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Sachin के शतकों के शतक का सफर

अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में वर्तमान के परिदृश्य (Landscape) पर नजर डालें तो यह खेल बहुत से पलों का इंतजार (Wait) कर रहा है, अपने लंबे इतिहास (History) में एक से बढ़कर एक असाधारण (Extraordinary) कारनामों का ग्वाह रहे इस खेल में अब भी बहुत कुछ बाकि है बहुत कुछ अधूरा है।
दक्षिण अफ्रीका को अपने पहले फाइनल का इंतजार है तो वहीं न्यूजीलैंड जैसी बेहतरीन टीम अब भी व्हाइट(White) बोल क्रिकेट में अपने पहले खिताब की तरफ देख रही है लेकिन भारत के लिए यह फेहरिस्त (List) थोड़ी लंबी है।
भारतीय टीम एक तरफ जहां आने वाले वनडे (Oneday) विश्व (World)-कप के जरिए अपना सूखा खत्म करने का इंतजार कर रही है तो वहीं भारत को सदी के सबसे चहेते बैट्समैन (Batsman) विराट कोहली से भी सौ शतकों (Centuries) की उम्मीद बनी हुई है।
अब जब यह उम्मीद फिर से आकार लेने लगी है तो हमने सोचा क्यों ना आपको थोड़ा पिछे ले जाया जाए और बताया जाए कि किस तरह पहली बार सचिन ने यह रिकॉर्ड (Record) कायम किया था।

Sachin Tendulkar

एक साल, मानव जाति के हजारों वर्ष पुराने इतिहास की तरफ नजर उठाकर देखें तो यह अवधि बहुत ही मामूली नजर आती है लेकिन जब करोड़ों लोग एक इंसान की तरफ किसी उम्मीद में टकटकी (Gaze) लगाए बैठे हो तो उस इंसान के साथ साथ उन लोगों के लिए एक साल भी बहुत लंबा हो जाता है।
साल 2011 तक अंतरराष्ट्रीय (International) क्रिकेट ने अपने लगभग 150 सालों के दौरान 99.94 के जादुई आंकड़े (Statistics) को आकार लेते हुए देख लिया था, टेस्ट क्रिकेट में 10000 रनों का आंकड़ा भी पार हो गया था, ब्रायन लारा ने 400 रन भी बना लिए थे, वेस्टइंडीज ने लगातार दो बार और आस्ट्रेलिया ने लगातार तीन बार विश्वविजेता (World Champion) का ताज भी धारण (Holding) कर लिया था।
लेकिन हर असंभव नजर आने वाली घटना को अपनी आंखों के सामने सच होते हुए देखने वाले लोग अब भी यह मानने को तैयार नहीं थे कि अंतरराष्ट्रीय (International) क्रिकेट में कोई बल्लेबाज 100 शतको (Centuries) तक पहुंच सकता है।
ऐसे में साल 1989 में सोलह साल का एक लड़का पाकिस्तान के खिलाफ अपना पहला टेस्ट मैच खेलने मैदान पर उतरता है, विव रिचर्ड्स और सुनील गावस्कर उस समय अंतरराष्ट्रीय (International) क्रिकेट में सबसे ज्यादा शतक लगाने वाले बल्लेबाज थे।
ये एक ऐसा समय था जब सुनील गावस्कर और विव रिचर्ड्स के रिकॉर्ड्स (Records) और आंकड़ों के आगे अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट ने सोचना ही बंद कर दिया था, और ऐसे में कोई यह मानने को तैयार नहीं था कि सोलह साल का जो लड़का पाकिस्तान के खिलाफ पहली बार गवास्कर के पैड पहनकर खेलने उतरा है वो आगे चलकर इस खेल के सारे कीर्तीमान (Record) अपने नाम कर लेगा।
9 अगस्त साल 1990 के दिन उस अनकही आकाशवाणी पर थोड़ा ही सही लेकिन लोगों ने भरोसा (Trust) करना शुरू कर दिया था, इंग्लैंड के खिलाफ मैनचेस्टर के मैदान पर अपने सत्रहवे (17th) जन्मदिन के कुछ ही महीनों बाद सचिन तेंदुलकर नाम के उस खिलाड़ी ने अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में अपना पहला शतक लगाया और भारतीय टीम को यह मैच ड्रा (Draw) कराने में सबसे महत्वपूर्ण (Important) भूमिका (Role) निभाई थी।
मैनचेस्टर मैच में कहने को तो एक हजार से भी ज्यादा रन बने थे लेकिन मैच के खत्म होने के अखबारों की हैडलाइन्स (Headlines) सिर्फ उस सत्रह साल के बच्चे की तारीफों से शुरू होकर उसी पर खत्म हो गई थी।
यह एक आगाज था उस दौर का जिसमें क्रिकेट ने एक बल्लेबाज को हर फेहरिस्त (List) में शामिल होते हुए देखा फिर भले ही बात किसी भी रिकॉर्ड (Record) की क्यों न हो रही हो।
नई सदी (Century) के आगाज तक आते आते सचिन तेंदुलकर को अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट समझने वाला हर शख्स The new big thing मानने को तैयार हो गया था।

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10 दिसंबर साल 2005 सचिन तेंदुलकर ने सुनील गावस्कर के टेस्ट क्रिकेट में सबसे ज्यादा 34 शतकों के रिकॉर्ड को श्रीलंका के खिलाफ तोड़कर एक नई पारी को शुरू करने की तरफ कदम बढ़ा दिए थे।
संयोग की बात यह थी कि जब सचिन ने यह कीर्तिमान (Record) अपने नाम किया तो सुनील गावस्कर वहां मौजूद थे जिन्होंने अपने टेस्ट करियर का आखिरी शतक भी श्रीलंका के खिलाफ ही लगाया था, यानी कि भारतीय क्रिकेट की पिछली पीढ़ी ने जहां सफर खत्म किया था अगली पीढ़ी ने वहीं से इसको आगे बढ़ाया और देखते ही देखते यह सफर इतना आगे निकल गया कि अब तक उस डोर (Cord) का आखिरी सिरा कोई भी पकड़ नहीं पाया है।
साल 2003 विश्व (World) कप के बाद खराब प्रदर्शन से जूझ रहे सचिन ने अगले विश्वकप (World Cup) की शर्मनाक हार के बाद अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट को अलविदा कहने का मन बना लिया था लेकिन फिर विव रिचर्ड्स के फोन कोल और अपने भाई के मनाने पर सचिन ने करियर (Career) को जारी रखने का फैसला किया।
इस फैसले के बाद सचिन लगभग हर सीरीज (Series) में एक बेहतरीन अंदाज में नजर आए, दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ वनडे (Oneday) क्रिकेट इतिहास का सबसे बड़ा स्कोर (Score) नाबाद (Unbeaten) 200 से लेकर आस्ट्रेलिया के खिलाफ हार के पलड़े में आई अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट की सबसे महानतम (Greatest) पारी के अलावा भी सचिन ने अगले चार सालों में क्रिकेट प्रशंसकों (Fans) के सामने अपनी मास्टर (Master) क्लास के शानदार प्रदर्शन पेश किए थे।
2 जनवरी साल 2011 को सचिन तेंदुलकर ने टेस्ट क्रिकेट में अपने खाते के 51 शतक पुरे कर लिए थे, साथ ही वनडे क्रिकेट में 46 शतकों के साथ यह खिलाड़ी अपने ओजस्वी (Vigorous) करियर में आखिरी बार वर्ल्ड कप टूर्नामेंट (Tournament) खेलने उतरा था।
अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट कभी जिस आंकड़े को असम्भव मानकर चल रही थी उस एक असम्भव आंकड़े से अब मुम्बई से आया एक लड़का सिर्फ तीन कदम दूर था।
27 फरवरी साल 2011 के दिन सचिन ने अपने आखिरी विश्व (World) कप टूर्नामेंट में इंग्लैंड के खिलाफ पहला शतक लगाया, आंकड़ों (Statics) का फासला धीरे-धीरे कम हो रहा था और भारत के अलावा विश्व (World) भर में बैठे क्रिकेट प्रशंसक यह मानने लगे थे कि सचिन का सौं वां शतक भी इस विश्व कप में ही आ जायेगा।
यह उम्मीद तब और भी रौशन हो गई जब सचिन तेंदुलकर ने दक्षिण (South) अफ्रीका के खिलाफ हुए विश्व कप मैच में 12 मार्च 2011 के दिन अपना 99th शतक भी पुरा कर लिया था, आस्ट्रेलिया के खिलाफ सचिन ने अपने करियर (Career) में सबसे ज्यादा शतक लगाये है और इस तरह जब आस्ट्रेलिया क्वार्टर (Quarter) फाइनल में भारत के सामने आया तो अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट से जुड़े सभी लोग तैयार थे उस जादुई लम्हे को अपनी आंखों से देखने के लिए, न्यूज चैनल्स से लेकर चाय की टपरी पर बैठा हर कोई एक शतक का इंतजार कर रहा था।

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लेकिन एंड्रयू टेट की गेंद पर सचिन 53 रन बनाकर आउट (Out) हो गए, युवराज सिंह की के करिश्माई प्रदर्शन की बदौलत भारत का सफर विश्व (World) कप में चलता रहा और साथ में यह उम्मीद भी चलती रही कि मास्टर ब्लास्टर (Blockster) इस टुर्नामेंट में ही सौ शतक पुरा करेंगे।
अब बारी सेमीफाइनल (Semifinal) की थी और सामना पाकिस्तान जैसे बेहतरीन प्रतिद्वंद्वी से होने वाला था, भारतीय टीम पहले बल्लेबाजी (Batsman) करने उतरी और सचिन सहवाग की हरफनमौला (All Rounder) जोड़ी के मैदान पर कदम रखते ही लोग टेलीविजन (Television) और रेडियो (Radio) से चिपक गये,मौका शानदार था, पाकिस्तान जैसी टीम के खिलाफ अपने देश के प्रधानमंत्री (Prime minister) की आंखों के सामने करोड़ों लोगों की आशाओं (Hopes) को पुरा करने का अवसर फिर शायद सचिन को नहीं मिलने वाला था और इसी को ध्यान में रखते हुए सचिन ने पारी की शुरुआत करी लेकिन सेमीफाइनल (Semi Final) का प्रेशर (Pressure) और पाकिस्तान से ना हारने की बात पता नहीं कारण क्या था जिसके चलते सचिन इस मैच में अपने रंग में बिल्कुल भी नजर नहीं आए, एक से ज्यादा जीवनदान की बदौलत सचिन ने पचास का आंकड़ा पार किया लेकिन शतक (Century) के बिल्कुल पास आकर आउट हो गए।
मैच के बाद क्रिकेट दिग्गजों (Giants) ने भी कहा कि सचिन का आज का खेल शतकीय पारी डिजर्व (Deserb) नहीं करता था।
पाकिस्तान को हराने (Defeat) के बाद अब सचिन तेंदुलकर भी अपनी जिंदगी के सबसे बड़े सपने को साकार करने के बिल्कुल करीब पहुंच गए थे, दुसरी तरफ एक बार फिर से लोगों ने आशाओं और उम्मीदों का बाजार यह कहते हुए तैयार कर लिया था कि शायद भगवान ने इस बड़े मौके के लिए यह शतक बचाये रखा हुआ था, सचिन पक्का अपने घर में श्रीलंका के खिलाफ शतक लगायेगा।
लेकिन मलिंगा की एक गेंद ने पुरे भारत को सन्न कर दिया, सांगाकारा को कैच थमाकर पवेलियन लौट रहे सचिन को देखते हुए किसी के मन यह बात आई ही नहीं कि यह इस महान बल्लेबाज की विश्व (World) कप टूर्नामेंट में आखिरी पारी भी थी।

सचिन का सपना तो पुरा हो गया लेकिन इंतजार अब भी बना हुआ था, और यह इंतजार और भी लंबा हो गया जब सचिन ने वेस्टइंडीज दौरे से खुद का नाम वापस ले लिया था।
विश्व कप फाइनल में भी जब सचिन जल्दी आउट हो गए तो उनके एक बड़े प्रशंसक (Fan) सुजय ने मैच खत्म होने के बाद फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली थी।

Fans Commits Suicide

विश्व कप के बाद सचिन की अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में वापसी इंग्लैंड दौरे से होने वाली थी जिसका पहला मैच लोर्डस क्रिकेट ग्राउंड (Ground) पर होने वाला था, अपना नाम ऐतिहासिक ओनर बोर्ड (Board) पर सौंवे (Serve) शतक के साथ दर्ज करने से अच्छा काम और क्या हो सकता था और ऊपर से यह टेस्ट अंतरराष्ट्रीय (International) क्रिकेट इतिहास का 2000 वां टेस्ट मैच था, यानि की स्टेज बिल्कुल तैयार था, लोग तैयार थे और सचिन के लिए भी अब सौ शतक पुरे करने वाली बात परेशानी बनती जा रही थी।
वायरल (Viral) फीवर (Fever) से जूझ रहे सचिन का बल्ला इस टेस्ट मैच से लेकर सीरीज (Series) के बाकि मैचों में भी खामोश रहा, एक बार फिर कुछ भी हाथ नहीं आया।
इसके बाद वेस्टइंडीज के खिलाफ दिल्ली टेस्ट मैच में भी अर्धशतक (Half Century) के साथ एक बार उम्मीदें बंधी लेकिन 76 के स्कोर पर आकर टूट गई, इंतजार लंबा हो रहा था, सचिन अपने करियर के आखिरी दौर में थे, रिटायरमेंट की तलवार भी लटक रही थी लेकिन वो अपने चाहने वालों को गमगीन छोड़कर नहीं जाना चाहते थे।

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आगे मुम्बई टेस्ट में भी सचिन सिर्फ नौ रनों से इंतजार को आज में बदलने से चूक गए, अगला दौरा आस्ट्रेलियाई धरती पर था जहां से सचिन को दुनिया ने एक उभरते हुए सुपरस्टार (Super Star) के तौर पर जानना शुरू किया था, लेकिन इस बार पहले टेस्ट में 73 और फिर सिडनी में 80 तक आकर भी शतक नहीं हो पाया।
आखिरकार 16 मार्च 2012 का दिन आया, एशिया कप में भारतीय टीम का मुकाबला मीरपुर के मैदान पर बांग्लादेश के खिलाफ हुआ जिसमें भारत पहले बल्लेबाजी करने उतरी, सचिन ने अर्धशतक के बाद खुद को समय दिया और अपनी पारी को बिल्कुल धीरे धीरे आगे बढ़ाते रहे और फिर अपनी पारी की 138 वीं गेंद पर एक रन के साथ सचिन ने सौंवी (100th) बार शतकीय पारी के बाद बल्ले को हवा में उठाया, सचिन के चेहरे पर रिलीफ़ साफ नजर आ रहा था।
भारत यह मैच हार गई और फिर अगले मुकाबले में भारत को पाकिस्तान के खिलाफ खेलना था, सचिन तेंदुलकर के करियर का यह आखिरी वनडे मैच था जिसमें विराट कोहली ने 183 रनों की बेमिसाल पारी खेलकर पुरे देश की तरफ से मास्टर को यादगार विदाई (Fare well) दी, सुनील गावस्कर के हाथों से निकली जिस बागडोर (Reins) को सचिन ने संभाला था उस पर से जब सचिन की पकड़ ढीली होने लगी तो विराट कोहली की यह पारी अपने आइडल को भरोसा देने के लिए काफी थी कि उनके बाद भी कोई है जो लेगेसी को आगे बढ़ाने का हौसला रखता है और विराट आज तक वो भरोसा बनाए रखें हुए हैं।
सचिन तेंदुलकर ने अपने टेस्ट करियर में कुल 51 और वनडे क्रिकेट में 49 शतक लगाये और इन सभी मैचों में भारत ने 53 मैचों में जीत हासिल करी थी।
सचिन ने साल 2013 में अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट को अलविदा कह दिया था लेकिन उनकी जगह और उनकी यादें शायद कभी भी किसी क्रिकेट प्रेमी के दिल से नहीं जायेगी।
Thank you Sachin आपकी आयु लंबी हो इसी दुआ के साथ आज की इस पोस्ट में बस इतना ही मिलते हैं आपसे अगले पोस्ट में तब तक के लिए नमस्कार।

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