DharmikFactsMystery

Unveiling the Mystery: What is Pran Pratishtha and its Spiritual Science?

सनातन धर्म में मंदिरों के निर्माण (Contruction) के बाद मूर्ति (Statue) की पूजा करने के पहले उसकी विधि-विधान के साथ प्राण प्रतिष्ठा की जाती है। यानि, जिस भी देवी-देवता की मुर्ति हो, उसमें उनकी शक्ति के स्वरूप को स्थापित (Established)  करते हैं। इस प्रक्रिया में मंत्रों (mantras) द्वारा उनका आह्वान किया जाता है, जिसके बाद उस मूर्ति में उनकी उर्जा समाहित (Contained) हो जाती है। हालांकि सदियों (Centuries) से चली आ रही इस परंपरा (Legacy) का विधान वेदों और पुराणों में भी लिखित (Written) है, बावज़ूद इसके प्राण प्रतिष्ठा (Prestige) को लेकर अक्सर कई सवाल उठते रहे हैं। हाल ही में जब रामलला (Ramlal) की प्राण प्रतिष्ठा हुई तो कुछ नेताओं और तथाकथित (So called)  बुद्धिजीवियों ने यह सवाल (Question) उठा दिया कि अगर प्राण प्रतिष्ठा इतना ही प्रामाणिक (authentic) है तो किसी मृत शरीर में प्राण (Life) क्यों नहीं डाला जा सकता है? वहीं आम लोगों के मन में भी प्राण प्रतिष्ठा को लेकर, यह जानने की जिज्ञासा बनती ही रहती है कि क्या पत्थर की प्रतिमाओं में मंत्रों आदि से प्राण डाला जा सकता है? आखिर क्यों मूर्तियों की स्थापना से पहले उनकी प्राण प्रतिष्ठा आवश्यक होती है? भला कोई उपासक ही अपने भगवान को जीवन कैसे प्रदान कर सकता है?
आज के पोस्ट में हम ऐसे कई सारे सवालों के जवाब लेकर आये हैं, साथ ही जानेंगे इसके रहस्यों तथा वैज्ञानिक दृष्टिकोण के बारे में। इसलिए बने रहे पोस्ट में हमारे साथ शुरू से अंत तक।

Ram Mandir

नमस्कार…

सनातन धर्म में मूर्ति (statue) पूजा का क्या महत्व (Importance) है ये तो हम सभी जानते हैं। मंदिरों में मूर्ति स्थापना (Establishment) के समय प्राण प्रतिष्ठा करना अनिवार्य (Mandatory) है हम इस बात से भी अन्जान (unknown) नहीं हैं, फिर भी यह सवाल उठना कि किसी पत्थर में प्राण कैसे डाला जा सकता है, कुछ देर के लिये सोचने पर विवश (forced) कर ही देता है। हालांकि जहाँ आस्था और विश्वास की बात होती है वहाँ इफ और बट का न तो कोई काम होता है न ही कोई आवश्यकता होती है। तो फिर क्या इस सवाल का कोई जवाब है या यह सवाल ही बेमानी है?

मंदिर में मूर्ति स्थापना के समय प्रतिमा (statue) रूप को जीवंत करने की प्रक्रिया को प्राण प्रतिष्ठा कहते हैं। असल में प्राण (Life) के कई सारे अर्थ होते हैं जैसे ऊर्जा, तेज, शक्ति वगैरह वगैरह.. प्राण केवल आत्मा या जीवन या श्वांस (breathing) को ही नहीं कहते हैं। इसलिए इस सवाल का भी कोई मतलब नहीं बनता कि किसी पत्थर में जान डाल सकते हैं तो मृत (dead) शरीर में क्यों नहीं? शायद एक बार यह भी संभव हो सकता था, लेकिन मंत्रों के साथ-साथ हमारे पुराणों और शास्त्रों में इस बारे में भी साफ़ साफ़ लिखा गया है कि प्राण प्रतिष्ठा किन किन धातुओं व पदार्थों में संभव (possible) है। इसलिए अगर हम कोशिश भी करें तो वह बेकार ही जाएगी। ऐसा नहीं है कि पुराणों आदि में ये बातें बस यूँ ही लिख दी गयीं हैं, इस बात को आप और आसानी समझ जाएंगे जब प्राण प्रतिष्ठा (Prestige) के विधि-विधान व रहस्यों के बारे में जानेंगे, जिसके बारे में हम अंत में चर्चा करेंगे उससे पहले आइये समझते हैं प्राण प्रतिष्ठा के वैज्ञानिक (साइंटिस्ट) दृष्टिकोण के बारे में।

वैज्ञानिक दृष्टिकोण-

आकाश, वायु, अग्नि, जल और पृथ्वी (Earth) के अलावा भी कई सारी शक्तियां (powers) हैं जो हमें दिखाई नहीं देती हैं लेकिन वायु आदि के रूप में घूमती रहती हैं जिनका, मंत्रों की सहायता से, सही मुहूर्त (Auspicious beginning) में विधि-विधानपूर्वक आह्वान किया जाता है तो वह प्रसन्न होकर ऊर्जा के रूप में मूर्तियों में प्रवेश करती हैं। वास्तव (really) में यह पूरी तरह से वैज्ञानिक प्रक्रिया ही है। हालांकि विज्ञान के अनुसार धार्मिक अनुष्ठानों और मंत्रों से किसी पत्थर (Stone) में प्राण नहीं डाले जा सकते हैं लेकिन यहाँ समझने की बात यह है कि प्राण-प्रतिष्ठा का अनुष्ठान, पत्थर की प्रतिमाओं में जान डालने के लिए नहीं, बल्कि उन्हें जागृत (awakened) या ऊर्जावान करने के लिए किया जाता है। विद्वानों द्वारा प्राण प्रतिष्ठा किए जाने वाले स्थान पर वैदिक मंत्रों के साथ ही शंखों और घण्ट आदि की ध्वनियों (sounds) का नाद किया जाता है। यह बात तो विज्ञान भी मानता है कि इन ध्वनियों से वातावरण में जिन तरंगों का प्रवाह होता है उससे नकारात्मक ऊर्जा भी सकारात्मक यानि पॉज़िटिव एनर्जी में बदल जाती है। उन तरंगों से वातावरण भी पवित्र और शुद्ध हो जाता है। इसके साथ ही अनुष्ठान में दीये जलाने से लेकर हवन आदि तक में जो देशी घी, कपूर और आम की लकड़ी सहित ढेरों सामग्रियों (materials) का इस्तेमाल होता है, वह भी कई तरह के कीटाणुओं और विषाणुओं (viruses) को खत्म कर वातावरण को शुद्ध करने में सहायक होते हैं। इसके अलावा सनातन धर्म में मंत्रों का कितना महत्व है, ये भी हम सभी जानते हैं। चाहे पूजा अनुष्ठान की बात हो या फिर चिकित्सा में, मंत्रों की शक्ति से कोई इनकार नहीं कर सकता है। वैसे विज्ञान अभी और कुछ म माने या न माने लेकिन ‘ओम्’ की शक्ति को तो वह स्वीकार कर ही चुका है कि ब्रह्माण्ड में जो ध्वनि गूँजती (echoing) रहती है, वह ओम् जैसी ही सुनाई पड़ती है। अब यहाँ विज्ञान और आस्था की अपनी लड़ाई ही सकती है फिर भी दावा है कि इसमें जीत सनातन धर्म की ही होनी है, क्योंकि सनातन धर्म ख़ुद अपनेआप में एक विज्ञान ही है। और जब सनातन धर्म की इतनी बातें वैज्ञानिक हो सकती हैं तो मंत्रों और अनुष्ठानों (rituals) के माध्यम से प्राण प्रतिष्ठा क्यों नहीं की जा सकती है?

ये भी पढ़े – क्या भगवान राम मांसाहारी थे ?

दूसरी बात कि अगर आप वेदों और पुराणों पर विश्वास (faith) करते हैं तो उसमें लिखी बातों को भी तो मानेंगे, जिनमें न केवल मुर्ति पूजा की बात लिखी गयी है बल्कि मंत्रों के माध्यम से प्राण प्रतिष्ठा का भी विधि विधान (Legislation) बताया गया है। इसलिए इसमें कोई संदेह नहीं है कि सनातन धर्म में मूर्ति पूजा जितनी आवश्यक है, मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा भी उतना ही महत्वपूर्ण कार्य है।
प्राण प्रतिष्ठा के महत्व को आसानी से अनुभव भी किया जा सकता है। मंदिर में मिलने वाली शांति व पवित्रता का एहसास और मूर्ति के प्रति श्रद्धा और आस्था का भाव सब प्राण प्रतिष्ठा की ही देन है। इसके पीछे कोई वैज्ञानिक आधार है या नहीं इसके लिए हमें एक बार फिर से रामलला की प्राण प्रतिष्ठा का उदाहरण (Example) लेना होगा। प्राण-प्रतिष्ठा से पहले मूर्ति, केवल एक कृति (Work) होती है लेकिन प्राण-प्रतिष्ठा हो जाने के बाद वही पत्थर की मूर्ति दिव्य (divine) ऊर्जा का संचार होने से भगवान का विग्रह (Deity) बन जाती है। फिर वह मूर्ति, केवल मूर्ति नहीं रह जाती, भगवान का अवतार स्वरूप बन जाती है, जिसे विग्रह अवतार भी कहते हैं। इस तरह के चमत्कार की पुष्टि अयोध्या के श्रीराम मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा के लिए रामलला की प्रतिमा बनाने वाले मूर्तिकार अरुण योगीराज (Arun Yogiraj) ने ख़ुद की है। दरअसल जब प्राण प्रतिष्ठा के बाद योगीराज ने रामलला के दर्शन (Visit) किए तो हैरान रह गये। उन्होंने मीडिया से कहा कि निर्माण के समय मूर्ति अलग दिखती थी, लेकिन प्राण प्रतिष्ठा के बाद रामलला ने अलग ही रुप ले लिया है। योगीराज ने कहा कि, ‘गर्भगृह के बाहर तक मूर्ति की छवि अलग थी। लेकिन जैसे ही मूर्ति को गर्भगृह (sanctum sanctorum) में प्रवेश कराया गया, उसकी आभा ही बदल गई। मैंने इसे महसूस किया। मैंने में मौजूद लोगों को भी इस बारे में बताया था।’ यह दैवीय चमत्कार (Miracle) है नहीं है तो और क्या है? योगीराज ने यह भी महसूस किया कि “गर्भगृह में प्राण प्रतिष्ठा के बाद रामलला के विग्रह के भाव बदल गए। उनकी आंखें जीवंत हो गई और होठों पर बाल-सुलभ मुस्कान आ गई। प्राण-प्रतिष्ठा के बाद उनके विग्रह में देवत्व (divinity) का भाव आ गया।” योगीराज को हुए इस अनुभव को तो शायद हर किसी ने महसूस भी किया होगा। नहीं यक़ीन तो रामलला की मूर्ति की जो तस्वीर प्राण प्रतिष्ठा से पूर्व सोशल मीडिया पर वायरल (Viral) हुई थी, उसकी आंखें देखिए और फिर प्राण प्रतिष्ठा के बाद की विग्रह के रूप में आई तस्वीर की आँखें देखिए, दोनों में अंतर साफ़ समझ आ जायेगा। हालांकि योगीराज ने जो रामलला की मूर्ति बनाई है उसमें पहले भी कोई कमी नहीं थी, बिल्कुल जीवंत आँखें, जैसे हमारी ओर ही देख रही हों, लेकिन प्राण प्रतिष्ठा के बाद वही आँखें जैसे बोलती सी दिखाई देने लगीं। तो क्या भगवान रामलला के विग्रह में हुआ यह बदलाव काफी नहीं प्राण प्रतिष्ठा के विज्ञान को समझने के लिए?

चक्षु उन्‍मीलन-शीशा का टूटना-

हिन्‍दू मान्‍यता के अनुसार ऐसा कहा गया है कि प्राण प्रतिष्‍ठा के बाद भगवान की मूर्ति के सामने रखा शीशा (glass) चकनाचूर हो जाता है। दरअसल प्राण प्रतिष्‍ठा के दौरान भगवान की आंखों (eyes) पर पट्टी बंधी होती है, जो कि अनुष्‍ठान (ritual)  पूरे होने के बाद आखिर में खोली जाती है, जिसके बाद मूर्ति के सामने रखा शीशा अपने आप टूट जाता है। तो क्‍या इसके पीछे भी कोई वैज्ञानिक कारण है? असल में प्राण प्रतिष्ठा का अनुष्ठान कई सारे विधि-विधान और वैदिक मंत्रोच्‍चारण (mantra chanting) के साथ पूरा किया जाता है। हिंदू मान्‍यता के अनुसार इस पूरी प्रक्रिया के दौरान प्रतिष्ठित विग्रह में दैवीय ऊर्जा इतनी प्रचुर मात्रा में समाहित (contain) होती है कि आँखों से पट्टी निकालते ही उनके तेज से शीशा टूट जाता है। इस प्रक्रिया को भगवान की अलौकिक (divine) शक्ति का ही एक रूप माना जाता है। शास्‍त्रों के अनुसार इस प्रक्रिया को चक्षु उन्‍मीलन कहा जाता है। हालांकि किसी मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा का अनुष्ठान (ritual) कई चरणों में होने वाली एक लम्बी प्रक्रिया है… और इनमें अंतिम चरणों में से एक है चक्षु उन्मीलन।

हालांकि तर्कों की बात करें तो मूर्ति की प्राण प्रतिष्‍ठा के दौरान सामने रखा गया शीशा दूसरे कई कारणों से भी टूट सकता है।
पहला- प्राण प्रतिष्ठा अनुष्ठान में मंत्रोच्‍चारण के कारण वातावरण में अत्यधिक ऊर्जा और कंपन का भरना।
दूसरा- प्राकृतिक कारण, जैसे तापमान बढ़ने से कांच पर तनाव पड़ना आदि।

ये भी पढ़े – Story of Jagannath Temple Mystery

वैदिक विज्ञान-

वेदों की बात करें तो यजुर्वेद में प्राण-प्रतिष्ठा मंत्र का विवरण प्राप्त होता है। यजुर्वेद के अलावा मत्‍स्‍य पुराण, वामन पुराण, नारद पुराण में भी प्राण प्रतिष्‍ठा के बारे में लिखा हुआ है।
प्राण-प्रतिष्ठा के वैदिक विज्ञान को ऐसे भी समझा जा सकता है कि जिस तरह से धरती पर पानी (Water) हर जगह है, और मनुष्य उसे अपनी आवश्यकतानुसार उसे एक जगह इकट्ठा कर लेता है, वातावरण में फैली हवा और गैस को इकट्ठा कर लेता है, और लैंस के माध्यम से प्रकाश को एक विशेष स्थान पर समेट लेता है, उसी तरह सारे ब्रह्मांड में व्याप्त ईश्वरीय तत्व को भी मंत्रो और अनुष्ठानों के माध्यम से प्राण-प्रतिष्ठा कर मूर्ति में स्थापित किया जाता है, जिसके लिए पहले से ही हमारे शास्त्रों में अनेक विधि-विधान लिखित और वर्णित हैं।

प्राण प्रतिष्ठा की विधि-

शास्त्रों में घर पर पत्थर की प्रतिमा (statue) न रखने की सलाह दी गई है। पत्थर की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा के पश्चात प्रतिदिन पूजा अनिवार्य है। इसीलिए मंदिरों में ही पत्थर की प्रतिमा स्थापित की जाती है। आइये अब यह भी जान लेते हैं प्राण प्रतिष्ठा की पूरी प्रक्रिया क्या है।
“प्राण प्रतिष्ठा” शब्द संस्कृत से लिया गया है, जहाँ ‘प्राण’ जीवन शक्ति का प्रतीक है, और ‘प्रतिष्ठा’ का अर्थ स्थापना है। इस अनुष्ठान के बिना, कोई भी मूर्ति हिंदू धर्म में पूजा के लिए उपयुक्त नहीं मानी जाती है।किसी भी मूर्ति की स्थापना सिर्फ उसे उस विशेष (Specific) जगह पर स्थापित कर देना मात्र नहीं होता। इसके पीछे होता है कई दिनों का विशेष पूजा पाठ, कलश यात्रा, नव ग्रह, देवी देवता आवाहन, हवन, यज्ञ भजन प्रसाद वितरण आदि। इसके अलावा जिस जगह पर मूर्ति की स्थापना करते हैं, वहीं पर प्राण प्रतिष्ठा करते हैं। उस जगह पर लगभग 7 दिन या उससे अधिक के लिए हवन पूजन किया जाता है। उसके बाद ही किसी मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा की जाती है।

प्राण प्रतिष्ठा की विधि पूर्ण होने से पहले कई चरणों से गुज़रना होता है, जिनमें पहले चरणों (stages) में से एक है शोभा यात्रा, जो मंदिर के आसपास निकाली जाती है। इसके पीछे जो मान्यता है वह ये है कि इस यात्रा में जब दर्शक (the audience) मूर्ति का स्वागत करते हैं और उसकी जय-जयकार करते हैं, तो उनकी कुछ श्रद्धा-भक्ति का कुछ अंश उसमें भी ट्रांसफर हो जाता है, जिससे उस मुर्ति में दिव्य शक्ति भरना शुरू हो जाती है। इसके बाद जब मूर्ति मंडप (pavilion) में वापस आ जाती है तो प्राण प्रतिष्ठा अनुष्ठान की प्रक्रिया शुरू होती है जिसमें मूर्ति को तैयार करने के लिए कई अधिवास आयोजित किए जाते हैं। इस प्रक्रिया में मूर्ति को अलग-अलग सामग्रियों (materials) में डुबोया जाता है। सबसे पहले मूर्ति को एक रात के लिए पानी में रखा जाता है, जिसे जलाधिवास (water habitat) कहा जाता है। फिर इसे अनाज में दबाकर रखा जाता है, जिसे धन्यधिवास कहा जाता है। दरअसल इसके पीछे मान्यता यह है कि जब भी कोई मूर्ति बनाई जाती है, तो उस पर शिल्पकार के औजारों से चोटें आती हैं, और ये अधिवास उन्हीं चोटों को ठीक करने के लिए होते हैं। इसके अलावा अगर मूर्ति में कोई दोष है या पत्थर अच्छी गुणवत्ता का नहीं है, तो इसका परीक्षण भी इन सामग्रियों में डुबोने से हो जाता है। इस प्रक्रिया के बाद मूर्ति को अनुष्‍ठानिक (ceremonial) स्‍नान कराया जाता है।

ये भी पढ़े – जब भगवान गणेश ने तोडा राजा जनक का अहंकार

प्राण प्रतिष्ठा के लिए सबसे पहले देवी-देवताओं की प्रतिमा को गंगाजल या 5 से 7 नदियों (rivers) के जल से स्नान कराया जाता है। इसके बाद, किसी मुलायम (Soft) वस्त्र से मूर्ति को पोछने के बाद देवी-देवता के रंग अनुसार नए वस्त्र (Clothes) धारण कराए जाते हैं। इसके बाद मूर्ति को शुद्ध एवं स्वच्छ स्थान पर विराजित कर चंदन का लेप लगाया जाता है। इस दौरान अलग-अलग सामग्रियों से उसका अभिषेक होता है। इस संस्कार में 108 प्रकार की सामग्रियां (Supplies) शामिल हो सकती हैं जिनमें पंचामृत, सुगंधित फूल व पत्तियों के रस, गाय के सींगों पर डाला गया पानी और गन्‍ने का रस शामिल (Involved) होता है। इसी के साथ ही मूर्ति का विशेष श्रृंगार और बीज मंत्रों का पाठ कर प्राण प्रतिष्ठा की जाती है।

प्राण प्रतिष्ठा मंत्र-
यजुर्वेद में प्राण प्रतिष्ठा के समय जिन विशेष मंत्रों का प्रयोग होता है उनमें से कुछ इस प्रकार हैं-

ॐ मनो जूतिर्जूषतामाज्यस्य बृहस्पतिर्यज्ञमिमं,
तनोत्वरितष्टं यज्ञँ समिम दधातु।
विश्वेदेवास इह मदयन्ता मोम्प्रतिष्ठ।।
अस्यै प्राणाः प्रतिष्ठन्तु अस्यै प्राणाः क्षरन्तु च अस्यै,
देवत्व मर्चायै माम् हेति च कश्चन।।
ॐ श्रीमन्महागणाधिपतये नमः सुप्रतिष्ठितो भव,
प्रसन्नो भव, वरदा भव।।

बीज मंत्रों के जाप के समय मंत्रों के ही माध्यम से अलग-अलग देवताओं (gods) का आवाहन और मूर्ति के अलग-अलग हिस्सों को चेतन करने के लिए प्रार्थना की जाती है। इनमें सूर्य आंखें, वायु कान, चंद्र मन को चेतन करते हैं। इन प्रक्रियाओं के बाद अंतिम चरण में मूर्ति की आंखें खुलती हैं। इस अनुष्ठान में भगवान की आंखों के चारों ओर सोने की सुई के माध्यम से काजल की ही तरह अंजन लगाया जाता है। हालांकि यह प्रक्रिया विग्रह (Deity) के पीछे से की जाती है, जिसको लेकर मान्यता (Recognition) यह है कि भगवान की आंखें खुलने पर उनमें अत्यधिक ऊर्जा होने से उनकी चमक भी बहुत तेज होती है। उसी तेज के कारण (Reason) ही विग्रह के सामने रखि शीशा भी टूट जाता है। इसके बाद पंचोपचार कर विधि-विधान से भगवान की पूजा-अर्चना की जाती है और अंत में आरती कर लोगों को प्रसाद वितरित किया जाता है।

धन्यवाद

वीडियो देखे –

Show More

Related Articles

Back to top button