BiographySports

भारत में क्रिकेट की नींव रखने वाला परिवार जडेजा परिवार का इतिहास।

दोस्तों भारत में क्रिकेट की नींव भले ही अंग्रेजों ने रखी थी लेकिन इस नींव को परत दर परत मजबूती और वकार देने का श्रेय सुनिल गवास्कर, लाला अमरनाथ, सचिन तेंदुलकर और कपिल देव जैसे भारतीय खिलाडियों को ही जाता है।

लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि इस असिमित वकार की शुरुआत कहां से हुई थी? उस शख्स का क्या नाम था जिसने इस दृढ़ इमारत की नींव के ऊपर पहली ईंट रखी थी?

भारत के गली कूचों में खेले जाने वाले इस खेल को एक अहसास और धर्म में बदलने की शुरुआत करने वाले ये शख्स भारतीय क्रिकेट के जाने माने बल्लेबाज अजय जडेजा के परदादा सर रणजीत सिंह जी विभा जी जड़ेजा थे, जिन्हें भारतीय क्रिकेट का पिता भी कहा जाता है।

Sir RanJit Singh Jadeja NaaradTV
सर रणजीत सिंह

सर रणजीत सिंह का शुरुआती जीवन-

10 सितंबर 1872 को पराधीन भारत के नवानगर के सदोदर नामक गांव में एक यदुवंशी राजपूत परिवार में किसान जीवन सिंह के यहां रणजीत सिंह जी का जन्म हुआ था।

रणजीत सिंह के दादाजी झालमसिंह जी नवानगर के राजा विभा सिंह के विश्वासपात्र सैनिकों में शामिल थे जिसके चलते जब विभा सिंह ने अपने बेटे कलूभा को राज्य से बेदखल कर दिया तो राज्य के नए उत्तराधिकारी के लिए 1878 में विभा सिंह द्वारा रणजीत सिंह जी को गोद ले लिया गया था।

रणजीत सिंह जी को पढ़ने के लिए राजकोट की राजकुमार कोलेज भेज दिया गया, जहां उन्हें क्रिकेट और टेनिस जैसे खेलों में कई अवार्ड मिले।

इस दौरान नवानगर राजघराने में एक महिला ने जसवंत सिंह को जन्म दिया जिसे विभा सिंह ने अपना उत्तराधिकारी घोषित कर दिया जिसका कारण रणजीत सिंह जी के पिता की महत्वाकांक्षाओं माना जाता है।

रणजीत सिंह जी का परिचय क्रिकेट से 10 साल की उम्र में हो गया था और कई सालों तक वो अपनी स्कूल की क्रिकेट टीम के कप्तान भी रहे थे लेकिन इसके बावजूद भी टेनिस खेलना उन्हें सबसे अधिक प्रिय था।

मार्च 1888 में रणजीत सिंह जी का दाखिला इंग्लैंड की कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में कर दिया गया जहां से उनकी जिंदगी एक नया मोड़ लेने वाली थी।

Ranjit Singh Ji Cricket Naaradtv
सर रणजीत सिंह

रणजीत सिंह जी का क्रिकेट में शुरूआत-

यहां अपनी ग्रेजुएशन पुरी करने के दौरान 1888 में रणजीत सिंह जी एक क्रिकेट मैच देखने गए जहां क्रिकेट के स्टैंडर्ड और लोगों की भीड़ ने उनके मन में इस खेल के प्रति रोमांच पैदा कर दिया था और यहां से उन्होंने खुद को एक क्रिकेटर के तौर पर तैयार करने का मन बना लिया।

इसके बाद 1891 में रणजीत सिंह जी ने अपना दाखिला कैम्ब्रिशायर काउन्टी क्रिकेट क्लब में ले लिया और अपनी टेक्निक पर काम करना शुरू कर दिया।

यह क्रिकेट का वो दौर था जब हर बल्लेबाज रन बनाने के लिए ओफसाइड को वरीयता देता था लेकिन रणजीत सिंह जी ने इस ढर्रे पर चलने की बजाय बिल्कुल अलग ढंग से खेलना शुरू किया और क्रिकेट जगत को लेग ग्लांस से रूबरू कराया।

ससेक्स के कप्तान बिली मर्डोक और सी बी फ्राई से मित्रता के चलते रणजीत सिंह जी ने ससेक्स के साथ खेलना शुरू कर दिया।

साल 1896 में योर्कशायर और सोमरेस्ट के खिलाफ उनकी शतकीय पारियों के चलते रणजीत सिंह जी एक सीजन में 1000 रन बनाने वाले दुसरे बल्लेबाज बन गए।

फस्ट क्लास क्रिकेट में अपने शानदार प्रदर्शन के बावजूद भी रणजीत सिंह जी को इंग्लैंड की नेशनल क्रिकेट टीम में जगह नहीं मिल पा रही थी जिसके पीछे का कारण उनके सांवले रंग को और उनके भारतीय नागरिक होने को माना जाता है।

रणजीत सिंह जी को अपने करियर के दौरान कई बार अपने सांवले रंग के कारण बदनामी का सामना करना पड़ा था जहां कुछ लोगों ने कहना था कि एक सांवले रंग का भारतीय नागरिक इंग्लैंड की टीम में कैसे खेल सकता है।

लेकिन आखिरकार 16 जुलाई 1896 का दिन क्रिकेट इतिहास में एक नई रोशनी लेकर आया जब रणजीत सिंह जी ने अपने टेस्ट करियर का आगाज किया था।

पहली पारी में 62 रन बनाने के बाद जब इंग्लैंड को फोलो ओन करने को कहा गया तो दुसरी पारी में भी अपनी बेहतरीन बल्लेबाजी का प्रदर्शन करते हुए रणजीत सिंह जी ने 154 रनों की नाबाद पारी खेली थी।

इसके बाद दर्शकों के बीच रणजीत सिंह जी एक बड़ा नाम बन गए थे लोग उनके नाम पर मैदान में जमा हो जाते थे, लेग साइड में उनके शोट्स ने इंग्लैंड के दर्शकों को एक भारतीय क्रिकेटर का मुरीद बना दिया था।

22 अगस्त 1896 के दिन ससेक्स की तरफ से खेलते हुए इन्होंने मैच के आखिरी दिन दो शतक लगाने जैसा अविश्वसनीय कारनामा भी कर दिया था।

यह भी पढ़ें:- 1971 टेस्ट सीरीज की कहानी जब इंडिया ने पहेली बार वेस्टइंडीज और इंग्लैंड को घर में घुसकर हराया।

Maharaja-Ranjit-Sinhji NaaradTV
सर रणजीत सिंह

विज्डन क्रिकेटर ओफ द ईयर

1896 में अपने शानदार प्रदर्शन के आधार पर रणजीत सिंह जी को विज्डन क्रिकेटर ओफ द ईयर भी चुना गया था। इस साल रणजीत सिंह जी ने फस्ट क्लास क्रिकेट में कुल 2780 रन बनाकर इंग्लैंड के महान क्रिकेटर wg ग्रेस का रिकॉर्ड तोड़ा था।

साल 1897 में रणजीत सिंह जी ने द जुबली बुक ओफ क्रिकेट नाम से एक किताब भी लिखी थी। 1897 के आस्ट्रेलियाई दौरे पर खराब स्वास्थ्य होने के बाद भी इन्होंने शानदार प्रदर्शन करते हुए 457 रन बनाए थे हालांकि उनका यह प्रदर्शन इंग्लैंड को सीरीज नहीं जीता पाया था।

अप्रैल 1898 में रणजीत सिंह जी भारत आए जहां नवानगर के भावी सम्राट पर अब भी प्रश्न चिन्ह लगा हुआ था जिसके चलते रणजीत सिंह जी को उम्मीद थी कि उनका अधिकार उन्हें मिल सकता है।

मार्च 1899 तक भारत में रहने के दौरान रणजीत सिंह जी की तबीयत में बहुत सुधार आ गया था जिसके चलते उनकी बल्लेबाजी में एक अलग धार नजर आने लगी थी।

टेस्ट करियर

जून 1899 में उन्होंने फस्ट क्लास क्रिकेट में 1000 रन बनाए थे जिसमें चार शतक भी शामिल थे। इसके अलावा इंग्लैंड आने के बाद आस्ट्रेलिया के खिलाफ उन्होंने पहले मैच की पहली पारी में 42 और दुसरी पारी 93 रन बनाए थे।

जून 1899 में रणजीत सिंह जी को संसेक्स का कप्तान बनाया गया जिसके बाद उन्होंने इस टीम की खराब गेंदबाजी लाइन अप को सुधारने पर जोर दिया था।

रणजीत सिंह जी ने अपने करियर का आखिरी टेस्ट मैच 24 जुलाई 1902 को आस्ट्रेलिया के खिलाफ खेला था। रणजीत सिंह जी ने अपने टेस्ट करियर में कुल 15 मैच खेले थे जिसमें उनके 989 रन हैं।

अगस्त 1906 में जसवंत सिंह के निधन के बाद 1907 को रणजीत सिंह नवानगर के राजा बने और उन्होंने अपने राज्य के विकास के लिए बहुत से काम किए जिसके प्रमाण आज भी गुजरात के जामनगर में देखे जा सकते हैं।

पहले विश्व युद्ध के दौरान शिकार खेलते हुए रणजीत सिंह जी को अपनी एक आंख गंवानी पड़ गई थी जिसके चलते इनका फस्ट क्लास क्रिकेट करियर भी खत्म हो गया था।

रणजीत सिंह जी ने अपने फस्ट क्लास क्रिकेट करियर में कुल 307 मैच खेले थे जिनमें उनके रनों और विकेटों का आंकड़ा 24692 और 133 है। फस्ट क्लास क्रिकेट करियर में इन्होंने 72 शतक और 109 अर्धशतक भी लगाए हैं जो अपने आप में एक अविश्वसनीय आंकडा है।

2 अप्रैल 1933 को एक बीमारी के चलते इस महान शासक और क्रिकेटर ने दुनिया को अलविदा कह दिया जिसके 2 साल बाद 1935 को पटियाला के महाराजा भूपेंद्र सिंह जी ने फस्ट क्लास क्रिकेट टुर्नामेंट का शुभारंभ किया जिसका नाम रणजीत सिंह जी के सम्मान में रणजी ट्रॉफी रखा गया था।

रणजीत सिंह जी के बाद इनके भतीजे दिग्विजय सिंह जड़ेजा को नवानगर का राजा बनाया गया जिन्होंने 1919 से 1947 तक ब्रिटिश इंडियन आर्मी में भी अपनी सेवाएं दी थी।

7 मार्च 1935 को दिग्विजय सिंह जी की शादी बाईजी राय श्री कंचन कुंवरबा साहिबा से हुई थी जिन्होंने एक बेटे और तीन बेटियों को जन्म दिया था।

दिग्विजय सिंह जड़ेजा

70 साल की उम्र में 3 फरवरी 1966 को दिग्विजय सिंह जड़ेजा का निधन हो गया जिसके बाद नवानगर का राजा उनके बेटे शत्रुश्याल सिंह को बनाया गया जो महाराजा कहलवाने वाले इस वंश के आखिरी शख्स थे।

इसके अलावा शत्रुश्याल सिंह एक फस्ट क्लास क्रिकेटर भी थे जिन्होंने अपने करियर में सौराष्ट्र से खेलते हुए कुल 29 मैचों में हिस्सा लिया था और 1061 रन बनाए थे जिसमें उनका सबसे अच्छा प्रदर्शन नाबाद 164 है। रणजीत सिंह जी के एक और भतीजे दलीप सिंह जी भी एक जाने माने क्रिकेटर रह चुके हैं।

duleep-singh-cricketer NaaradTV
दलीप सिंह

दलीप सिंह

13 जून 1905  को जन्मे दलीप सिंह ने अपने करियर में कुल 12 टेस्ट और 205 फस्ट क्लास मैच खेले हैं जिनमें इनके रनों का आंकड़ा 16000 के लगभग है।

अपने चाचा की तरह इनके सम्मान में भी आगे चलकर फस्ट क्लास क्रिकेट टूर्नामेंट का नाम दिलीप ट्रॉफी रखा गया था।

कुमार छत्रपाल सिंह जी और इंद्रजीत सिंह जी जैसे अन्य फस्ट क्लास क्रिकेटरों से सजे इस परिवार में दौलत सिंह जड़ेजा और ज्ञानबा जड़ेजा के घर अजय जडेजा का जन्म हुआ था।

Ajay Jadeja Cricket NaaradTV
अजय जडेजा
अजय जडेजा

1 फरवरी 1971 को जन्मे अजय जडेजा रिश्ते में रणजीत सिंह जी के परपोते और दिलीप सिंह जी के भतीजे है।

हरियाणा, राजस्थान और दिल्ली जैसी टीमों के लिए डोमेस्टिक क्रिकेट खेलने के अलावा अजय जडेजा ने भारतीय टीम को भी कई अहम मुकाबलों में जीत दिलाई है।

अजय जडेजा ने भारत के लिए 15 टेस्ट मैच और 196 वनडे मैच खेले हैं जिनमें इन्होंने कुल 9000 रन बनाए हैं।

लेकिन कई उपलब्धियों से भरा यह करियर तब अंधकार में आ गया जब इन पर मैच फिक्सिंग जैसा संगीन आरोप लगाया गया जिसके चलते इन्हें 5 सालों तक टीम से दूर रहना पड़ा। इसका परिणाम यह हुआ कि इस उभरते सितारे का करियर समय से पहले ही खत्म हो गया था।

बात करें इनकी निजी जिंदगी के बारे में तो इनका विवाह अदिती जैटली से हुआ था जिन्होंने दो बच्चों को जन्म दिया जिनका नाम अमान और अमीरा है।

इसके अलावा क्रिकेट से संन्यास लेने के बाद अजय जडेजा ने 2003 में आई फिल्म खेल और 2009 में आई फिल्म पल पल दिल के साथ जैसी फिल्मों में भी काम किया है।

यू ट्यूब पर देखें –

Show More

Related Articles

Back to top button