भारतीय क्रिकेट शुरू से ही अपनी स्पिन गेंदबाजी के लिए विश्व प्रसिद्ध रही है, एक समय तो ऐसा भी था जब भारतीय टीम सिर्फ स्पिन गेंदबाजों के साथ मैदान पर उतरती थी। सत्तर और अस्सी के दशक के दौरान भारतीय क्रिकेट टीम की स्पिन चौकड़ी ने क्रिकेट इतिहास के बड़े बड़े तेज गेंदबाजों के बीच अपनी मौजूदगी दर्ज करवाई थी। और आज भी भारतीय क्रिकेट में एक से बढ़कर एक स्पिन गेंदबाज शामिल हैं लेकिन इसके बावजूद भी जब सबसे बड़े और बेहतरीन भारतीय गेंदबाज की बात होती है तो अनिल कुंबले का नाम ही जुबान पर आता है जिसका कारण है इनके वो अविश्वसनीय आंकड़े जो कुंबले ने अपने करियर में हासिल किए थे।
भारतीय क्रिकेट के इसी सितारे की जिंदगी के बारे में हम आज की पोस्ट में बात करने वाले है।
नमस्कार दोस्तों मेरा नाम है अनुराग सुर्यवंशी और आज बात कर रहे हैं नारद टीवी।
अनिल कुंबले का जीवन परिचय
17 अक्टूबर साल 1970 के दिन कर्नाटक के मैसूर शहर में पिता कृष्णा स्वामी और मां सरोजा के घर एक बेटे का जन्म हुआ जिसका नाम अनिल कुंबले रखा गया।
कुंबले के माता-पिता केरल के कुंबाला नामक कस्बे से संबंध रखते थे, अनिल के भाई का नाम दिनेश कुंबले था।
शुरू से ही सरल स्वभाव के मालिक रहे अनिल कुंबले के मन में क्रिकेट को लेकर बाकि खेलों से अधिक प्यार था, अनिल कुंबले के पसंदीदा खिलाड़ी भारतीय क्रिकेट के मशहूर गेंदबाज बी एस चंद्रशेखर थे, जिन्हें देखकर अनिल कुंबले भी इस इंग्लिश खेल में अपने आपको एक दिन साबित करने के सपने देखने लगे थे।
25 जून 1983 को जब भारत विश्व चैंपियन बना तो तेरह साल के अनिल कुंबले के मन में आकार ले रहा ये सपना फलने फूलने लगा और इसीका परिणाम रहा कि अनिल कुंबले ने अपने आप को एक बेहतरीन क्रिकेटर बनाने के लिए क्रिकेट क्लब में दाखिला ले लिया था।
क्रिकेट का खेल भले ही अनिल कुंबले के लिए एक पेशन बन गया था लेकिन उन्होंने अपने इस प्यार के लिए पढ़ाई को नजरंदाज नहीं किया, क्रिकेट में तेरह साल की उम्र से अपनी महारतता साबित करने वाले कुंबले ने पढ़ाई के मैदान में बहुत पहले ही खुद को एक अच्छा विधार्थी बना लिया था।
होली सेंट इंग्लिश स्कूल से शुरू हुआ ये सफर आगे बैंगलोर के नेशनल स्कूल और फिर कुंबले साल 1991- 92 में राष्ट्रीय विधालय कोलेज ओफ इंजीनियरिंग से मैकेनिकल इंजीनियर बनकर निकले।
पढ़ाई चल रही थी और साथ ही साथ एक अच्छा खिलाड़ी बनने की कोशिश भी जारी थी, 30 नवंबर साल 1989 के दिन अनिल कुंबले ने कर्नाटक की तरफ से खेलते हुए हैदराबाद के खिलाफ अपना पहला फस्ट क्लास मैच खेला जिसमें बल्लेबाजी करते हुए ये दोनों पारियों में शून्य के स्कोर पर आउट हुए लेकिन गेंदबाजी में लिए चार विकेटों ने एक खराब डेब्यू को अच्छी याद में बदल दिया था।
अनिल कुंबले का डोमेस्टिक करियर
यहां हम आपको बता दें कि भारतीय क्रिकेट इतिहास के सबसे सफल स्पिन गेंदबाज रहे अनिल कुंबले ने अपनी शुरुआत एक मिडियम पेसर के तौर पर खेलते हुए की थी साथ ही ये एक अच्छे खासे बल्लेबाज भी हुआ करते थे।
ये दोनों खूबियां अनिल कुंबले के अन्तर्राष्ट्रीय क्रिकेट करियर में भी देखने को मिलती हैं जहां ये टेस्ट क्रिकेट में भारतीय टीम के लिए अच्छे लोअर ओर्डर बल्लेबाज साबित तो वहीं दूसरी तरफ ये कभी प्योर स्पिन गेंदबाज नहीं बन पाए क्योंकि इनकी गेंदों में मीडियम पेसर की झलक हमेशा देखने को मिलती थी।
खैर अनिल कुंबले का करियर आगे भी चलता रहा और इन्हें पाकिस्तान के खिलाफ भारत की अन्डर नाइंटीज टीम में शामिल किया गया जहां कुंबले ने अपनी बल्लेबाजी प्रतिभा का नमूना दिखाते हुए 113 रनों की बेहतरीन पारी खेली और अगली पारी में इनके बल्ले से 76 रन आए।
लगातार बेहतरीन प्रदर्शन करने का फल भी कुंबले को जल्द ही मिल गया जब इन्हें सिर्फ पांच फस्ट क्लास मैच खेलने के बाद ही भारत की अन्तर्राष्ट्रीय क्रिकेट टीम में शामिल होने का मौका मिल गया और अनिल कुंबले ने साल 1990 में श्रीलंका के खिलाफ शारजहां के मैदान पर अपना पहला वनडे मैच खेला था।
इसी साल कुंबले को इंग्लैंड के खिलाफ अपना टेस्ट डेब्यू करने का मौका भी मिल गया जिसमें इन्होंने मैनचेस्टर के मैदान पर पहली पारी में 105 रन देकर तीन विकेट अपने नाम किए थे और दुसरी पारी में इन्हें कोई विकेट नहीं मिला था।
ख़राब शुरुआत के कारण अनिल कुंबले को अपनी गेंदबाजी के लिए क्रिटिसिजम भी झेलना पड़ा, कई दिग्गज क्रिकेटर और बहुत से लोगों ने इन्हें एक अच्छा स्पिन गेंदबाज मानने से इंकार कर दिया था, पूर्व भारतीय कप्तान टाइगर पटौदी ने कुंबले के लिए कहा था कि ये लड़का भारतीय टीम के लिए कभी भी मैच विनर नहीं बन सकता है।
इन्हीं सब बातों के चलते कुंबले को अगले दो साल कोई भी टेस्ट मैच खेलने का मौका नहीं मिला और शायद इसीलिए कुंबले ने अपने करियर को अंधेरे में जाता देखकर साल 1991 में अपनी पढ़ाई पूरी की और इंजीनियरिंग की डिग्री हासिल करके निकले।
कुंबले का डोमेस्टिक करियर चल रहा था जिसमें इन्होंने इस दौरान रेस्ट ओफ इंडिया की तरफ से दिल्ली के खिलाफ एक मैच खेलते हुए इरानी ट्रोफी में 138 रन देकर 13 विकेट अपने नाम किए थे जिसके चलते इनकी टीम को जीत मिली थी।
इस बेहतरीन प्रदर्शन ने कुंबले की वापसी का रास्ता साफ कर दिया और इन्हें साउथ अफ्रीका और जिम्बाब्वे के खिलाफ खेले जाने वाले टेस्ट मैचों के लिए टीम इंडिया में बुला लिया गया था।
साल 1992 में हुए अफ्रीकी दौरे पर पहली बार क्रिकेट प्रशंसकों ने उस अनिल कुंबले को देखा जिसे आज सबसे महान गेंदबाज बताया जाता है, अपने पर उठ रहे सभी सवालों का जवाब देते हुए कुंबले ने इस सीरीज में 18 विकेट अपने नाम किए जो 1.84 की इकोनॉमी रेट से आए थे।
इस सीरीज के बारे में एक वाकिया सुनने को यह मिलता है कि इस सीरीज के दौरान इंग्लैंड के हीथ फ्लेचर छुपते छिपाते अफ्रीका यह देखने गए थे कि भारतीय टीम के नये खिलाड़ी किस तरह खेलते हैं क्योंकि इस सीरीज के बाद इंग्लैंड टीम को भारत में टेस्ट सीरीज खेलनी थी।
हीथ फ्लेचर ने यहां कुंबले को देखा और उन्हे कुंबले की गेंदबाजी में कुछ भी स्पेशल नजर नहीं आया क्योंकि कुंबले आम स्पिन गेंदबाजों की तरह गेंद को टर्न कराने में यकीन नहीं रखते थे।
इंग्लैंड आकर फ्लेचर ने अपनी टीम को बताया कि कुंबले से उन्हें डरने की जरूरत नहीं है लेकिन उनकी यह बात ग़लत साबित होने वाली थी।
अनिल कुंबले ने इंग्लैंड के खिलाफ खेलते हुए टेस्ट सीरीज में 21 विकेट लिए जिसमें से मुम्बई में 165 रन देकर सात विकेट लेने पर इन्हें तीसरे मैच में मैन ऑफ द मैच भी चुना गया था।
आगे जिम्बाब्वे के खिलाफ अपना दसवां टेस्ट मैच खेलते हुए कुंबले ने अपने टेस्ट करियर में पचास का आंकड़ा छूकर रिकॉर्ड कायम किया था जिसे आगे चलकर अश्विन ने तोड़ा था।
अगले साल 27 नवम्बर के दिन हीरो कप के फाइनल के दौरान अनिल कुंबले ने वनडे क्रिकेट में भी खुद को साबित करते हुए एक समय विजेता नजर आ रही वेस्टइंडीज टीम को हरा दिया था।
दरअसल इस मैच में भारत ने वेस्टइंडीज के सामने केवल 225 रनों का लक्ष्य रखा था जो ब्रायन लारा जैसे बड़े बल्लेबाजों से सजी विंडिज टीम की बैटिंग लाइनअप को देखते हुए मामूली लग रहा था।
और एक समय जब वेस्टइंडीज की टीम ने चार विकेट के नुक़सान पर 101 रन बना लिए थे तब भारत को अपनी हार साफ प्रतीत होने लगी थी।
लेकिन तभी कुंबले ने अपनी जादुई गेंदबाजी की मदद से भारत को हीरो कप जीताने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हुए इस मैच में बारह रन देकर छह विकेट लिए थे जो उस समय एक रिकॉर्ड था।
इस बेहतरीन प्रदर्शन के दौरान एक चौंकाने वाला दृश्य भी देखा गया था जब विंडिज के एक बल्लेबाज रोलिन होल्डर को कुंबले ने बोल्ड किया था लेकिन उनकी तेज गति वाली गेंद के कारण अम्पायर को पता ही नहीं चला कि कब गेंद विकेट को छूकर निकल गई थी, तब अम्पायर ने थर्ड अंपायर को इसकी पुष्टि करने के लिए कहा जिसके बाद होल्डर को आउट दिया गया और वो थर्ड अंपायर के जरिए बोल्ड आउट दिए जाने वाले पहले खिलाड़ी बन गए थे।
आगे कुंबले ने श्रीलंका के खिलाफ साल 1994 में खेलते हुए अपना पहला दस विकेट होल पुरा किया और फिर अगले साल इंग्लिश काउंटी क्रिकेट खेलते हुए उस सीजन में सौ विकेट लेने वाले एकमात्र गेंदबाज भी रहे।
1996 का साल कुंबले के करियर में बेहतरीन साबित हुआ जिसमें वो उस साल नब्बे विकेट के साथ सबसे ज्यादा विकेट लेने वाले गेंदबाज रहे थे।
इस साल कुंबले पहली बार भारत की विश्व कप टीम का भी हिस्सा रहे और वहां भी सबसे ज्यादा पन्द्रह विकेट अपने नाम किए थे।
कुंबले लगातार कामियाबियो के झंडे गाड़ रहे थे जिसमें सबसे बड़ा पर साल 1999 के फरवरी माह में आया जब पाकिस्तान के खिलाफ खेलते हुए दिल्ली के मैदान पर कुंबले ने जीम लेकर के बाद दुसरी बार एक टीम के सभी दस विकेट लेने का कारनामा किया था।
इस मैच पर बाथ करते हुए वसीम अकरम ने कहा था कि अनिल कुंबले इस मैच में दस विकेट पुरे ना कर पाए इसके लिए वकार यूनुस जानबूझकर रन आउट होने की कोशिश कर रहे थे लेकिन उनकी कोई चाल कामयाब नही हुई थी।
साल 2002 में जब भारत वेस्टइंडीज गई तो सीरीज के चौथे मैच के दौरान एक ऐसा दृश्य देखने को मिला जिसने हर किसीके मन में कुंबले के लिए इज्जत और सम्मान भर दिया था।
इस मैच के दौरान भारत को अच्छे आंकड़े तक पहुंचाने के लिए कुंबले सातवें नम्बर पर बल्लेबाजी करने उतरे और इस दौरान मर्व डीलोन की तेज गेंद इनके जबड़े पर लगी जिससे इनका मुंह पुरी तरह से खून से भर गया था, जबड़ा हिलने लगा था, जिसे देखकर अनिल कुंबले की अगले दिन की वतन वापसी की टिकट भी बुक करवा दी गई थी लेकिन अगले दिन जब भारतीय टीम 513 का स्कोर खड़ा करने के बाद फिल्डिंग करने उतरी तो अनिल कुंबले भी अपने मुंह के चारों ओर पट्टी बांधे मैदान पर उतरे और लगातार 14 ओवर गेंदबाजी की।
इस दौरान उन्हें अपील करने के लिए मना किया गया था लेकिन वो अपनी टीम के लिए सबकुछ करना चाहते थे और उन्होंने अपनी गेंदबाजी से विरोधी टीम के सबसे बड़े बल्लेबाज लारा को आउट किया था।
कुंबले के इस साहसिक कार्य को कपिल देव से लेकर विव रिचर्ड्स तक ने सराहाया था।
साल 2004 में कुंबले ने टेस्ट क्रिकेट में कपिल देव से तीस मैच कम खेलते हुए 400 विकेट का आंकड़ा पार किया था जो एक बड़ी उपलब्धि है, साल 2006 में कुंबले के बेहतरीन प्रदर्शन की बदौलत भारत वेस्टइंडीज के खिलाफ पैंतीस साल बाद कोई टेस्ट सीरीज जीतने में कामयाब रही थी।
मार्च 2006 में कुंबले ने स्टीव हार्मिशन के रूप में अपने टेस्ट करियर का पांच सौवां विकेट लिया और ऐसा करने वाले वो पहले भारतीय गेंदबाज बन गए थे। साल 2007 की वर्ल्डकप हार के बाद वापस भारत आने पर कुंबले ने अपने वनडे करियर को अलविदा कह दिया था। अनिल कुंबले को अपने करियर के आखिरी दौर में भारतीय टेस्ट टीम का कप्तान भी बनाया गया था जहां इनका प्रदर्शन शानदार रहा था और कुछ खिलाड़ी तो इन्हें भारत का सर्वश्रेष्ठ कप्तान भी मानते हैं।
मंकी गेट विवाद के काले अध्याय से भारत को पुरी इज्जत के साथ बाहर लाने में कुंबले ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
इंग्लैंड के खिलाफ ओवल में कुंबले ने अपने टेस्ट करियर का एकमात्र शतक भी लगाया था और वो सबसे ज्यादा मैचों के बाद टेस्ट शतक लगाने वाले बल्लेबाज भी बन गए थे, साथ ही इस मैच में कुंबले ने अपने 900 विकेट भी पुरे किए थे।
अब बात करें कुंबले के कुछ अन्य रिकॉर्ड्स की तो उन्होंने अपने करियर में कुल 40850 गेंदे डाली है जो मुरलीधर के बाद सबसे बड़ा आंकड़ा है।
अपनी एक्यूरेसी और बिना थके ओवर फेंकने की काबिलियत का नमूना दिखाते हुए कुंबले ने एक टेस्ट मैच में लगातार चौहतर ओवर भी डालें थे।
2 नवम्बर साल 2008 के दिन आस्ट्रेलिया के खिलाफ खेलते हुए सीरीज के तीसरे मैच के बाद अनिल कुंबले ने अन्तर्राष्ट्रीय क्रिकेट से संन्यास ले लिया था जिसके बाद धोनी को टेस्ट टीम का नया कप्तान बनाया गया था।
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बात करें इनके आईपीएल करियर की तो कुंबले आरसीबी की तरफ से खेलते हुए नजर आए थे, 18 अप्रैल सिल 2009 को राजस्थान के खिलाफ खेलते हुए कुंबले ने सिर्फ पांच रन देकर पांच विकेट लेने का कारनामा किया था।
आगे चलकर कुंबले एक साल तक भारतीय टीम के कोच भी रहे जहां से उन्हें किन्हीं कारणों के चलते हटा दिया गया था।
कुंबले के नाम विश्व क्रिकेट में सबसे ज्यादा 35 कोट एंड बोल्ड आउट करने का रिकॉर्ड भी दर्ज है साथ ही कुंबले ने ही बल्लेबाजों को सबसे ज्यादा पगबाध आउट भी किया है।
अनिल कुंबले अवार्ड
अर्जुन अवार्ड , पद्मश्री और विज्डन क्रिकेटर ओफ द ईयर 1996 रह चुके कुंबले एक फिल्म में भी कैमियो रोल निभा चुके हैं जिसका नाम मीराबाई नोट आउट था, यह फिल्म साल 2004 में रीलिज हुई थी।
कुंबले ने अपने करियर में कुल 132 टेस्ट मैच और 271 वनडे मैच खेले हैं जिनमें इनके विकेटों का आंकड़ा क्रमश 619 और 337 है।
इनकी निजी जिंदगी के बारे में बात करने पर पता चलता है कि इन्होंने चेतना कुंबले से शादी की थी जिनसे इन्हें एक बूटा और दो बेटी है।
तो दोस्तो आज की पोस्ट में बस इतना ही मिलते हैं आपसे अगले एपिसोड में तब तक के लिए नमस्कार।
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