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शर्मनाक हार, कैफ़ के घर पत्थरबाज़ी और सचिन के हाथ जोड़ने की कहानी।

हार! ज़िंदगी हो या खेल इंसान को सबसे ज़्यादा दुख हार देती है। हार कई बार बेहतर लग रहे क़दम को बुरा सपना बना देती है और कभी-कभी तो हार ज़िंदगी जीने के ख़्वाहिश तक छीन लेती है। लेकिन, जो इंसान और टीम इस हार के कड़वे घूट को पीकर सबक हासिल करते हुए हर चुनौती के लिये ख़ुद को तैयार कर अगली जंग की तैयारी करने में लग जाता है। वो ही इंसान और टीम विश्व विजेता कहलाता है।

क्रिकेट में आज की तारीख़ के विश्व विजेता भारत को आज से क़रीब 19 साल पहले मिली जिस एक हार ने हिलाकर रख दिया था। उस हर से 15 फरवरी 2003 को ही भारत का सामना हुआ था। हालांकि, अक्सर दुनिया विश्व कप 2003 के उस सुनहरे सफ़र में इस हार को छुपाते हुए आगे बढ़ जाती है।

लेकिन, नारद टी.वी. हर बार की तरह आज भी अपने दर्शकों के हुक्म को मानते हुए, उस दर्दनाक हार से जुड़े हर पहलू को बारीक़ी से आपके सामने रखेगा। तो चलिये फिर! नारद टी.वी. की ख़ास श्रृंखला ‘रिवाइंड वर्ल्ड कप 2003’  के दूसरे एपिसोड में हम आपको लिये चलते हैं आज से ठीक 19 साल पहले विश्व कप 2003 में भारत के दूसरे मुक़ाबले की ओर।

   दोस्तों! विश्व कप 2003 विवादों और आश्चर्य का पिटारा था। विवादों पर चर्चा हम पिछले एपिसोड में कर चुके हैं। इसलिये, अब बात करते हैं 15 तारीख़ से पहले हुए आश्चर्यों की।

2003 विश्व कप भले ही 9 फ़रवरी को वेस्टइंडीज़ बनाम साउथ अफ़्रीका मैच से शुरू हुआ था। मगर, क्रिकेट जगत को पहला आश्चर्य टूर्नामेंट शुरू होने के तीसरे दिन तब देखने को मिला। जब विश्व क्रिकेट में अभी-अभी आई कनाडा ने बांग्लादेश को 60 रनों से हरा दिया।

England Team NaaradTV
England Cricket Team

जब इंग्लैंड ने हरारे में मैच खेलने से मना कर दिया-

यहाँ सबसे बड़ा आश्चर्य ये था कि कनाडा ने पहले बल्लेबाज़ी करते हुए सिर्फ़ 180 रन बनाने के बावजूद ये कारनामा किया। इसके बाद 2003 विश्व कप को दूसरा आश्चर्य या कहें पहला कलंक 13 फ़रवरी को तब मिला। जब इंग्लैंड ने हरारे में मैच खेलने से मना कर दिया। इंग्लैंड चाहता था कि उसका मैच साउथ अफ़्रीका के किसी मैदान में कराया जाये। जबकि, आई.सी.सी. के लिये इतने शॉर्ट नोटिस पर मैच शिफ़्ट कर पाना मुमकिन नहीं था।

-zimbabwe-NaaradTV

वॉक-ओवर यानी ज़िम्बाब्वे को विजेता घोषित कर दिया-

आई.सी.सी। की मजबूरी और इंग्लैंड की ज़िद्द के बीच नुकसान हुआ क्रिकेट का। इंग्लैंड ने ज़िद्द नहीं छोड़ी और खिलाड़ी मैच के लिये ज़िम्बाब्वे नहीं गये। इस तरह से ज़िम्बाब्वे को वॉक-ओवर यानी बाय मिल गयी और ज़िम्बाब्वे को विजेता घोषित कर दिया गया। इंग्लैंड के इस क़दम ने विश्व क्रिकेट को सख्ते (सदमे) में ला दिया था। ऐसे तनाव भरे माहौल में ग्रुप स्टेज पर भारत का मुक़ाबला था, उस समय की अजय कही जाने वाली ऑस्ट्रेलिया से।

   दोस्तों, भारतीय टीम पर जिस दबाव की बात हमने की है। वैसे उसकी असल वजह माहौल नहीं टीम का खेल था। विश्व कप शुरू होने से पहले न्यूज़ीलैंड में मायूस करने वाली सिरीज़ खेलने के बाद, भारत को इस विश्व कप के पहले मैच में हॉलैंड के विरुद्ध जीत भी सिसकते हुए मिली थी। इसलिये, जब क़रीब 17,000 दर्शकों की मौजूदगी में भारत आज से ठीक 19 साल पहले सेंचूरियन के मैदान पर उतरा। तो, भारत के सामने एक नहीं कई चुनौतियां थी और सबसे बड़ी चुनौती थी उस समय की ऑस्ट्रेलियाई टीम।

Australia Cricket 2003 Team
ऑस्ट्रेलियाई टीम 2003

अभेद ऑस्ट्रेलियाई टीम-

वो ऑस्ट्रेलियाई टीम जिसका एक खिलाड़ी ग्यारह के बराबर था। वो ऑस्ट्रेलियाई टीम जिसे रोबॉट्स की फ़ौज से कम नहीं गिना जाता था। जिनके लिये बस एक ही कमांड (निर्देष था) थी, जीत। सलामी जोड़ी के रूप में हेडन और गिलक्रिस्ट जैसे धाकड़ बल्लेबाज़। मिडिल ऑर्डर में रिकी पोयंटिंग, डेमियन मार्टिन, डेरेन लेहमन और माइकल बेवन जैसे अनुभवी खिलाड़ियों के साथ गुस्सेल एंड्रू साइमंड्स का जोश इस टीम को अभेद बनाता था। जबकि, गेंदबाज़ी में तो ब्रेट ली, ग्लेन मैक्ग्राथ, ब्रैड हॉग और जैसन गिलेप्सी विश्व क्रिकेट के वो सितारे थे जिनकी चमक से दुनिया वाकिफ़ (परिचित) थी।

दूसरी तरफ़, हमारी टीम का हौसला डगमगाया हुआ था। मगर, सचिन,सहवाग, गाँगुली, द्रविड़, कैफ़, युवराज, ज़हीर, श्रीनाथ, हरभजन और कुंबले के जोश के ज़बरदस्त अनुभव किसी करिश्में से कम नहीं था। इस करिश्में से कारनामे की आस में ठीक 19 साल पहले दोपहर ढाई बजे टी.वी. से चुपके दर्शकों को भारत के टॉस जीतकर बैटिंग करने की अच्छी ख़बर मिली और फिर शुरु हुआ विश्व कप 2003 का सबसे एकतरफ़ा और दर्दनाक, लेकिन हमारे इस सफ़र का सबसे अद्भुत और ज़रूरी मुक़ाबला।

   टॉस जीतकर पहले बल्लेबाज़ी करने उतरी भारतीय टीम की ओर से सचिन और गाँगुली ने सलामी बल्लेबाज़ों की भूमिका निभाने के लिये पिच की ओर कूँच किया। भारत की कामयाबी काफ़ी हद तक सचिन के कंधों पर टिकी हुई थी। जिसकी ख़ास वजह थी सचिन का ऑस्ट्रेलिया के ख़िलाफ़ जादुई प्रदर्शन और साथ ही बड़े मैचों में अच्छा खेलने का रिकॉर्ड।

मगर,  विशेषज्ञों का मानना था कि सचिन के अलावा अन्य भारतीय खिलाड़ियों का शॉर्ट पिच बॉल बेहतर तरीके से नहीं खेलना पूरी टीम को ले डूबेगा और जब भारतीय पारी शुरू हुई तो विशेषज्ञों की भविष्यवाणी सच होती दिखने लगी। क्योंकि, ऑस्ट्रेलियाई टीम गाँगुली पर एक सिरे से बाउंसर बरसा रही थी। जिसका नतीजा ये रहा कि जब गाँगुली को एक ख़राब बॉल मिली तो वो उसे ज़ोर से हिट करने के चक्कर मे गिलक्रिस्ट को कैच थमा बैठे और इस तरह ली को भारत के विरुद्ध अपना पहला विकेट मिला।

हालाँकि, 22 रन पर पहला विकेट गिरने के बाद सहवाग और सचिन ने अगली 10 गेंदों में 19 रन बनाकर काउंटर अटैक किया। सचिन फ़्लो में थे और उस वक़्त ऐसा लग रहा था कि भारत ऑस्ट्रेलिया को कड़ी टक्कर देगा। मगर, फिर असली तमाशा शुरू हुआ आठवें ओवर की दूसरी गेंद से। सहवाग भी खड़े-खड़े ऑफ़ स्टंप के बाहर की शॉर्ट पिच बॉल खेल गये और ली की एक साधारण गेंद पर गिलक्रिस्ट को कैच दे बैठे। इसके बाद बल्लेबाज़ी करने आये राहुल भी जेसन गिलेस्पी की पहली ही बॉल पर बोल्ड हो गये। अब सबकी निगाहें पिछले मैच के हीरो युवराज सिंह पर टिकी थी।

यह भी पढ़ें:- राहुल तेवटिया: कैसे लिया पोंटिंग की हँसी का बदला।

Yuvraj Singh NaaradTV
Yuraj Singh in 2003 Cricket world Cup

युवराज सिंह जब ग़लत फ़ैसला का शिकार हुए-

मगर, युवराज बदकिस्मती का शिकार हुए और अशोका डी सिल्वा ने ग़लत फ़ैसला करते हुए युवराज को मैक्ग्राथ की गेंद पर एल.बी.डबल्यू. आउट करार दिया। यूवी के बाद बल्लेबाज़ी करने आये कैफ़ भी सिर्फ़ 1 रन बनाकर गिलेस्पी के शॉर्ट पिच गेंद के जाल में फँसकर आउट हो गये और इस तरह देखते ही देखते भारत का स्कोर 1 विकेट पर 41 रन से 5 विकेट पर 50 रन हो गया। भारत मुश्किल में फंसा हुआ था।

Harbhajan Singh 2003
Harbhajan Singh 2003

हरभजन सिंह के 28 रनों ने भारत की बचाई लाज-

लेकिन, एक उम्मीद थी कि पिच पर अब भी सचिन मौजूद हैं। मगर, जब 78 के स्कोर पर सचिन 36 रन बनाकर आउट हुए तो भारतीय बल्लेबाज़ी बस औपचारिकता रह गयी थी। हालाँकि, हरभजन सिंह के 28 रनों ने भारत को 100 रन के अंदर पहले आउट होने वाली बदनामी से बचा लिया। मगर, अन्य किसी खिलाड़ी से योगदान ना मिलने के चलते भारत का स्कोर सिर्फ़ 125 रन तक ही पहुँच पाया और पूरी टीम 42वें ओवर में आउट हो गयी।

भारतीय बल्लेबाज़ी की ख़स्ता हालत का अंदाज़ा इस बात से लगाया जा-सकता है कि 11 में से 7 बल्लेबाज़ तो 9 से ज़्यादा रन बना ही नहीं पाये। जबकि, भारत के 125 रनों में 16 एक्स्ट्राज़ का भी योगदान था।

   दोस्तों, किसी भी गेंदबाज़ी लाइनअप को जब सिर्फ़ 125 रन डिफेंड करने के मिलते हैं। तब आधे से ज़्यादा कंधे तो मैदान पर उतरने से पहले ही झुक जाते हैं। ऐसे में सामने हेडेन और गिलक्रिस्ट की तूफ़ानी जोड़ी हो तो गेंदबाज़ी करने का भी मन नहीं करता है। ऐसा ही कुछ हाल था उस रोज़ भारतीय गेंदबाज़ी का। मैच की दूसरी पारी में गिलक्रिस्ट और हेडेन ने अटैकिंग मोड में बल्लेबाज़ी शुरू की।

ख़ासतौर पर गिलक्रिस्ट जिस अंदाज़ में रन बना रहे थे, वो भारतीय बल्लेबाज़ों के लचर प्रदर्शन के बाद पूरे देश को एक ताना लग रहा था। वो तो कुंबले पर ज़्यादा अटैक करने के चक्कर में गिलक्रिस्ट 48 रन बनाकर हेडेन के साथ 100 रनों की साझेदारी करके आउट हो गये। वरना भारत को 10 विकेट से हार का कलंक भी झेलना पड़ता।

इसके बाद तीसरे नम्बर पर बल्लेबाज़ी करने आये कप्तान पॉइंटिंग मैच और जल्दी ख़त्म करना चाहते थे। इसलिये, उन्होंने तेज़ 24 रन बनाये और ऑस्ट्रेलिया 9 विकेट से मैच जीत गया। इस करारी हार के बाद भारत के लिये सबसे बड़ी परेशानी थी गर्त में जा चुके रन रेट को बेहतर करना। इसके लिये अगले सभी 5 मैच जीतने ज़रूरी थे। मगर, उस वक़्त भारतीय टीम बिखर चुकी थी। जिसका असर भारत मे भी दिख रहा था।

Indian Cricket Team Sachin Tendulkar NaaradTV
Sachin Tendulkar

भारत की हार-

भारत की हार से नाराज़ दर्शकों ने कैफ़ के घर पत्थरबाज़ी की और सड़कों पर पुतले फूंके। जिसके बाद सचिन तेंदुलकर को प्रेस कॉन्फ्रेन्स करनी पड़ी। जिस मे सचिन ने सभी क्रिकेट लवर्स से भारतीय टीम पर भरोसा करने के लिये हाथ जोड़कर विनती की।

सचिन की रिक्वेस्ट के बाद आगज़नी और हिंसा तो रुक गई। मगर, भारतीय टीम का खेल बेहतर होना अभी बाकी था। अब ये खेल बेहतर होगा या नहीं ये तो ‘रिवाइंड वर्ल्ड कप 2003’  श्रंखला के अगले एपीसोड्स में पता चलेगा। मगर, हम अपने दर्शकों से बस यही कहना चाहेंगे कि ‘पिक्चर अभी बाक़ी है मेरे दोस्त’।

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