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उमेश यादव : कहानी रफ़्तार के सौदागर की

Umesh Yadav
Umesh Yadav Biography Hindi

उमेश यादव : रफ़्तार का सौदागर जिसने सिर्फ़ पैसों के लिए क्रिकेट खेलना सीखा था। “हार मत मानो, बस चलते जाओ”  मोटिवेट करने वाला ये स्टेटमेंट सुनने में बहुत अच्छा लगता है। लेकिन,असल ज़िन्दगी में इस पर अमल कर पाना उतना ही मुश्किल है। जितना कि नंगे पाँव लेकर आग पर चलना। मगर, जो निराशा के बोझ तले भरोसे के नंगे पाँव लेकर हार की आग पर लगातार चलते हैं। वो ही तो एक रोज़ महान शख्सियत बनकर उभरते हैं। एक ऐसी शख्सियत जो छोटी-छोटी गलियों से निकलकर दुनिया भर के बड़े-बड़े स्टेडियमो में अपने नाम की धमक छोड़ती हैं। एक ऐसी शख्सियत जिसकी कहानी आने वाली पीढ़ियों को मिसाल की तरह सुनाई जाती है। वो मिसाल जो भारत के हर मोहल्ले में मौजूद है। लेकिन, रोज़-रोज़ इस भीड़ में से बड़े खिलाड़ी पैदा नहीं होते है। एक ऐसे ही खिलाड़ी की कहानी छुपी है। वो खिलाड़ी जिसे भारत में हुए बेस्ट तेज़ गेंदबाज़ों में शुमार किया जाता है। वो खिलाड़ी जिसने नागपुर की कोयले की खदान से बाहर निकलकर देश का हीरा बनने का सम्मान हासिल किया। वो खिलाड़ी जिसने विरोधी टीम की आँखों मे आंखें डालकर उनके दिल में अपनी गेंदों का खौफ़ पैदा किया। जी दोस्तो! आप सही समझे हम बात कर रहे हैं ‘बब्लू भैय्या’ की। अरे नहीं! नहीं! मिर्ज़ापुर वाले ‘बब्लू भैय्या’ नहीं। ये है ‘विदर्भ एक्सप्रेस’ के नाम से मशहूर ‘बब्लू भैय्या’ यानी भारतीय पेस बैटरी की शान उमेश यादव। वो उमेश यादव जिन्होंने ग़रीबी की ज़ंजीरों को तोड़कर कामयाबी की नई इबारत लिखी। वो उमेश यादव जिनकी कहानी पर दुनिया ने जब फ़ुल स्टॉप लगाया, तब उन्होंने शानदार वापसी से सबका मुँह बन्द कर दिया। वो उमेश यादव जिनकी कहानी लेकर हाज़िर है नारद टी.वी. अपनी ख़ास सीरिज़ ‘अनसंग हीरोज़ ऑफ़ इंडियन क्रिकेट’ के आज के इस स्पेशल एपिसोड में। जहाँ हम आपको बतायेंगे कि किस तरह से नागपुर के एक छोटे से गाँव से आने वाले उमेश यादव को उनके टूटते सपनों ने वहाँ पहुँचा दिया। जहाँ पहुँचने की कल्पना शायद ख़ुद उमेश यादव ने भी नहीं की होगी। तो चलिये! दुनिया की रफ़्तार से नाता तोड़कर अगले कुछ पलों के लिये हमसे जुड़ जाइये और तैयार हो जाइये उमेश यादव की ज़िन्दगी से जुड़े अनसुने पहलुओं को जानने के लिए।

दोस्तो! उमेश यादव की ज़िन्दगी ‘रैग्स टू रिच’ यानी ग़रीब से अमीर बनने वाले हीरो को दिखाने वाली एक सुपरहिट बॉलीवुड फिल्मी कहानी की तरह है। क्योंकि, 25 अक्टूबर 1987 को महाराष्ट्र में नागपुर से 25 किलोमीटर दूर बसे एक छोटे से शहर वलानी (या वल्ली) के ग़रीब परिवार में जन्मे उमेश कुमार यादव को उनके पिता तिलक यादव ख़ूब पढ़ते-लिखते देखना चाहते थे। एक कोयले की खदान में काम करने वाले मज़दूर का भला और दूसरा सपना हो भी क्या सकता है ? लेकिन, उमेश यादव की आँखों ने पिता के सपने को सिरे से नकार दिया और ट्वेल्थ के बाद पढ़ाई छोड़कर उमेश ने आर्मी की तैयारी शुरू कर दी। लेकिन, कई महीनों की मेहनत के बाद उमेश आर्मी में रिजेक्ट हो गए। छोटी-सी उम्र में टूटे अपने सपने को उमेश ने पुलिस कांस्टेबल बनकर पूरा करने की कोशिश की। मगर, फिज़िकल में सौ में से 96 नम्बर लाने वाले उमेश पर्सनल एग्जाम में फ़ेल हो गए और पुलिस की नौकरी करने वाला सपना भी अधूरा ही रह गया। इस वक़्त बहुत से टीनेज बच्चो की तरह उमेश को भी अपनी ज़िंदगी बेकार लग रही थी और आगे कुछ रास्ता समझ नहीं आ-रहा था। मगर, ज़िन्दगी की इस जद्दोजहद में भी उमेश लगातार क्रिकेट के मैदान से जुड़े हुए थे। वो अपने शहर में दोस्तों के साथ ख़ाली रोड, ख़ाली मैदान और पुलिस स्टेशन के आगे पड़ी ख़ाली जगह पर मौका मिलते ही क्रिकेट खेलने लगते थे। उमेश उस वक़्त अपने इलाक़े में एक बेहद ही तेज़ बॉलर के तौर पर पहचान बना चुके थे और मौका मिलने पर उमेश लम्बे-लम्बे छक्के भी मारते थे। उन छक्को के कारण अक्सर जब पुलिस स्टेशन में बॉल जाकर किसी के लगती थी। तो, कॉन्स्टेबल उनके पीछे गुस्से में भागते थे। लेकिन, शायद वो कॉन्स्टेबल भी ये नहीं जानते होंगे कि कुछ सालों बाद उन्हें ही उमेश को सिक्योरिटी भी देनी पड़ेगी। हालाँकि, उमेश को उस वक़्त तक पहुंचने में बहुत लंबा सफ़र तय करना था। जिस सफ़र की शुरुआत पुलिस और आर्मी से रिजेक्ट हताश उमेश की ज़िंदगी मे तब हुई। जब उन्होंने टेनिस बॉल के एक टूर्नामेंट में अपनी टीम को जीत दिलाई और क़रीब दस हज़ार का मैन ऑफ द सीरीज़ अवॉर्ड जीता। उमेश को उस वक़्त पता चला कि क्रिकेट खेलकर पैसे भी कमाये जा-सकते हैं।

मगर, टेनिस क्रिकेट में इतना पैसा नहीं था। इसलिये, उमेश ने लैदर की बॉल से खेलने के लिए विदर्भ जिमखाना जॉइन किया और पहली बार अच्छे दर्जे का वनडे मैच खेला। मगर, उस वक़्त तक उमेश के पास क्रिकेट खेलने के लिए स्पाइक्स नहीं थे। तो, उन्होंने स्पोर्ट्स शूज़ के सोल पर स्टड्स लगाकर मैच में 3 विकेट लेकर सिर्फ़ 37 रन देने का शानदार प्रदर्शन किया। इसके बाद उमेश ने लगातार अच्छे प्रदर्शन से विदर्भ क्रिकेट एसोसिएशन का ध्यान अपनी ओर खींचा। जिसके बाद उन्हें नागपुर की टीम से सेमीफ़ाइनल खेलने के लिए अमरावती जाने के लिए पूछा गया। इस सवाल के जवाब में उमेश ने कहा- “मैं क्रिकेट खेलने के लिए कहीं भी जा-सकता हूँ”। फिर क्या था! ज़िंदगी जीने और क्रिकेट खेलने के इस अटूट जज़्बे के साथ उमेश ने सेमीफाइनल की पहली पारी में 3 और फ़ाइनल में कुल 8 विकेट लेकर सनसनी मचा दी। इस मैच के दौरान ही उमेश पर निगाह पड़ी, उमेश जैसे हीरे को पहचानने वाले जौहरी और उस वक़्त विदर्भ टीम के कप्तान रहे प्रीतम गांधे की। उन्होंने उमेश से इम्प्रेस होकर मुम्बई के एक टी-ट्वेंटी टूर्नामेंट में उन्हें एयर इंडिया की तरफ़ से खेलने का मौका दिलवाया और कहा कि “बब्लू! अगर आगे अच्छा खेले। तो, एयर इंडिया से स्टाइपेंड मिलेगा। जो तुम्हारी बहुत सी ज़रूरतें पूरी करेगा”। उमेश यादव ने उसी रात ट्रेन पकड़ी और निकल पड़े पहली बार मुम्बई की ओर। इसके बाद उमेश ने उस टूर्नामेंट में ऐसा खेल दिखाया कि एयर इंडिया ने उन्हें स्टाइपेंड दिया और यादव को विदर्भ रणजी स्क्वाड में जगह भी मिली। वो जगह जिसके लिए कप्तान प्रीतम गांधे बोर्ड से लड़ गये थे। क्योंकि, प्रीतम को उमेश के टैलेंट पर हद से ज़्यादा भरोसा था और वो जानते थे कि ये सबसे बेहतर वक़्त है उमेश को रणजी में डेब्यू कराने का। मगर, प्रीतम की सोच को तगड़ा झटका तब लगा, जब सीज़न के पहले ही मैच में मध्यप्रदेश के विरुद्ध इंदौर में उन्हें सपाट पिच मिली। ऐसे में दो पेसर्स से ज़्यादा के साथ मैदान पट उतरना बेवकूफी था। लेकिन, उस रोज़ प्रीतम गांधे उमेश के लिए सभी हदें पार कर गए और उन्होंने एक बैटर को बाहर कर अनुभवहीन उमेश को टीम में शामिल किया। फिर क्या था! उमेश ने इस भरोसे को सही साबित करते हुए मैच की पहली पारी में चार विकेट लिए। हालाँकि, मध्यप्रदेश वो मैच हार गया। लेकिन, उन्हें उमेश यादव के रूप में एक चमकता हीरा मिल गया था। वो हीरा जिसने अगले मैच में बंगाल के सामने 6 विकेट लेकर दलीप ट्रॉफी के लिए सेंट्रल ज़ोन में जगह बनाई। जहाँ उन्होंने साउथ ज़ोन के सामने द्रविड़, उथप्पा और लक्ष्मण जैसे बड़े विकेटों के साथ कुल 5 शिकार कर अपने टैलेंट की गूंज इंडियन सिलेक्टर्स तक पहुंचाई। उमेश की इस कमाल की परफॉरमेंस का नतीजा ये रहा कि अगले साल ही उन्हें ज़िम्बाब्वे के विरुद्ध दौरे पर भारतीय टीम की जर्सी पहनने का मौका मिला। वो जर्सी जिसका सपना उमेश ने भले ही बचपन से ना देखा हो। मगर, पैसों की चाहत में शुरू हुआ उमेश का क्रिकेट सफ़र एक वक़्त बाद भारतीय जर्सी के लिए दीवानेपन में बदल गया था। हालाँकि, उमेश इंटरनेशनल डेब्यू से पहले ही आईपीएल दिल्ली डेयरडेविल्स के लिये आईपीएल में अच्छा खेल दिखा चुके थे। जिसके चलते ही उन्हें वनडे डेब्यू के बाद लगातार मौके मिलते रहे और वेस्टइंडीज के विरुद्ध 2011 के नवंबर महीने में उन्हें टेस्ट डेब्यू करने का मौका मिला। इस तरह उमेश विदर्भ से आने वाले पहले टेस्ट क्रिकेटर बनें।

दोस्तों! यूँ तो पाँच फ़िट ग्यारह इंच लंबे उमेश यादव अपने गठीले शरीर की वजह से शुरू से ही काफ़ी तेज़ गेंद फेंकते थे। मगर, उनके पास गेंदो पर नियंत्रण और वो वैरिएशन नहीं थे, जिसकी इंटरनेशनल क्रिकेट को दरकार थी। लेकिन, साफ़ मन वाले उमेश को प्रीतम गांधे के बाद कोच सुब्रतो बनर्जी और एरिक सिमंस का साथ मिला। जिन्होंने उमेश को स्विंग के बेसिक्स सिखाने के साथ उनकी रिस्ट पोज़िशन पर भी काम किया। जबकि, उमेश की गेंदो में रफ़्तार और पिटारे में अंगूठा तोड़ यॉर्कर के अलावा सटीक बाउंसर तो पहले से ही थी। इस तरह इंटरनेशनल लेवल की कोचिंग ने उन्हें एक लीथल गेंदबाज़ बना दिया। एक ऐसा तेज़ गेंदबाज़ जिसके डेब्यू के बाद से ही इंडियन क्रिकेट काफ़ी एक्साइटेड था। मगर, गुज़रते वक़्त के साथ अक्सर उमेश की फ़ॉर्म और फ़िटनेस के चलते उनकी गेंदबाज़ी अक्सर फीकी नज़र आती थी। लेकिन, उमेश तभी एक यादगार प्रदर्शन करते और सनसनी मचाते हुए अपनी वापसी का ऐलान करते थे। फिर चाहे उनका 2013 चैंपियंस ट्रॉफी फ़ाइनल का स्पैल हो, ऑस्ट्रेलिया के ख़िलाफ़ उन्ही के घर मे 2011 के एक टेस्ट में 5 विकेट लेने का कारनामा हो, वेस्टइंडीज के विरुध्द सपाट पिच पर 10 विकेट लेने का करिश्मा हो या फिर 2015 वर्ल्ड कप में 18 विकेट लेकर भारत का बेस्ट बॉलर बनने का जादू हो। उमेश यादव ने कई मौकों पर ख़ुद को एक बहतरीन गेंदबाज़ साबित किया और ज़हीर, स्टेन, मैक्ग्राथ जैसे कई उन दिग्गज खिलाड़ियो के भरोसे पर खरे उतरे। जो उमेश यादव को हमेशा से कम्प्लीट और डेंजरस फ़ास्ट बॉलर कहते हैं। हालाँकि, आज उमेश को टीम में मौका मिलने का नम्बर बुमराह, भुवनेश्वर, इशांत और शमी के बाद आता है। मगर, जब भी उन्हें मौका मिलता है, वो दोनों हाथों से उसे लपकते हैं। ये जानते हुए भी कि अगले मैच में शायद उन्हें टीम में मौका ना मिले। लेकिन, उमेश लड़ते रहते हैं। क्योंकि, यही उनकी फ़ितरत है। वो फ़ितरत जिसने उन्हें ग़रीबी के कुँए से उठाकर एक कामयाब क्रिकेटर बनाया। ये कामयाबी उनके सिर्फ़ 52 टेस्ट मैचों में लिये गये 158 विकेट, 75 वनडे मैचों में हासिल किए गए 106 विकेट और 133 आईपीएल मैचों में किये गये 135 शिकारों से सजे ये आंकड़ों में साफ़-साफ़ नज़र आती है। वैसे तो 34 साल के उमेश यादव ने जिस तरह का प्रदर्शन इस साल के आईपीएल में किया। उसे देखकर लगता है कि उनमें अभी बहुत क्रिकेट बची है। मगर, ये तय है कि अपने कैरियर के अंतिम पड़ाव पर चल रहे उमेश जब भी भारतीय क्रिकेट से संन्यास लेंगे। तो, उनके बाद ख़ाली हुई जगह भरना लगभग नामुमकिन होगा।

तो दोस्तों! भारतीय क्रिकेट की विदर्भ एक्सप्रेस यानी उमेश यादव की दिलचस्प कहानी में बस इतना ही।

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