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देवराहा बाबा : एक चमत्कारी सन्यासी के जीवन से जुड़े रहस्य

देवराहा बाबा एक चमत्कारी सन्यासी की कहानी
एक चमत्कारी सन्यासी की कहानी_क्या था 900 साल जीवन और सिद्धियों का रहस्य

देवराहा बाबा :  पृथ्वी पर जब से सभ्यता का जन्म हुआ तब से ही सनातन धर्म का भी उदय हो गया या यूँ कहें सभ्यता का विकास ही सनातन धर्म के गर्भ से हुआ है तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। आरंभ से ही हिंदू सनातन धर्म में ईश्वर की भक्ति के साथ-साथ ऋषियों-मुनियों का भी उच्च स्थान रहा है। प्राचीन काल से अब तक भारत में ऐसे कई दिव्य संतों ने जन्म लिया है और इस परंपरा को जीवित रखा है, जिनके ज्ञान और दिव्यता से सनातन धर्म का स्थान आज भी अपने स्थान पर सर्वोच्च बना हुआ है। आज के वीडियो में हम एक ऐसे ही महान संत, सिद्ध पुरुष, कर्मयोगी के बारे में विस्तार से चर्चा करने जा रहे हैं, जिनकी ख्याति देश ही नहीं विदेशों तक फैली हुई थी और उनका आशीर्वाद पाने के लिए अंग्रेज तक उनके आश्रम पर आते थे। और वो बाबा हैं देवरिया, उत्तर प्रदेश के सिद्ध पुरुष व कर्मठ योगी देवरहा बाबा, जिनकी आयु कितनी थी आजतक कोई नहीं बता सका है। आख़िर कौन थे देवरहा बाबा जिनके चमत्कारों की चर्चा आज भी की जाती है? और क्या वाकई में उनकी आयू कई सौ साल की थी? ऐसे ही कई प्रश्नों के उत्तर लेकर हम आये हैं चमत्कारी देवरहा बाबा की पूरी कहानी के साथ।

 

“एक लकड़ी ह्रदय को मानो दूसर राम नाम पहिचानो

राम नाम नित उर पे मारो ब्रह्म दिखे संशय न जानो।”

 

यह कहना था भगवान राम के परम भक्त देवरहा बाबा का।  सदा राम का नाम लेने बाबा अपने भक्तो व अनुयायियों को भी राम मंत्र की ही दीक्षा दिया करते थे। देवरहा बाबा उत्तर प्रदेश के देवरिया जिले के थे इसी कारण उनका नाम देवरहा बाबा पड़ा। मान्यता है कि उन्होंने हिमालय में अनेक वर्षों तक अज्ञात रूप में रहकर उन्होंने साधना की थी जिसके पश्चात वे उत्तर प्रदेश के देवरिया नामक स्थान पर पहुंचे थे जहाँ वर्षों तक उन्होंने निवास किया था और वहीं से मिली प्रसिद्धि के कारण उनका नाम “देवरहा बाबा” पड़ गया। बाबा ने देवरिया के मइल गाँव जो अब छोटे शहर के रूप में जाना जाता है, वहाँ से कुछ दूर पर बहने वाली सरयू नदी के किनारे को ही अपनी साधना स्थली बना ली थी और वहीं एक मचान पर अपना डेरा बना लिया था। चूँकि बाबा ने भारत में कई स्थानों का दौरा किया था इसलिए विभिन्न राज्यों में उन्हें अलग-अलग नामों से जाना जाता था। ओडिशा के गंजम में स्थित पूर्णेश्वरी मां तारा तारिणी शक्ति पीठ के स्थानीय लोगों ने उन्हें चमत्कारी बाबा के नाम से संबोधित किया करते थे। आज भी मां तारा तारिणी शक्ति पीठ के पुजारी मां के पीठ की यात्रा के दौरान बाबा के चमत्कारों को याद करते हैं।

देवराहा बाबा
देवराहा बाबा

मन की बात जान लेते थे बाबा-

बाबा के अनुयायियों का मानना है कि बाबा अपनी साधना शक्ति से बिना कुछ पूछे ही हर किसी के बारे में जान लेना। सरल और सहज स्वभाव के देवरहा बाबा के पास ज्ञान का भण्डार था। उनके चमत्कारों की कहानियां सुन देश-दुनिया के बड़ी-बड़ी हस्तियां भी उनके दर्शन करने सरयू नदी के किनारे स्थित बाबा के आश्रम आती थीं जहाँ बने एक मचान से वे अपने भक्तों को दर्शन देते थे। ऐसी मान्यता है कि बाबा के आशीर्वाद से बड़े से बड़ा रोग दूर हो जाता था और बाबा देखते ही समझ जाते थे कि सामने वाले को किस बात की समस्या है। बाबा की दिव्यदृष्ठि, कड़क आवाज, दिल खोल कर हंसना, सबसे बातें करना बाबा की विशेषता थी। कहते हैं कि बाबा कि याददाश्त इतनी तेज थी कि दशकों बाद मिलने पर भी वे व्यक्ति के नाम के साथ-साथ उसके दादा-परदादा तक का नाम व इतिहास तक बता देते थे।

बाबा को आयु, योग, ध्यान और आशीर्वाद, वरदान देने की क्षमता के कारण लोग उन्हें सिद्ध संत कहते थे। देवरहा बाबा महर्षि पतंजलि द्वारा प्रतिपादित अष्टांग योग में भी पारंगत थे। उन्होंने ने अपने शिष्यों को हठयोग की दसों मुद्राओं का प्रशिक्षण दिया था। बाबा जब ध्यान योग, नाद योग, लय योग, प्राणायाम, त्राटक, ध्यान, धारणा, समाधि आदि की साधन पद्धतियों के बारे में बताया करते तो बड़े-बड़े योगाचार्य व धर्माचार्य उनके इस योग ज्ञान के सामने नतमस्तक हो जाते थे।

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जन्म एक रहस्य-

देवहरा बाबा का जन्म कब हुआ, यह कभी कोई नहीं जान पाया परन्तु उनकी आयू सैकड़ों वर्ष की थी इसका दावा हर किसी ने किया है। वर्षों तक बाबा की सेवा में समय व्यतीत करने वाले मार्कण्डेय सिंह के अनुसार, बाबा का जन्म किसी महिला के गर्भ से नहीं हुआ था बल्कि बाबा पानी से अवतरित हुए थे। बाबा के संपूर्ण जीवन व उनकी आयु को लेकर लोगों अलग-अलग मत है। कुछ लोग उनका जीवन 250 साल तो कुछ लोग 500 साल मानते हैं। उनके अनुयायियों का तो यह मानना है कि बाबा लगभग 900 साल तक जीवित रहे थे। बाबा की लंबी आयु का सबसे बड़ा उदाहरण हैं भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद, जिन्होंने बाबा को अपने बाल्यावस्था में देखा था। उनके अनुसार भी गणना की जाये तो बाबा की आयु बहुत अधिक थी। इलाहाबाद हाईकोर्ट के एक वकील ने भी दावा किया था कि उसके परिवार की 7 पीढिय़ों ने देवहरा बाबा को देखा है। उनके अनुसार देवहरा बाबा ने अपनी देह त्यागने के 5 साल पहले ही मृत्यु का समय बता दिया था।

19 जून 1990 को योगिनी एकादशी के दिन अपना देह त्यागने वाले देवराहा बाबा का समाधी स्थल वृन्दावन में यमुना नदी के पार में यमुना महारानी के पावन तट पर स्थित है। कहा जाता है कि 19 जून 1990 में योगिनी एकादशी का दिन बहुत घने बादल छाए थे जिसके बाद अचानक तेज आंधी- तूफान के साथ मुसलाधार वर्षा होने लगी। समुद्र के समान यमुना नदी की लहरें बाबा के ऊँचे मचान तक पहुंच गयीं थीं, ऐसा लगता था जैसे भगवान स्वयं बाबा को लेने आये हों। शाम चार बजे के लगभग बाबा अपने शरीर को त्याग ब्रह्मलीन हो गए। जिसके बाद उन्हें मचान के पास ही यमुना की पवित्र धारा में जल समाधि दे दी गई।

 

पैर के अंगुठे से आशीर्वाद देते जल पर चलते- 

योग के बल पर देवरहा बाबा ने अपनी भूख पर नियंत्रण कर लिया था, उन्होंने अपने पूरे जीवन कोई अन्न इत्यादि नहीं खाया, वे केवल दूध और शहद ग्रहण कर जीवित थे। इसके अलावा उन्हें श्रीफल का रस बहुत पसंद था। बाबा सबको समान समझते थे और कभी क्रोधित नहीं होते थे। दुबली-पतली काया, लंबी जटा, कंधे पर यज्ञोपवीत व कमर में मृगछाला ही पहचान थी। पूरे जीवन निर्वस्त्र रहने वाले बाबा से भक्तों का विश्वास है कि वे जल पर चलते थे, उन्हें प्लविनि सिद्धि प्राप्त थी। बाबा ने किसी भी गंतव्य स्थल पर पहुंचने के लिए कभी सवारी नहीं की। यमुना किनारे वृंदावन में बाबा आधे घंटे तक बिना सांस लिए ही पानी में रह लेने थे। वे हर साल माघ मेले में प्रयागराज जाते थे। देवरहा बाबा अपने मचान से श्रद्धालुओं को पैर के अंगूठा से आशीर्वाद देते थे। कुंभ मेले के दौरान बाबा अलग-अलग जगहों पर प्रवास किया करते थे। गंगा और यमुना तट पर बने घास-फूस के मचान पर रहकर साधना किया करते थे। वह 1-1 महीने दोनों के किनारे रहते थे। कुंभ में बाबा की लगभग 10 सालों तक सेवा करने वाले मार्कण्डेय महाराज के अनुसार, पूरे जीवन निर्वस्त्र रहने वाले बाबा धरती से 12 फुट उंचे लकड़ी से बने मचान में रहते थे और वह नीचे केवल सुबह के समय स्नान करने के लिए आते थे। कहा जाता है कि बरसात के दिनों में सरयू नदी की बाढ़ का पानी उनके मचान को छुने के बाद घटने लगता था। बाबा ने कुंभ के अतिरिक्त भगवान श्रीकृष्ण की पवित्र भूमि वृन्दावन के यमुना तट पर स्थित मचान पर भी चार वर्ष तक साधना की थी।

 

चमत्कार-

बाबा अवतारी व सिद्ध पुरुष थे, उनके चमत्कारों का कोई अंत नहीं था। जबकि उनका जीवन अत्यंत ही सरल और सौम्य था। वह फोटो कैमरे और टीवी जैसी वस्तुओं को देख अचंभित रह जाते थे। कहा जाता है कि बाबा लोगों से अपनी फोटो लेने के लिए कहा करते थे, लेकिन आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि उनका फोटो कभी बन ही नहीं पाता था। बाबा का चमत्कार इतना था कि वह न चाहें तो रिवाल्वर से गोली नहीं चलती थी। निर्जीव वस्तुओं पर नियंत्रण के साथ-साथ बाबा को जानवरों की भाषा भी समझ में आती थी। कहते हैं खतरनाक जंगली जानवारों को भी वह पल भर में नियंत्रित कर लेते थे। इतना ही नहीं बाबा पेड़ पौधों से भी बातें कर लिया करते थे।

श्रद्धालुओं के अनुसार देवरहा बाबा अपने पास आने वाले प्रत्येक व्यक्ति से बड़े प्रेम से मिलते थे और सबको कुछ न कुछ प्रसाद अवश्य देते थे। प्रसाद देने के लिए बाबा अपना हाथ ऐसे ही मचान के खाली भाग में रखते थे और उनके हाथ में फल, मेवे या कुछ अन्य खाद्य पदार्थ स्वयं ही आ जाते थे जबकि मचान पर ऐसी कोई भी वस्तु नहीं रहती थी और न ही वहाँ कोई दूसरा व्यक्ति ही होता था। श्रद्धालुओं से लेकर वहाँ उपस्थित सभी इस बात पर आश्चर्य करते कि आख़िर यह प्रसाद बाबा के हाथ में कैसे और कहाँ से आ जाता है। इसके अलावा मान्यता यह भी है कि, बाबा खेचरी मुद्रा के कारण बिना किसी साधन के कभी भी कहीं भी कभी भी आ और जा सकते थे। बाबा की महिमा कुछ ऐसी थी कि उनके आस-पास उगने वाले बबूल के पेड़ों में कांटे नहीं होते थे। बल्कि उनमें भी सुंगध का ही वास होता था।

 

अंग्रेज भी थे बाबा के भक्त-

देवरहा बाबा की प्रसिद्धि इतनी अधिक थी कि उनका दर्शन करने के लिए पूर्व राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद, पं मदन मोहन मालवीय, पुरुषोत्तमदास टंडन,

 

पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू, इंदिरा गांधी, अटल बिहारी बाजपेयी, लालू प्रसाद यादव, मुलायम सिंह यादव सहित विदेशों से भी लोग उनके आश्रम आते रहते थे।

 

बाबा की मान्यता कितनी थी इसका अनुमान आप इसी से लगा सकते हैं कि सन 1911 में जॉर्ज पंचम तक देवरहा बाबा का आशीर्वाद लेने उनके आश्रम आए थे। कहते हैं कि जॉर्ज को उनके भाई ने देवरहा बाबा के बारे में बताया था उन्होंने जॉर्ज से कहा था कि अगर भारत जाओ तो किसी और से मिलो या न मिलो, देवरहा बाबा से अवश्य मिलना वह एक सिद्ध पुरुष हैं। कहा जाता है कि जब भारत के प्रथम राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद जी को बचपन में उनकी मां देवरहा बाबा के आश्रम ले गईं थीं, तभी बाबा ने भविष्यवाणी कर कह दिया था कि एक दिन यह बच्चा बहुत ऊंचे सिंहासन पर बैठेगा। बाद में राष्ट्रपति बनने पर डॉ राजेंद्र प्रसाद ने भी अपनी ओर से बाबा को एक पत्र लिखकर इस बात कि कृतज्ञता प्रकट की थी।

 

देश में आपातकाल के बाद जब वर्ष 1977 में चुनाव हुआ तो इंदिरा गांधी बुरी तरह हार गईं थीं, जिसके बाद इंदिरा गांधी भी देवरहा बाबा का आशीर्वाद लेने उनके आश्रम गईं थीं। कहा जाता है कि बाबा ने इंदिरा गांधी को हाथ का पंजा उठाकर आशीर्वाद दिया था। जिसके बाद से ही इंदिरा गांधी ने पार्टी का चुनाव चिन्ह हाथ का पंजा कर दिया था। बाबा के आशीर्वाद के बाद पंजे के निशान पर ही 1980 में इंदिरा गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस पार्टी ने प्रचंड जीत हासिल की थी और वे देश की प्रधानमंत्री बनीं थी।

 

चमत्कार से राजीव गांधी की यात्रा स्थगित-

बाबा के चमत्कार से जुड़ी एक घटना वर्ष 1987 के जून माह में घटी थी जो पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी जी से जुड़ी हुई है। उस समय देवरहा बाबा का डेरा वृंदावन में यमुना पार क्षेत्र में जमा हुआ था। जब प्रधानमंत्री राजीव गांधी को इसका पता चला तो वे बाबा के दर्शन करने को लेकर आतुर हो उठे। जिसके बाद उनके हेलीकाप्टर से वहाँ जाने की तैयारियां शुरू हो गयीं और अधिकारियों ने सुरक्षा को देखते हुये हैलीपैड बनने वाले स्थान के समीप लगे एक बबूल के पेड़ की डाल काटने के निर्देश दिए। यह सुन कर पेड़ पौधों से प्रेम करने वाले देवरहा बाबा बहुत आग बबूला हुए। उन्होंने स्पष्ट शब्दों में अधिकारियों को बोल दिया,

“तुम यहां अपने प्रधानमंत्री को लाओगे, उनकी प्रशंसा पाओगे। उनका नाम भी होगा कि वह साधु-संतों के पास जाते हैं, लेकिन इसका दंड तो बेचारे पेड़ को भुगतना पड़ेगा। वह मुझसे इस बारे में पूछेगा तो मैं उसे क्या उत्तर दूंगा? यह पेड़ होगा तुम्हारी दृष्टि में, परन्तु मेरा तो यह सबसे पुराना साथी है। दिन-रात मुझसे बतियाता है। यह पेड़ नहीं काटा जाएगा।”

इसके बाद बाबा ने जब अधिकारियों को धर्मसंकट में फंसा देखकर उन्हें सांत्वना देते हुए कहा कि चिंता मत करो, अब प्रधानमंत्री का कार्यक्रम टल जाएगा। मैं अभी स्थगित कर देता हूँ उनकी यह यात्रा। आश्चर्य की बात कि दो घंटे बाद ही पीएम ऑफिस से संदेश आ गया कि उनका वहाँ आने का कार्यक्रम स्थगित हो गया है। हालांकि कुछ सप्ताह के बाद ही राजीव गांधी वहाँ बाबा के दर्शन करने के लिए आए और इस बार पेड़ काटने की कोई बात नहीं हुई।

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