाथ से निकल सकता है। सीधे-सीधे कहें तो रूफ़ टॉप स्टेडियम में क्रिकेट प्लेयर्स से ज़्यादा छत (Roof) के हवाले रहेगा।

#वजह नम्बर-3: बन्द स्टेडियम में घास की हेल्थ पर असर:-

दोस्तों! मेरा मानना है कि बचपन (Childhood) मे जब हमने क्रिकेट (Cricket) खेली होगी। तो सबने कभी ना कभी कालीन जैसी घास पर डाइव (Dive) मारने का सपना (Dream) ज़रूर देखा होगा। हालाँकि, वो घास शायद देखना भी हमें नसीब ना हो। लेकिन, क्रिकेट में उसकी एहमियत हमें अच्छी तरह पता है। इसलिये, क्रिकेट (Cricket) स्टेडियम की घास फ़ैन्स (Fans) के लिए एक इमोशन 9Emotion) की तरह। लेकिन, रूफ़ (Roof) टॉप (ToP) पैक्ड स्टेडियम (Stadium) में ये इमोशन (Emotion) बुरी तरह इफ़ेक्ट (Infect) होगा। क्योंकि, घास को प्रॉपर (Proper) सनलाइट (Sunlight) नहीं मिलेगी और आर्टीफिशियल (Artificial) लाइट कभी सन लाइट की जगह ले नहीं सकती है। तो दोनों ही केसेज़ (Cases) में घास पर असर पड़ेगा। जोकि, घास (Grass) की हेल्थ के साथ स्टेडियम (Stadium) के लुक (Look) और प्लेयर्स (Players) दोनों के लिए ही बैटर (Batter) नहीं होगा। हालाँकि, नेचुरल (Natural) हाइब्रिड घास को कई बार प्रॉपर आर्टिफिशियल (Artificial) घास से रिप्लेस (Replce) करने की चर्चा क्रिकेट (Cricket) में हुई है। लेकिन, इस तरह की घास की सतह इतनी सख़्त और सर्फेस (Surface) एरिया इतना छोटा (Small) होता है कि प्लेयर्स को मैच के दौरान सीरियस (Serious) इंजरी तक हो सकती हैं। इसलिये, नेचुरल घास ही बैटर ऑप्शन है।

#वजह नम्बर-4: नैचुरल कंडीशन्स का नलिफाइ हो जाना:-

क्रिकेट जितना बैट (Bat), बॉल (Ball), पैड, ग्लव्स, हेल्मेट, स्टम्प्स और अदर गैजेट्स (Gadgets) के साथ खेला जाता है। उतना ही इसकी खूबसूरती नेचुरल (Natural) एनवायरोमेंट (Environment) पर भी निर्भर करती है। एग्ज़ाम्पल (Example) के लिए जो ऑस्ट्रेलिया (Australia) टीम अपने घर में शेर होती है, वो इंडिया आकर भीगी बिल्ली बन जाती है। क्योंकि, दोनों देशों की नेचुरल कंडीशन्स (Condition) अलग है। ऑस्ट्रेलिया की पिच (Pitch) तेज़ और उछाल से भरी है तो इंडिया (India) की पिच स्लो और स्पिन (Spin) फ्रेंडली (Frendly) है। ऑस्ट्रेलिया की हवा बौलर्स (Bowllers) को रफ्तार बढ़ाने में सूट (Suit) करती है, तो इंडिया (India) की हवा बौलर्स (Bowlers) को रिवर्स (Reverse) स्विंग दिलवाती है। इस तरह और भी कई ऐसे फैक्टर्स (Factors) हैं जो कि नेचुरल कंडिशन (Condition) बदलने से आपको साफ़ बदलते हुए दिखेंगे। लेकिन, एक पैक्ड (Packed) इंडोर क्रिकेट स्टेडियम में ये सभी फैक्टर (Factor) एक दम से दब जायेंगे। पिच हाइब्रिड (Hibrid) रहेंगी, हवा ज़्यादा आएगी नहीं, सूरज की रोशनी पर पिच फटेगी नहीं, बैटर्स के लिए कंडीशन एल जैसी रहेंगी तो बौलर्स के लिए बाहर होती बारिश (Rain) या ओवरकास्ट (Ovecast) कंडीशन भी स्विंग (Swing) क्रिएट नहीं करेगी। साफ़ साफ़ कहें तो मौसम (Season) बदलने पर जो मैच का रुख पलटने का सुख हमें मिलता था, रूफ (Roof) टॉप पैक्ड (Packed) स्टेडियम में आप उसे भूल जाइए। तब तो बिना बोलर के एक बौलिंग (Bowling) मशीन से भी काम चल जायेगा।

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#वजह नम्बर-5: जान लेने वाली ह्यूमिडिटी:-

ये सिर्फ़ क्रिकेट नहीं और भी स्पोर्ट्स (Sports) में देखा गया है कि हाई (High) एनर्जी वाले स्पोर्ट्स (Sports) गर्मी की दिनों में खेले जाने काफ़ी मुश्किल (Problem) रहते हैं। क्योंकि, इतने बड़े स्टेडियम को एयर (AIR) कंडिशन्ड (Condition) करना तो मुमकिन (Possible) है नहीं। ऐसे में प्लेयर्स (Players) एयर ऑडियन्स (Audience) को अपने हाल पर छोड़ दिया जाता है। जोकि, लांग टर्म (Term) में प्लेयर्स की हैल्थ (Health) और ऑडियन्स (Audience) के नम्बर पर इम्पैक्ट (Impact) छोड़ेगा। एग्ज़ाम्पल के तौर पर हम न्यूज़ीलैंड (New Zealand) में किया गया एक सर्वे (Serve) आपके सामने रखते हैं। जिसके अकॉर्डिंग (According) क़रीब 70% लोग वहां बेसबॉल (Baseball)और क्रिकेट मैचेज़ ऑडियन्स (Audience) स्पोर्ट्स की दीवानगी से ज़्यादा खूबसूरत स्टेडियम में सुकून के कुछ घण्टे बिताने के लिए जाती है। ऐसे मे जब ह्यूमिडिटी (Humidity) हो, खूबसूरती ही पैक्ड (Packed) हो तो कौन ही क्रिकेट देखने जायेग और धीरे धीरे क्रिकेट भी बैडमिंटन (Badminton), कुश्ती, वॉलिबॉल की तरह स्क्रीन स्पोर्ट (Sport) बनकर रह जायेगा। जिसे आप बस टीवी, मोबाइल या लैपटॉप पर इंजॉय करते रहे जायेंगे।

तो दोस्तों! ये थी 5 बड़ी वजहें, जिनके चलते क्रिकेट में खलल डालने वाली बारिश को हम इग्नोर (Ignore) करने के लिए पैक्ड (Packed) स्टेडियम (Stadium) यूज़ (Use) नहीं कर सकते हैं। अब सवाल ये है कि तो फिर क्या बस क्रिकेट और बारिश के इस खट्टे मीठे रिश्ते (Relation) के साथ ही जीते रहना होगा ? तो इसका ईमानदार जवाब है हाँ। लेकिन, टेक्निकल (Technical) बात ये है कि अगर बोर्ड्स (Boards) चाहें तो आपके और हमारे मनोरंजन (Exertainment) में खलल कम हो सकता है। जैसे एशिया (Asia) कप पाकिस्तान में होना तय था। वहां हुए किसी भी मैच (Match) में बारिश नहीं हुई और शायद ही हो। क्योंकि, वहाँ भी मॉनसून (Monsoon) जा चुकी है। लेकिन, श्रीलंका में तो ये क्रिकेट का ऑफ सीज़न है। यहाँ वो डॉमेस्टिक (Domestic) मैच नहीं खेलते और एशिया क्रिकेट काउंसिल एशिया कप लेके पहुँच गई। सीधे सीधे कहें तो टेक्नोलॉजी (Technology) का यूज़ करके, फोरकास्ट का अंदाज़ा लगाकर ऐसे देश (Country) या देश मे ही ऐसे राज्यों में मैच हो सकते हैं, जहाँ बारिश ज़्यादा ना हो। जैसे अभी लंका में कोलंबो (Colombo) के अलावा हम्बनटोटा बिल्कुल सूखा पड़ा है। वैसे सुनाई में आया है कि अगले सुपर 4 के 4 मैच वहीं शिफ़्ट होंगे। बस सवाल यही है कि जिन मैचो का मज़ा किरकिरा हुआ, उसका क्या ? इसलिये, बोर्ड्स (Boards) यहां तक कि आइसीसी को देखना चाहिए कि बड़े मैच ऐसी जगह करवाये जाए जहाँ बारिश कम हो। वरना 2019 वर्ल्डकप जी तरह इंग्लैंड के रेनी सीज़न में आप टूर्नामेंट (Tournament)  लेकर पहुंचेंगे तो आधा दर्जन मैच फिर सब ड्रॉ ही होंगे।

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