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नवाज़ुद्दीन सिद्दिक़ी: वो एक्टर जिसने अपनी मेहनत के दम पर अपनी मंज़िल को हासिल किया।

दोस्तों आज हम फ़िल्मी दुनियाँ के एक ऐसे सफल कलाकार के बारे में चर्चा करेंगे जो आज हर संघर्ष कर रहे कलाकार के लिये एक प्रेरणा का स्रोत है। न सिर्फ कलाकार बल्कि कोई भी व्यक्ति किसी भी क्षेत्र में यदि अपना एक मुकाम बनाना चाहता है तो ऐसे ही सफल व्यक्तित्व उसे प्रेरित करते हैं और उनके जुनून व संघर्ष की कहानियाँ ताउम्र एक मिसाल की तरह मार्गदर्शन का काम भी करती रहती हैं।

दोस्तों आज हम जिस सफल कलाकार की बात करने वाले हैंं वो किसी तारीफ़ के मोहताज नहीं हैं फिर भी औपचारिकता के लिये हम उनका एक छोटा सा परिचय दे देते हैं।

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नवाज़ुद्दीन सिद्दिक़ी

नवाज़ुद्दीन सिद्दिक़ी का जन्म-

इस प्रतिभावान कलाकार का जन्म उत्तर प्रदेश स्थित ज़िला मुज़फ्फ़रनगर के बुढ़ाना गाँव में 19 मई 1974 को हुआ था नाम है नवाज़ुद्दीन सिद्दिक़ी

दोस्तों नवाज़ुद्दीन सिद्दिक़ी का नाम सुनते ही हम सबकी आँखों के सामने एक सशक्त अभिनेता की छवि उनके द्वारा निभाये हर चरित्र के रूप में उभर कर सामने आ जाती है।

वैसे तो नवाज़ुद्दीन जी के संघर्ष और उनके बारे में बहुत से वीडियो आपने देखे ही होंगे और उनके बारे में बहुत कुछ जानते भी होंगे। इसलिये आज हमलोग उनके फ़िल्मों और उनकी जीवनी पर चर्चा ना करके कुछ अलग और थोड़ा हट के बातें करेंगे। 

ऊगर आप ये सोच रहे हैं कि हम उनसे जुड़ी किसी कॉन्ट्रोवर्सी पर बात करेंगे तो तो ये सही नहीं है। दोस्तों नारद टी वी की कोशिश यही रहती है कि आपके समक्ष हमेशा सही और अच्छी जानकारियाँ आ सकें साथ ही आप उससे कुछ सीख भी ले सकें।

आज हमारी चर्चा का विषय है नवाज़ुद्दीन की सफलता की असल वज़ह .. जो कि नवाज़ुद्दीन ने ख़ूद अपने एक मोटीवेशनल स्पीच में बड़े ही विस्तार से समझा कर बताया। नवाज़ुद्दीन ने अपनी सफलता की जितनी भी वज़हें बतायीं वो हम सबको जाननी और समझनी चाहिए। 

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नवाज़ुद्दीन सिद्दिक़ी

नवाज़ुद्दीन सिद्दिक़ी का अभिनय जगत के प्रति जज्बा –

दोस्तों जब नवाज़ुद्दीन ने अभिनय को ही अपना कैरियर बनाने के बारे फ़ैसला लिया तो  जिसने भी सुना उन्हें हतोत्साहित ही किया। नवाज़ुद्दीन ने हमेशा इस बात को स्वीकार किया कि लोगों का कहना सही ही था क्योंकि फ़िल्मों में काम करने के लिये हर किसी के दिमाग़़ में एक विशेष रंग-रूप एक ख़ास क़द-काठी की ईमेज बनी होती है और नवाज़ बिल्कुल विपरीत एक दुबला पतला साँवला सा साढ़े पाँच फीट के आस-पास की हाईट का अत्यंत साधारण सा लड़का।

भला कोई कैसे मान सकता था कि एक ऐसा गाँव जहाँ बिजली तक ना के बराबर आती हो उस गाँव का लड़का दिल्ली मुंबई जैसे शहर में जा के संघर्ष कर सकेगा। लेकिन नवाज़ुद्दीन को एक बात अच्छी तरह पता थी कि जब अभिनय का ख़्वाब ख़ूद उन्होंने देखा है तो उसका रास्ता भी ख़ूद उन्हें ही ढूँढ़ना होगा और उसपे चलना भी  ख़ूद ही होगा।

दोस्तों ऐसा नहीं है कि नवाज़ुद्दीन ने अभिनय का ख़्वाब देखा औय निकल पड़े मुंबई एक्टर बनने बल्कि नवाज़ ने बहुत ही समझदारी से एक एक क़दम आगे बढ़ाया और धैर्य से काम लिया।

सबसे पहले उन्होंने दिल्ली के राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय में दाख़िला लिया और अभिनय को विधिवत सीखने का फैसला किया जिसे वो अपना कैरियर बनाना चाहते थे। साइंस से स्नातक नवाज़ुद्दीन ये अच्छी तरह जानते थे कि किसी भी क्षेत्र में एक ख़ास मुकाम बनाने के लिए उस क्षेत्र में पारंगत होना बहुत ज़रूरी है।

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नवाज़ुद्दीन सिद्दिक़ी

नवाज़ुद्दीन सिद्दिक़ी का संघर्ष-

वो ये अच्छी तरह जानते थे कि उनके व्यक्तित्व में ऐसी कोई बात नहीं थी कि कोई उनको देखकर आसानी से फ़िल्मों में काम दे देगा और ना ही फ़िल्म इन्डस्ट्री में कोई उनको जानने वाला ही था जो उनकी मदद कर देगा। इसलिए उन्होंने ये फैसला लिया कि यदि वो अपने काम में निपुण रहेंगे उन्हें जो भी काम मिलेगा उसे वो बख़ूबी अंजाम दे पायेंगे।

नवाजुद्दीन बताते हैं कि जब वो मुंबई आये तो यहाँ की दौड़ती भागती ज़िंदगी से डर गये और 10-15 दिन तो घर से निकले ही नहीं। लेकिन काम तो करना ही था घर से निकलना ही था। उन्होंने बताया कि जब वो काम की तलाश में किसी के पास जाते तो उनको देखते ही वो आदमी साफ मना कर देता और हँसी उड़ाने के अंदाज़ में पूछता कि उन्हें एक्टर बनना है?

 नवाज़ इन सब बातों से प्रभावित न होकर काम की तलाश करते रहे और जो भी छोटे-मोटे काम मिले उसे दिल लगा कर करते रहे। इस कठिन संघर्ष में धीरे-धीरे 10-12 साल गुज़र गये।

बीच में एक ऐसा वक़्त भी जब नवाज़ को लगा कि अब उन्हें मुंबई से लौट जाना चाहिए लेकिन दो वज़हों ने उन्हें वापस जाने से रोक लिया एक तो उनकी माँ की चिट्ठी जिसमें उनकी माँ ने लिखा था कि 12 साल में तो कचरे के दिन भी बदल जाते हैं फिर तू तो एक इंसान है तेरे भी बदलेंगे। सभी के कभी न कभी अच्छे दिन आते हैं तो तेरे भी आयेंगे हिम्मत मत हार।

दूसरा उन्हें ये सोच के हमेशा डर लगता कि गाँव गया तो गाँव वाले बोलेंगे कि हमने पहले ही कहा था कि तुझे फ़िल्म में कोई काम नहीं देगा और अगर वो दिल्ली अपने रंगमंच के साथियों के पास लौटते तो वो भी उनपे हँसते और कहते कि आ गया लौट के तू भी। उन्होंने सोच लिया कि अब जो करना है यहीं करना है।

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माँ की चिट्ठी में लिखी वो पंक्ति
माँ की चिट्ठी में लिखी वो पंक्ति-

नवाज़ का कहना हमें कुछ ऐसी प़क्तियों पर विश्वास करना ही होता है जो बुरा वक़्त आने पर भी हौसला टूटने नहीं देता और उनके लिये उनकी माँ की चिट्ठी में लिखी वो पंक्ति भी यही काम करती थी।

दोस्तों नवाज़ अपनी सफलता का श्रेय संघर्ष में बीते उन्हीं 10-12 सालों को देते हैं। वो बताते हैं कि उसी दौरान उन्हें ढेरों लोगों से मिलने का मौक़ा मिला जिसमें उन्हें हर तरह के क़िरदारों को समझने का भरपूर वक़्त भी मिला जो आज उन्हें अलग अलग भूमिकाओं को निभाने में काम आते हैं।

जब नवाज़ के पास काम नहीं था तो बजाय निराश होने के उन्होंने ख़ुद को बतौर अभिनेता और तैयार कर लिया। उनका कहना है कि जब भी उन्हें किसी का चरित्र अभिनय के लिए मिलता है तो ऐसा लगता है कि जैसे ये कोई जाना पहचाना आस पास का ही व्यक्ति है।

शायद इसलिए नवाज़ुद्दीन जी का अभिनय बहुत सहजता के साथ सबके दिलों पे अपनी एक अमिट छाप छोड़ जाता है और दर्शक भी उन्हें एक नेचुरल एक्टर के रूप में जानते व मानते हैं।

दोस्तों नवाज़ुद्दीन सिद्दिक़ी जी का संघर्ष, जुनून और विपरीत परिस्थितियों को भी एक अवसर बना लेना ये सभी जीवन में अनुसरण करने योग्य हैं। उनका हर हाल में सकारात्मकता को बनाये रखना वास्तव में सबको एक बहुत बड़ी प्रेरणा देता है।

 

 

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