श्रीलंका, एक देश जिसने बुद्ध की शिक्षाओं से खुद को ढककर अपने इतिहास में प्रवेश किया था और फिर अपनी धरती, अपने लोग और संस्कृति के जरिए विश्व भर में खुद को स्थापित किया था।
लेकिन फिर आधुनिक युग में इस देश ने गुलामी, दहशत और विरोध का सामना भी किया मगर खुद के वजूद को खत्म नहीं होने दिया।
बुद्ध की शान्तिप्रियता से शुरू हुए इस सफर में इस देश ने बहुत सी वहशी घटनाओं को एक साक्षी के रुप देखा है और इस लंबे सफर में क्रिकेट का खेल इस देश के लिए एक सहारे की तरह रहा।
Top 5 Indian Cricketers Who Not Played International Cricket
एशिया और क्रिकेट का सम्बन्ध आज से बहुत पुराना और बहुत ही शानदार रहा है और इस सम्बन्ध के सबसे पहले भागीदार की तरफ देखे तो पहला नाम जो जेहन में आता है वो भारत का है लेकिन हमने कभी भी दुसरी तरफ देखने की कोशिश नहीं की, सीलोन के नाम से मशहूर सिलोन क्रिकेट को स्वीकार करने वाले सबसे पहले और पुराने एशियाई देशों की गिनती में आता है।
उन्नीसवीं सदी के शुरुआती सालों में जब यहां अंग्रेजी हुकूमत का साया छा रहा था, उसी समय क्रिकेट भी इस छोटे से आइलैंड में सांस लेने लगा था, लेकिन किसीको भी इस खेल की पुरी समझ यहां पर नहीं थी।
फिर जब साल 1815 से ब्रिटिश हुकूमत ने सिलोन को अपनी कोलोनीज में शामिल कर लिया तब इंग्लिश हुकूमत ने अपनी हर कोलोनी की तरह यहां भी क्रिकेट को विस्तार देने पर काम शुरू कर दिया जिसमें भारत से आये अंग्रेजी लोगों और अंग्रेजी अफसरों की भूमिका का जिक्र भी सुनने को मिलता है।
5 सितंबर साल 1832 के दिन जारी हुए कोलंबो जर्नल में पहली बार किसी क्रिकेट मैच के बारे में जानकारी दी गई थी, यह मैच अंग्रेज़ अधिकारियों की दो टीमों के बीच खेला गया था।
इसी दौरान सिलोन में कोलंबो क्रिकेट क्लब की स्थापना भी हुई और फिर तय समय के अंतराल में इस कोलोनी के अलग-अलग हिस्सों पर क्रिकेट का खेल खेला जाने लगा था।
धीरे-धीरे यहां के लोग इस खेल को समझने लगे, एशिया में क्रिकेट के लिए एक और बेहतरीन स्थान तैयार होने लगा था, साल 1880 में सिलोन नेशनल क्रिकेट टीम का गठन हुआ।
आस्ट्रेलिया और इंग्लैंड उस समय अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में सबसे बड़ी महाशक्तियां थी, और क्रिकेट की ये सबसे बड़ी और पुरानी प्रतिद्वंद्विता की शुरुआत साल 1882 में एशेज सीरीज के साथ हुई थी। लेकिन इस ऐतिहासिक सीरीज से पहले अक्टूबर 1882 में आस्ट्रेलिया जाने से इंग्लिश टीम कोलंबो में ठहरी और वहां प्रैक्टिस के तौर पर कुछ मैच खेले थे, इस तरह श्रीलंका यानि सिलोन भी इस ऐतिहासिक क्षण का हिस्सेदार बन गया था।
इसके बाद लगातार यह जगह आस्ट्रेलिया और इंग्लैंड के लिए अलग-अलग दौरे पर जाने से पहले प्रैक्टिस कोर्ट बन गई थी, जहां जार्डिन और डब्ल्यू जी ग्रेस जैसे महान खिलाड़ियों ने खुद को आजमाया और फिर अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट के लिए गए।
सीजन 1891 -92 में डब्ल्यू जी ग्रेस की कप्तानी वाली इंग्लिश टीम से लेकर वेरनन की महान इंग्लिश टीम तक साल 1911 तक लगभग पांच इंग्लिश टीमों ने सिलोन का दौरा किया था।
साल 1911 में एमसीसी की एक टीम ने भी सिलोन का दौरा किया था और यह वो समय था जब आस्ट्रेलिया और इंग्लैंड के बीच सिमटी हुई इस धरती पर बाकि खिलाड़ियों का आगमन भी शुरू हो गया था।
साल 1926 में एमसीसी की टीम के खिलाफ खेले गए एक मैच को फस्ट क्लास क्रिकेट का दर्जा दिया गया और इस तरह सिलोन के खिलाड़ियों को एक अच्छे स्तर पर खेलने का मौका मिलना शुरू हो गया था।
पटियाला की टीम के साथ खेलते हुए सिलोन को फस्ट क्लास क्रिकेट में अपनी पहली जीत छः साल बाद मिली और इसी दौरान डगलस जार्डिन की मशहूर टीम जिसने बोडीलाइन सीरीज में हिस्सा लिया था,उस टीम ने भी सिलोन का दौरा किया था।
यह वो समय भी था जब भारतीय टीम ने भी सिलोन के साथ साथ आजमाया, सीके नायडू ने जैसे कई बेहतरीन खिलाड़ियों का नाम इस सूची में शामिल किया जाता है।
साल 1945 में भारतीय टीम ने विजय मर्चेंट की कप्तानी में सिलोन का दौरा किया था और फिर इसी दौरान सिलोन की टीम ने गोपालन ट्रोफी के लिए मद्रास के खिलाफ मैच खेला था।
सफर चलता रहा, एशियन क्रिकेट में भारत की आज़ादी के साथ ही पाकिस्तान का नाम भी शामिल हो गया था और अब सिलोन यानि श्रीलंका भी क्रिकेट के खेल में खुद को बेहतर से बेहतरीन बनाने की तरफ देख रही थी।
इंग्लैंड, पाकिस्तान, वेस्टइंडीज और आस्ट्रेलिया जैसे बहुत से देशों ने यहां अपने हुनर पर काम किया जिससे यहां के खिलाड़ियों के हुनर को भी पोलिश होने का मौका मिल गया।
लेकिन अब सिलोन के लोगों को और यहां के खिलाड़ियों को सबसे ऊंचे स्तर पर पहुंचना था, वो खुद को सबसे बेहतरीन स्तर पर साबित करना चाहते थे और इसलिए सिलोन क्रिकेट एसोसिएशन ने साल 1968 में इंग्लैंड दौरे का मन बनाया।
लेकिन दौरे से कुछ समय पहले पैसों की तंगी खड़ी हो गई और साथ ही सलेक्शन टीम के सदस्य चन्द्रा सचताफर ने पद से इस्तीफा दे दिया था क्योंकि उन्होंने महसूस किया कि उनके साथ कमेटी में बैठे अन्य सदस्य एक दुसरे को टीम का हिस्सा बनाने की कोशिश कर रहे हैं,हर्बट फरनेंडो और धनश्री वीरासिंघे ने अपने आप को टीम का हिस्सा बना लिया था।
इन सब बातों के चलते आखिरकार दौरे को रद्द करना पड़ा और अब सिलोन का अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में आगाज कुछ समय के लिए और टल गया था।
सिलोन क्रिकेट को जहां भी मौका मिल रहा था वो शानदार प्रदर्शन कर रही थी, साल 1965 में सिलोन को आईसीसी ने अपना असोसिएट सदस्य स्वीकार कर लिया था।
समय के साथ साथ सिलोन ने पाकिस्तान और भारत की तगड़ी टीमों को हराकर खुद को अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट के लिए एक अच्छे दावेदार के रूप में स्थापित कर दिया था।
साल 1948 में अंग्रेजी हुकूमत से आजादी होने के बाद सिलोन को साल 1972 में श्रीलंका का नाम दिया गया और फिर श्रीलंका साल 1975 में खेले गए पहले विश्व कप में हिस्सा लेने वाला नोन टेस्ट प्लेइंग नेशन बना, इस टीम ने विश्व कप में अपना पहला मैच वेस्टइंडीज के खिलाफ खेला जिसमें वेस्टइंडीज ने श्रीलंका को 9 विकेट से हराया था।
श्रीलंका को साल 1979 विश्व कप में खेलने का मौका भी मिला और यहां इस टीम ने सभी को अचंभित करते हुए सुनील गवास्कर जैसे खिलाड़ियों से सजी भारतीय टीम को 141 रनों से हराया था।
साल 1981 में सौ सालों से भी ज्यादा इंतजार करने के बाद आखिरकार श्रीलंका को पाकिस्तान क्रिकेट बोर्ड के प्रेजिडेंट के कहने पर आईसीसी ने टेस्ट स्टेटस सौंप दिया और इस तरह श्रीलंका अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट इतिहास का आठवां टेस्ट प्लेइंग नेशन बना।
साल 1982 को इंग्लैंड के खिलाफ श्रीलंका ने अपना पहला टेस्ट मैच खेला जिसमें बांदुला वारापुरा ने श्रीलंका को लीड किया था।
एक तरफ जहां श्रीलंका अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में कदम जमा रही थी तो वहीं दूसरी तरफ श्रीलंका में गृह युद्ध जैसे हालात पैदा होने लगे थे, भाषा के नाम पर जगह-जगह कत्लेआम मचा हुआ था लेकिन इस खराब माहौल में भी क्रिकेट इस देश को ठहराव देने का काम कर रहा था।
साल 1985 में श्रीलंका ने भारतीय टीम को हराकर टेस्ट क्रिकेट में अपनी पहली जीत हासिल की जहां दलीप मेंडीस ने इस टीम को लीड किया था।
सफर चलता रहा, श्रीलंका ने मेंडिस की कप्तानी में बहुत से कीर्तिमान स्थापित किए, साल 1984 में एशिया कप की शुरुआत हुई और इसके दुसरे एडिशन में श्रीलंका ने खिताबी मुकाबला पाकिस्तान को हराकर अपने नाम किया था।
श्रीलंका को टेस्ट क्रिकेट में अपनी दुसरी जीत के लिए सात सालों का इंतजार करना पड़ा था लेकिन वनडे क्रिकेट में यह टीम शुरू से बेहतरीन प्रदर्शन कर रही थी।
90 का दशक श्रीलंकाई क्रिकेट के लिए एक यादगार सपने की तरह रहा जिसमें इस देश को जयसूर्या, राणातुंगा, डी सिल्वा और चमिंडा वास जैसे खिलाड़ियों का भरपूर साथ मिला और श्रीलंका ने खुद को सबसे तेजी से उभर रहे क्रिकेटिंग नेशन के रूप में स्थापित कर लिया था।
एक तरफ जहां यह देश शानदार प्रदर्शन के जरिए आगे बढ़ रहा था तो वहीं इसी दौरान श्रीलंका के एक नौजवान खिलाड़ी मुथैया मुरलीधरन को आस्ट्रेलियाई अम्पायर डैरेल हेयर कारण अपने शुरुआती सालों में काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ा और बहुत सी टेस्टिंग प्रक्रियाओं से गुजरना पड़ा था।
लेकिन मुथैया मुरलीधरन को यहां अपने कप्तान राणातुंगा का साथ मिला और यह खिलाड़ी आगे चलकर अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में सबसे सफल गेंदबाज बनकर सामने आया।
यह वो समय था जब श्रीलंका ने साल 1995 में न्यूजीलैंड की धरती पर अपनी पहली ओवरसीज टेस्ट सीरीज जीत दर्ज की और फिर एशियाई धरती पर होने वाले अगले विश्वकप के लिए भी इस टीम में बहुत सी बातों पर लंबे समय के विचार चलता रहा।
राणातुंगा ने इस विश्व कप के लिए अपने हर खिलाड़ी को उनका किरदार बता दिया था जिसमें सबसे चौंकाने वाली बात यह थी कि इस टीम के सलामी बल्लेबाजों के रुप में कप्तान ने जयसूर्या को सलामी बल्लेबाज के रूप में चुनने का फैसला कर लिया था।
विवाद, विरोध और असमर्थन के माहौल में सांस ले रहे श्रीलंका के लिए यह समय किसी भी तरह से अच्छा नहीं था, यहां का क्रिकेट बोर्ड लगभग दिवालिया हो गया था और देश में चल रही अशांति के कारण कोई भी टीम यहां नहीं खेलना चाहती थी।
यही कारण रहा कि साल 1996 विश्व कप में वेस्टइंडीज और आस्ट्रेलिया ने श्रीलंकाई धरती पर खेलने से मना कर दिया था और श्रीलंका को अपने पहले दो मैचों में बिना खेले ही प्वाइंट मिल गए थे।
कोलकाता में एक अविस्मरणीय मैच का हिस्सा बनने के बाद श्रीलंकाई टीम फाइनल में पहुंचीं और आस्ट्रेलिया को हराकर विश्व कप हासिल किया, बिल्कुल खत्म होने की कगार पर पहुंच चुके क्रिकेट बोर्ड के लिए यह लम्हा राहत की सांस जैसा था जहां से इस देश को अपना भविष्य दिखाई दे रहा था।
श्रीलंका अब विश्व चैंपियन था और इससे भी बड़ी बात यह कि जयसूर्या और महानामा की जोड़ी ने वनडे क्रिकेट को खेलने का तरीका इस विश्वकप के कुछ ही मैचों में पुरी तरह से बदल दिया, वनडे क्रिकेट को अब सही तौर पर भविष्य की क्रिकेट मान लिया गया था और इसमें श्रीलंकाई खिलाड़ियों ने बेहद ही खास भूमिका निभाई थी।
आगे श्रीलंका ने साल 2003 विश्वकप में भी हिस्सा लिया जहां वास ने मैच की पहली तीन गेंदों पर हैट्रिक लेने का कारनामा कर सबको चौंका दिया था।
लेकिन इससे भी पहले साल 1997 में श्रीलंका ने भारत के खिलाफ जयसूर्या के शानदार 340 रनों की मदद से टेस्ट क्रिकेट इतिहास का सबसे बड़ा टोटल यानि 952 रनों का आंकड़ा हासिल कर लिया था।
साल 2002 में विज्डन ने मुरलीधरन को टेस्ट क्रिकेट इतिहास के सबसे महानतम गेंदबाज का सम्मान दिया और इस तरह अब श्रीलंका अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में एक तरह से अपने स्वर्णिम दौर में पहुंच गया था।
साल 2006 में साउथ अफ्रीका के खिलाफ टेस्ट मैच में महेला जयवर्धने और सांगाकारा ने टेस्ट क्रिकेट इतिहास की सबसे बड़ी साझेदारी बनाई और दोनों बल्लेबाजों ने मिलकर 624 रनों का पहाड़ खड़ा कर दिया था।
साल 2007 विश्व कप के लिए श्रीलंका की कमान जयवर्धने के हाथों में थी और टीम में बहुत से बेहतरीन खिलाड़ियों का जमावड़ा था, ऐसे में इस टीम ने फाइनल तक का सफर तय किया और इस सफर में मलिंगा ने साउथ अफ्रीका के खिलाफ चार गेंदों पर चार विकेट लेने का अविश्वसनीय कारनामा भी कर दिखाया था।
विश्वकप फाइनल में मिली हार के बाद भी श्रीलंका मजबूती के साथ आगे बढ़ रही थी, एशिया कप से लेकर बाइलेट्रल सीरीज हर जगह इस टीम ने खुद को साबित किया, साल 2009 में इस देश में चल रहे गृह युद्ध पर भी विराम लगा दिया गया था।
लेकिन फिर इसी साल के शुरुआती महीनों में श्रीलंका ने भारत की जगह पाकिस्तान दौरे पर जाने के लिए तैयार हो गई जहां टेस्ट सीरीज के दौरान श्रीलंकाई खिलाड़ियों से भरी बस पर घातक हमला हुआ जिसमें कुछ कम लोगों को पुलिस वालों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा, इस हमले के बाद कई देशों ने पाकिस्तान में क्रिकेट खेलने से मना कर दिया और यह दौरा भी एक अनचाहे अनुभव के साथ खत्म हो गया।
साल 2011 विश्व कप में लगातार दुसरी बार इस टीम ने फाइनल तक का सफर तय किया लेकिन भारत ने खिताबी मुकाबले में जीत हासिल कर एक बार इस देश का बड़ा सपना तोड़ दिया था।
आगे इस देश ने साल 2014 t20 विश्व कप अपने नाम किया लेकिन फिर यहां से क्रिकेट के मैदान पर इस देश का सबसे बुरा दौर शुरू हो गया था, महेला जयवर्धने, सांगाकारा और दिलशान जैसे बड़े खिलाड़ियों ने धीरे धीरे इस खेल को अलविदा कह दिया और यहां के बहुत से युवा खिलाड़ी अनुभवहीन टीम को आगे बढ़ाने के लिए मजबूर हो गए।
श्रीलंका को हुनर और अनुभव की एक नई फसल तैयार करने में अब एक लंबे समय तक इंतजार करना था।
हालांकि मैथ्यूज, हैरात और मलिंगा जैसे खिलाड़ियों ने एक लंबे समय तक इस टीम को संभाले रखा लेकिन वो जादुई प्रदर्शन और माहौल अब यहां खत्म हो गया था, श्रीलंका आगे चलकर एशिया कप विजेता बनी लेकिन बड़े मंचों पर वो प्रदर्शन अब नजर नहीं आ रहा था।
हाल ही में भारत के खिलाफ खत्म हुई वनडे सीरीज में इस टीम की बेचारगी को साफ तौर पर महसूस किया जा सकता है, जहां यह टीम कहीं भी कम्पीटीशन में नजर नहीं आई।
अपने इतिहास में दर्ज पहले क्रिकेट मैच की 200 वीं वर्षगांठ की दहलीज पर खड़ा यह देश आज अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में अपनी खोई हुई जगह तलाश रहा है और यह तलाश कितनी लंबी होगी यह तो आने वाला समय ही बताएगा लेकिन इस उम्मीद के साथ कि यह तलाश जल्द ही पुरी हो जाये,