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कहानी पी. आर. मान सिंह की जिनकी भूमिका फिल्म 83 में पंकज त्रिपाठी कर रहे है।

किसी भी टीम की सफलता या जीत के पीछे टीम के एक एक व्यक्ति की लगन और मेहनत छुपी होती है। ऐसे में सामने नज़र आने वाले का योगदान तो हर किसी को दिखाई दे जाता है लेकिन पर्दे के पीछे खड़े व्यक्ति को वह सम्मान नहीं मिल पाता जो उसे मिलना चाहिए।

ऐसे ही एक व्यक्ति हैं जिनकी बदौलत भारत ने न सिर्फ 83 का वर्ल्डकप जीता बल्कि भारतीय क्रिकेट के साथ पूरे देश का सिर दुनियाँ में गर्व से ऊँचा कर दिया, और वह व्यक्ति हैं पूर्व क्रिकेटर पी आर मानसिंह जिन्होंने वर्ष 1983 में भारतीय टीम का कुशल प्रबंधन कर भारत को क्रिकेट में विश्व विजयी बनाया।

मानसिंह जी के बारे में लोग बेशक़ कम जानते और बात करते हैं लेकिन भारतीय क्रिकेट में  उनके योगदान को कभी नहीं भूलाया जा सकता है।

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P R Mansingh

पी आर मानसिंह (P R Mansingh) –

भारतीय क्रिकेट टीम के टीम मैनेजर और 1983 में भारत की विश्व कप जीत का एक अभिन्न हिस्सा रहे पी आर मानसिंह जिन्हें सभी प्यार से ‘मान साब’ कहा करते हैं उन्होंने न केवल भारतीय टीम को इतिहास रचने में मदद की बल्कि पूरे टूर्नामेंट के दौरान टीम इंडिया के बैकबोन भी बने रहे। वर्ष 1937 में जन्मे पीआर मान सिंह खुद भी एक क्रिकेटर थे।

वे दाएं हाथ के बल्लेबाज और ऑफ स्पिन गेंदबाज थे। उन्होंने 1965 और 1969 के बीच हैदराबाद के लिए पांच प्रथम श्रेणी मैच खेले साथ ही रणजी ट्रॉफी में हैदराबाद का प्रतिनिधित्व भी किया। बाद में 1983 विश्व कप के दौरान भारतीय क्रिकेट टीम के टीम मैनेजर बने।

दरअसल घरेलू टीम में प्लेइंग इलेवन में जगह बनाने के अवसरों की कमी के कारण, पी आर मान सिंह ने क्रिकेट में प्रशासनिक भूमिका निभाने की ओर मन बनाया, जिसकी शुरुआत हैदराबाद क्रिकेट एसोसिएशन से हुई थी।

भारतीय टीम के साथ पीआर मान सिंह का पहला कार्यकाल 1978 में उनके पाकिस्तान दौरे के दौरान नज़र आया था जब उन्हें सहायक प्रबंधक के रूप में नियुक्त किया गया था। बाद में, पीआर मान सिंह को 1983 विश्व कप अभियान से पहले 14 सदस्यीय भारतीय क्रिकेट टीम के प्रबंधक के रूप में नियुक्त किया गया था।

मानसिंह न सिर्फ़ टीम के मैनेजर थे बल्कि छह सदस्यीय चयन समिति में भी शामिल थे, जिसने सर्वसम्मति से कपिल देव को टूर्नामेंट के लिए कप्तान नियुक्त किया था।

दोस्तों आपको यह जानकर ताज्जुब होगा कि 1983 में अपने विश्व कप अभियान के लिए इंग्लैंड के दौरे पर क्रिकेटर्स के अलावा सिर्फ़ मान सिंह ही एकमात्र सहयोगी सटाफ भी थे।

दरअसल मान सिंह जी ने ख़ुद ही ये सुनिश्चित किया था कि उन्हें किसी और की जरूरत नहीं है। मज़े की बात ये कि इस दौरे में मैनेजमेंट से लेकर खिलाड़ियों की हर ज़रूरत का ध्यान रखते थे। यहाँ तक कि कैशियर तक का काम भी उन्होंने ही सँभाला था।

दोस्तों 83 विश्व कप में भारत से उम्मीदें अधिक नहीं थीं। भारत ने उन दिनों शायद ही कभी एक दिवसीय क्रिकेट खेला हो और किसी को भी उनसे मैच जीतने की बिल्कुल भी उम्मीद नहीं थी। क्योंकि भारत ने पिछले दो विश्व कप में छह मैचों में से सिर्फ एक मैच ही जीता था। 1974 के बीच और विश्व कप से पहले, भारत ने कुल 40 मैच खेले थे और उनमें से केवल 12 मैच ही जीते थे।

मान सिंह ने विजडन प्रकाशन से एक बातचीत के दौरान बताया था कि “उस दौरान रवैया यह था कि हमें विश्व कप के लिए आमंत्रित किया गया था, इसलिए हम भी जा सकते हैं और खेल सकते हैं, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता।” मतलब कि वे जायें या न जायें इसमें किसी को कोई दिलचस्पी नहीं थी।

मान सिंह ने आगे बताया कि “मेरे हैदराबाद छोड़ने से पहले, मेरे पिता ने हमारी दुकान में अपने कर्मचारियों को एक कैबिनेट खाली कर दिया, यह कहते हुए, ‘मेरा बेटा कप लेकर वापस आएगा,” मान सिंह हँसकर कहते हैं कि उनके पिता शायद ऐसा सोचने वाला अकेले व्यक्ति थे तब।

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1983 विश्व कप

1983 विश्व कप-

दोस्तों भारत ने अपने 1983 विश्व कप अभियान की अच्छी शुरुआत की थी। डबल राउंड-रॉबिन ग्रुप चरण में खेलते हुए, भारत ने शक्तिशाली वेस्ट इंडीज पर और फिर जिम्बाब्वे के खिलाफ एक ठोस जीत हासिल की।

इसके बाद वे ऑस्ट्रेलिया और वेस्ट इंडीज से हार गए और जिम्बाब्वे के खिलाफ काफी तनाव में थे, कपिल देव की ऐतिहासिक पारी से जीत हासिल हुई।

इसके एक और मैच के बाद सेमी फाइनल में जीत हुई और वेस्टइंडीज को फाइनल में हराकर भारत विजयी बना। हालांकि इसके बाद वर्ष 1987 के वर्ल्ड कप में भी मान सिंह ने भारतीय टीम का प्रबंधन किया था लेकिन इस बार भारत को सेमीफाइनल  तक ही पहुंचकर संतोष करना पड़ा।

भारतीय टीम का प्रबंधन करने के बाद, मानसिंह मोइन-उद-दौला टूर्नामेंट में हैदराबाद ब्लूज़ का प्रबंधक बनाये गये इसके अलावा उन्होंने हैदराबाद क्रिकेट एसोसिएशन के सचिव के रूप में भी कार्य किया।

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फिल्म 83

फिल्म 83-

1983 वर्ल्डकप पर आधारित फिल्म 83 में मैनेजर पीआर मान सिंह की भूमिका निभाने वाले पंकज त्रिपाठी ने अपने इंटरव्यू में बताया कि, “जब मैं मानसिंह जी से मिला, तो मैंने उन्हें उल्लेखनीय पाया। वे बहुत ही सॉफ्ट स्पोकेन और खेल के प्रति समर्पित इंसान है।

क्रिकेट के प्रति उनका जुनून अविश्वसनीय है। उनके पास एक आंतरिक संग्रहालय है, उनके घर की पूरी तीसरी मंजिल क्रिकेट को समर्पित है।” जी हाँ दोस्तों करखाना, सिकंदराबाद में मान सिंह के निवास , जिसका नाम “पवेलियन” है, उसकी तीसरी मंज़िल पर उन्होंने एक संग्रहालय बनाया हुआ है।

जिसका उद्घाटन 2003 में सचिन तेंदुलकर ने किया था। संग्रह में सैकड़ों रेयरेस्ट और ऐंटिक क्रिकेट से संबंधित किताबें, टाई और बैट आदि शामिल हैं, जिन्हें उन्होंने 1950 के दशक से इकट्ठा किया था।

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एगोनी एंड एक्स्टसी

एगोनी एंड एक्स्टसी-

मानसिंह एक बढ़िया लेखक भी हैं और क्रिकेट पर कुछ किताबें भी लिख चुके हैं। भारतीय टीम के साथ अपने शानदार करियर के बाद, पीआर मान सिंह ने अपनी पुस्तक ‘एगोनी एंड एक्स्टसी’ में अपनी पूरी यात्रा को लिखा है।

इस किताब में उन्होंने एक खिलाड़ी के रूप में अपने कार्यकाल से लेकर भारतीय ड्रेसिंग रूम में अपने अनुभवों को सूचीबद्ध किया है।भारत की वर्ल्ड कप जीत के बाद, मान सिंह ने पत्रिका विजडन क्रिकेट के संपादक डेविड फ्रिथ को एक ऐसा पत्र लिखा था जिसके बाद उन्हें शर्मिंदा होना पड़ा था।

दरअसल पत्रकार डेविड फ्रिथ वो शख्स थे जिन्होंने टीम इंडिया के 1983 वर्ल्ड कप में जीत की संभावना को ना के बराबर बताया था। दरअसल अब तक के दो विश्व कपों में भारतीय टीम का रिकॉर्ड निराशाजनक रहा था क्योंकि 1975 में भारत ने पूर्वी अफ्रीका के खिलाफ एक मैच जीता था, और शेष दो में भारी हार का सामना करना पड़ा था।

डेविड फ्रिथ
डेविड फ्रिथ
डेविड फ्रिथ-

1979 में भी भारत अपना कोई भी गेम नहीं जीता था। डेविड फ्रिथ ने लिखा था कि भारतीय टीम विश्वकप खेलने लायक नहीं है। और अगर भारतीय टीम टूर्नामेंट जीतेगी तो वह अपने शब्दों को यानि आर्टिकल के पूरे पन्ने को खा जाएंगे। डेविड फ्रिथ की यह भविष्यवाणी गलत साबित हुई। जिसके बाद मान सिंह ने विजडन पत्रिका को बाकायदा एक चिठ्ठी लिखी।

मान सिंह ने लिखा था कि डेविड फ्रिथ को अपने कहे के मुताबिक अब अपनी बातों पर अमल करना चाहिए। हालांकि मान सिंह ने फ्रिथ को कागज खाने के दौरान उसके साथ ठंडे या गर्म तरल पदार्थ की मदद लेने की पूरी छूट भी दी।

मज़े की बात कि डेविड फ्रिथ ने 1983 के अखबार में मान सिंह के पत्र की एक प्रति के साथ अपनी एक तस्वीर भी शेयर की जिसमें डेविड फ्रिथ के मुंह में एक कागज का टुकड़ा था और उसका शीर्षक था, ‘भारत ने मुझे मेरे शब्दों को खाने पर मजबूर किया।’ उन्होंने जो तस्वीर पोस्ट की थी उसमें वह कागज के टुकड़े में चॉकलेट मिलाकर खा रहे थे और उनका चेहरा पूरी तरह से लटका हुआ था। दोस्तों यह एक खेल भावना और मानसिंह जी के सम्मान को भी दर्शाता है जो उन्हें पूरी दुनियाँ देती है।

Cricket World Cup Trophy
लंदन स्टेडियम
स्टेडियम के गाइड ने गलत जानकारी-

 ऐसा एक बार नहीं कई बार हुआ है जब उन्होंने अपनी बात बेझिझक लिखी और कही है। कुछ वर्षों पहले मानसिंह के बेटे और पोती लंदन के उसी स्टेडियम में गये जहाँ भारत ने 83 में विश्वकप जीता था। वहाँ मौजूद एक गाइड ने उनसे भारतीय टीम को लेकर कुछ ग़लत जानकारी बतायी जिसके बारे जानकर उन्हें कुछ डाउट हुआ उन्होंने मानसिंह को वो सारी बात बताई।

मानसिंह ने तुरंत लंदन मेल किया और लिखा कि आपके गाइड को सही जानकारी नहीं बतायी गयी है कृपया इसे ठीक करें। उसके बाद न सिर्फ़ अपने दस्तावेज़ में उस जानकारी को दुरुस्त किया गया बल्कि गाइडों को भी सही जानकारी समझायी गयी ताकि दोबारा भारतीय टीम को लेकर कोई ग़लत सूचना न जाये।

दोस्तों बेहद डिसीप्लीन्ड मानसिंह नियमों का सख़्ती से पालन करने के साथ-साथ ज़रूरत पड़ने पर नियम को तोड़ने से भी पीछे नहीं हटते थे। एक ऐसे ही बोर्ड के नियम उन्होंने 83 वर्ल्डकप के दौरान तोड़ा था वो भी अपने रिस्क पर, जब उन्होंने चार क्रिकेटर्स की पत्नियों को वर्ल्डकप के दौरे में, होटल में साथ रहने और टीम के साथ बस में यात्रा करने की अनुमति दी।

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