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क्यों अर्जुन के पुत्र ने ही किया अर्जुन का वध:अर्जुन उलूपी की प्रेम कथा

अर्जुन उलूपी की प्रेम कथा Arjuna and Ulupi: Mahabharata Katha

दोस्तों कहा जाता है कि एक योद्धा की परिभाषा सिर्फ युद्ध कौशल और शस्त्रों अस्त्रों तक सिमित नहीं होती है, इन सबके अलावा किसी इंसान को महान योद्धा बनने के लिए एक कोमल हृदय और प्रेम की जरूरत भी होती है।

इनके बिना कोई इंसान योद्धा तो बन सकता है लेकिन महान और महानतम जैसे आयाम उससे अछूते ही रहेंगे।

महाभारत की कहानी भी कई योद्धाओं को हमसे रुबरु करवाती है जिसमें अर्जुन और कर्ण को सबसे बड़ा धनुर्धर बताया गया है क्योंकि उनकी जिंदगी में प्रेम भी वही स्थान रखता था जो किसी योद्धा की जिंदगी में अस्त्र और शस्त्र रखते हैं।

नारद वाणी के आज के इस एपिसोड में हम आपको अर्जुन की जिंदगी से जुड़े इसी अनछुए पहलू के बारे में बताएंगे।

कैसे अर्जुन बने नागवंशियों के मित्र

महाभारत की कथा के अनुसार जब पांडवों और कौरवों में अपने राज्य और अधिकारों को लेकर विवाद बढ़ने लगा तो घर के बड़ों ने महाराज धृतराष्ट्र के सामने हस्तिनापुर के विभाजन को मंजूर कर लिया और धृतराष्ट्र के कहने पर युधिष्ठिर ने खांडवप्रस्थ को स्वीकार कर लिया था।

खांडवप्रस्थ यमुना के पश्चिमी तट पर स्थित एक उजड़ा हुआ और पथरीला स्थान था जहां नागवंशी रहा करते थे।

मय दानव की सहायता से पांडवों ने खांडवप्रस्थ को इंद्रप्रस्थ में बदल तो लिया लेकिन उनके इस कार्य से नागलोक के वासी पांडवों के दुश्मन बन गए थे।

Arjun and Uloopi

आगे चलकर युधिष्ठिर ने जब श्रीकृष्ण के कहने पर नागलोक के वासियों को अपना मित्र बनाने का विचार किया तो उन्होंने अर्जुन को नागलोक के राजा से मिलने भेजा था।

यह युधिष्ठिर की तरफ से मित्रता अभियान की शुरुआत थी जिसके तहत वो अपने आसपास के प्रमुख राजाओं को मित्र बनाना चाहते थे और इसकी जिम्मेदारी पुरी तरह से अर्जुन के कंधों पर थी।

कैसे हुआ अर्जुन और उलूपी का विवाह

खांडवप्रस्थ से निकलने के बाद नागलोक वासियों ने अपना आवास एक नदी को बना लिया था, अर्जुन जब उस नदी के किनारे पहुंचे तो वहां उनकी मुलाकात नागराज कौरव्य की बेटी उलूपी से हुई थी, उलूपी अर्जुन को अपने साथ नागलोक ले गई जहां पहुंचकर उलूपी ने अर्जुन के सामने शादी करने का प्रस्ताव रखा, जिसे अर्जुन ने भी मान लिया था।

इसके बाद उलूपी ने अर्जुन और नागलोक वासियों की मित्रता करवाई और फिर सबकी सहमति से अर्जुन और उलूपी ने वहीं पर गंधर्व विवाह कर लिया था।

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अर्जुन हमेशा के लिए नागलोक में नहीं रह सकते थे और नागलोक की एक परम्परा के अनुसार उलूपी भी अर्जुन के साथ नहीं आ सकती थी इसलिए जब अर्जुन ने नागलोक से प्रस्थान करने का मन बनाया तो उलूपी ने अर्जुन को अपने गर्भ में पल रहे शिशु के बारे में बताया था।

कुछ दंत कथाओं के अनुसार उलूपी अर्जुन से विवाह करने से पहले एक विधवा का जीवन व्यतीत कर रही थी, उलूपी के पहले पति को गरुड़ ने मार दिया था, जिसके बाद नागराज कौरव्य के कहने पर अर्जुन ने उलूपी को अपनी भार्या के रूप में स्वीकार कर लिया था।

कैसे हुआ अर्जुन और चित्रांगदा का विवाह

नागलोक से निकलने के बाद अर्जुन अपने मित्रता अभियान को आगे बढ़ाने के लिए मणिपुर पहुंचे जहां उनकी मुलाकात मणिपुर की राजकुमारी चित्रांगदा से हुई थी।

कृष्ण के कहने पर और राज्यों में वैवाहिक सम्बन्ध स्थापित करने के लिए अर्जुन ने मणिपुर के राजा के सामने चित्रांगदा से विवाह करने का प्रस्ताव रखा था जिसे मणिपुर के राजा चित्रवाहन ने मान लिया लेकिन उन्होंने अर्जुन के सामने एक शर्त रख दी जिसके अनुसार चित्रांगदा से ‌पैदा होने वाला पुत्र इंद्रप्रस्थ जाने की बजाय  मणिपुर राज्य का राजा बनेगा।

मणिपुर के राजा की इस शर्त के पीछे भी एक कहानी है जिसके अनुसार मणिपुर के एक राजा प्रभंजन को जब बहुत प्रयासों के बाद भी संतान की प्राप्ति नहीं हो रही थी तो उन्होंने भगवान शिव की आराधना की थी जिससे प्रसन्न होकर भगवान शंकर ने उनके साथ साथ उनके कुल को भी यह आशीर्वाद दिया था कि उनके बाद मणिपुर राज्य के हर राजा को एक संतान की प्राप्ति होगी।

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भगवान शिव के उस आशीर्वाद के चलते चित्रवाहन को एक पुत्री प्राप्त हुई थी जिसे अपना उत्तराधिकारी बनाने के लिए चित्रवाहन ने चित्रांगदा की परवरिश एक पुत्र की तरह ही की थी।

लेकिन अब जब उसकी शादी हो रही है तो उससे उत्पन्न होने वाली संतान ही मणिपुर राज्य का अगला शासक बन सकती है।

अर्जुन ने पुरी बात समझने के बाद चित्रवाहन की यह शर्त स्वीकार कर ली और इस तरह अर्जुन का विवाह चित्रांगदा से हो गया था।

कुछ समय बाद चित्रांगदा ने एक बेटे को जन्म दिया जिसका नाम बभ्रुवाहन रखा गया था, बेटे के जन्म के बाद अर्जुन मणिपुर से इन्द्रपस्थ चले गए थे।

इन्द्रपस्थ जाने के बाद जुए के खेल का आयोजन, वनवास और फिर महाभारत का युद्ध शुरू होने के कारण अर्जुन बहुत समय तक अपने पुत्र बभ्रुवाहन और चित्रांगदा से नहीं मिल पाए थे हालांकि उलूपी के पुत्र इरावन ने महाभारत के युद्ध में हिस्सा लिया था जिसमें वो पांडवों की तरफ से लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हो गया था।

किन्नर समाज में आज भी इरावन को एक देवता के रूप में मान्यता प्राप्त है।

क्यों हुआ अर्जुन और उनके पुत्र के बीच युद्ध

महाभारत युद्ध के बाद युधिष्ठिर ने वेदव्यास के कहने पर अश्वमेध यज्ञ का आयोजन किया था और घोड़े की सुरक्षा का भार अर्जुन को दिया गया था, कई राज्यों से मित्रता करने और कई राज्यों से युद्ध करने के बाद अश्वमेध यज्ञ का वह घोड़ा मणिपुर की सीमाओं में चला जाता है जहां चित्रवाहन के बाद अर्जुन का पुत्र बभ्रुवाहन राजा बन गया था।

बभ्रुवाहन पांडवों के साथ संधि करने को तैयार नहीं था और इसीलिए उन्होंने अश्वमेध यज्ञ के उस घोड़े को बांध लिया था।

बभ्रुवाहन को यह ज्ञात नहीं था कि अर्जुन उसके पिता है और ना ही अर्जुन को यह पता था कि बभ्रुवाहन उसका बेटा है।

अर्जुन जब घोड़े को छुड़वाने के लिए बभ्रुवाहन के पास जाता है तो वहां पिता और पुत्र के बीच भीषण युद्ध होता है, जब बहुत प्रयासों के बाद भी दोनों के बीच जीत हार का निर्णय नहीं हुआ तो बभ्रुवाहन ने कामख्या देवी द्वारा आशीर्वाद में प्राप्त तीर का संधान किया जिससे अर्जुन का सिर धड़ से अलग हो जाता है और इस तरह अर्जुन की मृत्यु हो जाती है।

जब यह सुचना बभ्रुवाहन अपनी मां को सुनाता है तब उसे पता चलता है कि अर्जुन उसके पिता थे, अपने पिता को मारने के पाप का प्रायश्चित करने के लिए बभ्रुवाहन आत्मदाह की कोशिश करता है लेकिन चित्रांगदा उसे रोक लेती है।

क्यों हुई अर्जुन की मृत्यु

अर्जुन की मृत्यु के पीछे कारण अर्जुन को मिला श्राप भी था जो उन्हें मां गंगा से मिला था क्योंकि अर्जुन ने उनके बेटे भीष्म को छल से युद्ध में हराया था।

उलूपी और श्रीकृष्ण को जब अर्जुन की मृत्यु का समाचार मिला तो उन्होंने मां गंगा से अर्जुन को पुनर्जीवित करने की प्रार्थना की जिसके जवाब में मां गंगा ने उन्हें एक रास्ता बताया जिसके अनुसार अर्जुन के सिर और धड़ को एक साथ रखकर यदि उस पर नागलोक की नागमणि को रख दिया जाए तो अर्जुन पुनर्जीवित हो सकता है।

उलूपी और बभ्रुवाहन ने मां गंगा के बताए मार्ग पर चलकर अर्जुन को पुनर्जीवित कर दिया जिसके बाद स्वर्ग गमन तक अर्जुन अपने परिवार के साथ रहे थे।

तो दोस्तो इस तरह अर्जुन ने अपने जीवन में चार विवाह किए थे, पहला विवाह द्रौपदी से, दुसरा सुभद्रा से तीसरा उलूपी से और चौथा चित्रांगदा से किया था।

कुछ मतों के अनुसार चित्रांगदा अर्जुन की तीसरी पत्नी थी और उलूपी को अर्जुन की चौथी पत्नी थी लेकिन बी आर चोपड़ा की महाभारत जिसके आधार पर इस आर्टिकल का ज्यादातर हिस्सा लिखा गया है उसके अनुसार यही क्रम सही है जो यहां बताया गया है।

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