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पितृपक्ष में पितरों को भोजन कैसे पहुंचता है ?

मित्रों, जैसा की हम सभी को बचपन से ही ये संस्कार (Secrament) दिया जाता है की हमेशा ही अपने बड़े-बुजुर्गों का सम्मान (Respect) करना चाहिए, और हमारे पूर्वजों (Ancestors) ने जो भी नियम (Rule) बनाये हैं उनका पालन करना चाहिए | क्युकी पूर्वजों को हमेशा से ही पूजनीय (Reverend) माना गया है और इसलिए हमारे धर्म-शास्त्रों (Scriptures) में भी उन्ही पूर्वजों की संतुष्टि (Satisfaction) के लिए पितृ (Paternal) पक्ष का विधान (Legislation) बनाया गया है, जो की आश्विन कृष्ण प्रतिपदा (Antithesis) से लेकर अमावस्या (New Moon) के दिन तक रहता है यानी की ये पंद्रह दिन पितृ पक्ष का माना जाता है| इन दिनों तक हम अपने दिवंगत (Departed) पूर्वजों अथवा पितरों की शांति के लिए श्राद्ध क्रिया करते हैं| पितृ पक्ष में ब्राम्हणों को भोजन (Meal) करवाना, गाय और कौवे के लिए भी भोजन का भाग (Part) निकालने जैसे नियम बनाये गए हैं ताकि पितरों तक हमारे द्वारा दिए गए जल और अन्न (Food) पहुच सके और वो संतुष्ट (Satisfied) हो जाएँ| लेकिन आज के इस आधुनिक (Modern) युग में लोगों के मन में ये सवाल (Question) भी उठता है की क्या पितरों तक हमारे द्वारा चढ़ाये (Offered) गए जल और अन्न पहुचते भी हैं या फिर ये एक कोरी कल्पना (Imagination) मात्र है| तो आइये आज की कड़ी में हम इस रहस्य को जानने की कोशिश करें|

आप सभी ये जानते ही होंगे की अठारह पुराणों में से एक गरुण पुराण ही है जिसमे मृत्यु (Death) से सम्बंधित (Related) होने वाली हर प्रकार की क्रिया (Action) विधि (Method) को बताया गया है, जिसमें श्राद्ध क्रिया से सम्बंधित (Related) रहस्यों (Secrets) का भी उल्लेख मिलता है| गरुण-पुराण के प्रेतकल्प अध्याय के अनुसार- पक्षिराज गरुण, भगवान् विष्णु से प्रश्न करते हैं की; हे प्रभु! मैं ये जानना चाहता हूँ की जब पितृ पक्ष के समय लोग श्राद्ध के नाम पर जल अथवा भोजन निकालते हैं तो वो जल और अन्न पितरों तक कैसे पहुचते होंगे? इसके अलावा अगर मृत व्यक्ति अपने कर्मानुसार देव, मनुष्य, राक्षस या अन्य किसी योनी को प्राप्त हो गया हो तो ये श्राद्ध के भोजन उन तक कैसे पहुचेगे?
गरुण के इन प्रश्नों को सुनकर, भगवान् विष्णु ने कहा- “हे पक्षिराज! तुमने जो प्रश्न आज मुझसे किये हैं वो भविष्य (Future) के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण हैं क्योकि कलियुग में ऐसा समय भी आएगा जब मनुष्य इस प्रकार के कर्म-कांडों में कोई रूचि (Interest) नही लेगा और साथ ही साथ वो धर्म-कर्म के विषय में तर्क करता रहेगा, भविष्य के गर्भ में छिपा मनुष्य इतना आधुनिक (Modern) हो जाएगा की उसका सारा जीवन धन, विलासिता (Luxury) और परिवार की देखभाल (Care) में ही निकल जाएगा| इसलिए हे गरुण जो मैं बताने जा रहा हूँ उसे ध्यान से सुनो|”
जो व्यक्ति अपने पितृ को श्राद्ध अर्पित (Dedicated) करता है, यदि वो पितृ देव योनी को प्राप्त हो गया है तो उसे अमृत रूप में, अगर वो गंधर्व योनी में है तो भोग (Enjoyment) रूप में, और अगर वो पशुयोनी में प्राप्त हो गया है तो उसे घासफूस के रूप श्राद्ध का फल मिलता है| इसी प्रकार यदि पितृ अपने नए जन्म में नाग योनी में हैं तो उन्हें वायु रूप में, पक्षी योनी को फल के रूप में, राक्षस योनी को मांस के रूप में, प्रेत योनी को रक्त के रूप में और यदि मनुष्य योनी है तो उन्हें भोजन के रूप में श्राद्ध अन्न की प्राप्ति होती है| हे गरुण! अब इस बात को जानो की किस प्रकार पितृ तक श्राद्ध अन्न पहुचता है| श्राद्ध की क्रिया के समय पितरों के गोत्र और नाम लेने मात्र से ही श्राद्ध उन तक पहुच जाता है, इसके अलावा पितृ गणों के प्रमुख अग्निष्वात (Agnishvat) नाम के गण का कार्य ये होता है श्राद्ध में चढ़ाई वस्तुओं को पितरों के पात्र तक पहुचाना| जैसे की जो जीव जहां भी रहता है वहाँ ये अग्निष्वात नाम के गण श्राद्ध अन्न लेकर जाते हैं| जैसा की मैंने तुम्हे पहले भी बताया की पितर जिस योनी में और जिस आहार वाले होते हैं, उन्हें श्राद्ध के द्वारा दिया गया आहार अपने आप ही प्राप्त हो जाता है| उदाहरण के तौर पर- जैसे गायों के एक झुण्ड (Herd) में बछड़ा (Calf) है, अगर वो झुण्ड किसी वजह से तितर-बितर हो गया हो तो भी वो बछड़ा उस झुण्ड में अपनी माँ को पहचान ही लेगा, ठीक उसी तरह पितरों के नाम से ब्राम्हणों को कराया गया भोजन स्वयं ही पितृ तक पहुच जाता है|

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हे गरुण! इसके अलावा मैं तुमसे एक और रहस्य (Mystery) के बारे में चर्चा (Discussion) करना चाहता हूँ और वो ये है की जैसे ही पितृ पक्ष की शुरुवात होती है, तभी स्वर्गलोक में बैठे पितृ गणों को बहुत प्रसन्नता होती है और सभी अदृश्य )(Invisible) रूप से इस मृत्युलोक में आ जाते हैं| और जब जब कोई व्यक्ति इस पितृ पक्ष में ब्राम्हणों को भोजन करवाता है उसी समय ये पितृ भी अदृश्य रूप से उन्ही ब्राम्हणों के साथ भोजन करके बहुत ही संतुष्ट  (Satisfied) होते हैं और उस परिवार के उज्जवल (Brighter) भविष्य की कामना करते हैं| एक बात मैं यहाँ तुम्हे स्पष्ट (Clear) कर देना चाहता हूँ की श्राद्ध के समय जिन ब्राम्हणों को भोजन करवाया जाता है तो उसी समय ये पितृ उनके शरीर में अदृश्य रूप से विधमान (Existing) होकर भोजन का आनंद लेते हैं और फिर अपने लोक को वापस लौट जाते हैं| उदाहरण के तौर पर अगर श्राद्ध करने वाला कोई व्यक्ति किसी ब्राम्हण को भोजन के लिए आमंत्रित (Invited) करता है तो उस ब्राम्हण के उदर (Abdomen) यानी की पेट के भाग में पिता, बाएं भाग में पितामह (Paternal grandfather), दाहिने (Right) भाग में परपितामह यानी की परदादा, और पीछे के हिस्से में पिंडभक्षक पितर निवास करते हैं| पितृ पक्ष के नियम में खुद यमराज भी बंधे हुए हैं इसलिए इन दिनों यमराज भी प्रेत और पितरों को यमलोक से मृत्युलोक के लिए मुक्त (Free) कर देते हैं ताकि सभी पितृ संतुष्ट हो सकें| पितरों के भोजन में खीर का होना बहुत आवश्यक बताया गया क्योकि खीर के सेवन से पितरों को बहुत संतुष्टि मिलती है|
भगवान् विष्णु से इतनी बातें सुनने के बाद गरुण बोले की- “हे प्रभु! आपने श्राद्ध के विषय में जो रोचक जानकारियां बताई वो सारी बातें मुझे समझ में आ गयीं हैं, लेकिन फिर भी मेरी इच्छा है की कृपा करके आप कोई एक ऐसा उदाहरण दें जिससे की ये पूरी तरह सिद्ध (Proven)) हो जाए की जो पितृ स्वर्गलोक या यमलोक में रहते हैं वो पितृ काल में धरती पर आकर श्राद्ध ग्रहण करते हैं|”

                                                                                           Garuda

इस पर श्रीहरि बोले की- हे पक्षिराज! मै तुम्हे त्रेतायुग की एक कथा का उदाहरण देकर समझाता हूँ, जब मैंने रावण का वध (Kill) करने के लिए धरती पर राम रूप में अवतार लिया था| बात उस समय की है जब श्रीराम, लक्ष्मण और सीता वन में थे और उस समय भरत अयोध्या की सेना लेकर उनसे मिलने (Meet) आये थे| भरत के जाने के बाद श्रीराम ने उस स्थान को छोड़कर, और आगे की ओर प्रस्थान (Departure) किया और तीनों एक समय के बाद पुष्कर तीर्थ जा पहुचे| पितृपक्ष का समय देख सीता और श्रीराम ने ये निश्चित (Fixed) किआ की हमें अपने पिता और बाकी पूर्वजों के लिए पितृ श्राद्ध करना चाहिए और फिर यही सोचकर उन्होंने उत्तम भोजन का प्रबंध (Management) करके कुछ ऋषि-मुनियों को भोजन पर आमंत्रित (Invited) किया| श्रीराम की आज्ञा से सीता ने उन ब्राम्हणों को भोजन परोसना प्रारम्भ किया, लेकिन थोड़ी ही देर में सीता भोजन परोसना छोड़कर दूर जाकर खड़ी हो गयीं,इस घटना को श्रीराम भी देख रहे थे लेकिन उस समय वे चुप रहे| थोड़े समय बाद जब सारे ब्राम्हण भोजन करके चले गए तब श्रीराम ने सीता से प्रश्न किया की तुम अचानक से ब्राम्हणों को भोजन परोसता (Serves) छोड़कर दूर जाकर क्यों खड़ी हो गयी थी? इस पर सीता ने उत्तर दिया की- हे स्वामी! जिस समय मैं ब्राम्हणों को भोजन परोस रही थी उसी समय मैंने एक ब्राम्हण के उदर भाग में आपके पिता यानी की अपने ससुर (Father इन law), महाराज दशरथ के दर्शन किये, और उन्हीं के जैसे दो और तेजस्वी महाराज के दर्शन भी किये| बस इसलिए मैं मर्यादा का पालन करते हुए वहाँ से हट गयी, और मैंने ये भी सोचा की मुझे इस सन्यासी वस्त्र में देखकर पिता को बहुत ही कष्ट (Suffering) होगा इसलिए मेरा वहाँ से हटकर दूर खड़े रहना ही उत्तम है|

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इतनी कथा सुनाने के बाद श्रीहरि गरुण से बोले की- हे गरुण! अब तो तुम्हे विश्वास हो ही गया होगा की श्राद्ध के समय पितृ अदृश्य रूप से मृत्युलोक में आते ही हैं, और अगर उन्हें असंतुष्ट किआ गया तो इसके दुष्परिणाम (Side effects) भी हो सकते हैं| एक और रहस्य की बात जो मैं तुम्हे बताना चाहूँगा की पितृगण अमावस्या के दिन सूर्यास्त (Sunset) होने तक, अदृश्य रूप से घर के दरवाजे पर श्राद्ध ग्रहण करने के उद्देश्य से उपस्थित रहते हैं| इसलिए नियम ये है की सूर्यास्त होने से पहले पितरों को श्राद्ध अर्पण हो जाना चाहिए, अगर ऐसा नही होता तो पितृ असंतुष्ट होकर दुखी मन से अपने लोक को वापस लौट जाते हैं और अपने वंशजों (Descendants) की घोर निंदा (Condemnation) करते हैं, इसलिए परिवार पर जब कोई भारी संकट आता है तो अक्सर कहा जाता है की शायद कोई पितृदोष हो| इसलिए मनुष्य को चाहिए की पितृपक्ष की अमावस्या (New Moon) को श्राद्ध कार्य जरुर करे, ताकि उसके कुल-परिवार में हमेशा सुख और शांति बनी रहे|
उम्मीद है आज की ये रोचक जानकारी आपको पसंद आयी होगी, आप अपनी राय हमें कमेंट बॉक्स के माध्यम से दे सकते हैं |

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