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कैसे हुई रुद्राक्ष की उत्पत्ति ?

ऐसा माना जाता है कि रुद्राक्ष भगवान शिव का ही एक छोटा रूप है या ये कहें की शिव खुद रुद्राक्ष में निवास करते हैं। कुछ धर्मग्रंथों के अनुसार जो व्यक्ति रुद्राक्ष की माला पहनता है उस पर महादेव की विशेष कृपा होती है, और इसके साथ ये भी बताया गया है की संकट के समय किये जाने वाला महामृत्युंजय मन्त्र का जाप बिना रुद्राक्ष माला के पूरा नही माना जाता। जानिए के बारे में पूरी जानकारी

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रुद्राक्ष (Rudraksha) शब्द की उत्पति

रुद्राक्ष (Rudraksha) शब्द की उत्पति-

असल में रुद्राक्ष दो शब्दों से मिलकर बना है जो है रूद्र और अक्ष। रूद्र का मतलब महादेव शिव शंकर से है और वही अक्ष का मतलब आंसू से है और इसके अनुसार ये कहा जाता है की रुद्राक्ष महादेव के आंसुओं से उत्पन्न हुआ है।

पद्मपुराण में भगवान वेदव्यास रुद्राक्ष के महत्व को बताते हुए कहते हैं की जो मनुष्य रुद्राक्ष को अपने माथे पर, अपने ह्रदय या अपने बांह में पहनता है तो वो भी भगवान शिव के तरह ही योगी होता है।

उनका कहना है की जो भी इंसान वेद और पुराण के जितने भी मन्त्र है, उन्हें रुद्राक्षमाला के साथ पढ़ता है उसे उस पूजा का बहुत ही अच्छा फल मिलता है। इसके अलावा जो भी इंसान रुद्राक्ष धारण करके इस धरती पर मरता है उसे मरने के बाद पुण्य लोक में जगह मिलती है।

ऐसी ही बहुत से महत्व रुद्राक्ष के बारे में धर्मशास्त्रों में बताये गए हैं लेकिन अब बात आती है की आखिर इस रुद्राक्ष की उत्पत्ति हुई कैसे, इस बारे में भी अलग-अलग पुराणों में बड़ी ही रोचक जानकारी मिलती है।

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शिवपुराण के विधेश्वर-संहिता के अनुसार

शिवपुराण के विधेश्वर-संहिता के अनुसार-

शिवपुराण के विधेश्वर-संहिता के अनुसार बहुत साल पहले भगवान् शिव कई हजार सालों तक बहुत कठिन तपस्या में लीन थे और जब हजार सालों बाद महादेव की तपस्या खत्म हुयी तो उन्होंने अपनी दोनों आँखें खोली जिससे कुछ आंसू धरती पर छलक कर गिरे।

उन्हीं आंसुओं की बूंदों से रुद्राक्ष नाम का पेड़ उत्पन्न हुआ। भगवान् शिव रुद्राक्ष के बारे में माता पार्वती को बताते हुए कहते हैं की- जो रुद्राक्ष बेर के फल के बराबर होता है, उसको पहनने से हर तरह का सुख और सौभाग्य मिलता है।

सबसे अच्छा रुद्राक्ष वो होता है, जिसका आकर आवले जैसा हो वो तो हर तरह के कष्टों का नाश करने वाला होता है। सबसे ख़ास बात तो ये है की रुद्राक्ष का आकर जैसे-जैसे छोटा होता जाता है वैसे-वैसे उससे मिलने वाला फल बहुत ज्यादा लाभकारी होता है, क्योकि बड़े-बड़े विद्वानों ने एक छोटे से रुद्राक्ष को बड़े रुद्राक्ष का दस गुना ज्यादा फल देने वाला बताया है।

रुद्राक्ष की उत्पति के बारे में एक और कथा पद्मपुराण के सृष्टिखंड में सुनने को आती है की- सतयुग के समय एक बहुत भयंकर त्रिपुर नाम का राक्षस था, जिसने उस समय पूरी धरती पर बहुत ज्यादा उत्पात मचा रखा था, साथ ही देवताओं तक के साथ उसका बहुत दिनों तक भयंकर युद्ध हुआ।

उस युद्ध में देवताओं के बहुत से सैनिक मारे गए और इसके बाद सारे देवता उस दानव से हार गए। बहुत से देवताओं का वध करने के बाद त्रिपुर अन्तरिक्षचारी नाम के नगर में जा छिपा। लेकिन उसे परमपिता ब्रम्हा का वरदान था इसलिए उसी वरदान के घमंड में चूर वो राक्षस पूरे संसार को नष्ट करना चाहता था, उसकी इसी योजना से सारे देवता बहुत ज्यादा चिंतित हो गए और फिर सभी देवता भगवान् शिव की शरण में गए।

भगवान् शिव से देवताओं ने प्रार्थना की कि- “हे प्रभु! कृपा करके इस दानव का अंत कर दीजिये, नही तो देखते ही देखते समय से पहले ही इस संसार का नाश हो जायेगा।” इस पर भगवान शिव को उस दानव पर बहुत क्रोध आया और उन्होंने उस दानव को मारने के उद्देश्य से उन्होंने अपना आजगव नाम का धनुष लिया और उस पर एक भयंकर तीर चढ़ाकर उस राक्षस की ओर छोड़ दिया।

उस तीर के लगते ही त्रिपुर आकाश से धरती पर आ गिरा, और इस तरह उसका अंत हो गया। कहा जाता है कि त्रिपुर से युद्ध करते समय महादेव के शरीर से पसीने की कुछ बूदें धरती पर गिरी और उन बूंदों के गिरते ही धरती पर तुरंत ही रुद्राक्ष नाम का वृक्ष प्रकट हो गया।

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रुद्राक्ष (Rudraksha) के प्रकार

रुद्राक्ष (Rudraksha) के प्रकार-

रुद्राक्ष अनेक तरह के बताये गए हैं, जैसे की एक-मुखी रुद्राक्ष से लेकर चौदह-मुखी रुद्राक्ष पाए जाते हैं, जिनका अपनी-अपनी जगह अपना अलग-अलग महत्व है।

शिवपुराण में एक से लेकर चौदह-मुखी रुद्राक्ष को धारण करने के अलग-अलग मन्त्र बताये गए हैं, साथ ही ये भी बताया गया है कि रुद्राक्ष धारण करने वाले को चाहिए की वो पूरी तरह से अपने शरीर को शुद्ध करके उन चौदह मन्त्रों का जाप करने के बाद ही रुद्राक्ष को धारण करे।

जो भी इन्सान इस रुद्राक्ष की माला को पहनता है उससे भूत-प्रेत और बुरी आत्माएं कोसों दूर रहती हैं साथ ही रुद्राक्ष धारण करने वाले से भगवान् शिव के साथ-साथ भगवान् विष्णु, माँ जगदम्बा, श्री-गणेश और दुसरे देवता भी बहुत खुश होते हैं और उन सबकी विशेष कृपा मिलती है।

रुद्राक्ष को शरीर के किस भाग में और किस तरह पहना जाना चाहिए, इस बारे में शिवपुराण में लिखा है कि- सिर पर ईशान-मन्त्र से रुद्राक्ष धारण करना चाहिए, इसके अलावा, कान में पहनने के लिए तत्पुरुष-मन्त्र से और गले में पहनने के लिए अघोर-मन्त्र से रुद्राक्ष धारण करना चाहिए।

आमतौर पर रुद्राक्ष की कम से कम तीन, पांच या सात मालाएं धारण करना चाहिए और धारण करते समय ॐ नमः शिवाय मन्त्र का जाप करना चाहिए। एक और ख़ास बात जो की शिवपुराण में बताई गयी है वो ये की ब्राम्हण को सफ़ेद रंग का रुद्राक्ष धारण करना चाहिए,

वहीँ गहरे लाल रंग का रुद्राक्ष क्षत्रियों के लिए बताया गया है, पीले रंग का रुद्राक्ष वैश्य के लिए बहुत ही उत्तम है और काले रंग का रुद्राक्ष शूद्र को धारण करना चाहिए, और हाँ एक बात जिसका ध्यान जरुर रखना चाहिए वो ये की- जो व्यक्ति रुद्राक्ष धारण करे उसे हमेशा के लिए मांस-मदिरा, और लहसुन-प्याज का त्याग कर देना चाहिए नहीं तो रुद्राक्ष पहनने का फल बिलकुल भी नही मिलेगा।

तो ये थी कुछ खास बातें रुद्राक्ष की उपत्ति और उसके महत्व की, जिसके बारे में आज हमने आपको विस्तार से बताया…

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