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एशिया कप का इतिहास | History Of Asia Cup

क्रिकेट एक ऐसा खेल ,जिसका जन्मदाता (Birth Giver) तो इंग्लैंड था,लेकिन इसे सबसे ज्यादा डोमिनेट (Dominate) ऑस्ट्रेलिया ने किया। हां वो बात और है कि दुनियां (World) का सबसे अमीर क्रिकेट (Cricket) बोर्ड (Board) आज भारत ही है। लेकिन एक टाइम था जब हमें कोई पूछता तक नहीं था। क्रिकेट की दुनिया में हमें कोई जानता नहीं था। साल दर साल,ये खेल दुनियाभर में बड़ा लोकप्रिय हो (Popular) ता चला, जहां दुनियाभर के कोने कोने में क्रिकेट का क्रेज़ (Craze) खूब बढ़ता चला गया। लेकिन जो प्रोफेशनलिज्म (Professionalism), जो एक सिस्टमेटीक (Systematic) एप्रोच (Approach) था, वो यूरोपियन ,अमेरिकन और अमेरिकन देशों (Country) में ही था। इन कॉन्टिनेंट (Continent) में क्रिकेट काफी ही तगड़ा था।लेकिन एशिया (Asia) में, क्रिकेट उतना ऑर्गनाइजड (Organised) नहीं था। और न ही एशियाई (Asian) देशों को क्रिकेट की दुनियां में कोई खास नाम या रिस्पेक्ट (Respect) मिलता।क्योंकि न ही तो एशिया में रिक्वायर्ड (Records) इंफ्रास्ट्रक्चर (Infrastructure)  था,और न ही पर्याप्त फंड्स, ऊपर से इंटरनेशनल (International) क्रिकेट में हमारा परफार्मेंस (Performance) भी बेहद घटिया। अब ऐसे में आपके मन में ये सवाल (Question) तो आता ही होगा कि जब हमारे अल्ले पल्ले कुछ था ही नहीं तो फिर स्पेशल (Special) एशिया (Asia) का टूर्नामेंट (Tournament) एशिया कप (Cup) कैसे शुरु हुआ। आखिर क्यों कोई ऑस्ट्रेलिया कप, यूरोप कप या अमेरिका, अफ्रीका कप नहीं है। तो दोस्तों इसकी भी बड़ी दिलचसप (Interesting) कहानी है, ये कहानी है एक जुगाड़ की, जिसने हमारे स्वाभिमान (Self Respect) को विश्व (World) के सामने ला दिया। जिसने इंडिया पाकिस्तान को एक कर दिया था। जिसने इंग्लैंड की मोनोपॉली, साथ ही ऑस्ट्रेलिया और वेस्टइंडीज जैसे बिग (Big) बुल के घमंड को चूर चूर कर दिया था। तो आज के इस खास पोस्ट में हम आपको गाथा सुनाएंगे एशिया कप की, इसमें भारतीय क्रिकेट के रोल की, किसी समय एक गुमनाम बोर्ड से आज क्रिकेट का केंद्र बनने तक का सफ़र।

BCCI

तो पहले 2 वर्ल्ड कप में हमने साफ़ साफ़ देख लिया था एशियाई टीमों का हाल। वहां प्लेऑफस (Play Offs) में ये बड़े देश ही पहुंचते और पहले 2 वर्ल्ड कप जीतकर वेस्टइंडीज तो एक छत्र राज कर ही रहा था। साथ ही होस्ट इंग्लैंड, लगातार हर बार प्लेऑफ् (Play Off) में पहुंच अपनी मोनोपॉली कायम किए हुए था।लेकिन 1983 में वो हुआ, जिसने दुनिया को हिलाकर रख दिया। साथ ही सबको ये साबित कर दिया कि हम किसी से कम नहीं। न केवल इंडिया, बल्कि पूरे एशिया को भी दम खम वाला क्रिकेट (Cricket) खेलना आता है। लेकिन दरासल एशिया कप की कहानी इस फाइनल (Final) से पहले ही शुरू हो चुकी थी।

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तो बात है इंडिया वेस्टइंडीज के बीच हुए 1983 के उस फाइनल से पहले की शाम की। जब इस यादगार मोमेंट (Moment) को हर कोई एंजॉय (Enjoy) कर अपनी आंखो में हमेशा के लिए कैप्चर (Capture) करना चाहता था। ऐसे में भारत के यूनियन (Union) एजुकेशन (Eduction) मिनिस्टर (Minister) सिद्धार्थ शंकर राए ने अपने दोस्त और तब के आईसीसी (ICC) मेंबर (Member),बीसीसीआई के प्रेजिडेंट (Predict) एन के पी साल्वे को कॉल (Call) कर 2 टिकेट मांगी। अपने दोस्त की इस इच्छा को पूरा करने के लिए साल्वे साहब ने ऑर्गेनाइजरस (Organisation) से 2 टिकेट की मांग की। लेकिन अपनी इंग्लैंड के फाइनल (Final) में न पहुंचने की फ्रस्टेशन (Frustration) से वे उन्होंने साफ़ मना कर दिया कि ये 2 टिकेट्स तो नहीं मिलेंगी। अब साल्वे साहब को बुरा इस बात का नहीं लगा कि उन्हें टिकेट नहीं मिली, बल्कि उन्हें वो एरोगैंस, वो लहज़ा पसंद नहीं आया। वो ऑफिशियल्स ख़ुद भी मैच देखने नहीं गए और हाफ स्टैंड्स (Stands) खाली थे। खैर, वो इंडिया, जो पिछले 2 वर्ल्ड कप में सिर्फ एक मैच (Match) जीत (Win) पाया था। आज वह विश्व विजेता बना।और तभी साल्वे ने ठान लिया कि अब इंग्लैंड की कतई नहीं चलेगी। अब हम वर्ल्ड कप भारत में कराएंगे। लेकिन यहां एक मसला था, ऑस्ट्रेलिया और इंग्लैंड के पास थी वेटो पावर। जो किसी भी प्रपोजल (Proposal) को रिजेक्ट (Reject) कर सकते थे। अब अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता। यहां ज़रूरत थी पूरे एशिया को एकजुट (Educate) होने की।लेकिन उसके बाद भी इस पर हरी झंडी लग जाती,इसकी कोई गरंटी (Guarantee) नही थी।

एशिया कप

तो 26 जून 1983 को, वर्ल्ड कप फाइनल के ठीक अगले दिन लंदन में लंच के दौरान साल्वे की मुलाकात होती है पाकिस्तान के एयर चीफ मार्शल नूर खान से हुई। जहां उन्होंने खान साहब को सारी बात बताई और उस यूनिटी (Unity) के लिए पाकिस्तान से समर्थन (Support) मांगा। लेकिन सिर्फ इन दोनों के साथ होने से ये पॉसिबल (Possible) नहीं था। तो साल्वे ने एशिया की सभी टीमों को एकजुट करने के लिए कदम बढ़ाए। साथ ही बीसीसीआई (BCCI) की सपोर्ट (Support)  में देश (Country) की कुछ जानी मानी हस्तियां, बिजनेस टायकून (Tycoon) भी साथ आए और उसी साल लाहौर में मीटिंग (Meeting)  होती है। और यहाँ जन्म होता है एशियन क्रिकेट काउंसिल (Council) का। जिसके पहले प्रेजिडेंट बने साल्वे।आम तौर पर कहूं तो ये एशिया वालों की लोकल (Local) आईसीसी थी जो अब इंटरनेशनल (International) मैच ऑर्गेनाइज (Organize) करने वाली थी। अब इस मीटिंग में सभी बातें रखी गई और एट लास्ट जगमोहन डालमिया ने आईसीसी के सामने रखा जाने वाला वो प्रपोजल तैयार किया, जिसमें सब कुछ साफ़ लिखा था कि वर्ल्ड कप इंग्लैंड से बाहर आए और बाकि देशों (Country) को भी होस्टिंग (Hosting) राइट्स (Rights) मिलें।लेकिन जिसका डर था, वही हुआ। आईसीसी ने इस प्रस्ताव को ये कहकर खारिज (Reject) कर दिया कि सबकॉन्टिनेंट (Subcontinent) में लाइट फैसिलिटी (Facility) अच्छी नहीं है,60 ओवर (Over) के मैच पोसिबल (Possible) नहीं।

इस लाइट प्रॉब्लम की वजह से ही अभी तक सबकॉन्टिनेंट में 26,या 40 ओवर वाले मैच होते थे। तो साल्वे ने यहां बीच का रास्ता निकालने के लिए लगाया एक कमाल का जुगाड़। कि क्यों ना, हम एक ऐसे टूर्नामेंट का आयोजन (Organise) करें, जिसका नाम होगा एशिया कप,और यहाँ एशिया की सभी क्रिकेट टीम पार्टिसिपेट (Participate) भी कर पाएंगी। और ये होगा हमारा ज़ोरदार जवाब।लेकिन सिर्फ़ स्टार्ट अप के ख़्वाब (Dream) देखने से ही तो वे पूरे नहीं हो जाते न। उनमें इन्वेस्ट (Event) करने के लिए भी कुछ धनराशि चाहिए होती है। और वो हमारे पास थी नहीं। तो ऐसे में दिल्ली में मीटिंग होती है, जहां आईसीसी के एसोसिएट (Associate) मेंबर्स (Members) को भी बुलाया जाता है। और उस मीटिंग के चीफ़ (Chief) गेस्ट थे, शारजाह के शेख बुखातीर। बुखातिर क्रिकेट के बड़े शौकीन थे जो कि शारजाह में ढेरों अनओर्गनाइसड मैच कराया करते थे। बस मिल गया इंवेस्टर, अब उन्हें इन मैचों में फंडिंग करनी थी। साथ ही एक परफैक्ट वेन्यू भी मिला शारजाह क्रिकेट ग्राउंड (Ground), जो कि आज दुनिया के जाना माना क्रिकेट स्टेडियम (Stadium) है।

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1984 एशिया कप

तो बस स्टेज सेट था,1984 में एशिया (Asia) कप का पहला सीज़न (Season) इंडिया,पाकिस्तान और श्रीलंका में खेला जाना था। जहां विनिंग (Winning) टीम को 50,000 us डॉलर (Dollar), रनर अप को 20 हज़ार us डॉलर,की भारी भरकम रकम मिलने वाली थी। अब इंडिया के ऊपर डबल प्रेशर (Pressure) था।पहला, दुनिया को ये प्रूफ (Proof) करने का, कि वर्ल्ड कप विन (Win) कोई तुक्का नहीं थी। दूसरा,ये साबित करना कि हम भी किसी से कम नहीं। न अपनी गेम में, न ऑर्गेनाइज़िंग (Organizing) में। हमारे कप्तान (Captain) कपिल देव इस टूर्नामेंट में इंजरी (Injury)  के चलते हिस्सा नहीं ले पाए और कप्तान सुनिल गावस्कर की कप्तानी में हम एशिया कप जीते। जिसके बाद आईसीसी को भी एन के पी साल्वे की ज़िद्द के आगे झुकना पड़ा। और अगला वर्ल्ड कप 1987 में इंडिया (India) और पाकिस्तान की मेजबानी में ही हुआ। और आज भी पहली बार 100% मैचेस इंडिया में ही होंगे वर्ल्ड कप के। यहां से एक कांगला क्रिकेट बोर्ड दुनिया को सबसे अमीर और नामी क्रिकेट बॉडी बनकर उभरा। और आज एशिया (Asia) कप की हम सबसे सफल (Success) टीम हैं जिसने सबसे ज्यादा 7 बार ये टूर्नामेंट जीता। एशिया कप न केवल इंडियन क्रिकेट अपितु समस्त एशियन टीमों के लिए एक कल्ट है जो कि हर 2 साल में एक बार आता है। लेकिन ये पहला मौका है जब पिछले साल टी 20 के बाद,अब ओडीआई (ODI) फॉर्मेट में बैक टू बैक एशिया कप खेला जाएगा, जिसमें नेपाल भी पहली बार खेलेगा।
और ताजुब की बात तो ये है कि जिस इंडियन टीम के पास कभी फंड्स (Funds) भी नहीं होते थे,आज वही इंडियन क्रिकेट बोर्ड एशिया कप से एक रूपया भी नहीं कमाता। बल्कि उस पैसे को एसोसिएट (Associate) और बैकवर्ड क्रिकेट टीमों के विकास (Develop) पर ही खर्च करता है। बोलिए, है न कितनी गर्व की बात। कॉमेंट करके बताइएगा कि आपको ये फैक्ट (Fact) पहले पता था?
तो दोस्तों,कुछ इस तरह जन्म हुआ एशिया कप का। ये थी कहानी एशिया के सबसे बड़े टूर्नामेंट की। जिसने भारतीय क्रिकेट की कायापाल्ट करके रख दी। आज भले ही साल्वे जी इस दुनिया में नहीं है,लेकिन उनका ये contribution हमेशा याद किया जाएगा।

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