
श्रीराम द्वारा पीड़ित कुत्ते को न्याय
कहा जाता है की पृथ्वी का पालक राजा होता है, यदि राजा भोग, विलासी और अत्याचारी हो तो उसके राज्य में प्रजा कभी सुखी नहीं रह सकती लेकिन अगर राजा सत्कर्मी और न्यायप्रिय हो तो उसका राज्य किसी स्वर्ग से कम नही होता |
जब न्यायप्रिय और धर्मात्मा शासक की बात होती है तो सबसे पहले नाम आता है मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम का, जिनके न्यायप्रियता की बहुत सी कहानिया हम सुन चुके हैं |
बात उस समय की है जब श्रीराम रावण से युद्ध करने के बाद अयोध्या वापस आ चुके थे और उनका राज्याभिषेक पूरी धूम धाम के साथ हो चुका था , इसके बाद श्रीराम ने अयोध्या का सारा कार्यभार और सञ्चालन एक राजा के रूप में स्वीकार कर लिया था|
कहा जाता है की श्रीराम के शासन-काल की कुछ मुख्य विशेषताए थी जैसे की उनके शासन काल में किसी को भी शाररिक रोग या मानसिक चिंताए नही होती थी , हर तरह के रोगों की औषधिया बहुत ही आसानी से मिल जाया करती थी और साथ ही साथ समय पर खेती और फसल भी होती थी साथ ही साथ किसी भी बालक या युवक की अकाल मृत्यु नही होती थी|
वाल्मीकि रामायण के उत्तरकांड के अनुसार रोज की तरह एक दिन भगवान् श्रीराम अपने मंत्रीगण, राजगुरु महर्षि वशिष्ठ और अन्य ब्राम्हणों के साथ दरबार में प्रजा का सुख-दुःख सुनने के लिए राजसभा में उपस्थित हुए |
पूरी सभा एक से एक विद्वान मंत्रियों , धर्मशास्त्रो, राजाओं और अन्य सभासदों से भरी हुई थी| उस सभा को देखने से ऐसे लगता था की मानो देवराज इंद्रा की सभा लगी हो |
अपने सिंहासन पर बैठे हुए श्रीराम ने लक्ष्मण से कहा- “हे लक्ष्मण! तुम द्वार पर जाओ और ये देखो की प्रजा से ऐसा कौन कौन यहाँ आया है जिसे अपनी समस्या का समाधान चाहिए , जो भी लोग द्वार पर आये हो उन्हें एक-एक करके अन्दर बुलाओ|”
श्रीराम के ऐसा कहने पर लक्ष्मण राजभवन से बाहर निकले , और बाहर आकर देखा की द्वार पर एक कुत्ता खड़ा है जिसके माथे पर गहरी चोट थी, ऐसा लगता था की उसे किसी भारी चीज से मारा गया हो|, वह लक्ष्मण जी को देखकर बार बार भूंक रहा था|
तो उसे इस प्रकार भूकता देख लक्ष्मण ने उससे पुछा-“तुम इस तरह क्यों भूंक रहे हो? तुम्हारी क्या समस्या है , तुम बिना डरे बताओ..” लक्ष्मण से ऐसी बात सुनकर कुत्ता बोला-

“जो प्रजापालक हैं,जिनके राज्य में हर कोई निडरता से रहता है,ऐसे प्रभु महाराजा राम से ही मेरा कुछ निवेदन है , क्या आप मेरा ये सन्देश उन तक पंहुचा सकते हैं?”
ऐसा सुनकर लक्ष्मण फिर से राजभवन पहुचे और उन्होंने ये बात श्रीराम को बताई, श्रीराम ने लक्ष्मण की सारी बातें सुनी और उनसे कुत्ते को राजभवन में लाने को कहा|
श्रीराम की आज्ञा लेने के बाद लक्ष्मण ने उस कुत्ते को राजभवन में पेश किया , श्रीराम ने कुत्ते को देखकर कहा-“तुम्हे जो कहना है , बिना डरे कहो|हम वचन देते हैं कि तुम्हारी जो भी समस्या होगी उसे तुरंत हल किया जायेगा|”
श्रीराम के ऐसा कहने पर कुत्ते ने कहा-“ हे राजन! राजा ही अपनी प्रजा का पालक और नायक होता है, उसी से सबकी रक्षा होती है|
बस इसी उम्मीद के साथ कि मेरे साथ भी न्याय होगा, मैंने आपके राजसभा में आने का साहस किया, अब मै अपने यहाँ आने की वजह आपको बताता हूँ| सर्वार्थसिध नाम का एक भिक्षुक ब्राम्हण है जिसने बेवजह आज मेरे ऊपर डंडे से प्रहार किया और मेरे माथे पर ये गहरी चोट आई बल्कि मेरा कोई अपराध भी नही था| ”
कुत्ते की ये बात सुनकर श्रीराम ने तुरंत ही अपने द्वारपालों के जरिये उस भिक्षुक ब्राम्हण सर्वार्थसिध को अपने राजभवन बुलवाया| जब वो ब्राम्हण श्रीराम के सामने लाया गया तो श्रीराम ने उससे पूछा-“हे ब्राम्हण! आपने इस निर्दोष कुत्ते पर डंडे से प्रहार क्यों किया? जबकि इसका कोई अपराध नही था, इसलिए आप बताइए की इस कुत्ते को बेवजह डंडा मारने की पीछे क्या कारण था?”
Read this also-हनुमान जी द्वारा दो बार संजीवनी लाने का रहस्य
श्रीराम के इस तरह पूछने पर ब्राम्हण ने कहा की-“मुझे उस समय बहुत भूख लगी थी और भिक्षा का समय भी बीत चुका था, बहुत ज्यादा भूख लगने की वजह से गुस्सा भी आने लगा था, भिक्षा मांगने के लिए मै घर-घर जाके भिक्षा मांग रहा था लेकिन ये कुत्ता बार बार मेरे रस्ते के बीच में आ रहा था, मेरे बार बार मना करने पर भी ये कुत्ता बीच सड़क से हट नही रहा था जिसकी वजह से मेरा गुस्सा और ज्यादा बढ़ गया और मैंने डंडे से इसके सर पर मार दिया, मुझे अपनी इस गलती पर बहुत पछतावा है और आप जो भी सजा मुझे देना चाहे दे सकते हैं”|
उस ब्राम्हण की यह बात सुनकर श्रीराम ने वहा बैठे सभी सभासदों और गुरुजनों से राय लेना शुरू कर दिया| कुछ पलो तक आपस में विचार-विमर्श हुआ और तब वहा बैठे कुछ विद्वानों ने श्रीराम से कहा कि-
“इस ब्राम्हण ने जो भी इस कुत्ते के साथ किया वो पूरी तरह से अपराध की श्रेणी में आता है लेकिन शास्त्रों के अनुसार अगर कोई किसी को वध करने की इच्छा से प्रहार करता है या उसके हाथो किसी का वध हो जाता हो,तो उसे शारीरिक दंड मिलना चाहिए
लेकिन इस ब्राम्हण से इस कुत्ते की हत्या नही हुई है इसलिए हम इसे कोई शारीरिक दंड नही दे सकते, इसके लिए हमें थोडा और विचार कर लेना चाहिए|”
ये सब बातें हो ही रही थी की इसी बीच कुत्ते ने श्रीराम से एक निवेदन किया और कहा-“हे राजन! जैसा की आपने मुझे वचन दिया है की आप मेरी समस्या का हल करके मुझे संतुष्ट करेंगे इसलिए मेरे विचार से इस ब्राम्हण को कालंजर में एक मठ का महंत बना दिया जाये , अगर आप ऐसा करेंगे तो मै आपके न्याय से पूरी तरह संतुष्ट हो जाऊंगा|”
श्रीराम तो स्वयं भगवान के अवतार थे और वो जानते थे की कुत्ते की इस बात के पीछे क्या रहस्य है इसलिए उन्होंने तुरंत ही उस ब्राम्हण को कालंजर के मठ का महंत बना दिया और उसे वहा से विदा किया|
लेकिन इस घटना के बाद श्रीराम के मंत्रीगण बहुत ही सोच में पड़ गए और प्रभु से बोले-“हे राजन! इस तरह इस ब्राम्हण को महंत का पद देने से उसे दंड कैसे मिला?, ये तो इसके लिए एक वरदान जैसा हुआ|”
प्रभु श्रीराम ने अपने मंत्रियो की शंका को दूर करने के लिए उस कुत्ते से पुछा तो कुत्ते ने कहा-“श्रीराम! पिछले जन्म में मै भी कालंजर के मठ का महंत था, देवताओं और ब्राम्हणों की पूजा करता था, दास-दसियों के साथ न्याय करता , देव्सम्पतियो की रक्षा करता था और हमेशा शुभ और अच्छे कर्म ही करता था लेकिन इन सबके बाद भी मेरे मन में घमंड आ गया था,और आप तो जानते ही है घमंड करने से सारे पूण्य कर्म नष्ट हो जाते हैं , उसी के वजह से मुझे इस जन्म में कुत्ते का शरीर मिला|
Read this also- कैसे हुई देवों के देव भगवान शिव की उत्पत्ति ?
तो फिर जो ऐसा क्रोधी है, धर्म को छोड़ चुका है ,स्वभाव से क्रूर , कठोर और मूर्ख भी है ऐसा ब्राम्हण तो महंत बनकर अपना ही नही बल्कि अपने साथ-साथ अपनी सात पीढियों को भी नर्क ले जायेगा| बस यही सब सोचकर मैंने आपसे ऐसा निवेदन किया|
इस तरह इसे किसी भी तरह का शारीरिक दंड भी नहीं मिला और इसे इसके कर्मो का सही दंड भी मिल जायेगा| इसलिए मै श्रीराम को बहुत बहुत धन्यवाद करता हूँ जिन्होंने मुझे न्याय दिलाने में मेरी सहायता की”
कुत्ते की यह बात सुनकर सभी सभासद बहुत प्रसन्न हुए और वो कुत्ता वहा से चला गया| कुछ समय बीतने के बाद वो कुत्ता काशी चला गया जहा उसने अन्न-जल का त्याग कर दिया और अपने प्राण त्याग दिए|
इस कथा से हम एक बात जरुर सीख सकते है की अहंकार किसी भी प्राणी को कभी भी हो सकता है चाहे वो अच्छे कर्म करता हो या बुरे कर्म|
एक अच्छे कर्म वाले व्यक्ति को भी ये अहंकार हो जाता है की उससे ज्यादा पुण्य इस संसार में उसके अलावा और कोई कर ही नही सकता लेकिन वो ये भूल जाता है की जिस दिन उसके मन में अहंकार ने जन्म लिया उसी पल उसके सारे पूण्य मिटटी में मिल जाते हैं और उसके मरने के बाद भी उसे सही गति नही मिलती |