जब दारा सिंह की एक नज़र ने बदल दी मुमताज़ की क़िस्मत

सौंदर्य को हमेशा से ही आकर्षण का पर्याय माना जाता है |यहीं वजह हैँ कि फिल्मों में , कलाकारो का सौंदर्य, आकर्षण का केंद्र होता हैँ, और जब ये बात अभिनेत्रियों पर आती हैँ तो ये पैमाना और भी अहम हो जाता हैँ | जिसकी बदौलत, प्रियंका चौपड़ा और ऐश्वर्या राय जैसी विश्व सुंदरियों ने बॉलीवुड के शीर्ष अभिनेत्रियों में अपनी जगह बनायीं है |
और आज हम जिस अभिनेत्री के बारे में बात करेंगे। ये 60 और 70 के दशक का वो चेहरा हैं , जिन्होंने अपनी आकर्षक छवि और जानदार अभिनय से लोगों को अपना दीवाना बना लिया | उस दौर की आम जनता तो क्या बल्कि उस दौर के मशहूर प्रतिष्ठित अभिनेता भी इनके हुस्न के कायल हुआ करते थे ।
भूरी आँखों वाली ये अभिनेत्री जिन्हे एक दौर में स्टंट क्वीन भी कहा जाता था इनका नाम है मुमताज़ | इन्हें देखकर आप अंदाजा लगा सकते हैँ कि इनकी इस प्यारी सी मुस्कान और खूबसूरत चेहरे का कायल उस ज़माने मे भला कौन नहीं रहा होगा ? मुमताज़ खान.. फ़िल्मी दुनिया में ये एक ऐसा नाम हैँ ,जिन्होंने अपनी शुरुवात तो एक स्टंट अभिनेत्री के रूप में की लेकिन देखते ही देखते बॉलीवुड की रोमांटिक अदाकारों में शुमार हो गयीं ।
तो आज नारद टीवी इनके जीवन-सफर के पन्नों को पलटते हुए आपको इनके निजी जीवन, संघर्ष सहित इनके कई अनसुने किस्सों को आप से साझा करेगा ।
बला की खूबसूरत अभिनेत्री , मुमताज़ का जन्म 31 जुलाई 1947 को मुंबई के एक मध्यम वर्गीय मुस्लिम परिवार में हुआ था, इनके पिता का नाम अब्दुल सलीम अस्कारी और माता का नाम शदी हबीब आगा था | इन्होंने अपने शुरुआती जीवन से ही दुनिया के कई रंग देखे | इनके जन्म के महज एक साल बाद ही इनके माता -पिता का तलाक हो गया , जिससे इनका पालन पोषण ननिहाल में ही हुआ |
अभिनेत्री बनने की चाहत इनमें बचपन से ही थी । और परिवार की आर्थिक तंगी देखकर इन्होंने महज 12 साल के उम्र में ही फ़िल्म इंडस्ट्री में कदम रख दिया , शुरुआत हुई 1958 की फ़िल्म “सोने की चिड़िया ” से जिसमें ये बाल कलाकार की भूमिका में नज़र आयीं |
फिल्मों में सक्रिय होने के बावजूद इनके सफल अभिनेत्री बनने का सफर इतना सहज़ नहीं था |बताया जाता है कि शुरुआती दिनों में ये अपनी छोटी बहन मल्लिका के साथ स्टूडियोज के चक्कर लगाया करती थीं । और किसी भी तरह के छोटे – मोटे रोल के लिए राजी हो जाया करती | काफ़ी मिन्नतों के बाद फिल्म में कोई गुमनाम किरदार मिल जाया करता था |
हालांकि इनकी माँ और चाची पहले से ही फ़िल्मी पर्दो पर सक्रिय थी, लेकिन वो दोनों भी एक सहायक कलाकार ही थी| जिससे उनके लिए मुमताज़ का फिल्मों में सिफारिश कर पाना मुमकिन नहीं था |

फ़िल्मी पर्दे से जुड़ने के बाद, मुमताज़ को जूनियर आर्टिस्ट के तौर पर कई फिल्मों में काम करने का मौका मिला | लेकिन पर्दे पर स्क्रीन टाइम काफ़ी कम होने की वजह से दर्शकों द्वारा कभी इन पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया गया | इस तरह, ये अपने करियर के अच्छे -बुरे वक्त का दामन थाम कर चलती गई|और करवट बदलते वक्त के पहलू से, एक ऐसा भी वक्त आया जिसने इनकी किस्मत बदल दी ।
और रातो -रात इन्हें अपने सपनो के मुकाम के करीब लाकर खड़ा कर दिया । इन्हें फिल्मों में बतौर मुख्य अभिनेत्री काम करने का मौका दारा सिंह की 1963 में आई फ़िल्म फौलाद में मिला, इसे मौका नहीं सौभाग्य कहना ज्यादा उचित होगा। और इसके पीछे का किस्सा भी काफी दिलचस्प है । एक समय तक, रेसलर से अभिनेता बने दारा सिँह के साथ कोई बड़ी अभिनेत्री काम नहीं करना चाहती थी,
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वजह थी दारा सिंह का लम्बी कद – काठी और जब उस टाइम की सभी मशहूर अभिनेत्रियों ने इनके साथ फ़िल्म में काम करने के लिए मना कर दिया तब डायरेक्टर महमूद हसन की नजर साढ़े पाँच फिट की मुमताज़ पर पड़ी | और उन्होंने फ़ौरन ही दारा सिंह से उनके अभिनेत्री के रूप में मुमताज़ खान के लिए सहमति मांगी ।
इस पर दारा सिंह ने कहा कि उन्हें अपने फ़िल्म में किसी भी अभिनेत्री से कोई खासा फर्क नहीं पड़ता, उन्हें मुमताज़ के साथ काम करने में कोई दिक्कत नही है। बस यहीं से मुमताज़ का नाम जूनियर आर्टिस्ट से एक अभिनेत्री के रूप में शुमार हो गया |

जिसका जिक्र मुमताज़ ने अपने एक साक्षात्कार में भी किया | मुमताज़ ने कहा कि , “कुछ हद तक, मैं कह सकती हूँ कि मेरे करियर को दारा सिंह ने बनाया है, क्योंकि उनके साथ फिल्में करने के बाद, मुझे अच्छे ऑफर मिलने शुरू हो गए थे।” दारासिंह के बाद मुमताज की जोड़ी राजेश खन्ना के साथ खूब जमी। उन दिनों राजेश भी सफलता की राह पर चल पड़े थे।
फिल्मों में दोनों को साथ देखने वाले लोगों में जबरदस्त होड़ मची थी । फिल्म ‘दो रास्ते’ की सफलता ने इन्हे हिट जोड़ी बना दिया । 1969 से 74 तक इन दो कलाकारों ने ‘सच्चा झूठ’, ‘अपना देश’, ‘दुश्मन’, ‘बंधन और रोटी’ जैसी आठ शानदार फिल्में दीं। जो उस समय सुपर हिट रही इसके बाद मुमताज़ को नई पहचान के साथ नयी उड़ान भी मिल गयी |
जो उन्हें उनके चाहत के मुकाम तक ले गया..आलम ये हो चुका था कि उस दौर के नामी सितारे जो कभी मुमताज का नाम सुनकर उनसे परहेज करते थे, वे भी उनके साथ काम करने को लेकर उत्साहित रहने लगे । ऐसे सितारों में शम्मी कपूर, देवानंद, संजीव कुमार, जीतेंद्र और शशि कपूर भी शामिल हैं। आप इन्ही से इनकी लोकप्रियता का अंदाज़ा लगा सकते हैँ
जब इनके कायल दर्शक ही नहीं उस ज़माने के बड़े सितारे भी हो गये थे | जैसा की हमने बताया कि मुमताज़ अपने ज़माने की बेहद खूबसूरत अभिनेत्रियों में शुमार थी |उनकी खूबसूरती को लेकर एक किस्सा ये भी मशहुर हैँ की मुमताज जब महज 18 साल की थीं, तभी अभिनेता शम्मी कपूर ने उन्हें शादी का प्रस्ताव भी दिया था ।
मुमताज भी उस वक्त तक शम्मी को दिल दे बैठी थीं। लेकिन शम्मी चाहते थे कि मुमताज अपना फिल्मी करियर छोड़कर उनसे शादी करें । लेकिन मुमताज को अपने प्यार को अपने सपनो के तराजू में तौलना मंजूर नहीं था और उनके इनकार के बाद मुमताज़ और शम्मी कपूर के मोहब्बत का यह किस्सा मुकम्मल नहीं हो सका इनके जीवन में और भी कई यादगार – चर्चित घटनाएं रही हैँ |

इनकी दरियादिली का एक किस्सा कुछ ऐसा भी हैँ, जो सदी के महानायक अमिताभ बच्चन जी से जुड़ा हुआ हैँ… बात उस समय की हैँ जब फिल्म ‘बंधे हाथ’ में अमिताभ बच्चन उनके सहायक अभिनेता थे और अमिताभ उनकी मर्सिडीज कार को काफी पसंद करते हैं और उसे खरीदने की चाहत भी रखते थे ।
जब ये बात मुमताज़ को पता चला तो उन्होंने बिना किसी को कहे कार की चाबी अमिताभ बच्चन को दे दी और स्वयं अमिताभ की साधारण कार ले ली। खूबसूरती और दरियादिली की ऐसी अद्भुत मिशाल काफ़ी कम ही देखने को मिलती है | इसलिए मुमताज़ जी को ” ब्यूटी विथ ए गोल्डन हार्ट कहना ज़रा भी अतिश्योक्ति नहीं होंगी |
मुमताज़ ने अपने से छोटे से करियर में काफ़ी नाम और शोहरत कमाया| कहते है ना कि इंसान के ज़िंदगी की कहानी लम्बी नहीं, बड़ी होनी चाहिए| मुमताज़ के फ़िल्मी करियर मे भी इसी की झलक देखने को मिलती हैँ, इन्होंने अपने 27 साल की उम्र तक 100 से भी ज्यादा फिल्मे कर ली थीं ,
जिनमे दो रास्ते’, ‘आप की कसम’, ‘प्रेम कहानी’, ‘दुश्मन’, ‘रोटी’, ‘फौलाद’, ‘आंधी और तूफान’, ‘टार्जन एंड किंगकॉन्ग’, ‘बॉक्सर’, ‘जवान मर्द’ जैसी फ़िल्में शामिल हैं ।jinki बदौलत मुमताज़ ने अपने सफलता के शीर्ष को छुआ | उस समय के लगभग सभी बड़े नाम फिल्मों के जरिये इनसे जुड़ चुके थे, जहाँ दिलीप कुमार के साथ, “राम और श्याम “ko दर्शकों ने खूब पसंद किया | वहीं मुमताज़ फ़िल्म तांगेवाला मे राजेंद्र कुमार की भी हीरोइन रही |
एक दिलचस्प वाकया ये भी है -ki शशि कपूर ने फिल्म ‘चोर मचाए शोर’के स्टारकास्ट में मुमताज का नाम न देखकर फिल्म ही छोड़ दी। मुमताज को फ़िल्म में साइन जाने के बाद ही शशि कपूर ने इस फिल्म को साइन किया । हमारा इन सब वाक्यों का जिक्र करने का मकसद अपने दर्शकों को ये बताना भी हैँ कि मुमताज़ अपने दौर के शीर्ष अभिनेत्रियों से कहीं कम नहीं थी |
कहा जाता हैँ कि ये उस ज़माने में ढाई लाख फीस लिया करती थी जो इनके समांतर अभिनेत्री शर्मीला टैगोर के बराबर था जो उस दौर के फ़िल्मी दुनिया मे इनके रुतबे को दिखाता हैँ | इन्होंने अपने करियर के आखिरी फ़िल्म 1974 में आई “नागिन ” की ।

इस फिल्म में मुमताज़ की गेस्ट अपीयरेंस भूमिका थी। जिसके लिए इन्होने ₹8 लाख फीस लिया । इसके बाद इन्होने फ़िल्म जगत से सन्यास ले लिया | इनका ये फैसला इनके निजी जीवन से प्रेरित था जिसकी चर्चा हम आगे करेंगे ।
यूँ तो उपलब्धियाँ किसी सम्मान की मोहताज़ नहीं होती लेकिन ज़माने मे उसे पुरस्कारों से तौला जाता रहा हैँ| मुमताज को 1967 की फिल्म ‘राम और श्याम’ और 1969 की दो फिल्म ‘आदमी और इंसान’ तथा “ब्रह्मचारी “के लिए फिल्मफेयर बेस्ट सपोर्टिग एक्ट्रेस का अवॉर्ड मिला । और इसके अगले ही साल 1970 मे आयी फिल्म ‘खिलौना’ के लिए फिल्मफेयर सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का पुरस्कार इन्होने अपने नाम किया |
1996 में प्रतिष्ठित अंतर्राष्ट्रीय भारतीय फिल्म अकादमी (आईफा) में लाइफटाइम अचीवमेंट अवॉर्ड और 2008 में आईफा उत्कृष्ट योगदान मानद पुरस्कार से भी इन्हे नवाजा गया। अब हम इनके फ़िल्मी करियर को समेटते हुए इनके निजी जीवन के पन्नों पर रोशनी डालते हैं |सन 1974 मुमताज़ खान की जिंदगी मे काफ़ी अहम है जिसमे इनकी ज़िंदगी के रुख ने मोड़ ले लिया|
इसी वर्ष मुमताज़ ने 27 साल की उम्र में गुजरात के व्यवसायी मयूर माधवानी के साथ शादी कर ली । जिसके कारण मुमताज़ अपना फ़िल्मी सफर छोड़कर पति मयूर के साथ लंदन चली गई । गौरतलब है कि इस दशक मे अभिनेत्रियों की सुनामी सी आ गई थी |
इनकी दो बेटियां भी हैं जिनका नाम नताशा और तान्या हैं। शादी के बाद भी इनकी तीन फिल्में रिलीज हुईं, जिसकी शूटिंग मुमताज़ ने शादी से पहले ही पूरी कर ली थी । उसके बाद भी इन्हे कई फ़िल्में ऑफर हुईं परन्तु इन्होने मन कर दिया और अपने परिवारिक जीवन को ही तवज्जो देना उचित समझा ।
हालांकि कुछ वर्षो बाद 1990 में वो बॉलीवुड की फ़िल्म “आँधियाँ” में बंगाली सुपरस्टार प्रसनजीत की माँ के भूमिका में नजर आयी इसके अलावा उन्होंने 2010 में आई अमेरिकन डॉक्यूड्रामा फ़िल्म “1A मिनट ” में भी खुद की ही भूमिका में नज़र आयी , यानि अभिनेत्री मुमताज़ का किरदार |इन्होंने अपने फ़िल्मी सफर के बाद निजी जीवन में भी कई समस्याओ का सामना किया |

मिडिया खबरों के अनुसार मुमताज को 53 वर्ष की उम्र में कैंसर हो गया था। जिसे अब उन्होंने मात दे दी है, हालांकि अभी भी उन्हें थायराइड की समस्या बताई जाती है । अफवाहों के दौर मे एक खबर ऐसी भी आई थी कि मुमताज़ अपने पति से तलाक ले सकती हैँ, लेकिन सौभाग्यवश वो अभी भी अपने परिवार के साथ खुश हैँ |
सोशल मीडिया पर एक बार इनके मौत की अफवाह भी उडी थी । नारद टीवी इनके खुशहाल जीवन और अच्छे स्वास्थ्य की कामना करता हैं।
लेखक : विकास चौहान