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हिन्दू ग्रंथों में ज्ञानवापी के बारे में क्या लिखा गया है

हिन्दू धार्मिक ग्रंथों में ज्ञानवापी धाम के बारे में क्या लिखा गया है
हिन्दू धार्मिक ग्रंथों में ज्ञानवापी धाम के बारे में क्या लिखा गया है

मित्रों, जैसा कि हम सभी जानते हैं कि ईश्वर ही ऐसी एकमात्र शक्ति है जिसने सारी दुनिया को रचा है। इस संसार मे हर प्रकार के जीवों को उसी शक्ति ने बनाया है, जैसे कि जीव-जंतु, पशु-पक्षी, कीट-पतंग और यहां तक कि हम मानव भी उसी ईश्वर की रचना है।जन्म मृत्यु और काल की गति, सब कुछ उसी ईश्वर के आदेश के अनुरूप ही चलते हैं। इसलिए प्राचीन काल से ही ईश्वर की पूजा और भक्ति का नियम बनाया गया है, जिसे हर धर्मं और सम्प्रदाय के लोग अपने अपने तरीके से करते हैं। कोई उन्हें साकार स्वरूप में पूजता है तो कोई उनके निराकार रूप की भक्ति करता है। और इसलिए कही उन्हें मंदिर में कहि मस्जिद में, तो कही गुरुद्वारे या चर्च में अलग अलग धर्म के लोग पूजते हैं। हमारे सनातन धर्म के अनुसार मंदिर में पूजा करने का विधान है और इसलिए मंदिर के प्रति अपनी एक अलग ही श्रद्धा देखी जाती है, खास तौर से वो मंदिर जिनकी नींव आज से हजारों साल पहले ही हमारे पुर्वजों ने ईश्वर की इच्छा से रखी थी। लेकिन कुछ सालों बाद जब भारत मे मुगल शक्तिओ का आक्रमण हुआ, तो धीरे धीरे उन्होंने सनातन धर्म की इस आस्था पर चोट करना शुरू कर दिया। धीरे धीरे बहुत से मंदिरो को तोड़ा जाने लगा, जिनमे से सोमनाथ मंदिर का नाम सबसे ऊपर है। उस दरमियान भारत के अलग अलग राज्यो के बहुत सारे मंदिरो को खंडित करके उस समय के तत्कालीन बादशाहो ने अपने हिसाब से नए नए निर्माण करने शुरू कर दिए। लेकिन जैसा कहा जाता है कि सब का समय एक जैसा नहीं रहता , उसी तरह आज के इस दौर में समय ने फिर से एक करवट ली है और उन्हीं जमीदोष की गयी मंदिरो को फिर से स्थापित करने की मांग उठ रही है। जैसे कि आज की तारीख में सबसे ज्वलंत मुद्दा ज्ञानवापी मस्जिद का चल रहा है, जिसमे इस बात को प्रमाणित किया जा रहा है कि किसी समय इस जगह पर महादेव का प्रसिद्ध मंदिर था जो कि ज्ञानवापी मन्दिर के नाम से प्रसिद्ध था। मित्रों इस चर्चा को आगे बढ़ाने से पहले हम आपको ये स्पष्ट कर देना चाहते हैं कि, आज के इस अंक में किसी भी प्रकार की राजनैतिक या धार्मिक विवाद को तूल नहीं दिया जा रहा है, बल्कि आज हम उस तथ्य को आपसे साझा करेंगे जिसका संबंध ज्ञानवापी मंदिर के निर्माण से है और जिसका ठोस प्रमाण हमारे धार्मिक पुराणों में मिलता है, इस समय अलग अलग लोगों से ज्ञानवापी मन्दिर को लेकर अलग अलग कथाएं और बाते सुनने को मिल रही है, लेकिन आज का ये अंक आपको एक ऐसे ठोस प्रमाण से अवगत कराएगा जिसकी जानकारी शायद ही किसी को हो।

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ज्ञानवापी मन्दिर के निर्माण और उससे जुड़ी रहस्यमयी जानकारियो को जानने से पहले आइये हम एक नजर इतिहास के उन पन्नों पर भी डालें जिसका सम्बन्ध आज के इस मुद्दे से है। एक news एजेंसी की रिपोर्ट के मुताबिक, जाने माने इतिहासकार ललित मिश्रा के अनुसार- ज्ञानवापी मस्जिद काशी विश्ववनाथ मंदिर का ही एक हिस्साि है, जिसे मुगल शासकों ने कई बार नष्ट करने का प्रयास किया। चीनी यात्री ह्वेनसांग के अनुसार उसके समय में काशी में सौ मंदिर थे, किन्तु मुगल आक्रमणकारियों ने सभी मंदिर ध्वस्त कर मस्जिदों का निर्माण करवाया। ईसा पूर्व 11वीं सदी में राजा हरीशचन्द्र ने जिस विश्वनाथ मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया था उसका पुनः निर्माण सम्राट विक्रमादित्य के द्वारा हुआ।इस मंदिर को 1194 में मोहम्मद गोरी ने लूटने के बाद तुड़वा दिया था।लेकिन इसका पुनः निर्माण करवाया गया, इसके बाद साल 1447 में जौनपुर के सुल्तान महमूद शाह द्वारा फिर से इस मंदिर को खंडित कर दिया गया। पुन: सन् 1585 में राजा टोडरमल की सहायता से पं. नारायण भट्ट द्वारा इस स्थान पर फिर से एक भव्य मंदिर का निर्माण करवाया गया।इस भव्य मंदिर को सन् 1632 में शाहजहां ने आदेश पारित कर तोड़ने के लिए सेना भेज दी। सेना हिन्दुओं के प्रबल प्रतिरोध के कारण विश्वनाथ मंदिर के केंद्रीय मंदिर को तो तोड़ न सकी, लेकिन काशी के तिरसठ अन्य मंदिरों को तोड़ डाला गया।फिर साल आया 1669 का जब फिर से उस समय के तत्कालीन मुग़ल बादशाह औरंगजेब ने मंदिर को तुडवाने का आदेश दिया और मंदिर के स्था्न पर ज्ञानवापी मस्जिद बनवा दी।
इसके बाद मराठा शासक मल्हांर राव होल्केर ने मस्जिद को तुड़वाकर फिर से विश्वेाश्वसर मंदिर का निर्माण कराना चाहा तो उन्हें अपनों का ही साथ नहीं मिला। उनके बाद उनकी बहू और इंदौर की महारानी अहिल्यारबाई होल्कदर के स्वहप्न में शिवजी ने दर्शन दिए और फिर उन्हों ने मस्जिद के ठीक सामने सन 1777 में वर्तमान काशी विश्व नाथ मंदिर का निर्माण करवाया।18 अगस्त, 2021 को 5 महिलाओं ने वाराणसी की एक अदालत में याचिका दायर कर मां श्रृंगार गौरी समेत अन्य मंदिरों में पूजा-अर्चना की मांग की थी. अपनी याचिका में महिलाओं ने कहा था कि ज्ञानवापी मस्जिद में मौजूद हिन्दू देवी-देवताओं के दृश्य व अदृश्य मूर्तियों की निर्बाध पूजा का अधिकार दिया जाए.फिलहाल अब ये मामला न्यायालय के संज्ञान में है, जिस पर लगातार सुनवाई जारी है| औऱ इसका जो भी निर्णय होगा वो सभी को मान्य होगा, लेकिन हमारे धर्म शास्त्र और पुराणों में ज्ञानवापी मन्दिर होने के पुख्ता सबूत हैं, जिनकी जानकारी आज हम आपको देने जा रहे हैं।
स्कन्दपुराण के काशीखण्ड में ज्ञानवापी की स्थापना और इससे जुड़ी बड़ी रोचक कथा पढ़ने को मिलती है, जिसमे शिवपुत्र कार्तिकेय, ज्ञानवापी मंदिर की स्थापना और उसकी महिमा के बारे में, महर्षि अगस्त्य को विस्तार बताते हुए कहते हैं की- “हे अगस्त्य! तुम तो जानते ही हो की काशी को सभी तीर्थों में सबसे उत्तम और स्वर्ग के बराबर माना गया है, इस तीर्थ पर आकर जो भी महादेव शिवशंकर का ध्यान करता है, उसे सभी पापों से मुक्ति मिल जाती है| अब मैं तुम्हे इस तीर्थ में बसे ज्ञानवापी मन्दिर के स्थापना की कथा सुनाता हूँ| एक बार की बात है, काशी में ईशान कोण के अधिपति और भगवान् शिव के अंश ईशान पधारे, और यहाँ आकर उन्होंने भगवान् शिव के विशाल ज्योतिर्लिंग का दर्शन किया, तभी उनके मन में अचानक ही एक विचार उठा और उन्होंने सोचा की मै क्यों न कुछ ऐसा करू, जिससे मै इस शिवलिंग को लगातार शीतल जल से स्नान करवाऊ| ऐसा सोचकर उन्होंने तुरंत ही अपने त्रिशूल से एक बहुत बड़ा कुआ खोदा, जो की विश्वेश्वर लिंग से दक्षिण की ओर था| और थोड़ी ही देर बाद उस कुए से बहुत ही शीतल और शुद्ध जल प्रकट हुआ, और फिर उसी जल से ईशान ने महादेव की शिवलिंग को लगभग एक हजार बार स्नान करवाया| उनके इस प्रकार की श्रद्धा देखकर, महादेव खुद को रोक न सके और कुछ ही पलों में वो स्वयं उनके सामने प्रकट हो गए और उन्होंने कहा- हे ईशान! मै तुम्हारी इस प्रकार की भक्ति से बहुत प्रसन्न हुआ, तुम्हारे मन में जो भी इच्छा हो मुझसे वरदान में मांग लो|
इस पर ईशान बोले- हे महादेव! अगर आप सचमुच मुझ पर प्रसन्न हैं, तो इतनी सी कृपा करिए की, मेरे द्वारा खोदा गया ये कुंड एक तीर्थ बन जाए और इसका नाम आपके नाम पर ही हो| ईशान से ऐसा सुनकर महादेव ने कहा- हे ईशान! इस संसार में जितने भी मेरे तीर्थ हैं, उन सभी में ये तीर्थ सर्वश्रेठ होगा, क्योकि शिव का अर्थ ज्ञान है इसलिए मेरी माया से वही ज्ञान इस कुंड से द्रवीभूत होकर प्रकट हुआ है, अर्थात द्रव का रूप लेकर प्रकट हुआ है इसलिए ये तीर्थ आज से तीनों लोको में ज्ञानोद तीर्थ के नाम से जाना जायेगा, इसके अलावा शिव कण-कण में है अर्थात ज्ञान भी हर जगह व्याप्त है इसलिए इस तीर्थ को लोग ज्ञानवापी तीर्थ के नाम से भी जानेंगे|” इस तीर्थ के जल के स्पर्श मात्र से अश्वमेघ यज्ञ के बराबर पूण्य प्राप्त होगा, साथ ही साथ जिस व्यक्ति को गया और पुष्करतीर्थ में स्नान और पितरों का तर्पण करके फल प्राप्त होता है, बिलकुल वही फल इस ज्ञानवापी के समीप श्राद्ध करने से प्राप्त होगा| इसके अलावा महादेव ये भी कहते हैं की- जो भी व्यक्ति ज्ञानवापी के जल से मेरे लिंग को स्नान करवाता है,उसे सभी तीर्थो के जल से स्नान कराने का फल प्राप्त होता है|
इसके बाद, एक और प्रसंग का जिक्र स्कन्दपुराण में मिलता है जिसमे ज्ञानवापी तीर्थ के होने और उससे मिलने वाले पुण्य को प्रमाणित किया गया है और वो कथा कुछ इस तरह से है की- बहुत समय पहले काशी में हरिस्वामी नाम से एक बहुत ही प्रकांड विद्वान ब्राम्हण रहा करते थे, जिनकी सुशीला नाम की एक बहुत ही सुन्दर पुत्री थी| सुशीला परम शिवभक्त थी और वो ज्ञानवापी मन्दिर की दिन रात देखभाल किआ करती थी, और इसलिए उसे ब्रम्हज्ञान भी हो गया था| एक दिन रात के समय वो अपने आँगन में आराम कर रही थी, की अचानक ही उसका एक सखा जिसका नाम विधाधर था, उसके पास आ गया| विधाधर ने सुशीला से रात्रि के समय पर्वत विहार करने की बात कही, और फिर दोनों ही वहा से चल दिए| मार्ग में चलते-चलते अचानक ही विधुन्माली नाम का बहुत भयंकर रक्षस प्रकट हो गया| वो राक्षस सुशीला को बलपूर्वक ले जाना चाहता था लेकिन विधाधर बहुत ही वीर था इसलिए पहले तो उन दोनों में भयंकर युद्ध छिड़ गया, और फिर अंत में विधाधर ने उस राक्षस को मार गिराया लेकिन विधुन्माली के द्वारा त्रिशूल प्रहार से विधाधर भी न बच सका और उसे अपने प्राण गवाने पड़े|
सुशीला ने मन ही मन विधाधर को पति रूप में स्वीकार कर लिया था लेकिन उसके मर जाने के बाद सुशीला को गहरा आघात लगा और उसने अपनी योग साधना से अपने प्राण भी त्याग दिए| कुछ समय बाद विधाधर का अगला जन्म उस समय के प्रसिद्ध राजा मल्य्केतु के यहाँ हुआ और पुत्र का नाम माल्य्केतु रखा गया| उसी बीच सुशीला का भी नया जन्म एक संपन्न परिवार में हुआ जहां उसका नाम कलावती था, जो की जन्म से ही शिव भक्त थी| समय बीतने के बाद महादेव की कृपा से इस जन्म में कलावती और माल्य्केतु का विवाह हो गया और जिससे उन्हें तीन संताने हुई| एक दिन महाराज माल्य्केतु की राजसभा चल रही थी की अचानक उनके दरबार में उत्तरभारत का एक चित्रकार आया और उसने अपने हाथों से बनाये एक अजीब से चित्र को महाराज को सौप दिया| महाराज ने उस चित्र को रानी कलावती को सौप दिया| एक दिन एकांत में बैठे बैठे कलावती उस चित्र को देख रही थी, तो उसने देखा की उस चित्र में तो काशी और उसके आस-पास के मंदिर और तीर्थ बने हुए हैं| थोडा और गौर से देखने पर उसने भगवान् विश्वनाथ के दक्षिण भाग में स्थित ज्ञानवापी को देखा, जिसमे भगवान् शंकर की जलमयी मूर्ती स्थापित है| उसने उस चित्र में बने ज्ञानवापी मंदिर को स्पर्श किया तो थोड़ी ही देर में उसके प्रभाव से उसे अपने पूर्वजन्म का सारा वृतांत याद आ गया|
कलावती ने अपने पूर्वजन्म के बारे में अपनी सहेलियों और अपने पति राजा माल्य्केतु से बताया की- पूर्वजन्म में मेरा नाम सुशीला था और मेरी माँ का नाम प्रियम्वदा और पिता का नाम हरिस्वामी था| ज्ञानवापी के ऐसे प्रभाव को जानकर उन सभी के मन में ज्ञानवापी तीर्थ चलने की इच्छा हुई| और फिर राजा माल्य्केतु ने अपने बड़े बेटे को राज्य का सारा कार्यभार सौपकर, पत्नी सहित ज्ञानवापी आ पहुचे और फिर वहीँ स्नान करके अपने पितरों का श्राद्ध और पिंडदान किआ| बहुत समय बीतने के बाद एक दिन भोर के समय दोनों पति-पत्नी ज्ञानवापी में स्नान करके बैठे हुए थे की तभी उधर से एक साधू गुजर रहे थे, उन्होंने चुपके से उनके कानों में कहा की थोड़ी ही देर में तुम दोनों को तारक मन्त्र का ज्ञान प्राप्त हो जायेगा और तुम दोनों परम ब्रम्ह ज्ञानी हो जाओगे| थोड़ी ही देर बाद आकाश से एक दिव्य विमान उतरा, जिसमे महादेव शिव शंकर बैठे हुए थे| विमान से उतरकर भगवान् शिव ने उन दोनों दम्पत्ति को दर्शन दिए और उनके कानों में कुछ गूढ़ उपदेश दिया और थोड़ी ही देर में वहा से अदृश्य हो गए| ऐसा माना जाता है की, इस एतिहासिक और चमत्कारिक घटना के बाद से ज्ञानवापी तीर्थ का महत्व और भी ज्यादा बढ़ गया है और इसलिए इस तीर्थ को भी सर्वश्रेष्ठ तीर्थ का दर्जा मिला हुआ है|
मित्रों, ये दोनों कथाओं का स्रोत स्कन्दपुराण से है, जिसमे ज्ञानवापी तीर्थ के होने का जिक्र हजार सालों पहले ही कर दिया गया है| हम फिर से यही कहेंगे की हमारा उद्देश्य किसी की भी आस्था पर चोट करना नहीं बल्कि उन सबसे ये कहना है की एक बार आप इन पुख्ता प्रमाणों को सही ढंग से पढ़ लें ताकि आपको सही तथ्यों का ज्ञान हो सके| !

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