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क्या श्रीराम मांसाहारी थे ?

मित्रों, हो सकता है आज का ये पोस्ट शीर्षक आपको विवादित लग रहा हो, और हो भी क्यों न? जब कोई हमारे इस्ट देवता या देवियों के बारे में विवादित रूप से प्रचार करता है, या उनके बारे में अनुचित शब्दों का इस्तेमाल करता है, तो जाहिर सी बात है की ऐसी बातें सुनकर हमें जरुर तकलीफ होगी। बात केवल सनातन धर्म की ही नही हैं, अगर कोई भी किसी और धर्म के लिए विवादित बयान देगा या उसका गलत प्रचार करेगा, तो उस धर्म के अनुयायी निश्चित तौर पर उसका विरोध करेंगे।

श्रीराम के विषय में ऐसी बहुत सारी बातें आज भी कुछ अज्ञानी लोग फैलाते रहते हैं, जो की वास्तविक तथ्यों से कोसों दूर है। इसी बीच अक्सर कुछ मूर्ख ये भ्रम भी फैलाते हैं की श्रीराम मांसाहारी जरुर रहे होंगे क्योकि वो एक क्षत्रिय थे, और पशुओं का आखेट भी किया करते थे। हम आपको याद दिलाना चाहेंगे की, पिछली एक पोस्ट में हमने एक बहुत महत्वपूर्ण विषय पर चर्चा की थी, जिसमे मांस खाने और उससे होने वाले दुस्परिणामों के बारे में बताया गया था।

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भगवान श्रीराम

क्या श्रीराम मांसाहारी थे ?

इसी के चलते कुछ विद्वानों ने हमसे ये भी प्रश्न किया की क्या श्रीराम मांसाहारी थे? और अगर नही, तो वो जंगलों में शिकार क्यों किया करते थे? हालांकि बड़े-बड़े धर्मशास्त्रों में मांस का सेवन करना बहुत ही अनुचित बताया गया है, तो फिर श्रीराम, जो की खुद भगवान विष्णु के अवतार थे, वो मांस का सेवन कैसे कर सकते थे। लेकिन शायद ये तर्क भी पर्याप्त न हो, ये सिद्ध करने के लिए की श्रीराम मांसहारी नही थे।

इसलिए इस बात को सिद्ध करने के लिए आज हमने एक बार फिर सारी रामायणों की जो मूल रामायण श्रीमद्वाल्मीकी रामायण है, उसका अध्यन किया और उनमे से लिए गए पुख्ता तथ्यों के साथ आज हम ये सिद्ध करेंगे की श्रीराम बिलकुल भी मांसाहारी नही थे।

इस बात को सिद्ध करने से पहले आज हम एक और बात भी सिद्ध करेंगे की क्या वास्तव में श्रीराम, भगवान् विष्णु के अवतार थे। क्योकि कुछ मूर्ख आज भी इस बात को नही मानते और एक निराधार सा तर्क देते हैं की श्रीराम तो एक आम इंसान थे और इसलिए भी वो मांसाहारी थे।

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वाल्मीकि रामायण के बालकाण्ड के अनुसार

वाल्मीकि रामायण के बालकाण्ड के अनुसार-

जब रावण के अत्याचार से देवता बहुत ज्यादा परेशान हो गए तो सभी देव, गंधर्व और यक्ष, परमपिता ब्रम्हा के साथ वैकुण्ठ लोक, भगवान् विष्णु की शरण में गये। वहाँ उन सभी ने रावण के अत्याचार से छुटकारा पाने के लिए, श्रीहरि से प्रार्थना की।

बालकाण्ड के पन्द्रहवें सर्ग के अट्ठाईस और उन्तीसवे श्लोक के अनुसार-

भगवान विष्णु ने देवताओं की प्रार्थना सुनकर उनसे कहा की- हे देवताओं! मै बहुत ही जल्द इस धरती पर मनुष्य रूप में अवतार लूँगा, और समय आने पर रावण के साथ-साथ उसके जितने भी सगे-सम्बन्धी हैं, उन सभी का संहार करूंगा और लगभग ग्यारह हजार सालों तक पृथ्वी पर निवास करूंगा। इस तथ्य से एक बात तो बिलकुल ही स्पष्ट हो जाती है की, श्रीराम भगवान् विष्णु के ही अवतार थे।

अब श्रीराम के मांसाहारी होने या न होने पर बात करें, तो कुछ लोगो का कहना है की वाल्मीकि रामायण में श्रीराम के द्वारा आखेट करने के बारे में या खाने के विषय को लेकर कुछ श्लोक लिखे गए हैं, जहां मांस शब्द का प्रयोग हुआ है, जिसका मतलब है की श्रीराम मांसाहारी रहे होंगे। तो ऐसे बुद्धजीवियों के लिए भी हमने वाल्मीकि रामायण के उन श्लोकों का भी अध्यन किया, जिसके अर्थ का अनर्थ अक्सर लोग किया करते हैं।

श्रीराम द्वारा आखेट के सम्बन्ध में अगर बात की जाए तो अयोध्याकाण्ड के पचपनवे सर्ग के बत्तीसवें श्लोक के अनुसार- जब श्रीराम, लक्ष्मण और सीता वन में चलते चलते एक कोस की दूरी पार कर लिए तो, रास्ते में जितने भी हिंसक पशु दिख रहे थे, जिनके द्वारा वहाँ के आम नागरिकों को ख़तरा था, ऐसे पशुओं का वध करते हुए दोनों भाई यमुना नदी के समीप के जंगलों में घुमने लगे।

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अयोध्याकाण्ड

अयोध्याकाण्ड के छपन्वे सर्ग के अनुसार-

जब श्रीराम, लक्ष्मण और सीता वनों में घूमते घुमते महर्षि वाल्मीकि के आश्रम जा पहुचे, तब श्रीराम ने लक्ष्मण को आदेश दिया की तुम वन में जाकर लकड़ी की व्यवस्था करो, क्योकि कुछ समय के लिए मै वाल्मीकि आश्रम के पास ही अपनी एक कुटिया बनाकर रहूँगा।

इसी सर्ग का बाईसवा श्लोक, जो कुछ इस तरह से है की-

एनेयम मांसमाह्त्य शालां यक्श्यामहे वयम।

कर्तव्यं वास्तुश्म्नम सौमित्रे चिरजीविभिः।।

इस श्लोक के अनुसार- श्रीराम, लक्ष्मण से कहते हैं की- हे लक्ष्मण! तुम इसी समय गजकंद नाम के कंदमूल का गूदा लेकर आओ, जिससे की कुटिया बनने के बाद हम इसी फल के गूदे से वास्तुशांति के लिए देवताओं की पूजा करेंगे।

लोगों में मांस शब्द को लेकर वहम न बना रहे इसलिए, इस श्लोक के ठीक नीचे इस बात को और साफ़ तरीके से लिखा गया है की, श्लोक में बताए गए एनेयम मानसम् का अर्थ गजकंद नाम के कंद के गूदे से है।

इस प्रसंग में मांस का अर्थ मांसाहारी होने से कतई नही है। इसी से सम्बन्धित आगे के तेईस, पचीस, छबीस और सत्ताइसवे श्लोक में भी उसी कंदमूल फल को पकाकर खाने और धर्म आचरण के साथ रहने की बात कही गयी है।

अयोध्याकाण्ड के छ्यान्बे सर्ग का पहला श्लोक-

तां तदा दर्शयित्वा तु मैथिलीं गिरिनिम्रीगाम।

निषसाद गिरिप्रस्थे सीतां मांसेन छ्न्दयन।।

इस श्लोक के अनुसार- जब वनों में घूमते घूमते श्रीराम, लक्ष्मण और सीता के साथ चित्रकूट पहुचे, तब श्रीराम ने माता सीता को मन्दाकिनी नदी के दर्शन करवाए और उसके बाद श्रीराम, माता सीता के साथ उसी चित्रकूट के पर्वतीय प्रदेश में बैठकर कंदमूल फल के गूदे खाकर वहाँ के वातावरण का आनंद लेने लगे। इसी के आगे दुसरे श्लोक में भी श्रीराम इसी कंदमूल फल की विशेषता बताते हुए कहते हैं की, इस कंद को बहुत ही अच्छे तरीके से सेंका गया है, और इसलिए ये इतना ज्यादा स्वादिष्ट है।

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अरण्यकाण्ड के चौवालिस्वा सर्ग का सताइस्वा श्लोक-

निहत्य पृषतं चान्यम मांसमादाय राघवः।

त्वरमानो जनस्थानं ससारिभिमुखमं तदा।।

ये प्रसंग तब का है, जब श्रीराम हिरणरुपी मारीच का पीछा करते हुए अपना एक बाण उस पर छोड़ते हैं, तो उस बाण के लगते ही वो अपने असली रूप में आ जाता है और बड़ी ही तेजी से लक्ष्मण और देवी सीता को पुकारने लगता है। इस श्लोक के अनुसार- मारीच द्वारा इस तरह से चिल्लाने पर श्रीराम को सीता और लक्ष्मण की चिंता होने लगती है और वे तपस्वियों के खाने लायक कंदमूल फलों को लेकर तुरंत ही पंचवटी की ओर बड़े ही उतावलेपन के साथ चल देते हैं।

अरण्यकाण्ड के अडसठवें सर्ग में रावण द्वारा मारे गए जटायु का, श्रीराम द्वारा किये गए अंतिम संस्कार के बारे में बहुत ही विस्तार से वर्णन किआ गया है। इसके बतीस्वें और तैतीसवे श्लोक में भी मांस शब्द का प्रयोग किया गया है, लेकिन वास्तव में उसका अर्थ कुछ इस तरह से है की- जटायु के अंतिम संस्कार की विधि को पूरा करने के लिए श्रीराम, अपने भाई लक्ष्मण के साथ तुरंत ही जंगल से रोही नाम के ढेर सारे कंद को लेकर आये और उन्ही कंद के गूदों को निकालकर उन्होंने उनका पिंड बनाया और फिर उन्हीं पिंड का दान किया।

किष्किन्धाकांड के सत्रहवे सर्ग में जब श्रीराम ने बाली का वध करने के लिए उस पर बाण चलाया तब, उनके बाण से घायल होकर बाली ने श्रीराम से अनेक सवाल किये की आखिर उसे किस गलती के लिए श्रीराम ने उस पर तीर छोड़ा। इसी सर्ग के अडतीसवें श्लोक में खुद बाली ने भी श्रीराम से कहा की- आप तो मर्यादा पुरुषोत्तम हैं, आप जैसे धर्मात्मा तो कभी भी मांस को हाथ तक नहीं लगाते, तो फिर किस कारण आपने मुझे अपने बाणों का शिकार बनाया।

इसके बाद सबसे पुख्ता प्रमाण हमें वाल्मीकि रामायण के सुन्दरकाण्ड में भी पढने को मिलता है, जिसमें खुद महाबली हनुमान ने श्रीराम के मांस न खाने की पुष्टि की है।

सुन्दरकाण्ड के छातीस्वें सर्ग का एक्तालिस्वा श्लोक-

न मांसं राघवो भुन्ग्कते न चैव मधु सेवते।

वन्यं सुविहितं नित्यं भक्त्मश्रती पञ्चमं।।

इस श्लोक के अनुसार- हनुमान जी अशोक वाटिका में माता सीता को, श्रीराम की दिनचर्या के बारे में बताते हुए कहते हैं की- हे माता! आप तो जानती ही हैं की कोई भी रघुवंशी न तो मांस का सेवन करता है और न ही मदिरा पीता है। और ठीक इसी तरह मेरे प्रभु श्रीराम भी चारों समय उपवास करके, पांचवे समय जंगली फलफूल और कंदमूल खाकर अपना समय गुजारते हैं।

वाल्मीकि रामायण के इन ख़ास तथ्यों को आज हमने आपके सामने रखा,और आपने इस बात को जरुर गौर किया होगा की जिन-जिन श्लोकों में मांस शब्द आया है, उसका मतलब किसी मीट-मांस से नही बल्कि जंगलों में होने वाले कंदमूल फलों के गूदों से है, जिसका बहुत स्पष्ट शब्दों में वर्णन मिलता है। आशा है आज की इस पोस्ट को देखने के बाद उन लोगों के मन से ये दुविधा हमेशा के लिए खत्म हो जाएगी, और उन्हें ये बात बिलकुल स्पष्ट हो जाएगी की श्रीराम मांसाहारी बिलकुल भी नही थे।

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