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श्रीगणेश का वाहन चूहा क्यों ?

जैसा की हम सभी जानते हैं की इस दुनिया के संहारक महादेव शिव शंकर कहे जाते हैं, जिनकी अर्धांगिनी आदिशक्ति माता पार्वती हैं, और जिनके दो पुत्र हैं। बड़े पुत्र का नाम कार्तिकेय और छोटे पुत्र को गणेश के नाम से जाना जाता है।

ऐसा कहा जाता है की गणेश अपने माता-पिता के सबसे लाडले पुत्र थे ऐसा क्यों इसके पीछे भी एक कथा सुनने को आती है की एक बार कार्तिकेय और गणेश में एक शर्त लगी की जो भी पूरी दुनिया का चक्कर लगाकर सबसे पहले कैलाश आ जायेगा वही श्रेष्ठ माना जायेगा, इसके बाद कार्तिकेय अपने वाहन मोर के साथ दुनिया की परिक्रमा यानि की चक्कर लगाने निकल पड़े।

लेकिन गणेश वही कैलाश में ही रुके रहे और अपने माता पिता यानि की शिव-पार्वती की ही परिक्रमा करने लगे, ऐसा करते देख जब उनके माता-पिता ने इसकी वजह जाननी चाही तो गणेश बोले-“मेरा सारा संसार मेरे माता-पिता ही हैं इसलिए मै आप लोगों की ही परिक्रमा कर रहा हूँ”, ऐसा सुनकर महादेव और माता पार्वती बहुत ही खुश हुए और श्रीगणेश को गले से लगा लिया।

श्रीगणेश को उनके पिता भगवान् शिव का वरदान है कि जब भी कोई पूजा या शुभ कार्य की शुरुवात करेगा तो सबसे पहले उसे गणेश की ही पूजा करनी होगी, नही तो उसे पूजा का फल नही मिलेगा।

गणेश जी को खाने में मोदक बहुत पसंद है और उनकी सवारी मूषक यानि चूहा है, ये तो हम जानते ही हैं लेकिन हमने कभी इस बात पर गौर नही किया होगा की गणेश जी का वाहन मूषक ही क्यों है। आज की इस कड़ी में हम इसी से सम्बंधित एक रहस्यमयी कथा लेकर आये हैं।

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श्रीगणेश-पुराण के अनुसार-

श्रीगणेश-पुराण के अनुसार– एक बार अमरावती में, जहाँ इंद्र और देवताओं की सभा लगा करती थी वहा एक गन्धर्व भी मौजूद था जिसका नाम क्रौंच था। उसे अचानक कोई जरूरी काम याद आ गया और वो इंद्र से आज्ञा लेकर बहुत जल्दी में वहा से जाने लगा। जल्दीबाजी में उसका ध्यान वहा बैठे महर्षि वामदेव पर नही गया और गलती से उसका पाँव महर्षि को लग गया।

महर्षि को जैसे ही उसका पाँव लगा वो बहुत ज्यादा क्रोधित हो गए और उन्होंने इस बात को अपना अपमान समझ कर तुरंत ही शाप दे डाला और कहा-“हे क्रौंच! तू बहुत ही मूर्ख है, तू अपने घमंड में इस तरह से चल रहा है की तुझे अगल-बगल बैठे विद्वान-ऋषि मुनियों का ख्याल तक नही और इस तरह से उछलते हुए तू मुझे लात मारकर भागा जा रहा है इसलिए जा मै तुझे शाप देता हूँ की तू मूषक बन जा।” महर्षि के इस शाप को सुनकर क्रौंच डर के मारे कांपने लगा और रोते-रोते महर्षि का पैर पकडकर माफ़ी मांगने लगा।

उसके इस तरह करने से वो महर्षि को उस पर दया आ गयी और वो बोले-“मेरा शाप कभी खाली नही जा सकता इसलिए तू मूषक जरुर बनेगा लेकिन तुझे श्रीगणेश का वाहन बनने का भी सौभाग्य मिलेगा जिसके वजह से तेरा उद्धार हो जायेगा।” ऐसा कहकर महर्षि वहा से चले गए।

इसके बाद क्रौंच पर शाप का असर होना शुरू हो गया और वो एक बहुत बड़े पर्वत के आकार का बहुत भयानक चूहे का रूप लेकर महर्षि पराशर के आश्रम में जा गिरा। आश्रम में गिरते ही उस चूहे ने भयंकर उत्पात मचाना शुरू कर दिया, मिट्टी के बर्तनों को तोड़-फोड़ कर उनमे से अन्न खाने लगा, आश्रम के सारे कपडे कुतर डाले साथ ही साथ आश्रम की वाटिका में घुस कर वहा के पौधों को नष्ट कर डाला और वहा फलों को भी भी बहुत नुकसान पहुचाया।

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मूषक का उत्पात-

मूषक के इस तरह के उत्पात से महर्षि पराशर बहुत दुखी हो गए और मन ही मन ये सोचने लगे की आखिर इस मूषक को भगाने के लिए क्या किया जाये, अगर इसको मार दें तो हमें जीव-हत्या का पाप लगेगा और अगर इसे ऐसे ही जाने दिया तब तो ये और उत्पात मचाता रहेगा और भारी नुक्सान करता रहेगा।

पराशर ये सब सोच ही रहे थे की अचानक वहाँ श्रीगणेश प्रकट हुए और उन्होंने कहा-“हे महर्षि! आप बिलकुल चिंतित ना हो, ये मूषक अपनी शक्ति के घमंड में चूर है इसलिए ये क्या कर रहा है इसे खुद नही पता, मै इसे खुद दंड दूंगा और अपना वाहन बना लूँगा” ऐसा कहते ही गणेश जी ने एक रस्सी का फंदा उस मूषक के तरफ फेका जिससे उस मूषक का गला उस फंदे में फस गया और उसे खीचकर अपने सामने पेश किया।

उस फंदे में वो मूषक तड़पने लगा और गणेश जी से बोला-“हे प्रभु! आपके दर्शन पाकर मेरा जीवन सफल हो गया, आप तो सभी भक्तों पर दया करते हो,इसलिए मुझ पर भी दया कीजिये और मेरे अपराध क्षमा कर दीजिये”। इस पर गणेश जी ने कहा-“हे मूषक! तेरे अपराध बिलकुल क्षमा करने के काबिल नही हैं, तूने बहुत उत्पात मचाया है और तेरे उत्पात से बहुत से ऋषियों को बहुत कष्ट पहुचा है लेकिन फिर भी मै तुझे माफ़ करता हूँ , तू अब मेरी शरण में है इसलिए तू मुझसे जो चाहे वो वरदान मांग ले”।

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श्रीगणेश ने मूषक का घमंड तोडा

क्रौंच जो शाप के कारण मूषक बन चुका था, अपनी शक्ति के वजह से बहुत घमंड में आ चुका था, और वो मन में सोच रहा था की मेरे पास इतनीं शक्ति तो है ही तो कोई और मुझे क्या दे सकता है यही सोचकर उसने श्रीगणेश से कहा-“मुझे तो कुछ नही चाहिए लेकिन हाँ अगर आपको मुझसे कोई वरदान चाहिए तो मुझसे मांग लीजिये” श्रीगणेश उसकी इस मूर्खता पर मुस्कुराये और बोले-“अगर तुझे कुछ वरदान देना ही है तो मै चाहता हूँ की तू ही मेरा वाहन बन जाये, मैं तुझे अपना वाहन बना चाहता हूँ” गणेश जी की इस बात को सुनकर वो चूहा तुरंत मान गया और बस फिर क्या था श्रीगणेश अपने पूरे बल के साथ उस मूषक के पीठ पर जा बैठे।

उनका भार इतना ज्यादा था की वो मूषक उनके भार के वजह से धरती में धंसा चला जा रहा था, भार सहन ना कर पाने के वजह से वो जोर-जोर से चिल्लाने लगा की-“हे प्रभु! मेरी रक्षा कीजिये, मै आपका भार नही सह पा रहा हूँ, कृपा करके अपना भार हल्का करिए” उसके ऐसा कहने से श्रीगणेश ने ये जान लिया की इस मूषक का घमंड अब चूर-चूर हो गया है तो उन्होंने अपना भार घटा लिया ताकि वो मूषक आसानी से उन्हें अपने पीठ पर बिठा सके और इस तरह श्रीगणेश ने उस मूषक यानि चूहे को अपना वाहन बना लिया।

तो ये थी वो रहस्यमयी कथा जिसके वजह से श्रीगणेश ने अपना वाहन चूहे को बनाया।

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