
आपने रामायण से जुड़ी बहुत सी कथाएं सुनी होंंगी। परन्तु बहुत सी कथायें ऐसी भी हैं जिन पर कम ही चर्चा होती है। उन्हीं में से एक कथा राजा दशरथ के मुकुट से भी जुड़ी है।
इस कथा को सुनने के उपरांत न सिर्फ रामायण से जुड़ा एक नया प्रसंग सुनने को मिलता है बल्कि रानी कैकेई का भी एक अलग रूप जानने को मिलता है।
राजा दशरथ जब भी जंगल में भ्रमण करने निकलते तो प्रायः अपनी पत्नी कैकयी को भी अपने साथ लेकर जाया करते थे और वन में आखेट के साथ-साथ कई बार तो युद्ध के दौरान भी कैकयी राजा दशरथ के साथ रहतीं।

जब राजा दशरथ और बाली में हुआ युद्ध-
एक बार की बात है राजा दशरथ और कैकयी वन भ्रमण के लिये निकले जहाँ उनका सामना बाली से हुआ। बाली जो कि हर समय अपने बल के मद में चूर रहता था उसने राजा दशरथ को युद्ध के लिए चुनौती दे दी।
उत्साह में आकर राजा दशरथ ने इस चनौती को स्वीकार भी कर लिया। परंतु वो इस बात को भूल गए कि बाली को उसको मिले वरदान के अनुसार ऐसी शक्ति प्राप्त है कि जो भी उससे युद्ध करेगा उसकी आधी शक्ति बाली को मिल जायेगी।
अतः एक बात तो सुनिश्चित थी कि युद्ध में पराजय राजा दशरथ की ही होनी थी।
राजा दशरथ द्वारा अपनी पराजय स्वीकार करने के पश्चात बाली ने उनके आगे एक शर्त रखी कि या तो वे रानी कैकेयी को उसे सौंप दें या फिर उन्हें रघुकुल की शान यानि अपना मुकुट उसे सौंपना होगा।
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मरता क्या न करता हारकर राजा दशरथ ने अपना मुकुट बाली को सौंप रानी कैकेयी के साथ वापस अयोध्या लौट आए।
इसके आगे की कथा से तो आप सभी भली-भांति परिचित ही हैं कि कैसे श्रीराम और माता सीता लक्ष्मण जी सहित वनवास गये और माता सीता का अपहरण हुआ। कैसे वे वन में हनुमान जी से मिले और सुग्रीव की सहायता हेतु बाली से युद्ध किया।
युद्ध में बाली को मार गिराने के पश्चात और उसकी मृत्यु से पूर्व प्रभु श्रीराम ने अपना परिचय देकर बाली से जब महाराज दशरथ के मुकुट के बारे में पूछा तब बाली ने बताया कि “एक बार मैंने रावण को बंदी बनाया था जिसने बाद में छल पूर्वक उस मुकुट को चुरा लिया और अपने साथ लेकर भाग गया।

हे प्रभु यदि आप मेरे पुत्र अंगद को अपनी सेवा का अवसर दें तो एक दिन वह अपने प्राणों पर खेलकर आपका मुकुट रावण से लेकर आएगा।
कैसे मिला राजा दशरथ को उनका मुकुट वापस-
लंका पहुंचने के पश्चात जब अंगद को श्री राम जी का दूत बनकर रावण की सभा में भेजा गया जहाँ पहुँच कर अंगद ने उस सभा में उपस्थित लंका के वीरों को अपना पैर हिलाकर दिखाने की चुनौती दे दी, तब रावण के महल के सभी योद्धाओं ने अपनी पूरी शक्ति अंगद के पैर को हिलाने में लगा दी परन्तु कोई भी योद्धा अंगद के पैर को न हिला सका।
जब रावण की सभा के हर योद्धा ने अंगद के पैर को हिलाने में अपनी पराजय स्वीकार कर ली तब स्वयं रावण अंगद के पास पहुँचा और अंगद के पैर को पकड़ने के लिए जैसे ही झुका तो रावण के सिर से वह मुकुट नीचे गिर गया और अंगद ने उस मुकुट को उठाकर सीधा श्री राम को लाकर सौंप दिया।
इस प्रकार रघुकुल की लाज और राजा दशरथ का राज मुकुट दोनों की ही वापसी हो गयी।
एक मान्यता यह भी है कि जब राजा दशरथ ने मुकुट के बदले रानी कैकेई को बाली के चंगुल से छुड़ा लिया तो रानी कैकयी को इस बात का अत्यंत दुख हुआ कि उनके कारण ही महाराजा दशरथ को अपने मुकुट से वंचित होना पड़ा है।
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उन्हें दिन रात उस मुकुट की चिंता सताती रहती थी। जब श्रीराम के राजतिलक का समय आया तब दशरथ और कैकयी के बीच पुन: एक बार मुकुट को लेकर चर्चा हुई।
इस बात का पता भी सिर्फ उन्हें ही था। विभिन्न मान्यताओं के अनुसार कैकेयी ने रघुकुल की उसी लाज को वापस लाने के लिए ही श्री राम को वनवास भेजने का कलंक अपने माथे पर लिया था।
उन्होंने श्री राम को वनवास भेजने से पहले बाली से मुकुट वापस लेकर आने के लिये भी कहा था। रानी कैकयी यदि श्री राम को वनवास नही भेजती तो रघुकुल का यह सम्मान कभी वापस नही लौट पाता।
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कैकयी ने कुल के सम्मान के लिए सभी कलंक एवं अपयश अपने ऊपर ले लिए इसीलिए श्री राम अपनी माताओं में सबसे ज्यादा प्रेम कैकयी को करते थे।