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रहस्य: बिना अन्न जल के माता सीता कैसे रहीं लंका में

Ramayan- For how many years did Sita stay in Lanka

दर्शकों कहा गया है- हरि अनंत हरि कथा अनंता।

इस बात का सम्बन्ध खास तौर से अगर हम रामायण जैसे महाकाव्य से जोड़ कर देखें ,तो हम ये कह सकते हैं की वास्तव में प्रभु श्रीराम से सम्बंधित ऐसी बहुत सी कथाएं हैं जिनके बारे में जानने के लिए शायद हमारा पूरा जीवन भी कम पड़ जाये | 

रामायण एक ऐसा महाकाव्य है जिसे सर्वप्रथम महर्षि वाल्मीकि ने लिखा ,तत्पश्चात इसे विभिन्न कवियों द्वारा अलग-अलग भाषाओ में लिखा गया |

परन्तु वाल्मीकि रामायण के बाद जो सबसे प्रमुख रामायण है वो  है महाकवि तुलसीदास द्वारा रचित श्रीरामचरितमानस जिसे आज भी घर-घर और मंदिरों में पढ़ा और पूजा जाता है |

जैसा की आप सब जानते है , रामायण मुख्यतः भगवान विष्णु के अवतार श्रीराम और माँ लक्ष्मी की अवतार माता सीता की जीवन-लीला पर आधारित है |

Bhagwan Vishnu And Mata Lakshmi

कैसे और क्यों श्रीहरी ने पृथ्वी पर मनुष्य के रूप में अवतार लिया और उन्होंने कैसे दुराचारी रावन का अंत किया ये सारी बाते रामायण में लिखी है लेकिन क्या आप जानते है की रामायण से सम्बंधित ऐसी बहुत सी गूढ़ और रहस्यमई कथाये भी है जो सामान्यतः हम आप नही जानते |

ऐसी ही कुछ दिलचस्प और रोचक जानकारी आज हम आपको बताने जा रहे हैं |

तो शुरुवात करते है उस घटना से जब रावण माता सीता का हरण करके लंका जे जाता है

Mata Sita And Ravana

माता सीता ने क्यों किया अन्न और जल का त्याग-

इस घटना के होने के बाद माता सीता अत्यंत दुःखित और व्यथित हो चुकी थीं । उन्हें श्रीराम की विरह ने इतना झकझोर दिया था कि उन्होंने निश्चय किया कि वो अन्न जल का त्याग कर देंगी ।

इस घटना का अवलोकन परम् पिता ब्रम्हा अपने लोक से कर रहे थे, जब उन्होने सीता जी के इस निश्चय को जाना तो वो चिंता में पड़ गए और विचार किया कि यदि माता सीता ने इसी प्रकार निरन्तर अन्न जल का त्याग कर दिया और अपने प्राण त्याग दिए तो बहुत ही अनर्थ हो जाएगा ।

तत्पश्चात ब्रम्हा जी ने देवराज इंद्र को बुलाया और कहा- “हे इंद्र! नियति अनुसार रावण ने माता सीता का हरण कर लिया है,जिसमे तीनो लोको का हित और राक्षसों का विनाश छुपा हुआ है।

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लेकिन सीता जिन्होंने श्रीराम के विरह में अन्न जल का त्याग कर दिया है, ये उचित नही इसलिए मैं जैसा कह रहा हूँ वैसा करो-“

“तुम शीघ्र ही लंकापुरी में जाओ और अपने साथ देवी निद्रा को भी लेते जाओ ताकि वह उपस्थित सभी राक्षस और राक्षसियां निद्रा के प्रभाव में आ जाये और उन्हें इस बात का पता न चल पाए की तुम जानकी को यह दिव्य खीर प्रदान कर रहे हो।“

इसके बाद देवेंद्र ने अपने साथ देवी निद्रा को लेकर लंकापुरी में प्रवेश किया , देवी निद्रा के  प्रभाव से वहां बैठे सारे असुर सो गए, तत्पश्चात देवराज इंद्र  माता सीता के पास गए और बोले- “हे देवी!

मैं देवराज इंद्र, ब्रम्हा जी की आज्ञा से आया हूँ और मैं आपको ये विश्वास दिलाता हूँ कि आपकी स्वतन्त्रता के लिए मैं श्री राम की सहायता अवश्य करूँगा, कृपया आप शोक न करें।

परमपिता ब्रम्हा जी की आज्ञा से मैं आपके लिए ये दिव्य खीर हूँ, कृपया इसको ग्रहण करे जिससे आपको हजारो वर्षों तक भूख और प्यास नही सताएगी।“

ये सुनकर माता सीता ने इंद्र से कहा कि- “इस मायाभरी नगरी में मैं ये कैसे मान लू की आप ही देवराज इंद्र हो?”

इस पर देवेंद्र ने अपने पैरों से पृथ्वी का स्पर्श नहीं किया और आकाश में निराधार खड़े रहे, उनकी आंखों की पलकें नही गिरती थी, उनके कण्ठ की मालाये कुम्हलाई हुई नही थी।इस प्रकार के दैवीय लक्षण को देख माता सीता ने उन्हें पहचाना और अत्यंत प्रसन्न हुई।

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इस प्रकार माता सीता ने देवेंद्र से दूध की बनी दिव्य खीर को ग्रहण किया।

दिव्य खीर ग्रहण करने के बाद जानकी ने भूख प्यास के कष्ट को त्याग दिया , जिसके कारण वो लंका में बिना अन्न जल के जीवित रह सकी।

देवराज इंद्रा द्वारा माता जानकी को दिया गया हविष्य अर्थात दिव्य खीर इस  प्रसंग का प्रमाण महर्षि वाल्मीकि रामायण के अरण्यकांड के प्रक्षिप्त सर्ग में पाया जाता है ।

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