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स्कैम 1992 के हर्षद मेहता, प्रतीक गाँधी की कहानी

दोस्तों आज हम एक ऐसे ही सफर की बात करने वाले है जहां रिस्क से इश्क करना सफलता का सबसे बड़ा मंत्र है।

प्रतीक गांधी का जन्म 22 फरवरी 1989 को गुजरात के सुरत शहर में एक गुजराती ब्रह्मण परिवार में हुआ था। प्रतीक के पिता का नाम जयंत गांधी था जो पेशे से एक अध्यापक थे और उनकी मां भी एक अध्यापिका ही थी जिनका नाम रीटा गांधी है। प्रतीक गांधी के परिवार में शिक्षक बनने की इस रिवायत में उनके माता-पिता के साथ साथ उनके तीन चाचा और चचेरे भाई भी शामिल थे।

लेकिन प्रतीक गांधी को शायद इस बने बनाए ढर्रे पर चलना मंजूर नहीं था और इसीलिए उन्होंने बचपन से ही अपने नए मुकाम और रास्ते तय कर लिए थे।

स्कूल में पढ़ाई करते समय चौथी कक्षा में मार्शल आर्ट सिखने लगे और जब छठी कक्षा में पहुंचे तो एक नृत्य नाटिका का आडिशन देने चले गए।

प्रतीक ने अपनी शुरुआती शिक्षा सुरत के प्रवृत्ति विधालय से पुरी की जहां बच्चों के भविष्य को ध्यान में रखते हुए उन्हें खेती-बाड़ी और चर्खा चलाने जैसे काम भी सिखाए जाते थे।प्रतीक ने बहुत कम उम्र में ही बहुत कुछ कर लिया था मगर उनका सबसे बड़ा सपना डाक्टर बनने का था जो 10 वीं में कम परसेंटेज बनने के कारण टुट गया था।

प्रतीक अपनी आगे की पढ़ाई के लिए मुम्बई आ गए जहां उन्होंने नोर्थ महाराष्ट्रा कोलेज में मैकेनिकल इंजीनियरिंग में दाखिला ले लिया।

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यहां से डिप्लोमा करने के बाद अब कुछ नया करने और कुछ नया सीखने का समय था।प्रतीक ने एक सेल्समैन के काम को अपनी जिंदगी के पहले रोजगार के रूप में चुना और एनर्जी सेविंग प्रोडेक्ट बेचने का काम शुरू कर दिया।

अपने पहले रोजगार के पहले ही दिन प्रतीक को अपने प्रोडेक्ट बेचने के लिए जीआईडीसी सुरत की एक साइंटीस्ट फर्म में भेज दिया गया।

प्रतीक ने वहां पहुंचकर अपने प्रोडेक्ट के बारे में बताना शुरू किया ही था कि फीजिक्स में पीएचडी कर चुके एक शख्स ने उन्हें यह कहकर बीच में रोक दिया कि तुम्हारी तैयारी कच्ची है।

प्रतीक ने जब इसका कारण पूछा तो उन्होंने प्रतीक से कुछ सवाल पुछने शुरू कर दिए।

इन प्रश्नों से पीछा छुड़ाकर प्रतीक जब आफिस पहुंचे तो अपने बोस के लिए उनके मन में गुस्सा साफ नजर आ रहा था।

वो ये जानना चाहते थे कि उन्हें अपने पहले ही दिन इतना कठिन काम क्यों दिया गया?

इस प्रशन के जवाब में उनके बोस ने प्रतीक से कहा कि उन्होंने ऐसा इसलिए किया क्योंकि वो चाहते थे कि तुम ये समझ पाओ कि हमारी तैयारी कभी भी काफी नहीं हो सकती, कोई इंसान परिपूर्ण नहीं होता है। दुनिया में हर इंसान से बड़ा कोई ना कोई इंसान मौजूद होता है।

ये जवाब प्रतीक के जीवन की सबसे बड़ी सीख साबित हुआ जिसने उन्हें हर क्षेत्र में सहारा दिया फिर चाहे वो सिनेमा हो, नाटक हो या फिर शिक्षा का क्षेत्र हो।

11 महीने सेल्समैन के तौर पर काम करने के बाद प्रतीक ने ग्रेजुएशन करने का मन बनाया और जलगांव में स्थित एक प्राइवेट कोलेज में दाखिला ले लिया। प्रतीक अब तक आ पेर के पेले पार और अपूर्व अवसर जैसे नाटकों में काम कर चुके थे और ग्रेजुएशन करने के दौरान अपने बचे हुए समय का सदुपयोग करने के लिए उन्होंने फिर से थिएटर का सफर शुरू कर दिया।

Pratik Gandhi

यहां उनके पहले नाटक का नाम अरण्य रुदन था जिसमें प्रतीक ने एक दरबान का किरदार निभाया था। अपनी ग्रेजुएशन पुरी करने तक प्रतीक को थिएटर में भी काफी वाहवाही और पहचान मिल चुकी थी और अब बारी थी किसी एक काम को चुनने की लेकिन प्रतीक ने एक साथ दोनों नावों में सवार होने का निर्णय किया और मुम्बई आ गए।

एक महीने तक अपने कुछ जान पहचान वाले लोगों के साथ रहने के बाद प्रतीक ने कुछ महीने एक मोल के बाहर कोकरोच मारने का स्प्रे बेचने का भी काम किया ताकि वो अपना खर्च चला सके।

इसके अलावा प्रतीक जब भी किसी फिल्म के लिए आडिशन देने जाते तो उन्हें यह कहकर रिजेक्ट कर दिया जाता था कि उनका चेहरा किसी लीड रोल के काबिल नहीं हैं।

बहुत कोशिशों के बाद साल 2006 में प्रतीक को योर्स इमोशनली नाम की फिल्म में काम करने का मौका मिला था जिसमें उन्हें एक गे का किरदार दिया गया था।

इस फिल्म को LGBT फिल्म फेस्टिवल के लिए बनाया गया था जिसके चलते इसे सिनेमा घरों में रिलीज होने का मौका नहीं मिला ।

और इस तरह प्रतीक गांधी के सिनेमाई सफर की शुरुआत पुरी तरह से भुलाने वाली थी।

एक साल‌ के इसी संघर्ष के बाद प्रतीक को रिलायंस इंडस्ट्रीज में एक इंजीनियर के तौर पर काम मिल गया।

अब प्रतीक की जिंदगी पटरी पर आ गई थी और उन्होंने अपने परिवार को भी मुम्बई बुला लिया था जिनके साथ वो एक किराए के मकान में रहने लगे थे।

सबकुछ सही चल रहा था लेकिन अब प्रतीक अपने नाटकों से दुर होते जा रहे थे, पुरे दिन का काम, छः घंटे की नींद और परिवार की उम्मीदों ने जैसे उनसे सबकुछ छीन लिया था।

अपने मंच अपने किरदार और अपनी खुशी को ध्यान में रखते हुए प्रतीक ने एक्सपेरिमेंटल थिएटर में हाथ आजमाने  का विचार किया और पृथ्वी थियेटर पहुंच गए।

यहां इनकी मुलाकात मनोज शाह से हुई जिनके साथ प्रतीक के करियर की सबसे उम्दा पारी की शुरुआत होने वाली थी।

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मनोज शाह के साथ काम करते हुए उन्होंने मेरे पिया गए रंगून और मोहन नू मसालों जैसे कई नाटकों में अभिनय किया जिसके चलते प्रतीक को एक अच्छा थिएटर आर्टिस्ट माना जाने लगा था।

मोहन नू मसालों नाम का नाटक महात्मा गांधी के जीवन पर आधारित था जिसके लिए प्रतीक का नाम लिम्का बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में भी दर्ज किया गया था।

दरअसल 90 मिनट तक चलने वाले इस नाटक में सिर्फ एक किरदार द्वारा ही गांधीजी के जीवन को लोगों के सामने रखना था।

25 दिनों की रिहर्सल के बाद इस नाटक के मंचन का दिन आया जहां सुबह साढ़े ग्यारह बजे गुजराती, शाम साढ़े चार बजे हिंदी और रात साढ़े सात बजे इस नाटक को अंग्रेजी भाषा में दिखाया गया था।

थिएटर की दुनिया में ऐसा कुछ पहली बार हुआ था जब एक नाटक को एक आर्टिस्ट द्वारा एक दिन में तीन भाषाओं में प्रर्दशित किया गया था और इसीलिए प्रतिक गांधी का नाम वर्ल्ड रिकॉर्ड में दर्ज है।

गुजराती थिएटर में प्रतीक को अब हर कोई पहचानने लगा था और इसीलिए उन्हें अपने करियर की पहली गुजराती फिल्म बे यार में मुख्य किरदार के लिए चुन लिया गया।

इस फिल्म की सफलता और प्रतीक को मिली वाहवाही को देखते हुए इन्हें रोंग साईड राजू फिल्म में लिया गया जिसे बेस्ट गुजराती फिल्म का नेशनल अवार्ड भी दिया गया था।

यह फिल्म प्रतीक के करियर में मील का पत्थर साबित हुई जिसके बाद उन्होंने रिलायंस इंडस्ट्रीज के काम से इस्तीफा  देकर पुरी तरह से सिनेमाई दुनिया में जाने का निर्णय कर लिया।

प्रतीक के सबसे पसंदीदा अभिनेता की बात करें तो उनका नाम संजीव कुमार है जिसका कारण बताते हुए प्रतीक कहते हैं कि संजीव कुमार को देखकर उन्हें यह यकीन हो जाता है कि फिल्मों में काम करने के लिए हीरो मैटेरियल चेहरे से कहीं ज्यादा अपने काम में परफेक्शन की जरूरत होती है जो सिर्फ मेहनत के बल पर ही प्राप्त किया जा सकता है।

गुजराती सिनेमा के बाद अब हिंदी सिनेमा में कदम रखने की बारी थी जहां उनकी इसी सोच का इम्तिहान होने वाला था।

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गुजराती सिनेमा के हर दुसरे नाटक और फिल्म में मुख्य किरदार निभाने वाले प्रतीक गांधी को यहां उनकी पहली फिल्म लव यात्री में एक छोटा सा किरदार निभाने को दिया गया जिसका नाम नेगेटिव होता है।

इसके बाद प्रतीक को बोलीवुड फिल्म मित्रों में भी एक छोटे किरदार से ही संतुष्ट होना पड़ा था।

अब बात करें अगर प्रतीक के वैवाहिक जीवन की तो उनका विवाह गुजराती थिएटर की अभिनेत्री भामिनी ओझा से 2009 में हुआ था जिनसे उन्हें एक बेटी है  जिसका नाम मिराया है। इसके अलावा प्रतीक गांधी के छोटे भाई का नाम पुनीत गांधी है जो पेशे से एक डिजाइनर है और फिल्म लव नी भवाई के एक गीत में अपनी आवाज भी दे चुके हैं। हिंदी सिनेमा में प्रतीक गांधी को भले ही अब तक वो किरदार नहीं मिले जहां उन्हें खुद को साबित करने का मौका मिल सके लेकिन वेब सीरीज सिनेमा में प्रतीक अपने डेब्यू से ही झंडे गाड़ चुके हैं। नेशनल अवार्ड विजेता डायरेक्टर हंसल मेहता ने प्रतीक गांधी के कई नाटक और फिल्म रोंग साईड राजू देखकर यह निर्णय कर लिया था कि वेब सीरीज स्कैम 1992 में हर्षद मेहता का किरदार प्रतीक ही निभाएंगे।

प्रतीक ने अपने डायरेक्टर के निर्णय को सही साबित करते हुए इस वेब सीरीज में हर्षद मेहता के किरदार को जीवंत करने का काम बखूबी किया है।

नारद टीवी प्रतीक गांधी के उज्जवल भविष्य और शानदार सिनेमाई सफर की कामना करता है और साथ ही यह उम्मीद करता है कि प्रतीक आगे भी हमें अपने टैलेंट से मनोरंजित करते रहेंगे।

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