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मिर्ज़ापुर के कालीन भइया, पंकज त्रिपाठी की कहानी

टेक्नोलोजी के बदलते इस दौर को अगर हम प्रयोगों का दौर भी कहें तो यह ग़लत नहीं होगा और यदि फिल्मों की बात करें तो इन प्रयोगों से जहाँ एक ओर फिल्मों का स्वरूप बदला है वहीं दूसरी तरफ फिल्मों को अलग अलग धाराओं में बाँटने वाली लकीर भी अब धुँधली नज़र आने लगी है। फिल्मों के स्वरूप के साथ-साथ नायक के रूप और व्यक्तित्व में भी बड़ा बदलाव दिखायी देने लगा है। निरंतर नयी कहानियों और नये किरदारों को अब दर्शक भी खुले दिल से स्वीकार करने लग गये हैं और इन कहानियों और किरदारों को अपने अभिनय से जीवन्त कर देने वाले ढेरों नये चेहरे आज अपनी एक अलग पहचान बनाने में कामयाब हो रहे हैं। आम नायकों की परिभाषा से अलग ऐसा ही एक चेहरा जिसके बारे में हम आज बात करने वाले हैं, उस चेहरे का नाम है पंकज त्रिपाठी, जिसने अपनी क़ाबिलियत से हर किसी के दिल में अपनी जगह बना ली। 

पंकज त्रिपाठी का प्रारंभिक जीवन और परिवार

आज हम चर्चा कर रहे हैं अभिनेता पंकज त्रिपाठी जी के जीवन से जुड़े कुछ रोचक किस्सों के बारे में। अपने मौलिक अभिनय से सबको अपना क़ायल कर देने वाले जाने-माने अभिनेता पंकज त्रिपाठी का जन्म 5 सितंबर 1976 को बिहार के गोपालगंज जिले के बेलसंद नामक छोटे से गांव में हुआ था।  पकंज के  पिता का नाम श्री बनारस तिवारी है जो कि एक साधारण किसान हैं और उनकी माँ का नाम श्रीमती हेमवंती है। परिवार में पंकज के अलावा उनके 3 भाई और 2 बहनें हैं।  पढ़ाई के साथ साथ पंकज का अभिनय के प्रति हमेशा से ही एक लगाव रहा और उन्होंने बचपन में ही अपने अभिनय की शुरुआत कर दी थी। पंकज ने अपने गाँव में छठ त्योहार पर आयोजित होने वाले कई नाटकों में लड़की का किरदार निभाया था जिसे वहाँ के लोग ख़ूब पसंद किया करते थे। दोस्तों आपको यह जानकर बहुत ताज्ज़ुब होगा कि अभिनय के हर माध्यम में अपनी छाप छोड़ देने वाले पंकज चाहे वह रंगमंच हो, टेलीविज़न हो, फ़िल्मी परदा हो या वेब सिरीज़ हो अपने हाई स्कूल तक की पढ़ाई के दौरान फिल्मों से अनभिज्ञ थे क्योंकि उस दौरान उनके घर में न तो टीवी ही था, न ही आस पास कोई भी सिनेमा हॉल और जो सबसे क़रीब सिनेमा हॉल था वो भी उनके गांव से तकरीबन 20 किलोमीटर की दूरी पर था।

किस वजह से जाना पड़ा जेल ?

दोस्तों पढ़ाई के दौरान पंकज बचपन में आर एस एस के सदस्य भी बन गये थे और वो उसकी विभिन्न शाखाओं में नियमित रूप से सक्रिय भी रहे इस दौरान वो आर एस एस की सांस्कृतिक गतिविधियों में बढ़ चढ़कर हिस्सा लेते रहे। साथ ही खेती के काम में भी वो अपने पिता का हाथ बँटाते रहे। प्राथमिक शिक्षा पूरी हो जाने के बाद, पंकज के पिता ने काॅलेज की पढ़ाई पूरी करने के लिए उन्हें पटना भेज दिया जहाँ पंकज ने पटना कॉलेज से हिंदी से स्नातक की डिग्री ली। स्नातक की पढ़़ा़ई के दौरान पंकज राजनीति में भी काफी सक्रिय रहे,  वे छात्र संगठन एबीवीपी में शामिल हुए और कई छात्र आंदोलनों में भाग भी लिया। आपको यह जानकर बहुत हैरानी होगी कि ऐसे ही एक आंदोलन की वज़ह से एक बार पंकज को तकरीबन एक हफ्ते के लिये ज़ेल की हवा भी खानी पड़ी थी। 

दोस्तों पंकज एक सक्रिय छात्र नेता और  एक कुशल वक्ता तो थे ही लेकिन कम लोगों को पता होगा कि वो एक अच्छे खिलाड़ी भी रह चुके हैं। उन्होंने कई प्रतियोगिताओं में अपने कॉलेज की ओर से हाई जंप और 100 मीटर स्प्रिंट में प्रतिनिधित्व भी किया है।

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किस नाटक को देख अभिनय में करियर बनाने को सोचा ?

पटना में पढ़ाई के दौरान उन्होंने ढेरों नाटक और फिल्में देखी जिसके कारण अभिनय के प्रति उनकी दिलचस्पी फिर से जाग उठी। बताया जाता है कि एक बार नाटक “अंधा कुआं”  देखने के बाद वह भावुक होकर रो पड़े थे। उन्होंने उसी वक़्त से नाटकों में फिर से सक्रिय होने की ठान ली और इस प्रयास में लग गये। वर्ष 1995 में, उन्हें पहली बार नाटक “लीला नंदलाल” में मौक़ा मिला, जिसमें उन्होंने एक स्थानीय चोर की बहुत छोटी भूमिका निभाई थी। इस नाटक को एनएसडी से पास आउट विजय कुमार ने निर्देशित किया था। पंकज के अभिनय को दर्शकों के साथ साथ मीडिया द्वारा भी ख़ूब वाहवाही मिली।

पंकज अपने द्वारा किये अभिनय के बारे में हर किसी राय मांगा करते और जो भी ख़ामियाँ होती उसे दूर करने और ख़ुद में निखार लाने के लिये हमेशा प्रयासरत भी रहते। उनकी यही लगन और निष्ठा उनके अभिनय में साफ साफ नज़र भी आती है। वर्ष 1996 के बाद, पंकज त्रिपाठी एक नियमित रंगमंच कलाकार बन गए और 4 साल तक उन्होंने थिएटर किया।

Pankaj Tripathi

दोस्तों अभिनय के क्षेत्र में कैरियर बनाने से पहले पंकज त्रिपाठी ने हाज़ीपुर से होटल मैनेजमेंट का कोर्स कर पटना के होटल मौर्या में दो साल तक काम भी किया।  होटल मौर्या में काम करने के दौरान पंकज से जुड़ा एक बड़ा ही मज़ेदार क़िस्सा, दमदार अभिनेता मनोज बाजपेयी जी ने टेलीविजन के एक कार्यक्रम में बताया था, इस क़िस्से को सुनकर यक़ीनन आपको भी बहुत ही मज़ा आयेगा। 

क्यों आयी चप्पल चुराने की नौबत ?

फिल्म ‘गैंग्स ऑफ वासेपुर’  जिसमें अभिनेता मनोज बाजपेयी और पंकज त्रिपाठी दोनों ने साथ काम किया है, एक दिन शूटिंग के दौरान फुरसत के क्षणों में मनोज कहीं बैठे हुये थे उसी वक़्त पीछे से खैनी रगड़ते हुये पंकज धीरे से उनके पास आकर बैठ गये और बड़े ही मूड में कहा कि “मनोज भाई एक बात बतायें आपसे?” मनोज ने कहा “हाँ हाँ बता?” पंकज ने थोड़ा मुस्कुराते हुए कहा “आप पटना के मौर्या होटल में रुकते थे ना?” मनोज ने कहा “हाँ क्यों?” पंकज ने पूछा “एक बार जब आप आये थे तो वहाँ से आपका कोई सामान गायब हुआ था ?” मनोज बोले, “हाँ मेरा चप्पल एक बार.. जो है कि मिला नहीं मुझे” पंकज ने थोड़ा झिझकते हुए बताया, “हम वहाँ काम करते थे …और ऊ चप्पलवा हम ही ले के चले गये थे” मनोज के आश्चर्य से पूछने पे कि ऐसा क्यों किया? तो पंकज ने बहुत ख़ुशी से कहा, “हमको लगा कि गुरुजी आये हैं तो कोई सामान इनका निशानी के तौर पर रख लें।” ये घटना जहाँ एक ओर हमारे मन को गुदगुदाती है वहीं दूसरी तरफ पंकज के गुरु प्रेम को भी दर्शाती है। पंकज दिवंगत अभिनेता इरफ़ान ख़ान के भी ज़बरदस्त प्रशंसक हैं। उनका कहना है कि शायद ही कोई इरफ़ान का  ऐसा फैन होगा जिसने उनकी हर एक फिल्म देखी होगी। पंकज का कहना है कि उन्होंने न सिर्फ इरफ़ान की हर एक फिल्म देखी है बल्कि उनसे बहुत कुछ सीखा भी है वो अपनी नेचुरल ऐक्टिंग का श्रेय अभिनेता इरफ़ान ख़ान को ही देते हैं।

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थियेटर से जुड़े रहने के लिए पंकज त्रिपाठी रात में होटल में काम करते थे और सुबह-सुबह थियेटर करते थे। तकरीबन दो सालों तक ऐसे ही काम करने के बाद उन्होंने होटल का काम छोड़ कुछ दिनों तक जूते बेचने का भी काम किया। ये समय पंकज के जीवन के सबसे कठिन दौर में से एक था। उस मुश्किल दौर को याद करते हुए एक इंटरव्यू में पंकज ने बताते हैं कि पटना में उनका एक कमरे वाला घर उन्हें आज भी याद है। एक दिन इतना तेज़ तूफान आया कि उनके घर के टिन शेड की छत ही उड़ गयी और वो उस छत की जगह खुले आकाश के नीचे खड़े रह गये। 

ऐसे बुरे हालातों के बीच रहने के बावजूद भी उनका अभिनय के प्रति जुनून कभी कम नहीं हुआ, वर्ष 2001 में उन्होंने अभिनय का विधिवत प्रशिक्षण लेने के लिये नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा में प्रयास किया जहाँ उनका सेलेक्शन भी हो गया। वर्ष 2001 से 2004 तक एनएसडी में नाटक की पढ़ाई पूरी करने के बाद वापस पटना लौटकर उन्होंने 4 महीने तक थिएटर में काम किया और फिर 16 अक्टूबर वर्ष 2004 को

किस फिल्म में मिला पहला ब्रेक

फिल्मों में अपनी किस्मत आजमाने मुंबई निकल गये। 

मुंबई में पंकज त्रिपाठी की शुरुआत छोटे पर्दे से हुई उन्होंने बाहुबली, गुलाल और सरोजिनी आदि धारावाहिकों में अपने अभिनय की छाप छोड़ी। उन्होंने वर्ष 2004 से 2010 तक टेलीविज़न में कई तरह की भूमिकाएं अदा करने के साथ ही विज्ञापनों में भी काम किया जिसमें टाटा टी का विज्ञापन प्रमुख है।

कम लोगों को पता होगा कि पंकज की फिल्मों में अभिनय की  शुरुआत एन एस डी के दौरान 2003 में बनी एक कन्नड़ फिल्म ‘चिगुरिडा कनासू’ से ही हो गयी थी लेकिन रोल इतना छोटा था कि फिल्म में उन्हें कोई क्रेडिट ही नहीं दिया गया।

इसलिये उनकी पहली फिल्म वर्ष 2004 में प्रदर्शित “रन” को ही माना जाता है। इस फिल्म में वह बहुत छोटे से किरदार में थे। इसके बाद वह ओमकारा और अपहरण जैसी कई यादगार फिल्मों में छोटे-छोटे किरदार में नज़र आये जिनमें उनके काम को नोटिस भी किया गया लेकिन उनके अभिनय को असली पहचान मिली वर्ष 2012 में प्रदर्शित अनुराग कश्यप की फिल्म ‘गैंग्स ऑफ वासेपुर’ से। इस फिल्म में उनके किरदार  को दर्शकों ने खूब पसंद किया। इस फिल्म में पंकज के काम मिलने का किस्सा भी बड़ा ही रोचक है। जिस वक़्त पंकज धारावाहिक गुलाल की शूटिंग में व्यस्त थे उसी दौरान उन्हें मशहूर कास्टिंग डायरेक्टर मुकेश छाबरा ने फिल्म “गैंग्स ऑफ़ वासेपुर” के ऑडिशन के लिए बुलाया। हालांकि फिल्म के निर्देशक अनुराग कश्यप उनके ऑडिशन से पूरी तरह संतुष्ट नहीं थे फिर भी मुकेश छाबरा द्वारा समझाने के बाद पंकज को “सुल्तान” की भूमिका सौंप दी गई जिस पर वो पूरी तरह से खरे भी उतरे। फिल्म गैंग्स ऑफ वासेपुर के बाद पंकज त्रिपाठी ने कभी पोछे मुड़कर नहीं देखा। एक के बाद एक तकरीबन हर दमदार फिल्मों में अलग-अलग किरदारों में वो नज़र आते रहे। फिल्मों के अलावा उन्होंने कई सफल वेब सीरीज में भी अभिनय किया जिनमें सेक्रेड गेम्स और मिर्जापुर प्रमुख है। इन सीराज़ में पंकज त्रिपाठी की एक्टिंग को लोगों ने ख़़ू़ूब सराहा। पंकज ने तकरीबन 60 से अधिक टी वी शोज़ में काम किया है और अब तक वो 60 से ज़्यादा फिल्मों में भी नज़र आ चुके हैं। 

दोस्तों पंकज त्रिपाठी ने अनुसार मुंबई में उन्हें उतना संघर्ष नहीं करना पड़ा या यूँ कहें कि उन्होंने काम खोजने में कोई जल्दबाज़ी नहीं की और न ही बहुत बड़ा अभिनेता का ख़्वाब ही देखा था इसीलिए उन्हें कभी संघर्ष का कष्ट समझ में ही नहीं आया। अपने संघर्ष के बारे में बात करते हुए एक इंटरव्यू में पंकज त्रिपाठी ने बताया कि मुंबई में उनकी ज्यादा दुखद कहानियां नहीं रहीं अगर आप मेरे संघर्ष के बारे में पूछेंगे तो मेरा ऐसा कोई ऐसा इतिहास नहीं है कि मैं फुटपाथ पर सोया या कई दिनों तक भूखा रहा। यह इसलिए संभव हो सका, क्योंकि मेरी पत्नी मृदुला ने घर की सारी जिम्मेदारियां उठा ली थीं। मैं तो सबसे यही कहता हूं कि वह घर की पुरुष हैं।” वो अपनी सफलता का सारा श्रेय अपनी पत्नी को ही देते हैं। 

पंकज त्रिपाठी और उनकी पत्नी की कहानी

अपने एक इंटरव्यू में पंकज त्रिपाठी ने बताया था कि वह 16 अक्टूबर साल 2004 को 46,000 रुपये लेकर मुंबई पहुंचे थे, और 25 दिसंबर 2004 तक उनके जेब में कुल 10,000 रुपये बचे थे। इस दिन को याद करते पंकज त्रिपाठी ने कहा कि वह इस तारीख को कभी नहीं भूलते क्योंकि इस दिन उनकी पत्नी का जन्मदिन होता है और उस दिन उनके पास अपनी पत्नी के लिए न तो तोहफा खरीदने के पैसे था और न ही केक खरीदने के। दोस्तों पंकज जब वर्ष 2004 में मुंबई आये थे तो वो शादीशुदा थे और उनकी पत्नी मृदुला भी उनके साथ ही आयी थीं। मुंबई आकर मृदुला जी ने गोरेगांव के एक स्कूल में बतौर अध्यापिका नौकरी कर ली। मृदुला और पंकज के प्रेम और विवाह से जुड़ा बड़ा ही रोचक किस्सा है जिसका ज़िक्र उन्होंने कई बार किया है। पंकज ने बताया कि कैसे उन्हें मृदुला से बिना देखे ही प्यार हो गया था ।उन्होंने बताया कि वर्ष1992 में मृदुला के गाँव सुलभ शौचालय बनाना था और सुलभ शौचालय बनवाने में एक्सपर्ट पंकज के भाई ने मृदुला के गांव में अपने एक मिस्त्री को शौचालय का एस्टीमेट लेने के लिये भेजा जहाँ उस मिस्त्री की नज़र मृदुला जी पर पड़ गयी और वापस आकर उसने पंकज से मृदुला जी की इतनी तारीफ कर दी कि बिना देखे ही उनको मृदुला से प्यार हो गया। मिस्त्री ने उनसे बताया कि उधर एक लड़की है एकदम हिरणी की माफिक। पंकज मृदुला की याद में रोमांटिक गाने गा गाकर रोया करते थे। उन्होंने बताया कि जिन गानों को सुनकर वो 90s के दौर में रोते थे, उन गानों पर अब बात करके हंसा करते हैं। आख़िर वो दिन भी आ ही गया जब पंकज ने मृदुला को साक्षात भी देेेेख लिया। संयोग से मृदुला के भाई की शादी पंकज की बहन से तय हो गयी और  24 मई, 1993 को पंकज की बहन का तिलक का दिन निर्धारित हुआ। तिलक के दिन हाथ में नारियल और पान का पत्ता लिये पंकज की निगाहें पंडित जी के मंत्र के बीच  इधर – उधर उस हिरनी को तलाश रहीं थी  जिसका ज़िक्र उनके मिस्त्री ने किया था। पंकज ने बताया कि अचानक ऐसा लगा कि 200 से 250 लोगों की भीड़ ख़त्म, मैं अकेला नारियल लिए बैठा हूं और वो खाली आंगन में अकेले चलते हुए आईं और हिरनी की तरह कुलाचे भरते हुए चली गईं बिल्कुल किसी फिल्मी सीन की तरह।’ पंकज ने बताया कि दोनों ची सोच में कोई मेल नहीं था बस  एक ही बात की समानता थी और वो थी दोनों के साहित्य का शौक पंकज ने साहित्य की मदद से ही मृदुला का दिल जीता। 

पंकज ने बताया कि उनकी शादी में भी बड़ी मुश्किलें आई क्योंकि मृदुला की मां नहीं चाहती थीं कि शादी हो। उन्होने बताया, ‘लड़की के मां शादी के ख़िलाफ़ थीं। उनकी लगता था कि ये नाटक – नौटंकी करता है, कभी होटल में काम करता है, कभी जूते बेचता है। कुछ वर्षों बाद मृदुला के घरवालों ने उनकी शादी कहीं और तय कर दी। एक इंटरव्यूमें मृदुला जी ने बताया कि पंकज मेरे भैया और भाभी के साथ मेरे होने वाले दूल्हे के घर गए और लौटने पर उन्होंने मुझे बताया कि यह जोड़ी मेरे लिए अच्छी रहेगी और मुझे ‘भौतिक सुख’ मिलेगा। मैं इस बात का अर्थ नहीं समझी तब पंकज जी ने मुझे समझाया कि मटीरियलिस्टिक वर्ल्ड में तो तुम अच्छा जीवन जियोगी, लेकिन मेरे जैसा इंसान तुम्हें कहीं नहीं मिलेगा। इसी तरह हमारे बीच में नोंकझोंक चलती रही और फिर हमने बड़े जतन करके वो शादी तुड़वाई और पंकज के एनएसडी थर्ड इयर में हमने शादी का फैसला ले लिया।’ 15 जनवरी वर्ष 2004 को पंकज और मृदुला ने विवाह कर लिया।

पंकज और मृदुला की एक बेटी है जिसका नाम आशी है जो अब किशोरावस्था में प्रवेश कर चुकी है और मृदुला जी ने स्कूल की नौकरी त्याग कर, घर और पंकज के ऑफिस दोनों की ज़िम्मेदारियों को संभाल रही हैं। पंकज के व्यस्त होने पर  मृदुला ही उनकी नई फिल्मों की स्क्रिप्ट पढ़ा करती हैं। पंकज के एड, शूट और फिल्मों के प्रमोशन से लेकर उनका पूरा शिड्यूल बनाने तक, हर छोटा-बड़ा काम किसी मैनेजर की तरह मृदुला बखूबी हैंडल करती हैं।

दोस्तों पंकज के अभिनय के न सिर्फ दर्शक बल्कि फिल्म मेकर भी क़ायल हैं क्या नये क्या पुराने। मशहूर अभिनेता और निर्देशक सतीश कौशिक जी का कहना है कि अपनी आगामी फिल्म ‘कागज़’  से उन्हें एक निर्देशक के रुप में  फिर से उभरने का मौका मिला है और इसका श्रेय फिल्म के मुख्य अभिनेता पंकज त्रिपाठी को ही जाता है जिन्होंने इस फिल्म में नई ऊर्जा डाली है।

दोस्तों आने वाले वक़्त में पंकज त्रिपाठी फिल्म ‘कागज़’ के अलावा ढेरों फिल्मों और वेब सिरीज़ में नज़र आने वाले हैं जिनका दर्शक बहुत ही बेताबी से इंतज़ार कर रहे हैं। नारद टी वी ऐसे दमदार अभिनेता पंकज त्रिपाठी जी को उनके आने वाली फिल्मों के लिये ढेरों शुभकामनायें देता है और उनके उज्जवल भविष्य की कामना करता हैं। हमें उम्मीद है कि आपको हमारा आज का ये वीडियो अवश्य पसंद आया होगा। वीडियो के बारे में अपनी राय हमें कमेंट्स के ज़रिये अवश्य बतायें। तो मिलते हैं अगले वीडियो में किसी और रोचक किस्से के साथ।

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Prabhath Shanker

Bollywood Content Writer For Naarad TV

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