Uncategorized

Origin And Evolution of Cricket Broadcast

50 हजार रुपए से 15 हजार करोड़ रुपए तक का सफर किस तरह तय किया भारतीय क्रिकेट बोर्ड ने
हम भी दरिया हैं हमें अपना हुनर मालूम है
जिस तरफ भी चल पड़ेंगे रास्ता हो जायेगा।
बशीर बद्र साहब की कलम से निकले इन शब्दों को अगर भारतीय (Indian) क्रिकेट सफर की नजर से देखें तो पता चलता है कि आज से 96 साल पहले शुरू हुए इस सफर में बहुत सी मुश्किलें (Difficulties) आई, बहुत रुकावटें आई लेकिन इस दरिया ने अपना रास्ता बनाया और बस चलता रहा, कुछ खिलाड़ियों (Players), कप्तानों (Captains) और अपने एडमिनिस्ट्रेशन (Administration)  का साथ और सहयोग (Support) भी इस सफर में दरिया को मिला और आज पैसे, शोहरत और कामयाबी (Success) का जो अंतहीन समुद्र आप देख रहे हैं यह उसी ज़िद (Stubbornness) का परिणाम है जिसने उन लोगों को और इस क्रिकेट (cricket) बोर्ड को रुकने नहीं दिया।
तो आज नारद टीवी की सीरीज मार्वलेस (Marvaless)  मैन एंड मूमेंट्स (Moments) की इस पोस्ट्स में हम बीसीसीआई (BCCI) के फर्श से अर्श तक पहुंचने की इसी नायाब कहानी (Story) को आपके सामने रखने वाले हैं जिसमें कुछ लोगों का और कुछ पलों का बहुत बड़ा योगदान है।

BCCI

तो दोस्तो कहानी की शुरुआत होती है साल 1926 से,भारत में क्रिकेट की शुरुआत हुए एक अरसा बीत गया था लेकिन अंतरराष्ट्रीय (International) क्रिकेट तक पहुंचने के लिए इंग्लिश खिलाड़ियों (Players) अपने खेल से खुश करना बहुत जरूरी था।
ऐसे में साल 1926 में यह तय हुआ कि पूर्व इंग्लिश कप्तान (Captain) आर्थर गिलिगन की कप्तानी (Captaincy) में एमसीसी (AMCC) की एक टीम भारत का दौरा करेगी और वहां अलग अलग टीमों के साथ 26 मैच खेले जायेंगे।
इस दौरे के दौरान एक मैच द हिंदुंज और एमसीसी के बीच भी खेला गया जिसमें कर्नल (Conol) सीके नायडू ने 1 दिसम्बर के दिन ग्यारह छक्कों (Sixes) की मदद से महज कुछ मिनटों में खूबसूरत 153 रनों की वो ऐतिहासिक (Historical) पारी खेली जिसे देखकर आर्थर गिलिगन को यह यकीन हो गया था कि अब भारत टेस्ट (Test) क्रिकेट के लिए तैयार हैं।
आर्थर गिलिगन और बाकि इंग्लिश खिलाड़ियों के भरोसे को देखते हुए भारत को आईसीसी (Icc) का सदस्य (Member) बनाने की कोशिशें (Try) शुरू हो गई जिसमें आखिरी कड़ी के तौर पर दिसंबर 1928 में एक मीटिंग (Meeting) बुलाई गई और यहां बीसीसीआई (Icc) का निर्माण किया गया।
ग्रांट गोवन बीसीसीआई के पहले प्रेजीडेंट (President) बनाये गए और एन्थनी डी मेलो को पहला सेक्रेटरी (Secretary) बनाया गया, ये दो वो लोग थे जिन्होंने बीसीसीआई (Bcci) के निर्माण के लिए देश की सभी बड़ी टीमों और खिलाड़ियों (Players) को एकजुट करने मेंzdsss महत्वपूर्ण (Important) भूमिका निभाई थी।
भारत को अगले पांच महीनों (Months) में आईसीसी (ICC) का फुल मेम्बर (Member) सदस्य बना दिया गया और अब इंतजार पहले टेस्ट मैच का था।
भारत में क्रिकेट (Cricket)  को प्यार करने वाले और इस खेल (Game) को बढ़ावा देने वाले अलग-अलग लोगों में पटियाला के महाराज भूपेंद्र सिंह का नाम बड़ी इज्जत से लिया जाता है, साल 1911 का इंग्लैंड (England) दौरा और फिर साल 1926 में एमसीसी (MCC) टूर (Tour) इन्हीं की देखरेख और स्पोशरशिप में पुरा हुआ था।
और अब जब यह तय हो गया था कि भारतीय (Indian) टीम 1932 में इंग्लैंड (England) का दौरा करने वाली है तो भूपेंद्र सिंह ने पुरी टीम को अपने महल में रखा और उनके लिए ट्रेनिंग (Training) की भी पुरी व्यवस्था (Arrangement)  करवाई, इसके अलावा जो सबसे बड़ी बात पढ़ने को मिलती हैं वो ये है कि महाराज भूपेंद्र सिंह जी ने इस दौरे के लिए 50000 रुपए की बड़ी रकम भी चुकाई थी ताकि खिलाड़ियों (Players) को इंग्लैंड में किसी तरह की परेशानी का सामना ना करना पड़े।
25 जून साल 1932 के दिन भारतीय टीम अपना पहला टेस्ट (Test) मैच (Match) खेलने उतरी और शानदार प्रदर्शन किया। महाराजा भूपेंद्र सिंह के अलावा विजी और होल्कर के महाराजाओं ने भी इस दौरान क्रिकेट (Cricket) को बढ़ावा देने के लिए काम किया था, भारतीय (Indian) टीम के पहले कप्तान (Captain) नायडू को होल्कर के महाराजा ने अपनी सेना में कर्नल का पद (Post) दिया था ताकि ये पैसों की चिंता किये बिना क्रिकेट (Cricket) खेल सके, इसके अलावा भी अलग-अलग महाराजाओं ने अलग-अलग खिलाड़ियों (Players) जैसे अमरनाथ और मुश्ताक अली को अपने यहां काम दिया था।

ये भी पढ़े – 2003 World Cup Story:World Cup In A Glance

मगर जिन खिलाड़ियों को महाराजाओं के यहां कोई काम नहीं मिलता था उन्हें किसी और किसी तरह से अपना गुजारा चलाना पड़ता था, ऐसे में भारत की अंतरराष्ट्रीय (International) टीम के पहले विकेटकीपर (Wicketkeeper) जनार्दन नवले की कहानी (Story) सामने आती हैं जिन्हें क्रिकेट के बाद सिक्योरिटी (Security) गार्ड (Guard) के तौर पर भी काम करना पड़ा था।
खैर समय (Time) का पहिया चलता रहा, साल 1936 में विजी और अमरनाथ के बीच (Between) जो हुआ उसे भारत (Indian) के अंतराष्ट्रीय (International) क्रिकेट इतिहास (History) का पहला विवाद (Controversy) माना जाता है जिसके चलते अमरनाथ उस दौरे पर टेस्ट (Test) मैचों (Matches) का हिस्सा (Part) नहीं बन पाये और फिर इन्हें अपना तीसरा टेस्ट (Test) मैच खेलने के लिए दस सालों का इंतजार (Wait) करना पड़ा था।
विजी एक प्रतिद्वंद्वी (Rival) भावना रखने वाले व्यक्ति (Person) थे और भारत में क्रिकेट (Cricket) को लेकर उनकी प्रतिद्वंद्विता (Rivalry)  के किस्से (Story) भूपेंद्र सिंह जी के साथ अलग-अलग मौकों पर सुनने को मिल जाते है, साल 1936 में जब विजी भारतीय (Indian) टीम के कप्तान (Captain) बने तो टीम के कुछ खिलाड़ी (Player) इस फैसले (Decision) से खुश नहीं थे, ऐसे में इस दौरे के दौरान उन्होंने एक दिन मुश्ताक अली को अपने पास बुलाया और उन्हें सोने की घड़ी देते हुए कहा कि तुम्हें कल मर्चेंट (Merchant) को जानबूझकर रनआउट (Run out) करवाना है क्योंकि मर्चेंट उनके पास नायडू को कप्तान (Captain) बनाने की सिफारिश लेकर आये थे, हालांकि मुश्ताक ने उनका यह ओफर ठुकरा दिया था।
विजी जहां एकतरफ प्रतिद्वंद्वी (Rival) और ईर्ष्या (Jealousy) रखने वाले व्यक्ति थे तो वहीं भारतीय (Indian) क्रिकेट और इसके खिलाड़ियों के लिए उनके मन में प्यार भी था, विजी भारतीय क्रिकेट इतिहास (History) में एकमात्र ऐसे खिलाड़ी थे जिन्हें नाइटहुड ओफर किया गया था लेकिन उन्होंने अपने देश (Country) को प्राथमिकता देते हुए इसे लौटा (Returns) दिया और फिर जब वीजी को साल 1954 में बीसीसीआई (BCCI) की कमान सौंपी गई तो वीजी ने लाला अमरनाथ और एंथनी डी मेलो के बीच चल रही तनातनी में लाला अमरनाथ का साथ दिया था।
लाला अमरनाथ और एंथनी डी मेलो के बीच हुआ विवाद (Controversy) आजादी के बाद भारतीय क्रिकेट में घटित हुआ पहला बड़ा विवाद था, दरअसल उस समय (Time) भारत आने वाली टीमों (Teams) को भारतीय टीम से ज्यादा अच्छा खाना, रहने की जगह और सारी सुविधाएं दी जाती थी और भारतीय खिलाड़ियों (Players) को उनके मुकाबले बहुत कम चीजें ही मिलती थी।
तो ऐसे में जब लाला जी ने इसका विरोध किया और बीसीसीआई एडमिनिस्ट्रेशन (Administration) पर सवाल (Question) उठाए तो बीसीसीआई प्रेजिडेंट (Predijent) एन्थनी डी मेलो ने उन पर भ्रष्टाचार (Corruption) और रिश्वत (Bribe) लेने का आरोप (Blame) लगाकर उन्हें टीम से बाहर कर दिया था, ऐसे में डी मेलो के बाद प्रेजीडेंट (President) बने वीजी ने लाला जी पर लगे सभी आरोपों (Blames) से उन्हें मुक्त किया था।
साल 1947 में आजाद भारत की पहली टीम अमरनाथ की कप्तानी (Captaincy) में आस्ट्रेलियाई दौरे पर हवाईजहाज (Airplane) के जरिए पहुंची थी और क्रिकेट (Cricket) इतिहास में यह पहला मौका था जब किसी क्रिकेट टीम ने हवाई मार्ग से आस्ट्रेलिया में कदम रखा था।

ये भी पढ़े – Most memorable matches despite India’s defeat

इस दौरे के दौरान मेलबर्न मैच (Match) से पहले खबर आई कि महात्मा गांधी की हत्या (Murder) हो गई है, तो ऐसे में दोनों टीमों के खिलाड़ियों (Players) ने ब्लैक (Black) बैंड (Band) पहनकर मैदान पर उतरने का फैसला किया और पुरी भारतीय टीम तिरंगे को सेल्यूट (Salute) करने के बाद मैदान (Field) पर उतरने वाली थी लेकिन अमीर इलाही और गुल मोहम्मद ने ऐसा करने से मना कर दिया था क्योंकि उनका कहना था कि वो दौरा खत्म (Finish) होने के बाद पाकिस्तान की नागरिकता (Citizenship) प्राप्त करने वाले हैं तो हिंदुस्तानी झंडे (Flag) को सलाम नहीं करेंगे।
यह वो समय था जब भारतीय (Indian) खिलाड़ी राजाओं के दिए वेतन (Salary) पर गुजर बसर करते थे, सामान्य तौर पर भारतीय क्रिकेट में पैसा नहीं था और ऐसे में आजादी के बाद एक लंबा समय भारतीय क्रिकेट को आर्थिक तंगी में गुजारना पड़ा।
आस्ट्रेलियाई दौरे के बाद साल 1952 में इंग्लैंड टीम ने भारत का दौरा किया था और यहां मद्रास टेस्ट (Test) में भारतीय टीम को अपनी पहली जीत (Victory) हासिल हुई थी, इस दौरे पर भारतीय टीम की कप्तानी (Captaincy) विजय हजारे के हाथों में थी।
इस दौरान भारतीय क्रिकेट (Cricket) में शामिल रहे दत्ताजीराव गायकवाड़ ने अपने एक इंटरव्यू में बताया था कि भारतीय खिलाड़ियों को उस समय एक टेस्ट (Test) मैच के लिए महज 50 रुपए ही दिए जाते थे और इसी में खिलाड़ियों को अपना पुरा खर्च सम्भालना पड़ता था।
साल 1952 में ही जब भारतीय टीम ने इंग्लैंड (England) का दौरा किया तो एक कहानी यह सुनने को मिलती हैं कि इंग्लैंड में विजय हजारे की एक प्रशंसक (Fan) ने उन्हें अपने घर खाने पर बुलाया था, विजय हजारे ने जवाब में उनसे कहा कि आपके बुलावे के लिए धन्यवाद लेकिन उन्हें अभी खाने से ज्यादा पैसों की जरूरत (Important) है तो अगर आप उन्हें पैसे दे सकती है तो बहुत अच्छा होगा।
आज के परिप्रेक्ष्य में यह सब सोचना आपको अजीब लग सकता है लेकिन उस समय (Time) हालात ऐसे ही थे, भारतीय (Indian) खिलाड़ी पानी के जहाज से सेंकेड (Second) क्लास में सफर (Travel) करते हुए इंग्लैंड (England)  पहुंचते थे और इस सफर के दौरान बहुत से खिलाड़ी बीमार (Sick) भी हो जाते थे, तेज गेंदों से लगे घाव कई दिनों तक सही नहीं होते थे।
इंग्लैंड के बाद भारतीय टीम ने वेस्टइंडीज (West indies) के लिए अपना सफर शुरू किया जिसमें इस टीम ने लंदन (London) के आगे अपना सफर पानी की जहाज (Ship) में तय किया था, उस समय इंग्लैंड (England) और बारबाडोज के बीच केले का व्यापार (Business)  हुआ करता था और यह जहाज बारबाडोस से केले भरकर आई थी और वापस जाते समय इसी जहाज में भारतीय खिलाडियों ने अपना आगे का सफर तय किया था।
पचास का दशक (Decade) क्रिकेट के लिहाज से आजाद भारत का सबसे खराब समय था, महज पचास साठ रुपए में खिलाड़ियों को अपना पुरा खर्च निकालना पड़ता था ऐसे में खिलाड़ी कभी कभी एक वक्त का खाना भी छोड़ देते थे, लोंड्री (Loundy) का खर्च बचाने के लिए खिलाड़ियों को अपने कपड़े (CLoths) भी खुद साफ करने पड़ते थे, फटे पुराने पैड (Pad) और ग्लव्स (Gloves) के साथ खेलना पड़ता था।

ये भी पढ़े – Worst ending to glorious career of Martin Guptill

कप्तानी को लेकर भी खींच-तान चलती रहती थी, हर एक दो साल में कोई नया कप्तान (Captain) देखने को मिल जाता था, कुछ खिलाड़ियों (Players) को सिर्फ एक सीरीज (Series) या मैच (Match) के लिए ही कप्तान बनाया जाता था।
साल 1958 59 में वेस्टइंडीज सीरीज के दौरान पांच मैचों में चार खिलाड़ियों ने भारतीय टीम को लीड (Lead) किया था।
इसी दौरान टीम में जाति, प्रांत और ऊंच नीच को लेकर भी खिलाड़ी अलग-अलग खेमों में बंटे हुए थे, ऐसे में टीम का प्रदर्शन मैदान (Field) पर अच्छा होने की तो आशा (Hope) रखना भी गलत था, इंग्लैंड के खिलाफ पहला मैच जीतने (Win) के बाद पाकिस्तान के खिलाफ सीरीज जीतने के अलावा कुछ भी ऐसा नहीं हुआ जो इस दौर में याद करने लायक हो।
साल 1961 में इक्कीस साल के एक लड़के ने अंतरराष्ट्रीय (International) क्रिकेट में कदम रखा, इंग्लैंड से पढ़कर आये नवाब टाइगर पटौदी को नारी कोंट्रेक्टर (Contractor) के साथ हुई दुर्घटना (Accident) के बाद भारतीय टीम का कप्तान (Captain) बनाया गया, टाइगर पटौदी ही वो खिलाड़ी थे जिन्होंने अपनी टीम के खिलाड़ियों को भारतीय के तौर पर खेलना सिखाया था, न्यूजीलैंड के खिलाफ इन्हीं की कप्तानी (Captaincy) में भारतीय टीम को विदेशी जमीन पर अपनी पहली जीत हासिल हुई और बहुत से महान खिलाड़ियों ने भारतीय टीम में जगह बनाई।
यह वो समय था जब भारतीय खिलाड़ियों (Indian) को एक टेस्ट (Test) मैच के 250 रुपए मिलने लगे थे लेकिन फिर भी कप्तान (Captaincy) पटौदी को खिलाड़ियों के साथ मैनेजमेंट (Management) का बुरा व्यवहार (Behaviour) पसंद नहीं था, कहा जाता है कि न्यूजीलैंड के खिलाफ एक मैच (Match) के बाद जब खिलाड़ी अपनी फीस (Fees) लेने पहुंचे तो उन्हें सिर्फ 200 रुपए ही दिए गए, पचास रुपए इसलिए नहीं दिए गए क्योंकि वो मैच (Match) चार दिनों में खत्म हो गया था।
सुभाष गुप्ते की कहानी (Story) तो आपने सुनी ही होगी जिन्हें 1961 -62 इंग्लैंड सीरीज (Series) के बाद वेस्टइंडीज (West indies) दौरे से इसलिए बाहर कर दिया गया था क्योंकि वो उस कमरें (Room) में मौजूद थे जहां उनके साथी खिलाड़ी ने महिला से गलत तरीके से बात की थी। इस बेईमानी के बाद उन्हें बीसीसीआई (BCCI) से किसी तरह की उम्मीद (Hope) नहीं रही और वो त्रिनिदाद चले गए जहां अपनी पत्नी (Wife) और बेटी (Daughter) के साथ यह खिलाड़ी लंबे समय तक नौकरी करता रहा लेकिन भारत (India) वापस नहीं आया।
ऐसे में पटौदी और बिशन सिंह बेदी दो ऐसे खिलाड़ी थे जिन्होंने बीसीसीआई (BCCI) के इस रवैए के खिलाफ अपनी आवाज उठाई थी, बिशन सिंह बेदी को तो खैर आगे चलकर इसका खामियाजा भी बहुत बार भुगतना पड़ा लेकिन नवाब साहब को इससे कोई फर्क नहीं पड़ा क्योंकि उनके लिए 250 रुपए मिलना ना मिलना एक जैसी बात थी।
ऐसे में एक बार जब पटौदी को उनकी 250 रुपए की फीस (Fees) देर से दी गई तो उन्होंने वो रुपए वापस कर दिए और कहा कि ये आप बाहर मोची को दे दीजिए।
बात करें बिशन सिंह बेदी की तो बीसीसीआई के साथ इनकी खींचतान करियर (Career) के पहले मैच (Match) से ही शुरू हो गई थी।
साल 1966 में ईंडन गार्डन के मैदान पर वेस्टइंडीज (West Indies) के साथ होने वाले मैच के लिए कैपेसिटी (Capacity) से बीस हजार टिकटें अधिक बेची गई जिसके परिणामस्वरूप मैच के दुसरे दिन लोग मैदान (Field) तक पहुंच गये और एक बड़ा दंगा शुरू हो गया, आगजनी और तोड़फोड़ के साथ पीच को भी नुकसान पहुंचाया गया लेकिन इसके बावजूद भी क्रिकेट (Cricket) मैनेजमेंट (Management) ने मैच को जारी रखा और भारत यह मैच हार गई, कम्पनसेशन (Compensation) के तौर पर बीसीसीआई की तरफ से खिलाड़ियों (Players) को 100 रुपए का बोनस (Bonus) दे दिया गया।

ये भी पढ़े – 5 Historical Moment Which Changed Indian Cricket

बेदी ने अपना कप्तानी (Captaincy) करियर (Career) श्रीलंका के खिलाफ एक अनओफीशियल (Officially) टेस्ट से शुरू किया था जो नागपुर में हुआ, टीम को एमएलए (ML) होस्टल (Hostel) में रखा गया था जहां सर्दी के मौसम (Season) में नहाने के लिए गर्म पानी और अच्छे खाने की सुविधा सिर्फ मैनेजर (Manager) और कप्तान के लिए ही रखी गई थी।
बेदी को यह पसंद नहीं आया और उन्होंने इस बारे में जब विदर्भा क्रिकेट (Cricket) एसोसिएशन (Association) के सेक्रेटरी (Secretary) से पुछा तो जवाब (Answer) आया कि हमारे पास तो यही है आपको जो करना है कर लीजिए।
मामला जब बीसीसीआई (BCCI) तक पहुंचा तो बीसीसीआई मैनेजमेंट (Management) ने फाइव स्टार ओबरोय होटल में पुछताछ के लिए बेदी को बुलाया, यहां तो उन्हें कोई सजा नहीं दी गई लेकिन मैच (Match) के बाद टीम के साथ बेदी की टिकट (Ticket) दिल्ली के लिए बुक (Book) नहीं की गई, उन्हें लगेज रेक में अपना सफर तय करना पड़ा और फिर बेदी दिल्ली से चंडीगढ दिलीप (Dilip) ट्रॉफी (Trophy) मैच के लिए बस के जरिए पहुंचे।
यह वो दौर था जब भारतीय (Indian) खिलाड़ियों के लिए होटल (Hotel) की व्यवस्था मैच के पहले दिन से आखिरी दिन तक ही की जाती थी, कुछ दिन पहले पहुंचने वाले खिलाड़ी को कहीं और अपना समय गुजारना पड़ता था।
बेदी के करियर में वैसलीन टेस्ट (Test) की घटना भी सुनने को मिलती हैं जिसमें एक इंग्लैंड (England) क्रिकेटर (Cricketer) के खिलाफ बोलने की सजा यह मिली कि उन्हें कांउटी क्रिकेट से बाहर कर दिया गया और बीसीसीआई एडमिनिस्ट्रेशन (Administration)  कुछ नहीं कर पाया, यह पहला और आखिरी (Last) मौका नहीं था जब बीसीसीआई ने अपने खिलाड़ियों (Players) का साथ नहीं दिया था, 1974 इंग्लैंड (England) दौरे पर सुधीर नायक पर जब चोरी का झूठा आरोप (Blame) लगाया गया तब भी बीसीसीआई ने चुप रहना ही बेहतर समझा और सुधीर नायक को भी अपना पक्ष नहीं रखने के लिए बोल दिया गया था।
भारतीय क्रिकेट (Cricket) की जगह विश्व (World) क्रिकेट में लगभग पहले साठ सालों तक महत्वपूर्ण (Important) नहीं थी, विदेशी खिलाड़ी भारत में खेलना पसंद नहीं करते थे, कोई भी देश अपनी सबसे मजबूत टीम लेकर भारतीय (Indian) जमीन पर नहीं आता था, डोन ब्रैडमैन ने अपने करियर (Career)  में कभी भी भारतीय (Indian) जमीन पर कोई मैच नहीं खेला था, आस्ट्रेलियाई टीम सत्तर के दशक (Decade) में सिर्फ एक बार भारत आई थी। भारत और भारतीय क्रिकेट को बेकार समझा जाता था, भारतीय टीम के इंग्लैंड टूर्स (Tours) की कहानियां सुनाते हुए मदनलाल जी बताते हैं कि उन्हें सिर्फ एक बार ही खाना परोसा जाता था।
सत्तर का दशक भारतीय खिलाड़ियों के लिए एक तरह से राहत की सांस जैसा था, अंतरराष्ट्रीय (International) क्रिकेट के अलावा यह वो समय था जब अलग-अलग भारतीय (Indian) खिलाड़ियों (Players) को विज्ञापन और फ़िल्मों में भी काम करने का मौका मिलने लगा था, टेस्ट मैचों के लिए 750 रुपए मिलना शुरू हो गए थे।
सलीम दुर्रानी पहले भारतीय (Indian) क्रिकेटर थे जिन्हें किसी बोलीवुड (Bollywood) फिल्म में लीड (Lead) रोल दिया गया था, परवीन बॉबी की फिल्म चरित्र में इस खिलाड़ी ने मुख्य (Main) भूमिका निभाई थी।
इसके अलावा फारुख इंजीनियर विज्ञापन (Sponsor) में नजर आने वाले पहले खिलाड़ी बने जिन्हें ब्रिलक्रीम के विज्ञापन (Advertise) के लिए 2000 पाउंड दिए गए थे और इस दौरान जब भी फारुख बिना टोपी लगाए खेलते थे तो उन्हें कम्पनी (Company) की तरफ से बोनस (Bonus) भी दिया जाता था।

ये भी पढ़े – एशिया कप का इतिहास | History Of Asia Cup

सुनील गावस्कर को अपने पहले विज्ञापन के लिए जो शायद टेलकोम (Telcom) पाउडर (Powder) के लिए था 2000 रुपए दिए गए थे।
साल 1971 में जब भारतीय (Indian) टीम ने वेस्टइंडीज (West indies) और इंग्लैंड (England) को उनके देश (Country) में हराया तो वापस आने पर खिलाड़ियों को कोई बड़ा कैश (Cash) प्राइज नहीं दिया गया था, टीम के कप्तान (Captain) अजीत वाडेकर उस समय बैंक (Bank) में नौकरी (Job) करते थे तो उनको इस सीरीज (Series) के बाद प्रमोट (Promote) करके बैंक में जनरल (General) मैनेजर (Manager) बना दिया गया था।
वाडेकर ने लगभग 30 सालों तक बैंक में काम किया था और उनकी तरह बहुत से खिलाड़ी अलग-अलग जगहों पर क्रिकेट से अलग नौकरी किया करते थे।
साल 1975 में भारतीय खिलाडियों को 2500 रुपए हर टेस्ट (Test) मैच के लिए मिलने लगे थे लेकिन कोई बड़ा सुधार नहीं आया था, फस्ट (Frist) क्लास (Class) क्रिकेट खेलने वाले खिलाड़ियों के हालात तो इससे भी बुरे थे।
मगर कप्तानी (Captaincy) में फेरबदल, खिलाड़ियों के साथ नाइंसाफी और बोर्ड (Board) की खस्ता हालत का यह दौर जल्दी ही खत्म होने वाला था।
साल 1983 में तीसरे (Third) विश्व (World) कप (Cup) के लिए जब भारतीय (Indian) टीम इंग्लैंड के लिए रवाना हुई तो खिलाड़ियों को वनडे (ODI) मैच के लिए 1700 से 2100 रुपए दिए जाते थे, इंग्लैंड में कपिल देव की टीम ने शानदार प्रदर्शन किया और विश्व चैंपियन (Champion) बनकर वापस आई।
बीसीसीआई ने अपने खिलाड़ियों (Players) को इस बार शानदार उपहार (Gift) देने का फैसला (Decision) किया लेकिन यहां भी बीसीसीआई (BCCI) को अपने खिलाड़ियों के लिए ईनाम (Reward) राशि जुटाने के लिए दो सालों (Years) का समय (Time) लग गया था।
भारतीय क्रिकेट में पहली बार किसी टीम को एक लाख रुपए दिए गए थे, यहां से भारत में रंगीन टेलीविजन (Television) का दौर भी शुरू हो गया था जिसके जरिए आम लोग भी अपने हीरोज को खेलते हुए देख सकते थे, धीरे धीरे भारत में क्रिकेट ने लोकप्रियता (Popularity) के मामले में फिल्मों से लेकर होकी जैसे अन्य खेलों को पीछे छोड़ना शुरू कर दिया था।
भारत में एक नए बदलाव (Change) का आगाज तो हो गया था लेकिन अभी भी रास्ता साफ नहीं था, आर्थिक (Economic) रूप से अभी भी पुरी तरह से सुधार नहीं आया था, हालांकि विश्व (World) क्रिकेट का नजरिया बदलने लगा था।
अगले कुछ सालों में चैम्पियन (Champion) ओफ चैंपियंस का ताज भारतीय (Indian) टीम ने हासिल किया, विदेशी दौरों पर टीम का प्रदर्शन बेहतर होने लगा, अजहरुद्दीन अपने पहले तीन टेस्ट (Test) मैचों में शतक (Century) लगाने वाले पहले खिलाड़ी बन गए।
एक नई लहर शुरू हो गई थी, साल 1987 विश्व कप के लिए भारत और पाकिस्तान (Pakistan) साथ में आये और टूर्नामेंट (Tournament) सफल रहा।
अब भारतीय क्रिकेट को आर्थिक तौर पर पुरी तरह से मजबूत करने का समय था,साल 1992 में जब हिसाब लगाया गया तो बीसीसीआई (BCCI) 62 लाख रुपए के घाटे में चल रही थी क्योंकि उस समय बीसीसीआई को ब्रोडकास्ट (Broadcast) के लिए दुरदर्शन को हर मैच से पहले पांच लाख रुपए देने पड़ते थे।
लेकिन यहां साल 1993 से आंकड़े बदलना शुरू हुए, बीसीसीआई ने जगमोहन डालमिया के नेतृत्व (Leadership) में दुरदर्शन के साथ ब्रोडकास्टिंग (Broadcast) को लेकर चल रहे केस में जीत हासिल की।
इसी साल भारत और इंग्लैंड के बीच होने वाली सीरीज के लिए बीसीसीआई ने टीडब्लयूआई (TWI) को 6 लाख डॉलर (Dollar) की कीमत पर राइट्स (Rights) दिए और फिर दुरदर्शन भी कड़ी में शामिल हो गया।

ये भी पढ़े – Dark side of MS Dhoni Captaincy

इसके बाद डीडी (DD) ने 240 करोड़ की रकम देकर चार सालों के लिए टेलीकास्ट (Telecast) राइट लिए और देखते-देखते तस्वीर बदलने लगी, जगमोहन डालमिया को आईसीसी (ICC) प्रेसिडेंट (President) बनाया गया, बांग्लादेश (Bangladesh) को टेस्ट स्टेटस (States) मिला, देश (Country) और देश के बाहर कोका (Coca) कोला (Cola) कप, पेप्सी (Pepsi) कप और ना जाने कितने अलग-अलग टुर्नामेंट्स (Tournament) हुए और फिर साल 1996 विश्व कप की कामयाबी बीसीसीआई (BCCI) के सफर में एक बड़ा मोड़ थी।
भारतीय टीम में अब कोच (Coach) को पांच लाख (Lakh) रुपए मिलने लगें थे, सचिन तेंदुलकर जैसे खिलाड़ी विज्ञापनों के जरिए करोड़ों रुपए कमा रहे थे, अनिल कुंबले को 50 से साठ हजार (Thousand) पाउंड काउंटी क्रिकेट खेलने के लिए मिल रहे थे।
बीसीसीआई की पकड़ आईसीसी (ICC) और विश्व क्रिकेट में मजबूत होने लगी थी, सचिन को बोल टेम्परिंग (Tempering) विवाद (Controversy)  से छुटकारा दिलाने से लेकर मंकी गेट (Gate) विवाद में हरभजन सिंह पर लगे बैन (Ban) को हटाने तक और उसके बाद भी कई मौकों पर इस पकड़ का असर भी देखने को मिला।
साल 2008 में आईपीएल (IPL) की शुरुआत हुई और उसके बाद की कहानी से तो आप सभी वाकिफ (Aware) हैं।
भारतीय क्रिकेट आज विश्व में हर फैसले (Decision) पर अपना असर रखती है, बीसीसीआई की नेटवर्थ (Networth) आज लगभग 15 से 20 हजार करोड़ रुपए है और इसी का परिणाम है कि आज के समय में हर खिलाड़ी को एक टेस्ट (Test) मैच के लिए 1975 की तुलना में 600 गुना से भी ज्यादा पैसे दिए जाते हैं।
आज से लगभग 96 साल पहले जिस बोर्ड (Board) की नींव (Base) रखी गई थी, जिसे दस से ग्यारह लाख रुपए जुटाने में दो साल लग गए थे और जिसकी फाइलों में सालाना बासठ (62) लाख (Lakh) का नुक़सान दर्ज था उसे जगमोहन डालमिया जैसे महान लोगों ने उस स्तर (Level) तक पहुंचा दिया है जहां तक पहुंचने के बारे में सोचना भी कुछ बोर्डस (Boards) के लिए असम्भव (Impossible) है।
कहानियां बहुत सारी है अगर आपने चाहा तो हम आगे भी ये सफर जारी रखेंगे इसी उम्मीद (Hope) के साथ कि आपको हमारी यह पोस्ट पसंद आई होगी आज के इस एपिसोड में बस इतना ही मिलते हैं आपसे अगले एपिसोड में तब के लिए नमस्कार।

वीडियो देखे –

Show More

Related Articles

Back to top button