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ये कैसा रामयुग है ?

“राम” एक एसा नाम जिसे लेते ही मन में सकारात्मक उर्जा का संचार हो जाता है | करोड़ो हिन्दुओ की आस्था और भक्ति इस नाम से जुड़ी है |मर्यादाओ और सीमओं के प्रतिक श्रीराम भारतीय जनमानस की आस्था और आदर्श हैं , जिनके एक भी गुण को अगर मानव अपने जीवन में उतार ले तो उसका जीवन सफल हो जाये |

जब बात आये श्रीराम की और रामायण जैसे महाकाव्य की बात न हो तो चर्चा अधूरी से लगती है |सबसे पहले लिखी रामकथा जिसको काव्य के रूप में ढाला महाकवि वाल्मीकि ने | उनसे प्रेरित होकर कलियुग में इसी रामायण को अवध भाषा में काव्य बद्ध किया महाकवि तुलसीदास ने , जो आज भी घर घर में भरी श्रद्धा के साथ पढ़ी जाती है |

ये तो बात रही महाकाव्य और उनसे सम्बंधित कवियों के बारे में , लेकिन अगर बात करे भारतीय टेलीविजन की जिसमे सबसे पहले नाम आता है “श्रद्धेय डा.रामानंद सागर” कृत “रामायण” का जो दूरदर्शन पर दिनांक 24/01/1987 में प्रसारित किया गया था | यदि हम ये कहें की स्व.रामानंद सागर जी आज के समय के वो तुलसीदास है जिन्होंने श्रीराम की छवि के दर्शन टीवी के माध्यम से घर घर में कराये , तो ये कहना कही से भी गलत न होगा क्युकी जब भी रामायण अथवा उससे सम्बंधित किसी भी पात्र की चर्चा होती है तुरंत ही इस धारावाहिक में काम किये हुए किरदारों की छवि मन में बन जाती है|

अस्सी के दशक में बनायीं गयी ये रामायण बहुत ही सीमित संसाधनों के साथ बनायीं गयी थी , उस समय आधुनिक काल जैसे VFX EFFECT, नयी तकनीक वाले कैमरे नहीं होते थे लेकिन इन सबके बावजूद इस धारावाहिक को इतना प्रभावशाली और जिवंत बनाया गया जिसकी तुलना आज भी नही की जा सकती |

Dr. Ramanand Sagar (Ramayan)

धीरे धीरे समय बीतता गया , टेक्नोलॉजी बदली , नए संसाधन आये, नए नए डायरेक्टर्स ने रामायण की लोकप्रियता को देखते हुए सोचा की क्यों न हम भी रामायण को एक नया रूप देकर बनाये जैसे की – राम सिया के लव कुश, रामायण(2002), रामायण(2008), रामायण(2012), सिया के राम आदि | लेकिन इन सब ने भी वो छवि नहीं बना सके जो अस्सी के दशक में प्रसारित रामायण ने आज भी बना रखी है | ऐसा मै इसलिए कह रहा हूँ क्योकि पिछले साल लॉक डाउन में दिनांक 28/03/2020 को रामानंद सागर कृत रामायण का पुनः प्रसारण किया गया जो सबसे हाई TRP पर थी |

हाल ही में रामकथा को फिर से परदे पर उतरने की कोशिश की जाने माने निर्माता निर्देशक “कुणाल कोहली” ने जिसको नाम दिया “रामयुग” | जी हां कोशिश शब्द का प्रयोग मैंने इसलिए किया क्योकि इसमें रामायण के सभी पात्रो को आधुनिक युग में ढालने की कोशिश की गयी है |सभी पात्रो की वेश भूषा , चाल ढाल, संवाद इन सबको देखने से ऐसा लगता है की शायद हम रामायण नही बल्कि बाहुबली जैसी कोई फिल्म देख रहे हो |

शुरू में दिखाए गए ट्रेलर में एसा लगा की शायद रामयुग में कुछ नया प्रभावशाली देखने को मिलेगा लेकिन जब इसे विस्तार से देखा तो पता चला की इन्होने रामायण को ही नही बल्कि इनमे लिखे प्रसंग और तथ्यों का भी मजाक बना दिया है |

शुरुवात करते है वेश भूषा से , श्रीराम की छवि और वेश भूषा जो जनमानस में बसी हुई है |इस रामयुग में वो सारी चीजे इन सब चीजो से परे है |आज के ज़माने के हेयर स्टाइल , हलकी दाड़ी ,6-पैक अब्स जैसी चीजे जो श्रीराम के रूप में दिखाई गयी, बिलकुल अमर्यादित और उपहास भरा लगता है | जिन श्रीराम को एक साधारण, धर्म परायण, कर्मनिष्ठ, मर्यादा पुरषोत्तम दिखाना चाहिए था उन्हें एक एक्शन हीरो के रूप में दिखाया गया | जिन्हें भगवन श्रीहरि का अवतार कहा जाता है , उन्हें कोई चलता फिरता कूल बॉय दिखाकर पता नही ये क्या साबित करना चाहते हैं | जिन राम को हम जानते है वो बहुत ही शांत, उदारवादी और अपनी वाणी से सबको मोहने वाले हैं लेकिन ये सारे गुण रामयुग में कही भी नही दिखते|

रामायण एक श्रंखला है, एक कथा है जिसे शुरू से आखिरी तक पढ़ने या देखने में आनंद आता है लेकिन इन्होने इसमें मिर्च मसाला लगाकर केवल एक मिस्ट्री थ्रिलर बनाने की कोशिश की |वर्तमान की कथा दिखाते दिखाते ये कब पुरानी कथा पर चले जाते है पता ही नही चलता |

Ramyug

बात करें अगर सीता माँ के भूमिका की तो जहा तक मुझे याद है की माँ सीता की वो छवि है जिन्हें हम एक आदर्श नारी के रूप में देखते है ,जो पतिपरायण स्त्री है और अपनी मर्यादाओ को भली भाति समझती है |उस मर्यादा को इन्होंने पूरी तरह खंडित करते हुए दिखाया है |

रामायण एक मर्यादाओ की कथा है , कर्तव्य और धर्म से बनाये नियमो का समूह है रामायण |कुछ ऐसे प्रसंग इन्होने ऐसे दिखाए जो काफी विवादस्पद लगते है जैसे की :-

बात करे इसमें दिखाए गए सीता स्वयंवर की ,जिसमे सारी मर्यादाओ और संवाद को ताख पर रख दिया गया है | जैसे की , जब श्रीराम राजा जनक के महल में प्रवेश करते है तो वहा सीता जी उपस्थित रहती है , धनुष भंग करने के बाद सीता जी द्वारा कुछ ऐसा संवाद बुलवाया गया है की “ कहा मिलेंगे मुझे ऐसे मर्यादा पुरुषोत्तम दशरथ पुत्र रामचन्द्र “| आपको सुनने में जरुर कुछ अटपटा सा लगा होगा क्युकी माँ सीता के मर्यादा के अनुसार उन्होंने कभी भी श्रीराम का नाम अपने मुह से नहीं लिया बल्कि उन्हें प्रभु अथवा स्वामी कहकर ही संबोधित करती थी |हम ये कह सकते है की माँ सीता के भावात्मक और मर्यादा से भरे चरित्र को परदे पर उतरने में रामयुग पूरी तरह विफल रही|

वेब सीरीज को बनाने की इतनी जल्दी थी की इस कथा की मुख्य किरदार को जगह तक नही दी गई जैसे की वन गमन के समय के माता कौशल्या और कैकेयी को ही दिखाया गया , माता सुमित्रा की कही पर कोई भूमिका दी ही नही गयी |

बात करे मेघनाद वध की , जो की ये सब जानते है की रावन पुत्र मेघनाद परम प्रतापी था , वो भी रावन के ही सामान त्रिलोक विजेता और माया से संपन्न था | जिसकी मृत्यु के बारे में ये दिखाया गया है की जब वो नदी से स्नान करके लौट रहा होता है तभी विभीषण लक्ष्मण को साथ लेके उस नदी के तट पर पहुच जाते है , और लक्ष्मण ने एक ही बाण से नदी में ही मेघनाद का वध कर देते है बल्कि हकीकत में मेघनाद और लक्ष्मण का भीषण युद्ध हुआ उसके बाद लक्ष्मण मेघनाद को मार पाए| ऐसी ही कई ऐसे प्रसंग है जिन्हें बहुत ही अलग ढंग से और मुख्य तथ्यों से हटकर दिखाया गया है जैसे- कुम्भकर्ण वध, रावण वध, बाली वध आदि| जाम्बवंत जिनकी भूमिका किष्किन्धा काण्ड से लेके लंका कांड तक बहुत ही मुख्य थी, इस पूरी सीरिज में मैं उन्हें ढूढ़ते ढूँढ़ते थक गया बाद में पता चला की इस नाम का कोई पात्र ही नही दिखाया गया|

Ram, Lakshman and Sita of Ramyug

महाबली हनुमान जी की पूरी वेशभूषा के साथ उपहास मात्र किया गया| वानर मुखी महाबली हनुमान, सुग्रीव, बाली अथवा अंगद की बात अगर करे तो इन्होने सारे के सारे वानर दल को ही बदल डाला| अजीब सी दिखने वाली दाढ़ी ,सर पर अजीब से बाल, मतलब कही से भी समझ में नही आ रहा है की ये आखिर दिखाना क्या चाह रहे हैं |

संक्षेप में बात की जाए तो इस पूरी सीरीज को बिना किसी शोध, बिना रामायण की पूरी जानकारी के अपने अनुसार जैसे चाह बना के पेश किया गया है| हमारे धार्मिक कथाओ से छेड़ छड का ये नया मुद्दा नही है, अब तो ऐसे लग रहा है की जब भी किसी का मन होता है तथ्यों से हटकर एक अपनी ही कहानी बनाकर उसे सीरीज का रूप दे दिया जाता है | इस बात का भी ध्यान नही दिया जाता की इससे जनता के मन में कितना रोष हो सकता है | समय की मांग ये है की अब कोई ऐसा नियम या क़ानून बनना चाहिए जो ये रोक लगा सके की अगर इस तरह की कोई भी फिल्म या सीरीज बनायीं जाती है और उसमे कोई भी गलत तथ्य पाए जाते है तो उन्हें सेंसर को मान्यता नहीं देनी चाहिए, नहीं तो हमारे धार्मिक ग्रंथो का केवल मजाक सा बन कर रह जायेगा और लोग इसे एक फैशन बना लेंगे जिसका गलत प्रभाव हमारी आज की पीढ़ी पर पड़ेगा |

कुल मिलाके यही कहा जा सकता है की इस सीरीज को दर्शको ने काफी ना पसंद किया है , जिसे केवल एक सस्पेंस ,एक्शन और ड्रामा थ्रिलर बना के रख दिया गया है इसलिए हम ये पूछते है की ये कैसा “रामयुग”|

Hanuman (Ramyug)

लेखक – दीपक कुमार श्रीवास्तव

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