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कहानी पाकिस्तान टीम की रीढ़ की हड्डी की

दोस्तों टेस्ट क्रिकेट सबसे मुश्किल (Difficulty) फॉर्मेट (Format) है। इसलिए नहीं कि इसमें 5 दिन तक खेलने के लिए फिटनेस (Fitness) लेवल रखना पड़ता है या एक दिन में 90 ओवर खेलना पड़ता है, बल्कि इसलिए कि इस प्रारूप (Format) में काफ़ी संयम (Control) के साथ खेलना पड़ता है। कभी गेंदबाज,तो कभी बल्लेबाज हावी (Dominance) होता है।कभी कभी जो पूरे दिन में नहीं होता वो मात्र आख़री 30 मिनट में हो जाता है। एक सेशन और खेल पलट जाता है। हर टीम में कम से कम एक ऐसे खिलाड़ी का ख़्वाब (Dream) देखती है जो टेस्ट में विश्वसनीय (Reliable) तरीके से बल्लेबाजी (Batting) कर सके। लंबी और टिकाऊ पारियां (Shifts) खेल सके। कोलाप्स (Collapses) हो तो टीम को संभाल सके। जो टीम की हार और विरोधियों की जीत में दीवार बनकर खड़ा हो,और इसे ड्रॉ  (Draw) में बदल दे। हम भारतीयों का सौभाग्य था, कि हमारे पास राहुल द्रविड़ थे, वेस्टइंडीज की खुशकिस्मती कि उनके पास चंद्रपाल, श्रीलंका के पास जयवर्धने, इंग्लैड की जड़ें मज़बूत करते जो रुट,तो दक्षिण अफ्रीका के पास हाशिम अमला। ठीक वैसे ही पाकिस्तान के पास भी एक ऐसा बल्लेबाज़ था जिसने अपनी लाजवाब बल्लेबाजी के दम पर मिस्टर डिपेंडेबल का उपनाम (Surename) पाया।उनकी परिपक्व (Mature) बल्लेबाज़ी के दम पर उन्हें पाकिस्तान का राहुल द्रविड़ कहा गया। कई बार अपनी टीम को उन्होंने मुश्किलों से उभारा। मगर पहले मुसलमान न होने के चलते,और बाद में अपना धर्म परिवर्तन के चलते उन्हें कई मुश्किलों का सामना करना पड़ा।जी हां,हम बात कर रहे हैं पाकिस्तान के पूर्व दिग्गज बल्लेबाज मोहम्मद यूसुफ की। जो कभी यूसुफ युहाना हुआ करते थे। आज हम जानेंगे पाकिस्तान की रीढ़ की हड्डी कहे जाने वाले इस महान खिलाड़ी के जीवन के बारे में।साथ ही ये भी, कि आखिर ऐसा क्या हुआ,जिसके चलते उन्हें अपना धर्म परिवर्तन करना पड़ा।

                                                                                          Mohammad Yusuf

यूसुफ युहाना का जन्म 27 अगस्त 1974 को पाकिस्तान के लाहौर में एक ईसाई (Cristian) परिवार में हुआ। उनके पिता युहाना मसीह रेलवे स्टेशन में काम किया करते थे। उनका घर पास की रेलवे कॉलोनी (Colony में था। यूसुफ एक मध्य (Middle) वर्गीय परिवार से ताल्लुक (Connection) रखते हैं। उन्हें क्रिकेट में रुचि तो बचपन से ही काफी थी।लेकिन उनकी आर्थिक (Economic) स्थिति काफ़ी खराब थी। क्रिकेट का सामान लेने के लिए भी उनके पास पैसे नहीं थे। उस वक्त वे टैनिस क्रिकेट खेला करते। 12 वर्ष की आयु (Age) में उन्होंने गोल्डन जिमखाना टीम से भी खेला। और धीरे धीरे वे लोकल टूर्नामेंट (Tournament) भी खेलने लगे। और छोटी उम्र से ही उनकी बल्लेबाज़ी में एक अलग किस्म की मैच्योरिटी (Maturity) और वो पैनापन (Sharpness) देखने को मिलता जो उन्हें बाकी खिलाड़ियों से अलग बनाता। उनके शानदार स्ट्रोकप्लै (Strokeplay) और लाज़वाब फुटवर्क के चलते वे दूसरों से कई आगे थे। आगे कई जूनियर (Juniror) लेवल और घरेलू क्रिकेट में अपना करिश्माई खेल दिखाने वाले यूसुफ पर चयनकर्ताओं (Selectors) की नज़र पड़ी और आखिरकार 1998 में उन्हें पाकिस्तान की ओर से पदार्पण (Debut) करने का मौक़ा मिला। वे पाकिस्तान की टीम से खेलने वाले 5वे नॉन मुस्लिम और 4 थे ईसाई खिलाड़ी थे।

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उन्होंने अपना पहला मैच दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ़ डरबन में खेलकर अपना अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट का सफ़र चालू किया। हालांकि वे इस मुकाबले में ज़्यादा कुछ कर नहीं पाए और दोनों पारियों में दहाई (Ten) का भी आंकड़ा नहीं छू सके। अगले ही महीने उन्होंने अपना पहला एक दिवसीय (Days) मैच खेला। और जिम्बाब्वे के खिलाफ़ अपना पहला शतक लगाकर काफ़ी प्रभावित किया। मगर अभी भी उनके बल्ले से निरंतर रन नहीं आ रहे थे।1999 में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ़ गाबा उनकी 95 और 75 रन की पारी ने उन्हें स्टार बना दिया।और अब यूसुफ युहाना विश्वभर में एक जाना माना नाम बन गया। इसी वर्ष हुए विश्व कप में उन्होंने ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ़ शानदार शतक लगाया,मगर चोट के चलते वे बाहर हो गए। उनकी बल्लेबाज़ी में एक चीज़ जो उन्हें सबसे ख़ास बनाती वो था उनका धैर्य । जहां अन्य बल्लेबाज ताबड़तोड़ अंदाज़ में हवाई फायर खेल बड़े शॉट लगाने में विश्वास करते वहीं यूसुफ तकनीक के दम पर रिस्क फ्री क्रिकेट खेलने में विश्वास रखते। वे ग्राउंडेड शॉट्स खेलकर रन बटोरने में माहिर थे। और जब एक बार क्रीज़ पर टिक जाते, तो उनका विकेट चटकाने के लिए गेंदबाजों को कड़ी मशक्कत (Toil) करनी पड़ती । यही कारण था कि उन्हें पाकिस्तान का द्रविड़ भी कहा जाता। अपनी साउंड तकनीक और इत्मीनान से टिककर क्रीज़ (Crease) पर लम्बी पारियां खेलने की उनकी एप्रोच (Approach) के चलते वे कुछ ही समय में पाकिस्तान बल्लेबाज़ी के अभिन्न (Integral) अंग बन गए। 2002 और 03 में लगातार 2 साल यूसुफ ने ओडीआई (ODI) क्रिकेट में सर्वाधिक (MOST) रन बनाए। यही नहीं, लगातार 7 वर्षों तक कमाल की कंसिस्टेंसी (Consistency) से खेलते हुए ये दिग्गज टेस्ट में भी टॉप स्कोरर (Scorer) रहा। 2004 में उन्होंने पाकिस्तान टीम की कमान भी संभाली, और ऐसा कारनामा करने वाले वे पहले और एकमात्र नॉन मुस्लिम पाकिस्तानी भी बने।और 2004–05 के ऑस्ट्रेलिया दौरे पर बॉक्सिंग डे टेस्ट में शानदार 111 रन की पारी भी खेली। कुछ ही समय बाद एक अनोखी ख़बर सामने आई जिसके चलते काफ़ी बवाल भी हुआ। यूसुफ युहाना ने 2005 में तबलीघी जमातों में जाने के बाद अपना धर्म परिवर्तित कर इस्लाम धर्म को स्वीकारा। हालांकि पारिवारिक और व्यक्तिगत (Individual) कारणों के चलते उन्होंने तीन महीनों तक ये बात गोपनीय रखी और बाद में जूमे की नमाज़ अदा करने के बाद उन्होंने अपना नाम बदलकर मोहम्मद यूसुफ रख लिया।जिसके चलते काफी लोग उनसे नाराज़ भी हुए। ख़ासतौर (Especially) पर उनके माता पिता,और अन्य परिवार के सदस्य (Member)। उनकी मां ने तो यह तक कह दिया था कि जो कुछ भी यूसुफ ने किया इसके चलते मैं उन्हें अपना नाम देना नहीं चाहूंगी। एक इंटरव्यू में धर्म परिवर्तन का कारण पूछा गया तो उन्होंने कहा तो उन्होंने बताया कि शुरू से ही उनके सईद अनवर और उनके छोटे भाई जावेद अनवर(उनके कॉलेज के दोस्त) से काफ़ी घनिष्ठ संबंध थे। और वे उनके रहन सहन, तौर तरीके से काफ़ी प्रभावित थे।और बाद में जब सईद अनवर इस्लाम से संबंधित धार्मिक प्रचार (Publicity) करने लगे तो उनसे वशीभूत (Subjugated) होकर उन्होंने भी इस्लाम धर्म कबूल करने का मन बना लिया।उनकी मानें तो 2000 में ही उन्होंने कलमा पढ़ लिया,लेकिन इस प्रोसेस (Process)  को 4–5 वर्ष लग गए। बाद में उनके घर में भी बात संभल गई और वे भी मुस्लिम बन गए।
लेकिन इस बात की एक और सचाई का खुलासा (Exposure) उनके पूर्व टीम मेट और दिग्गज तेज़ गेंदबाज (Bowler) शोएब अख्तर ने करते हुए ये भी बताया कि 2005 से पहले यूसुफ के मुसलमान न होने के कारण ड्रेसिंग रूम में उन्हें ना ही वो इज्ज़त मिली और न ही वो माहौल जिसके वे हकदार थे। एक बड़े खिलाड़ी होने के बावजूद उनके साथ कोई बैठकर खाने को भी तैयार न था। इस ज्यादती के चलते उनका टीम में स्थान भी पक्का ना रहता।और इस भेदभाव से तंग आकर एक वजह ये भी थी कि अपने करियर को लंबा करने के लिए यूसुफ एक मुसलमान बन गए।

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और रमीज रजा ने भी ये कहा कि अपना धर्म बदलने के बाद यूसुफ को वो इज्ज़त मिली और बतौर खिलाड़ी और बल्लेबाज़ उनमें काफी निखार आया।और ये बात काफी हद तक सच भी हुई। 2005 की दिसंबर में इंग्लैड के खिलाफ़ 223 रन की लाज़वाब पारी खेल वे मैन ऑफ़ द मैच बने। 2006 में में वे अपने इस प्राइम (Prime) को पीक पर ले गए।यूसुफ ने मानो रनों का माउंट एवरेस्ट खड़ा कर दिया। उस वर्ष उनका बल्ला (Bat) रुकने का नाम ही नहीं ले रहा था। इंग्लैड दौरे पर पहले मुकाबले में 202 और 48 रन की पारी खेल वे मैन ऑफ़ द मैच बने।वहीं अगले दो मुकाबलों में उन्होंने 192 और 128 रन ठोक डाले। इस वर्ष यूसुफ ने केवल 10 टेस्ट मैचों में 99.33 की औसत से 12 शतक की मदद से 1799 रन ठोक डाले थे।इस दौरान उन्होंने द ग्रेट विवियन रिचर्ड्स के 30 साल पुराने दो विश्व रिकॉर्ड तोड़ एक नया कीर्तिमान रचा।एक वर्ष में सर्वाधिक टेस्ट रन बनाने का उनका यह रिकॉर्ड आजतक भी अटूट है।साथ ही डॉन ब्रैडमैन के लगातार 6 मैच में शतक का रिकॉर्ड यूसुफ ने मात्र 4 मुकाबलों में पूरा किया।लेकिन मुल्तान में 191 रन पर आउट होते ही वे तीन बार 190s में आउट होने वाले पहले बल्लेबाज बने। 2007 में उन्होंने अपने करियर के इस करिश्माई दौर को जारी रखते हुए केवल 10 पारियों में 7 शतक और 2 अर्धशतक के दम पर 944 रन बनाए। इसके लिए उन्हें “आईसीसी क्रिकेटर ऑफ़ द इयर” के अवॉर्ड से भी नवाज़ा गया।
इस्लाम में जाने के बाद यूसुफ की सजदाह सेलिब्रेशन भी काफ़ी विख्यात हुई,जो वह शतक लगाने के बाद अल्लाह का शुक्र किया करते।
लेकिन इसी दौरान यूसुफ विवादों में भी घिर गए।जब 2007 में विवादित आईसीएल लीग में उन्होंने कॉन्ट्रैक्ट साइन किया तो पीसीबी ने उन्हें टीम से बाहर करदेने की धमकी दी,और साथ ही आईपीएल (IPL) खेलने की अनुमति दे दी। एक चयनकर्ता ने ये बयान दिया था कि बेशक वे हमारे अव्वल दर्जे के बल्लेबाज हैं और उनका काफ़ी सुनहरी भविष्य (Future) है।लेकिन सिर्फ तब,जब वे आईसीएल (ICL) नहीं खेलेंगे। जिसके चलते यूसुफ ने अपना फैसला (Decision) बदल दिया। मगर वे आईपीएल में अनसोल्ड (Unsold) रहे।और जब अगले ही वर्ष उन्हें टेस्ट टीम से ड्रॉप (Drop) कर दिया गया, तो वे आइसीएल खेलने गए और बदले में उन्हें पाकिस्तान टीम से बैन (Ban) कर दिया गया।
हालांकि 2009 में पाकिस्तान कोर्ट ने आईसीएल खेलने वाले उन सभी खिलाड़ियों से बैन हटा दिया। और बाद में ये बात भी सामने आई कि यूसुफ और शोएब मलिक के रिश्ते कुछ ठीक नहीं चल रहे थे जिसके चलते यूसुफ ने आईसीएल ज्वाइन की। मगर बाद में उन्होंने आईसीएल से सारे कॉन्ट्रैक्ट (Contract) खत्म कर जुलाई में लगभग 2 साल बाद टीम में वापसी (Return) की। और आते ही श्रीलंका के खिलाफ़ टेस्ट में शतक (Century) जड़ दिया।और कुछ समय पश्चात् (After) उन्हें न्यूज़ीलैंड दौरे के लिए टीम की कमान भी सौंपी (Assigned) गई। अब उन्हें तीनों प्रारूपों (Formats) में खेलने का मौका मिलने लगा और यूसुफ के करियर (Career) में अब सब कुछ ठीक हो ही रहा था। मगर ऑस्ट्रेलिया दौरे पर मिली करारी शिकस्त (Defeated) ने सब कुछ बिगाड़ कर रख दिया। जब उनपर अनुशासन (Discipline) खराब कर टीम का माहौल (Ambience) बिगाड़ने का आरोप लगा।जिसके चलते उन्हें पाकिस्तान बोर्ड ने बैन कर दिया और अनिश्चित (Uncertain) समय के लिए टीम से बाहर (Outside) कर दिया।
इस फैसले से मायूस होकर यूसुफ ने क्रिकेट से संन्यास (Retirement) लेने की घोषणा करदी। लेकिन 2010 में इंग्लैड से 354 रन से शर्मनाक हार के बाद यूसुफ ने क्रिकेट में वापसी का ऐलान किया और उन्हें टीम में स्थान भी मिला। मगर वीज़ा न मिल पाने के चलते वे उस दौरे पर न पहुंच सके। उनका चयन दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ़ तीनों प्रारूपों में हुआ था,मगर चोट के चलते वे ओडीआई (ODI) सीरिज का केवल अंतिम मैच खेल पाए।

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जिसके दौरान यूसुफ ने एक ऐसी टी शर्ट पहनी थी जिसपर उनका नाम इंक से लिखा था। जिसके बाद उन्हें मैच रेफरी (Refree) से फटकार (Damnation) भी पड़ी। मगर आईसीसी (ICC) ने उन्हें हरी झंडी दिखा दी। मगर पहले टेस्ट से कुछ वक्त पहले ही उनकी ग्रोइन (Groin) में चोट आ गई। जिसे ठीक होने में 2 हफ़्ते लग गए और वे सीरिज से बाहर हो गए । बढ़ती उम्र के चलते अब ये चोटों का सिलसिला बढ़ता चला गया और अब यूसुफ टीम में चुने जाने के बावजूद मैदान में काफी कम दिखाई पड़ते। और फिर कभी ये नायाब हीरा पाकिस्तान टीम के लिए न खेल सका।

यूसुफ ने अपने करियर में टेस्ट में 24 और ओडीआई में 15 शतकों की बदौलत टेस्ट में 54 की औसत से 6000 से भी अधिक रन बनाए। ऐसा कारनामा करने वाले वे केवल तीसरे बल्लेबाज हैं। जो कि उनकी प्रतिभा को बयां करती है। वहीं अपने एक दिवसीय करियर में उन्होंने 9720 रन बनाए।अपने 100वे एकदिवसीय मैच में शतक ठोकने वाले वे विश्व के मात्र तीसरे बल्लेबाज हैं। वहीं एकदिवसीय मैच में उनका दूसरा सर्वश्रेष्ठ (Best)औसत है( 44.5)। उनके सुनहरी करियर के ये आंकड़े लाज़वाब हैं। साथ ही उनके एक वर्ष में सर्वाधिक टेस्ट रन का रिकॉर्ड (Record) भी आजतक कोई नहीं तोड़ सका।

लेकिन जो जातिवाद का शिकार यूसुफ को अपने करियर में करना पड़ा (2005 से पूर्व) उसका सामना कोई खिलाड़ी नहीं करना चाहेगा। इस भेदभाव और टीम सिलेक्शन (Selection) मेरिट(Merit) बेस पर न होने के कारण पाकिस्तान टीम और बोर्ड की आज भी काफी निंदा भी की जाती है।

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