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नंदी बैल आखिर क्यों है भगवान शिव की सवारी

कैसे बने नंदी भगवान शिव के वाहन
कैसे बने नंदी भगवान शिव के वाहन

lord shiva and नंदी story in hindi   – Nandi or shiv ki kahani in hindi –

जिस प्रकार भगवान शिव व उनसे जुड़ी कथायें अनंत हैं, उसी प्रकार विभिन्न पुराणों में उनके परम भक्तों व उनके गणों से जुड़ी कथायें भी लिखी गयीं हैं, जो सुनने व देखने को कम ही मिलतीं हैं। भैरव, वीरभद्र, मणिभद्र, चंदिस, श्रृंगी, भृगिरिटी, शैल, गोकर्ण, घंटाकर्ण, जय और विजय आदि भगवान शिव के प्रमुख गण हैं। इन्हीं गणों में से एक है नंदी, जो भगवान शिव के वाहन भी हैं और उनके सभी गणों में सर्वश्रेष्ठ भी हैं। मान्यता है कि कामशास्त्र के रचनाकार नंदी ही थे। कहा जाता है कि अगर अपनी मनोकामना नंदी के कान में कह दी जाए तो वे उसे भगवान शिव तक उसे अवश्य पहुंचा देते है। कौन थे नंदी और क्या है उनके बैलरूप की कथा कि कैसे बने नंदी भगवान शिव के वाहन।

पहली कथा जुड़ी है मृत्‍यु के देवता यमराज से। पौराणिक कथाओं के अनुसार एक बार यमराज की दृष्टि भ्रमण करते हुए भगवान शिव पर पड़ी और उन्होंने इस ओर ध्यान दिया कि शिवजी ब‍िना क‍िसी वाहन के ही संपूर्ण संसार में विचरण करते रहते हैं। यम के मन में यह बात आई कि क्यों न वे ही स्वयं शिवजी के वाहन बन जाएं। परन्तु यह प्रस्ताव भगवान शिव भला इतनी सहजता से कहाँ स्वीकार करने वाले थे, इस हेतु यमराज ने कठिन तप करना प्रारम्भ कर दिया। यम के तप से भोलेनाथ प्रसन्‍न हुए और उन्‍होंने यम को बैल रूप में अपना वाहन बनाना स्‍वीकार कर लिया। चूँकि बैल अत्‍यंत भोला होता है और उसके मन में किसी भी प्रकार का छल-कपट नहीं होता है, इसी कारण भगवान भोलेनाथ ने बैल रूप को ही चुना और बैल अर्थात नंदी बाबा को अपना वाहन नियुक्‍त किया। इतना ही नहीं अपना वाहन बनाने के साथ-साथ शिव जी ने नंदी को अपना प्रधान सेनापति भी बनाया। मान्यता है कि भगवान शिव की सेना नंदी बाबा के कहने पर ही चलती है।

दूसरी कथा जुड़ी है हिंदू पौराणिक ग्रंथ ‘शिवमहापुराण’ से, जिसमें भगवान शिव की कथा के साथ-साथ उनसे जुड़े हर चमत्कारों व उनके अनन्य भक्तों का भी वर्णन किया गया है और नंदी बाबा भगवान शिव के उन्हीं परम् भक्तों में से एक हैं। पुराणों में उल्लेख है कि नंदीबाबा मुनि शिलाद के पुत्र हैं जिनके ब्रह्मचर्य व्रत के पालन के कारण उनके पूर्वजों ने अपने वंश को समाप्त होता देखकर एक दिन उन्हें इस समस्या से अवगत् कराया, जिससे मुनि शिलाद भी बड़े धर्मसंकट में पड़ गए। उन्होंने इसके निराकरण हेतु इंद्र देव की घोर तपस्या करनी प्रारंभ कर दी। इंद्र देव उनकी तपस्या से प्रसन्न हुए और उनसे वरदान माँगने को कहा तब शिलाद मुनि ने वरदान के रूप में एक अमर पुत्र की इच्छा व्यक्त की। हालांकि इंद्र देव उनके इस वरदान को तो पूर्ण न कर सके परन्तु उपाय स्वरूप उन्होंने भगवान शिव की तपस्या करने की सलाह दी और कहा कि शिवजी को प्रसन्न करके ही उनकी यह इच्छा पूर्ण हो सकती है क्योंकि भगवान शिव कुछ भी कर सकते हैं। मुनि शिलाद अब भोलेनाथ को प्रसन्न करने के लिए तपस्या में लीन हो गये। फलस्वरूप भगवान शंकर ने उनके तप से प्रसन्न होकर उन्हें यह वरदान दिया कि वह स्वयं ही मुनि शिलाद के घर बाल रूप में प्रकट होंगे।

कुछ दिन बीत जाने के पश्चात एक दिन भूमि की जुताई करते समय भूमि के भीतर से मुनि शिलाद को एक नवजात शिशु मिला, जिसे पाकर वे अत्यंत प्रसन्न हुए, वे समझ गये कि यह बालक उन्हें शिवजी के वरदान से ही मिला है जो शिव का ही रूप है। मुनि शिलाद ने उस बालक का नाम नंदी रखा। शिलाद ऋषि एक आश्रम में रहते थे, उनका पुत्र भी उन्‍हीं के आश्रम में ज्ञान प्राप्‍त करता था। एक समय की बात है शिलाद ऋषि के आश्रम में मित्र और वरुण नामक दो संत आए जो भगवान शंकर द्वारा भेजे गए थे। जिनकी सेवा का कार्यभार शिलाद मुनि ने अपने पुत्र नंदी को सौंप दिया। नंदी ने भी पूरी श्रद्धा से दोनों संतों की सेवा की, और जब संत आश्रम से जाने लगे तो उन्‍होंने शिलाद ऋषि को तो दीर्घायु होने का आशीर्वाद दिया पर नंदी को नहीं दिया। इस बात से शिलाद ऋषि बड़े चिंतित हो गए, उन्‍होंने संतों से अपने पुत्र के दीर्घायु होने का आशीर्वाद नहीं देने का कारण पूछा। संत इस प्रश्न पर कुछ क्षणों हेतु चुप हो गए, और गंभीर होकर कहा कि “आपका पुत्र नंदी अल्पायु है और यही कारण हैं कि हमनें उसे यह आशीर्वाद नहीं दिया।” संतों का यह उत्तर सुनकर शिलाद मुनि के हृदय को बहुत आघात लगा, शिलाद अब हर समय चिंतित रहने लगे। एक दिन अपने पिता को इस अवस्था में देख नंदी ने उनसे पूछा कि, “क्या बात है पिताजी, आप इतने चिंतित से क्‍यों रहते हैं?” शिलाद ऋषि ने नंदी से बताया कि “संतों ने कहा है कि तुम अल्पायु हो, इसीलिए मेरा मन बहुत चिंतित है।” नंदी ने जब पिता की चिंता का कारण सुना तो वह हंसने लगे और हँसते हुए कहा कि, “पिताश्री जिस भगवान शिव ने मुझे आपको सौंपा है, वही मेरी रक्षा भी करेंगे, आप सब उन पर छोड़ दीजिए और   सारी चिंताएं भी त्याग दीजिये।”  पिता शिलाद को शांत करने के पश्चात् नंदी ने भुवन नदी के तट पर भगवान शिव की तपस्या करनी प्रारंभ कर दी। इस घोर तप से प्रसन्न होकर एक दिन भगवान शिव ने नंदी को दर्शन दिए और उनसे कहा कि, “कहो पुत्र क्या इच्छा है तुम्हारी?” नंदी ने कहा, “भगवन् मैं आजीवन आपके सानिध्य में ही रहना चाहता हूँ, इसके अतिरिक्त मुझे और कुछ नहीं चाहिए।” शिवजी ने प्रसन्न होकर नंदी को हृदय से लगा लिया और नंदी को मृत्‍यु भय से मुक्‍त अजर-अमर होने का आशीर्वाद दिया। भगवान शिव ने नंदी को अपने वाहन तथा अपने गणों में सबसे उत्‍तम रूप में स्वीकार करते हुए उन्हें बैल के रूप में परिवर्तित कर दिया।

नंदी की शिव भक्ति से जुड़ी एक और कथा है जो उनके भक्ति का सबसे बड़ा उदाहरण भी है। कथा तब की है जब असुरों और देवताओं के मध्य समुद्र मंथन चल रहा था, जिसमें से निकले विष को भगवान शिव ने अपने कंठ में धारण कर लिया था। परन्तु विषपान के दौरान विष की कुछ बूंदें शिवजी के मुख में न जाकर बाहर की ओर गिरने लगी थीं जिसे नंदी ने अपनी जीभ से चाट लिया था। नंदी के इस भक्ति भाव पर भगवान शिव अत्‍यंत प्रसन्‍न हुए और उन्हें अपने सबसे बड़े भक्‍त की उपाधि दी। इसके अतिरिक्त शिवजी ने नंदीबाबा को यह भी आशीर्वाद दिया कि जो शक्तियां उनकी हैं वह नंदी की भी हैं। हिंदू धार्मिक ग्रंथों में उल्लेख है कि जब रावण द्वारा नंदी का अपमान किया गया था, नंदी ने उसके विनाश की घोषणा की थी। रावण संहिता के अनुसार, जब रावण कुबेर पर विजय प्राप्त कर लौट रहा था, तब वह कुछ समय के लिए कैलाश पर्वत पर विश्राम हेतु रुका था, जहाँ उसने शिव के पार्षद नंदी के बैल रूप को देखकर उनका उपहास किया था। तब नंदी ने क्रोधित होकर रावण को श्राप दिया कि मेरे जिस पशु रूप को देखकर आज तुम हंस रहे हो, वही पशु रूप के जीव तुम्हारे विनाश का कारण बनेंगे।
भगवान शंकर ने नंदी को वरदान दिया कि जहां उनका निवास होगा, वहां नंदी का भी निवास होगा। तभी से हर शिव मंदिर में शिवजी के सामने नंदी की स्थापना की जाती है। भगवान शिव महान तपस्वी है इसलिए वे हमेशा समाधी में बैठे रहते है। शिव के वाहन नंदी पुरुषार्थ व कठोर परिश्रम के भी प्रतीक है। नंदी का विवाह मरुतों की पुत्री सुयशा के साथ हुआ था। भगवान शिव ने नंदी को यह आशीर्वाद दिया था कि उनकी पूजा से पहले नंदी की पूजा की जाएगी। यही कारण है कि हर शिवालय में नंदी बाबा की मूर्ति अवश्य स्थापित की जाती है। मान्‍यता है कि यदि नंदी बाबा के कानों में सच्‍ची श्रद्धा, और सच्ची भावना से अपनी बात कह दी जाये तो वह प्रार्थना भोलेनाथ तक अवश्य पहुंच जाती है और  शिवजी उस मनोकामना को अवश्य पूर्ण भी करते हैं।

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