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Dickie Bird: वो अंपायर जिसने बीच मैदान पर सुनील गावस्कर के बाल काट दिए थे

Umpire Dickie Bird biography in hindi

आज की तारीख में क्रिकेट के खेल में स्टार या सुपरस्टार का दर्जा केवल खिलाड़ियों को दिया जाता है और उसमें भी ज्यादातर बल्लेबाज ही शामिल होते हैं, कि बल्लेबाजों के इस खेल में एक ऐसा अम्पायर भी आया था जो अपने समय में प्रशंसकों के बीच खिलाड़ियों से भी ज्यादा लोकप्रिय था। एक ऐसा अम्पायर जिसने अपनी आंखों के सामने बाईस गज की पट्टी पर एक दौर को गुजरते देखा और अपनी ईमानदारी की एक ऐसी मिसाल कायम की जो आज भी कई बड़े अम्पायरों के लिए प्रेरणा का काम करती है।मेमोरेबल अम्पायर्स ओफ वर्ल्ड क्रिकेट के इस एपिसोड में हम Dickie Bird की बात करने वाले है।

Dickie Bird

Dickie Bird का प्रारंभिक जीवन और पढाई

19 अप्रैल साल 1933 को इंग्लैंड में एक कोल माइनर के घर पैदा होने वाले हार्लोड डेनिस बर्ड शुरू से ही स्पोर्ट्स के क्षेत्र में दिलचस्पी रखते थे। डेनिस बर्ड को इनका मशहूर निकनेम डिकी इनके स्कूली दिनों के दौरान दोस्तों द्वारा मिला था, इसके अलावा इन्होंने अपनी जिंदगी का कुछ समय कोयले की खदान में काम करके भी गुजारा है

लेकिन उसके बाद इन्होंने अपनी पुरी जिंदगी खेल की दुनिया को सौंपने का निर्णय कर लिया था। स्पोर्ट्स को अपनी जिंदगी में सबकुछ मानने वाले डिकी बर्ड का पहला प्यार फुटबॉल था लेकिन घुटने की इंजरी के चलते डिकी बर्ड इस खेल को अपना प्रोफेशन नहीं बना पाए थे। इसके बाद डिकी बर्ड ने अपने दुसरे सबसे पसंदीदा खेल क्रिकेट में करियर बनाने का विचार किया

कब से शुरू किया क्रिकेट खेलना

और बार्नसली की उसी टीम के लिए क्लब क्रिकेट खेलना शुरू कर दिया जिसमें इंग्लैंड के महानतम सलामी बल्लेबाज जोफ बायकोट शामिल थे। साल 1956 से डिकी बर्ड ने अपनी घरेलू काउंटी क्रिकेट टीम योर्कशायर के लिए एक बल्लेबाज के तौर पर खेलना शुरू कर दिया था। डिकी बर्ड के बचपन के दोस्त बायकोट के अनुसार डिकी बर्ड एक शानदार बल्लेबाज थे

लेकिन योर्कशायर की टीम में सलामी बल्लेबाज के लिए बढ़ते कोम्पिटीशन ने इस खिलाड़ी से अपने करियर को संवारने के कई मौके छीन लिए थे।  साल 1959 में योर्कशायर के एक सलामी बल्लेबाज केन टेलर की गैरमौजूदगी में काउंटी चैम्पियनशिप के दौरान डिकी बर्ड ने नाबाद 181 रनों की पारी खेली थी लेकिन इसके बावजूद भी केन टेलर की वापसी के बाद इन्हें टीम से ड्रोप कर दिया गया था।

अपने खेल में आ रही इन्हीं अड़चनों से तंग आकर बर्ड ने साल 1960 में लीस्टरशायर के लिए कोन्ट्रेक्ट साईन कर लिया था। अपनी दुसरी टीम की तरफ से डिकी बर्ड को अधिक मौके मिले जिनका फायदा उठाते हुए इन्होंने अपने पहले ही सीजन में 1000 रन बनाए जिनमें एक सेंचुरी भी शामिल थी।

Dickie Bird को क्यों छोड़ना पड़ा क्रिकेट

लेकिन इसके बाद घुटने की चोट और प्रदर्शन में लगातार गिरावट के चलते इन्हें अपने 93 मैचों के करियर को 27 मई 1964 के दिन अलविदा कहना पड़ा था।

Dickie Bird

इंग्लैंड की अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट टीम के लिए ओपनिंग करने का सपना देखने वाले डिकी बर्ड को 31 साल की उम्र में एक उज्जवल क्रिकेट करियर को छोड़ना पड़ा जिसके बाद इन्होंने कोलेज में कोचिंग देने के अलावा पेंटन सीसी की तरफ से लीग क्रिकेट खेलना जारी रखा। ऐसे ही एक मैच के दौरान सामने वाली टीम के कप्तान जेजे वार ने डिकी बर्ड को अम्पायरिंग के क्षेत्र में अपना करियर बनाने की सलाह दी

सबसे पहले कब की अंपायरिंग

जिसे सुनकर बर्ड हंस पड़े लेकिन वो बात इनके दीमाग में घर कर गई थी। इसके बाद डिकी बर्ड ने अपने स्वभाव और दीमाग को इस काम के लिए ढालना शुरू कर दिया जिसके चलते साल 1970 में डिकी बर्ड पहली बार किसी फस्ट क्लास मैच में एक अम्पायर के तौर ट्रेंट ब्रिज के मैदान पर उतरे थे जहां उनके सामने गैरी सोबर्स और रोहन कन्हाई जैसे दिग्गज खेल रहे थे।

डिकी बर्ड को अपने अम्पायरिंग करियर के दुसरे मैच के दौरान होटल ढुंढ ने में मुश्किल हुई तो डिकी थेम्स नदी के दुसरी तरफ स्थिति एक स्विस कोटेज में रात बिताने के लिए तैयार हो गए थे। इन सबसे अलग डिकी बर्ड खुद को एक बेहतरीन अम्पायर के तौर पर स्थापित करने में सफल रहे और उनके समय पालन और शिष्टता की ख्याति तीन सालों के अंदर ही अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट के दरवाजे खटखटाने लगी थी।

 डिकी बर्ड को साल 1973 में इंग्लैंड और न्यूजीलैंड के बीच खेले जाने वाले मैच में एक अम्पायर के तौर पर बुलाया गया और डिकी अपने समय पालन की आदत के चलते सुबह सात बजे ही मैदान के बाहर आ गए और ग्राउंड स्टाफ के आने और दरवाजा खुलने का इंतजार करने लगे थे। डिकी बर्ड के साथ उनके पहले अंतरराष्ट्रीय टेस्ट मैच में अम्पायरिंग कर रहे चार्ली एलियट ने उस मैच को याद करते हुए कहा था

कौन सा फैसला सबसे पहले लिया

कि उन्होंने अपने करियर में डिकी बर्ड जितना बैचेन किसी को भी नहीं देखा था। एलियट का मानना है कि डिकी बर्ड के द्वारा अपने पहले मैच में इंग्लैंड के कप्तान रै इंलिंग्वर्थ को राउंड दी विकेट गेंदबाजी कर रहे ब्रुस टेलर की गेंद पर एलबीडब्ल्यू आउट देना उनका सबसे साहसी फैसला था जिसने डिकी बर्ड के अंदर छुपी प्रतिभा को पहली बार विश्व क्रिकेट के सामने रखा था।

डिकी बर्ड का स्वभाव मैदान पर बैचेनी भरा रहता था यहां तक कि उनके साथ खेलने वाले लोगों की मानें तो वो बल्लेबाजी के लिए उतरने से पहले पैड भी नहीं बांध पाते थे लेकिन बात जब विकेट के पीछे खड़े होकर सही निर्णय लेने की आती थी तो डिकी बर्ड कठोर लेकिन सच्चे जज बनकर उभरते थे,

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फिर बात चाहे कंडीशन को देखते हुए कड़े फैसले लेने की हो या फिर माईकल होल्डिंग और डेनिस लिली को अपनी मनमानी से रोकने की हो डिकी बर्ड ने हर समय खुद को एक महान अम्पायर के तौर पर साबित किया था।

Dickie Bird
Dickie Bird

क्यों मिला वर्ल्ड कप में अंपायरिंग का मौका

डिकी बर्ड की इसी सच्चाई के कारण इन्हें साल 1975 में होने वाले पहले वर्ल्डकप में अम्पायरिंग करने का मौका मिला था। इस वर्ल्डकप के फाइनल मैच वेस्टइंडीज की जीत के साथ ही मैदान पर उमड़ी भीड़ में से किसी आदमी ने डिकी बर्ड की मशहूर टोपी को छीन लिया था जो बाद में डिकी बर्ड ने एक बस कंडक्टर को पहने हुए देखा था।

डिकी बर्ड ने जब उस आदमी से टोपी के बारे में पूछा तो उसने बड़े गर्व से कहा कि तुमने मशहूर इंग्लिश अम्पायर डिकी बर्ड का नाम तो सुना ही होगा ये उन्हीं की टोपी है। साल 1974 में भारत और इंग्लैंड के बीच खेले जा रहे एक मैच के दौरान चल रही तेज हवाओं ने सुनिल गवास्कर को मुश्किल में डाल रखा था क्योंकि हवा से उनके बाल चेहरे के आगे आ रहे थे जिससे वो अपने खेल पर ध्यान नहीं दे पा रहे थे।

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बहुत कोशिशों के बाद भी जब उनसे यह परेशानी दुर नहीं हुई तो अम्पायर डिकी बर्ड उनके पास आए जो अपने साथ कैंची रखा करते थे और उन्होंने अपनी कैंची से सुनील गावस्कर के बाल काट दिए और इस तरह सुनिल गवास्कर मैदान के बीचों-बीच हैयर कट करवाने वाले क्रिकेट इतिहास के पहले खिलाड़ी बन गए थे।

Dickie Bird क्यों स्टेडियम छोड़कर जाने लगे थे बाहर

डिकी बर्ड के बारे में एक किस्सा ये भी मशहूर है कि ओल्ड ट्रैफर्ड के मैदान पर इंग्लैंड और वेस्टइंडीज के बीच चल रहे मैच में एक समय पर डिकी बर्ड ने खिलाड़ियों को रोकते हुए कहा था कि सोरी जैंटलमैन इट्स नेचर कोल और ये कहकर डिकी बर्ड जल्दी से टोयलेट की तरफ चले गए, ये देखकर मैदान में खड़े दर्शकों सहित सभी खिलाड़ी चौंक गए थे।

ऐसी कई घटनाओं और वाकियो के कारण ही डिकी बर्ड अपने खिलाड़ियों और दर्शकों के लिए हमेशा उनके पसंदीदा अम्पायर रहे थे। डेनिस लिली और कर्टली एम्ब्रोस जैसे खिलाड़ियों ने डिकी को उनकी सच्चाई के लिए मैदान पर धन्यवाद दिया तो वहीं अपने दर्शकों के बीच इस अम्पायर की ख्याति का अंदाजा आप कोलम्बो की एक घटना से लगा सकते हैं

जहां सड़क पर डिकी बर्ड को खड़ा देखकर हर गाड़ी रुक गई थी जिसमें मौजूद हर आदमी डिकी बर्ड को जानता था। डिकी बर्ड अपने अम्पायरिंग करियर में क्रिकेट इतिहास की कई बड़ी घटनाओं के साक्षी रहे हैं जिनमें पहले तीन वर्ल्डकप फाइनल में अम्पायरिंग करने के अलावा डिकी बर्ड ने शेन वार्न की बोल ओफ द सेंचुरी को भी विकेट के पीछे खड़े होकर बड़े नजदीक से देखा था।

Dickie Bird

ऐसा नहीं है कि डिकी बर्ड ने अपने करियर में हर निर्णय सही लिया था लेकिन उन गलतियों को मन में रखने की बजाय डिकी बर्ड ने अगली गेंद पर ध्यान देना हमेशा उचित समझा और उनकी यही सोच इन्हें एक महान अम्पायर बनाती है। डिकी बर्ड से जब आज की जनरेशन के अम्पायर्स के बारे में पुछा गया तो उन्होंने बताया कि

आज के समय की अंपायरिंग को लेकर क्या कहा

आज की क्रिकेट में हर फैसला तकनीकी मशीनों द्वारा लिया जाता है जिससे अम्पायरों का महत्व घटता जा रहा है जो क्रिकेट के लिए अच्छी बात नहीं है। डिकी बर्ड के दिल में भारत देश भी अपना एक अलग स्थान रखता है, डिकी बर्ड ने कई बार अपने इंटरव्यूज में कहा है कि भारत के मैदानों में अम्पायरिंग करना अपने आप में एक यादगार पल होता है,

भारतीय शहरों के बाजारों में निकलते समय उन्होंने कई बार लोगों के मन में इस खेल और खेल से जुड़े लोगों के प्रति सम्मान को महसूस किया है जो किसी दूसरे देश में मिलना मुश्किल है। डिकी बर्ड से जब उनकी जिंदगी के सबसे यादगार पल के बारे में पुछा गया तो उन्होंने बताया कि बंकिघम पैलेस में इंग्लैंड की महारानी एलिजाबेथ द्वितीय के साथ भोजन करना उनकी जिंदगी का सबसे बड़ा पल था,

इसके अलावा डिकी बर्ड के मन में अपने अम्पायरिंग करियर में स्टारडम हासिल करने के बावजूद भी इंग्लैंड की टीम के लिए ना खेलने की टीस आज भी मौजूद है।साल 1996 में भारत और इंग्लैंड के बीच खेले जाने वाला टेस्ट मैच डिकी बर्ड के 23 सालों के अप्रतिम अम्पायरिंग करियर का आखिरी मैच था

जिसमें मैदान पर उतरते समय डिकी बर्ड को दोनों टीमों के खिलाड़ियों द्वारा गार्ड ऑफ ऑनर दिया गया था, साथ ही स्टेडियम में उपस्थित हर प्रशंसक द्वारा डिकी बर्ड के सम्मान में स्टैंडिंग ओवेशन भी एक अविश्वसनीय दृश्य था।डिकी बर्ड ने अपने करियर में कुल 66 टेस्ट और 69 वनडे मैचों में अम्पायर की भूमिका निभाई थी।

कब हुई Dickie Bird की ऑटोबायोग्राफी बुक पब्लिश

डिकी बर्ड ने साल 1999 में अपनी ओटोबायोग्राफी बुक पब्लिश की थी जो बेस्ट सैलर साबित हुई थी।इसके अलावा डिकी बर्ड को MBE और OBE सहित तीन यूनिवर्सिटीज द्वारा डोक्टरेट की उपाधि से नवाजा जा चुका है।

Dickie Bird

इसके अलावा 30 जून 2009 को इनके जन्म स्थान के पास डिकी बर्ड के एक स्टैच्यू का निर्माण भी किया गया था। डिकी बर्ड के लिए कहा जाता था कि एलबीडब्ल्यू पर इनके द्वारा दिए गए निर्णय को चुनौती देना लगभग नामुमकिन था जिसे हर बल्लेबाज बिना किसी ओब्जेक्शन के खुशी खुशी स्वीकार कर लेते थे।

यही कारण है कि आज की तारीख में तकनीकी से सराबोर अम्पायरिंग के बावजूद भी जब बात अपने निर्णय में सच्चाई की आती है तो जेहन में एक सफेद ड्रेस पहने चेहरे पर दिल को खुश कर देने वाली स्माइल लिए एक ठिगने कद वाला इंसानी शरीर उभरता है जिसे दुनिया डिकी बर्ड के नाम से जानती है।

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Mohammad Talib khan

Sports Conten Writer At Naarad TV

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