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बॉलीवुड आइकोनिक विलन मोहन जोशी बायोग्राफी |

आज के दौर में कोई भी ऐक्टर नायक और खलनायक (Villain) दोनों ही किरदारों को बेधड़क (Fearless) निभा लेता है लेकिन कुछ दशकों (Decades) पहले तक ऐसा बिल्कुल भी नहीं था तब न ऐक्टर ऐसा रिस्क लेते थे न ही मेकर्स। जिसकी इमेज नायक की है वो नायक और जिसकी खलनायक की है वो नकारात्मक (Negative) किरदार ही निभाता था। एक-दो फ़िल्मों में किसी ऐक्टर ने निगेटिव किरदार निभाया भी तो वो या तो डबल रोल में होता था या अंत में उसे सुधरा हुआ दिखा दिया जाता और उसके ही हाथों असल विलेन का अंत दिखाया जाता। नायक और खलनायक के उसी दौर में अचानक एक ऐक्टर की ऐंट्री हुई जो आते ही मेकर्स की पहली पसंद बन गया और बॉलीवुड को मिल गया एक नया विलेन। और उस ऐक्टर का नाम है मोहन जोशी। लगभग दो दशकों तक हिंदी फ़िल्मों में बतौर (As) विलेन अपनी धाक (Fear) जमाये रखनेवाले मोहन जोशी ने अचानक हिंदी फ़िल्मों से दूरी बना ली, इसके पीछे क्या वज़ह है और आजकल क्या कर रहे हैं मनोज जोशी? जानेंगे आज के पोस्ट में साथ ही यह भी जानेंगे उनकी लाइफ और करियर से जुड़ी ख़ास बातों के बारे में भी इसलिए बने रहें पोस्ट में हमारे साथ शुरू से अंत तक।

                                          Manoj Joshi

नमस्कार दोस्तों..

बॉलीवुड के सबसे मशहूर खलनायकों में से एक मोहन जोशी फ़िल्म, टीवी और रंगमंच (Stage) के एक मशहूर अभिनेता होने साथ साथ अखिल भारतीय मराठी नाट्य (Drama) परिषद (Council) के अध्यक्ष (President) भी रह चुके हैं। 4 सितम्बर 1945 को बैंगलोर में एक निम्न (Lower)-मध्यम वर्गीय परिवार में जन्मे मोहन जोशी के पिता मिलिट्री के जवान थे और मोहन अपने तीन भाइयों में से एक थे। मोहन जब 7 साल के हुए तो उनका परिवार बैगलोर से पुणे शिफ्ट हो गया और मोहन की पढ़ाई वहीं पूरी हुई। स्कूली शिक्षा पूरी करने के बाद, उन्होंने वाणिज्य में स्नातक की पढ़ाई पूरी करने के लिए पुणे के ही ‘बृहन् महाराष्ट्र कॉलेज ऑफ कॉमर्स’ में दाखिला लिया। कॉलेज के दौरान मोहन का झुकाव (Leaning) नाटकों में ऐक्टिंग की ओर होने लगा जिससे उनका मन पढाई में कम ही लगता था।साल 1969 में, उन्होंने पुणे में ही कॉमर्शियल थिएटर करना शुरू कर दिया और पुणे के ही ‘किर्लोस्कर ग्रुप’ में नौकरी भी करने लगे। इस दौरान उन्होंने कुछ मराठी फ़िल्मों में छोटी-छोटी भूमिकायें भी निभाईं। बाद में, उन्होंने अपनी नौकरी छोड़ ख़ुद का व्यवसाय करने का मन बनाया और एक ट्रांसपोर्ट (Transport) कंपनी शुरू कर दी, जिसमें उन्होंने ख़ुद भी लगभग नौ वर्षों तक ट्रक ड्राइवर के रूप में काम किया। इस काम में मोहन कभी कलकत्ता तो कभी हैदराबाद तो कभी भोपाल जैसे दूर दराज के इलाकों तक भी गाड़ी चलाते हुए जाते। इसी दौरान उनकी कंपनी की एक गाड़ी का भयंकर एक्सीडेंट (Accident) हो गया और मोहन इससे बेहद परेशान हो गये। उन्हें लगने लगा ये काम बहुत ही जोखिम भरा है इसलिए उन्होंने इस व्यवसाय को पूरी तरह से बंद कर दिया।

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हिंदी फ़िल्मों में करियर-

                                                                                                        Mohan Joshi

ट्रांसपोर्ट कंपनी बंद करने के बाद मोहन ने ऐक्टिंग फील्ड में ही अपना करियर (Career) बनाने का निश्चय कर लिया। उसी दौरान साल 1987 में उन्हें एक नाटक में काम करने के लिये मुंबई से बुलावा आ गया। बस फिर क्या था मोहन मुंबई पहुँच गये और थियेटर (Theater) में काम करने के साथ-साथ टीवी और फ़िल्मों में भी काम (work) ढूंढने लगे। 90 के दशक की शुरुआत तक आते-आते थोड़े संघर्षों (Conflict) के बाद मोहन जोशी को सब टीवी के एक सीरियल ‘धनंजय डिटेक्टिव’ में काम मिल ही गया, जहाँ अधिकारी ब्रदर्स के गौतम अधिकारी और मार्कण्ड अधिकारी की नज़र उनपर पड़ी और उन्होंने मोहन को अपनी आगामी हिंदी फिल्म ‘भूकंप’ में काम करने का ऑफर (offer) दिया। मज़े की बात कि उन्हें पहले यह कहा गया था कि इस फ़िल्म उन्हें एक छोटी सी भूमिका (Role) दी जायेगी, मोहन जोशी के ना कहने का सवाल ही नहीं था क्योंकि शुरुआत में रोल छोटा हो बड़ा हो सब करना ही था। लेकिन जब यह फ़िल्म शुरू हुई तो पता चला कि मोहन ही इस फ़िल्म के मेन विलेन होंगे। इस फिल्म में मोहन गैंगस्टर दया पाटिल के रूप में नज़र आये थे। इस किरदार को मोहन ने इतनी ख़ूबसूरती से निभाया कि इसके बाद विलेन की रोल्स (Roles) के लिये उनके आगे फ़िल्मों की लाइन लग गयी। उसी साल मोहन ने एक मराठी फिल्म भी की जिसका नाम था ‘स्वत माझी लडकी’। बॉलीवुड में मोहन जोशी हिट तो गये लेकिन उनके किरदार एक जैसे ही रहते थे जैसा कि उस दौरान चलन था कि जिसकी जो इमेज बन गयी उसे वैसे ही रोल ऑफर होते। मोहन बताते हैं कि शुरुआत में उन्हें धर्मेन्द्र स्टारर (Starr) फ़िल्म ‘पुलिस वाला गुण्डा’ में एक बेहतरीन भूमिका मिली थी जिसमें उनके किरदार में कई सारे शेड्स थे लेकिन वह फ़िल्म विवादों में पड़ जाने से उसकी रिलीज़ में देरी हो गयी और तब तक उनकी इमेज मेन विलेन के तौर पर बन चुकी थी। फ़िल्मों की बात करें तो मोहन जोशी ने 350 से अधिक हिंदी फिल्मों में अभिनय किया है और अधिकांश फिल्मों में उन्होंने एक खलनायक का किरदार निभाया है जिनमें गद्दार, ‘जागृति’, ‘एलान’, ‘हकीकत’, ‘मृत्युदंड’, ‘इश्क’, ‘आक्रोश’, ‘सलाखें’, यशवंत,  होगी प्यार की जीत, बिच्छू’, ‘वास्तव’, ‘हसीना मान जाएगी’, ‘बागबान’, गर्व, ‘गंगाजल’ और ‘मि. प्राइम मिनिस्टर’ जैसे ढेरों नाम शामिल  हैं। उनकी ख़ास हिंदी फ़िल्मों की बात की जाये तो मृत्युदंड के अलावा प्रकाश झा द्वारा बनायी फिल्म गंगाजल का नाम भी ज़रूर लिया जाता है जिसमें उन्होंने साधू यादव की भूमिका निभाई थी और इसके लिए उन्हें कई पुरुस्कारों (Awards) से सम्मानित (Honored) भी किया जा चूका है।

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हिंदी फ़िल्मों से बना ली दूरी-
दोस्तों मोहन जोशी हिंदी फिल्मों का जाना माना चेहरा होने के बावज़ूद अचानक (Suddenly) नज़र आना बंद हो गये और हिंदी फिल्मों से एक दूरी बनाते दिखे। बॉलीवुड में काम न करने को लेकर मोहन कहते हैं कि, “मैंने हिंदी फिल्मों में काम करना बंद कर दिया है। बॉलीवुड आज रिश्तेदारों (Relatives) से भरा हुआ है और बहुत से नौसिखिये (Newbies)  हिंदी फिल्मों में अभिनय कर रहे हैं। बहुत सारे ग्रुप और खेमे (Ranks) हैं जहाँ मेरे जैसे अभिनेताओं के लिए कोई जगह नहीं है जो किसी समूह से संबंधित नहीं हैं। इसके अलावा, इन दिनों नायक भी खलनायक की भूमिका निभाता है, इसलिए हमारे लिए कोई काम नहीं है।”
हालांकि मोहन जोशी पहले से हिंदी के साथ-साथ मराठी फिल्मों और सीरियल में सक्रिय थे और उन्होंने वहाँ काम करना ज़ारी रखा है। उन्होंने 70 से अधिक मराठी फ़िल्मों में काम किया है, जिनमें राव साहेब, सवत मजी लद्दाकी, तू तीथे माई, घरबेर, न केवल मिसेज राउत, देओल बैंड, मूली पैटर्न और सदाशिव आदि प्रमुख हैं। फ़िल्म राव साहेब के लिये मोहन जोशी को ढेरों पुरस्कार भी मिले थे। इसके अलावा वे कई गुजराती, तमिल, तेलुगु और कन्नड़ सहित भोजपुरी फिल्मों में भी काम कर चुके हैं। भोजपुरी फ़िल्मों में काम करने को लेकर मोहन जोशी ने कहा था कि “मैंने कई भोजपुरी फिल्मों में अभिनय किया है। मुझे यह भाषा बहुत प्यारी लगती है, और भोजपुरी फिल्मों में काम करने में आनंद मिलता है।”

टीवी करियर-
मोहन जोशी ने हिंदी व मराठी सिनेमा के बाद वर्ष 2010 में अपना रुख़ एक बार फिर से छोटे पर्दे की ओर किया और इमेजिन के शो जमुनिया में काम किया। मोहन जोशी बीच बीच में हिंदी सीरियल में नज़र आते रहे  हैं। साल 2020 में वो स्टार प्लस के मशहूर सीरियल ‘दादी अम्मा दादी अम्मा मान जाओ’ में सीमा बिस्वास के अपोज़िट दिखाई दिए थे।

साल 2021 में मोहन जोशी तब चर्चा में आये थे जब वैकसीन की दोनों डोज़ लेने के बाद भी वे कोरोना की चपेट में आ गये थे। उस दौरान मोहन जोशी, गोवा में अपने मराठी सीरियल ‘अगाबाई सुनबाई’ की शूटिंग कर रहे थे, जहां उन्होंने एक होटल में खुद को क्वारंटीन कर लिया था और ख़ुद ही अपने स्वास्थ्य की जानकारी भी दी थी।

थियेटर से अब भी जुड़े-
दोस्तों मोहन जी अपने पहले प्यार रंगमंच (Stage) से कभी दूर नहीं हुए। उन्होंने अब तक 30 से अधिक नाटकों में काम करते हुए 8000 से अधिक स्टेज शो किये हैं। उनके कुछ मशहूर नाटक हैं आसू अनी हसु, गदवाच लगन, भगवान गुलाबी, गोश्त जनमंतरिची, कलाम 302, एम आई रेवती देशपांडे, तरुण तुर्क म्हारे अरक, डबल क्रॉस, और आर्यनक आदि। साल 2017 में, मोहन जोशी को भारतीय थिएटर में अपने योगदान के लिए ‘विष्णुदास भावे पुरस्कार’ से भी सम्मानित किया गया।

अवॉर्ड (Award) की बात करें तो फ़िल्मों और थियेटर के लिये इतने सारे अवॉर्ड्स के अलावा फ़िल्म फेयर और स्क्रीन जैसे मशहूर अवॉर्ड्स के साथ-साथ साल 1999 में मोहन जोशी को घरबाहेर नाम की अपनी मराठी फिल्म के लिए नेशनल पुरस्कार भी मिल चुका है। इसके अलावा कई बार ढेरों सरकारी सम्मान भी उन्हें मिल चुके हैं।

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रफ़ी साहब के दीवाने-
दोस्तों कम लोगों को ही पता होगा कि मोहन जोशी एक बेहतरीन (Best)  गायक हैं और उन्होंने ढेरों सिंगिंग शो में भाग लिया है। मोहन जोशी रफ़ी साहब को भगवान की तरह मानते हैं और उनके बारे में बातें करते हुए भावुक हो जाते हैं। मोहन ने एक वीडियो में बातचीत के दौरान बताया था कि वे अक्सर रफ़ी साहब के कब्र के पास जाकर बैठा करते थे।

विवाद-
जैसा कि हमने शुरुआत में ही बताया था कि मोहन जोशी एक अभिनेता के साथ-साथ अखिल भारतीय मराठी नाट्य परिषद के अध्यक्ष भी रह चुके हैं। मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक उसी दौरान साल 2013 में, मोहन जोशी और अभिनेता चेतन दलवी के नशे में धुत हालत में नासिक के स्थानीय लोगों से मार पीट की ख़बर आयी जिसके अगले ही दिन, मोहन जोशी ने अखिल भारतीय मराठी नाट्य परिषद के अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया। हालांकि बाद में उन्हें फिर से अध्यक्ष बनाया गया था।

निजी जीवन-
दोस्तों मोहन जोशी के निजी जीवन के बारे में बहुत अधिक जानकारियाँ उपलब्ध नहीं हैं और न ही वे इंटरव्यू वगैरह में इस बारे में अधिक बात ही करते हैं। मोहन जोशी जी की पत्नी का नाम ज्योति जोशी है और दोनों के एक बेटे हैं रोहन जोशी।

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