मुझे आज भी याद है। बहुत मिन्नतों, थोड़ी मेहनत और बेहिसाब तनाव के बाद टेंथ बोर्ड परीक्षा का अंतिम पेपर जोकि मैथ्स का था वो पूरा हुआ तो, मेरे क्लासमेट 11वीं कक्षा में साइंस लें या बायोलॉजी इस दुविधा में थे। वहीं मैं ये सोचकर ख़ुश हो रहा था कि ‘चलो आज बिना रोक-टोक के सनराइज़र्स हैदराबद और रॉयल चैलेंजर्स बैंगलोर के बीच आईपीएल मैच देखने को मिलेगा’।
टॉस जीत के बैटिंग करते हुए बंगलोर ने कोहली के धीमे 46 और हेंरिकेस के 44 रनों की मदद से 20 ओवर में मात्र 130 रन बनाये। छोटे लक्ष्य का पीछा करने उतरी हैदराबाद की शुरुआत धीमी रही। हैदराबाद की पिच उस रोज़ टेस्ट के पांचवें दिन की तरह खेल रही थी। 20 रन पर जब हैदराबाद का दूसरा विकेट गिरा तो एक दुबला-पतला सा साँवले रंग का लड़का बल्लेबाज़ी करने उतरा।
एक तरफ़ से विकेट गिरते रहे। दूसरी छोर पे वो लड़का पिच के दोहरे उछाल के कारण परेशान करती गेंदों के बीच भी डटा रहा। उस लड़के की 44 रनों की जुझारू पारी ने हैदराबाद को सुपर ओवर में वो मैच जीता दिया। जिस पिच पर गेल, संगकारा, दिलशान, कैमरून वाइट सरीखे खिलाड़ी फ़्लॉप रहे। उस पिच पर 20 साल के उस लड़के ने सबके ज़हन में अपनी छाप छोड़ दी। उस जुझारू एवं मैन ऑफ़ द मैच खिलाड़ी का नाम था हनुमा विहारी।
वो ही हनुमा विहारी जिन्होंने 11 जनवरी 2021 सिडनी टेस्ट के अंतिम दिन खूँटा गाड़ दिया था। वो ही हनुमा विहारी जिन पर सवाल थे कि ‘वो भारतीय टेस्ट टीम में हैं क्यों?’ वो ही हनुमा विहारी ‘जो चोटिल होने के बाद भी मैदान छोड़कर नहीं लौटै’। तो चलिए दोस्तों, नारद टी.वी.की ख़ास पेशकश ‘द राइज़िंग स्टार्स’ में आज रोशनी डालते हैं हनुमा विहारी की ज़िन्दगी पर।
हनुमा विहारी का जन्म 13 अक्टूबर 1993 को कालकिनाडा, (आँध्रप्रदेश) में एक मध्य वर्गीय परिवार में हुआ। हनुमा के पिता जी सत्यनारायण तेलंगाना की सिंगरेनी कोल फील्ड में नौकरी करते थे। सिंगरेनी की स्टॉफ कॉलोनी में हनुमा ने क्रिकेट खेलना शुरू किया। हनुमा को क्रिकेट खेलना और देखना शुरू से ही सुकून देता था।
क्रिकेट के प्रति हनुमा के इस लगाव को देखते हुए चाचा आर. प्रसाद और माँ विजयलक्ष्मी की ज़िद पर पिता उन्हें हैदराबाद क्रिकेट अकादमी में भेजने के लिये तैयार हो गये। 8 साल के हनुमा को अकेले रहने पर होने वाली परेशानियों से बचाने के लिये माँ और बहन वैष्णो उनके साथ हैदराबाद ही शिफ़्ट हो गयी। हैदराबाद पहुँचकर हनुमा सेंट जॉन अकादमी से जुड़ गये। जहां उनकी मुलाक़ात हुई अपने पहले कोच आर. श्रीधर से।
कोच आर. श्रीधर की निगरानी में बल्लेबाज़ी पर काम करते हुए हनुमा के खेल का स्तर बढ़ने लगा। स्कूल के लिए किये गये अच्छे प्रदर्शन के चलते हनुमा का चयन अंडर-13 में हो गया। वो बच्चा जिसने सिर्फ़ 12 साल की उम्र में अपने सबसे बड़े सहारे यानि पिता को खो दिया हो। वो कुछ दिनों बाद स्कूल को ख़िताबी जीत दिलाकर घर लौटा। 12 साल की उम्र में खेली गयी वो पारी हनुमा का चरित्र दर्शाती है। वो ज़िद्दी एवं दृढ़ चरित्र जो हमने 2021 सीडनी टेस्ट के पांचवे दिन देखा। हनुमा विहारी का बेहतर होता प्रदर्शन,उन्हें हैदराबाद अंडर-19 टीम में ले आया।हनुमा साल 2012 में उन्मुक्त चंद की कप्तानी में अंडर-19 विश्व कप जीतने वाली भारतीय टीम का भी हिस्सा थे।
हनुमा 2014-15 में क्लब क्रिकेट खेलने इंग्लैंड गए। हटन क्रिकेट क्लब की तरफ़ से खेलते हुए उन्होंने 6 शतक लगाकर अपनी उच्च स्तरीय क्षमता का सबूत दिया। साल 2010 में हैदराबाद की ओर से रणजी ट्रॉफी में डेब्यू करने वाले हनुमा 2016 में आंध्रा रणजी टीम में शामिल हो गये। आंध्रा की टीम उनके लिए लकी साबित हुई। 2017-18 के घरेलू सत्र में विहारी ने 94 की आश्चर्यजनक औसत से 6 मैचों में 752 रन बनाये। उस दौरान उड़ीसा के खिलाफ खेली गई 302 रनों की रिकॉर्डतोड़ पारी की चर्चा चल ही रही थी।कि, विहारी ने उस साल की रणजी विजेता विदर्भ के विरुध्द रेस्ट ऑफ़ इंडिया की ओर से खेलते हुए 183 रनों की यादगार पारी खेली। कई सालों से भारतीय अंतर्राष्ट्रीय टीम का दरवाज़ा खटखटा रहे विहारी के इस प्रदर्शन ने उन्हें अंत में साल 2018 इंग्लैंड दौरे के लिये टीम में जगह दिल दी। 5 टेस्ट मैचों की श्रंखला के अंतिम टेस्ट में डेब्यू करने उतरे हनुमा विहारी ने शानदार 56 रन बनाये।
हालाँकि, भारत वो मैच 118 रनों से हार गया। लेकिन, लक्ष्मण के संन्यास के बाद खाली चल रहे 6 नंबर के स्पॉट के लिये विहारी मज़बूत दावेदारी पेश कर गये। साल 2018-19 में साधारण ऑस्ट्रेलियाई दौरा गुज़रने के बाद हनुमा पहुँचे वेस्टइंडीज़। बचपन से हैदराबाद की स्लो और टर्निंग पिचों पर खेले हनुमा को वेस्टइंडीज़ की धरती रास आयी। हनुमा ने वेस्टइंडीज में खेले 2 टेस्ट मैचों की 4 पारियों में 96.3 की लाजवाब औसत से 289 रन बनाये।
इस दौरान हनुमा ने 2 अर्धशतक और अभी तक के अंतर्राष्ट्रीय कैरियर का एकमात्र शतक भी लगाया। हनुमा के पहले शतक से ख़ुश उनकी मां विजय लक्ष्मी ने बताया-“मैंइसमैचमेंहनुमाकीबल्लेबाजीकेदौरानसोईहीनहीं।क्योंकि, पिछलेमैचमेंमैंसोगईथी।तो, वो 7 रनसेअपनेशतकसेचूकगयाथा।” हनुमा ने सबीना पार्क में खेली गई 111 रनो की पारी अपने पिता को समर्पित करते हुए कहा-“मैं 12 साल का था,जब वो गुज़र गए थे।मैंने तब से ही ठान लिया था। कि, मैं अपना पहला शतक उनके ही नाम करूँगा।मुझे उम्मीद है पापा जहाँ भी होंगे उन्हें मुझ पर गर्व होगा”।
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अब हनुमा भारतीय टेस्ट टीम के नियमित सदस्य बन चुके थे। कोहली ने हनुमा को टीम में शामिल करने पर कहा था कि-“हनुमा को लेने पर टीम ज़्यादा बैलेंस रहती है। क्योंकि, वो हमें नंबर 6 पर अच्छी बल्लेबाज़ी के साथ ऑफ़ स्पिन का अतिरिक्त विकल्प भी देते हैं”। लेकिन, वेस्टइंडीज़ के उस दौरे के बाद से विहारी ने खेली अगली 9 पारियों में मात्र 16.77 की औसत से 151 रन बनाये। विदेशी पिचों पर विहारी का यह लचर प्रदर्शन उनके लिये चुनौती था। लेकिन,इस सब में एक सकारात्मक बिंदु ये था। कि, विहारी को स्टार्ट ज़रूर मिल रहा था। जब विहारी सिडनी टेस्ट के पांचवें दिन ऋषभ पंत के आउट होने के बाद बल्लेबाज़ी करने उतरे, तो उनके ऊपर ख़ुद को साबित करने और भारत के लिए मैच ड्रॉ कराने का दोहरा दबाव था। विहारी टच में लग रहे थे कि उनकी हैमस्ट्रिंग खिंच गयी और उधर पुजारा आउट हो गये। भारत को हार दिखाई देने लगी थी। लेकिन, चोटिल होने के बावजूद भी हनुमा ने अश्विन के साथ मिल कर दीवार की तरह डट कर बल्लेबाज़ी की। हेज़लवुड, पैट कमिंस और मिचेल स्टार्क जैसे गेंदबाज़ों के सामने विहारी रॉक सॉलिड नज़र आये और एक तय लग रही हार को उस ड्रॉ में बदल दिया जो जीत के बराबर है। विहारी द्वारा खेली गई 161 गेंदों 23 रनों की इस पारी की मिसाल लम्बे वक़्त दी जायेगी। विहारी की ये पारी ज़िन्दगी जीने की राह दिखाती है। परिस्थितियां चाहें आप के विरुद्ध हों, जिस्म साथ छोड़ रहा हो, लोगों ने आपसे उम्मीद लगाना छोड़ दी हो। लेकिन, आपको खुद पे भरोसा है।तो, आपको सफ़लता के साथ वापस लौटेने से कोई नहीं रोक सकता है।
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