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मेरा नाम है बुल्ला वाले अभिनेता मुकेश ऋषि की कहानी

भारतीय सिनेमा के हर दौर में विलेन्स का अपना एक अंदाज और अपना इतिहास देखने को मिलता है।

और समय समय पर पर्दे पर नजर आने वाले हर बड़े खलनायक ने फिल्मों के इस क्षेत्र में अपने ढंग से योगदान भी दिया है।

प्राण साहब ने जहां इस इतिहास में वर्सेटेलीटी यानि बदलाव को पोपुलर बनाया तो वहीं अमरीश पुरी और रजा मुराद ने अपने दौर में इस क्षेत्र को एक रौबदार आवाज देने का काम किया था।

डेनी डेन्जोंगपा जहां विलेन के तौर पर अपनी लगभग हर फिल्म में आलीशान जिंदगी बिताते नजर आते हैं तो वहीं अमजद खान ने गब्बर के किरदार से पहाड़ और डाकु जैसे शब्दों को एक अहम स्थान दिलवाया था।

इन सबके बावजूद जब भारतीय सिनेमा में खूंखार और वहशी खलनायकों की बात होती है तो इन बड़े चेहरों से बहुत पहले जो चेहरा हमारे जेहन में आता है वो चेहरा है मुकेश ऋषि का।

नमस्कार दोस्तों मेरा नाम है अनुराग सुर्यवंशी और आप देख रहे हैं नारद टीवी जिसमें आज हम बात करने वाले है मुकेश ऋषि के बारे में।

मुकेश ऋषि का जन्म 19 अप्रैल 1956 को जम्मू के कठुआ जिले में हुआ था।

 इनके पिता स्टोन क्रशिंग यानी पत्थर तोड़ने का काम किया करते थे जो इनका फैमिली बिजनेस भी था।

अपनी शुरुआती पढ़ाई मुकेश ऋषि ने जम्मू में ही पुरी की थी और क्रिकेट बहुत अच्छा खेलते थे और स्कुल स्तर पर कई प्रतियोगिताओं में भाग भी लिया करते थे।

क्रिकेट में अपनी दिलचस्पी के चलते इनका दाखिला स्पोर्ट्स कोटे से पंजाब यूनिवर्सिटी में हो गया था और जल्द ही मुकेश ऋषि कोलेज क्रिकेट टीम के उपकप्तान भी बन गए थे।

कोलेज के दिनों के दौरान ही इनकी रुचि फिल्मी दुनिया में भी बढ़ने लगी थी जिसका सबसे बड़ा कारण था इनकी हाइट और पर्सनेलिटी जिसे देखकर हर कोई इन्हें फिल्मों में काम करने के लिए कहा करता था

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कोलेज की पढ़ाई पुरी करने के बाद मुकेश ऋषि मुम्बई आ गए और फैमिली बिजनेस में अपने पिता और बड़े भाई का हाथ बंटाने लगे लेकिन कुछ समय तक यह काम करने के बाद भी इनका मन इस काम में नहीं लग रहा था।

फैमिली बिजनेस को छोड़कर मुकेश ऋषि काम की तलाश में फिजी आ गए जहां इनकी मुलाकात अपनी कोलेज के समय की गर्लफ्रेंड केशनी से हुई जिनका परिवार फिजी में एक डिपार्टमेंटल स्टोर चलाया करता था।

मुकेश ऋषि भी उसी डिपार्टमेंटल स्टोर में काम करने लगे और कुछ समय बाद उनकी शादी फिजी में ही अपनी दोस्त केशनी से हो गई।

फिजी में काम करते हुए इन्हें एक कोर्स का पता चला जिसमें मोडलिंग और रेम्प वोक की ट्रेनिंग दी जाती थी, अपनी कद-काठी को देखते हुए दुकान के बाद मिलने वाले खाली समय का सदुपयोग करने के लिए मुकेश ऋषि ने यह कोर्स ज्वाइन कर लिया।

कुछ समय बाद मुकेश ऋषि अपने स्टोर के काम के चलते न्यूजीलैंड आ गए लेकिन वहां उनका सामना एक नए अनुभव से होने वाला था।

न्यूजीलैंड में उन्हें एक मोडलिंग एंजेसी के बारे में पता चला और अपने शौक को पूरा करने के लिए मुकेश ऋषि वहां चले गए, मोडलिंग एंजेसी के मालिक ने मुकेश ऋषि की कद काठी और रेम्प वोक देखकर इन्हें सलेक्ट कर लिया।

अगले दिन जब एंजेसी के मालिक ने उन्हें रेम्प वोक के लिए अपने स्टोर से ड्रेस सलेक्ट करने के लिए कहा तो वहां मुकेश को अपनी साईज की कोई ड्रेस ही नहीं मिली और इसलिए उन्हें अपने पहले मोडलिंग असाइनमेंट को छोड़ना पड़ा।

काम तो छुट गया लेकिन मुकेश ऋषि को यह भरोसा मिल गया था कि वो मोडलिंग की दुनिया में कुछ  कर सकते हैं और इसलिए न्यूजीलैंड में इन्होंने अलग-अलग एजेंसियों के लिए रेम्प वोक करना जारी रखा।

Mukesh Rishi

सात साल बाद अपनी बहन की शादी में शामिल होने के लिए मुम्बई आए और यहां अपने बड़े भाई से एक्टिंग की दुनिया में काम करने की इच्छा जताई और उनकी अनुमति मिलने के बाद मुकेश ऋषि इस चकाचौंध भरी दुनिया में अपना स्थान बनाने के लिए पहुंच गए।

मुकेश ऋषि स्ट्रगल से पहले एक्टिंग के बारे में सबकुछ सिखना चाहते थे और इसीलिए उन्होंने रोशन तनेजा की एक्टिंग स्कूल में दाखिला ले लिया और साथ ही डांस मास्टर मधुमति से ट्रेनिंग भी लेने लगे थे।

रोशन तनेजा की एक्टिंग स्कूल में एक एक्ट के दौरान आईशा जुल्का के साथ अपने एक सीन को करते समय मुकेश ऋषि इस तरह से उसमें डुब गए कि उनकी आंखों से आंसू निकलने लगे थे।

छः महीने के अंदर ही एक अभिनेता में इतनी परिपक्वता को देखकर रोशन तनेजा ने मुकेश ऋषि से कहा कि अब तुम फिल्मों में काम करने के लिए तैयार हो, बाकि एक्टिंग तुम्हें वक्त, हालात और अनुभव अपने आप ही सिखा देंगे।

इसके बाद शुरू हुआ मुकेश के स्ट्रगल का दौर जिसमें इन्होंने थमजप और च्यवनप्राश की कम्पनियों के एड्स में भी काम किया था।

इसी बीच संजय खान अपने टीवी सिरियल दी स्वोर्ड ओफ टीपू सुल्तान पर काम कर रहे थे जिसमें उन्होंने काम की तलाश में भटक रहे मुकेश ऋषि को मीर सादिक नाम का किरदार निभाने को दे दिया।

इस किरदार से उन्हें पहचान तो नहीं मिली लेकिन कैमरे को फेस करने का अनुभव और एक्टिंग की कुछ बारीकियों का ज्ञान उन्हें हो गया था।

इसके बाद मुकेश ऋषि घायल और हमला जैसी फिल्मों में भी छोटे किरदारों में नजर आए जिसके बाद साल 1993 में डायरेक्टर प्रियदर्शन की फिल्म गर्दिश में इन्हें बिल्ला जलानी के किरदार में देखा गया था।

अमरीश पुरी, जैकी श्राफ और डिम्पल कपाड़िया जैसे सितारों से सजी इस फिल्म में मुकेश के काम को बहुत पसंद किया गया था और इसीलिए मुकेश ऋषि फिल्म गर्दिश को अपनी ओफीशीयल डेब्यू फिल्म मानते हैं।

भारतीय सिनेमा में जहां हर कोई हीरो बनने का सपना लिए आता है तो वहीं मुकेश ऋषि शुरू से ही अपना करियर एक विलेन के तौर पर बनाना चाहते थे।

इससे जुड़ा एक किस्सा कुछ यूं है कि एक बार मुकेश ऋषि फिल्म निर्माता यश चोपड़ा से मिलने गए थे, वहां यश चोपड़ा ने मुकेश से उनके काम के बारे में पुछा तो उन्होंने कहा कि वो विलेन का रोल करना चाहते हैं, इसके जवाब में यश चोपड़ा ने कहा कि उनकी फिल्मों में विलेन जैसा कुछ होता ही नहीं है अगर रोमांटिक फिल्मों में कोई रोल चाहिए तो बताओ।

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ये सुनकर मुकेश ऋषि खड़े हुए यश चोपड़ा का आशीर्वाद लिया और वहां से चले गए, हालांकि बाद में यश चोपड़ा ने ही मुकेश ऋषि को अपनी फिल्म परम्परा में एक रोल दिया था, जिसमें सुनिल दत के अलावा आमिर खान भी काम कर रहे थे।

इसके बाद मुकेश ऋषि बाजी फिल्म में भी नजर आए और इसी फिल्म के दौरान आमिर खान ने उन्हें अपनी अगली फिल्म सरफ़रोश की कहानी सुनाई, जो उन्हें पसंद भी आ गई थी लेकिन उस फिल्म पर काम तब तक शुरू नहीं हुआ था।

बाजी के बाद मुकेश ऋषि ने साल 1996 में लोफर, सपूत और घातक जैसी फिल्मों में काम किया था।

इसके बाद साल 1999 में सरफ़रोश फिल्म पर काम शुरू हुआ और इंस्पेक्टर सलीम के किरदार के लिए मुकेश ऋषि नाम सामने आया, लेकिन फिल्म के डायरेक्टर ने  मुकेश को इस रोल के लिए ओडिशन देने के लिए कह दिया।

मुकेश ऋषि ने तब तक किसी भी फिल्म के लिए ओडिशन नहीं दिया था लेकिन एक ही तरह के रोल करके वो थक गए थे इसलिए कुछ नया करने के लिए वो मान गए और इस तरह मुकेश ऋषि को इंस्पेक्टर सलीम का किरदार मिल गया।इसके बाद सुर्यवंशम, अर्जुन पंडित, पुकार और कुरुक्षेत्र में भी मुकेश ऋषि के काम को पसन्द किया गया था।2001 में सनी देओल की फिल्म इंडियन में वसीम खान और 2004 की फिल्म गर्व में जफर सुपारी के किरदार आज भी सिनेमा प्रेमियों के दिलों में ताज़ा है जिनमें मुकेश ऋषि के बेहतरीन काम को देखा गया था।

मुकेश ऋषि ने बोलीवुड फिल्मों के अलावा तेलगु, मलयालम, कन्नडा, भोजपुरी और पंजाबी फिल्मों में भी काम किया है जहां हर साल उनकी तीन से चार फिल्में रीलीज होती है।

नरसिम्हा नायडू, अधिपति और नमो वेंकटेशा जैसी तेलगु फिल्मों के अलावा  वार एंड लव और ब्लैक कैट जैसी मलयालम फिल्में भी इस लिस्ट में शामिल है।

बदलते समय के साथ साथ बोलीवुड फिल्मों में विलेन के किरदारों में भी बदलाव आता गया और 21 वीं सदी में जब हिन्दी सिनेमा में खलनायकों की अहमियत फिल्मों में कम होने लगी तो मुकेश ऋषि ने साउथ इंडस्ट्री में अधिक काम करना शुरू कर दिया जहां विलेन आज भी वैसे ही है जो 80’s और 90’s की बोलीवुड फिल्मों हुआ करते थे।

2010 में आई कम्प्यूटर एनिमेटेड फिल्म रामायण दी एपिक में हनुमान का किरदार निभाने के बाद मुकेश ऋषि खिलाड़ी786 और फोर्स में भी नजर आए थे।

बोलीवुड फिल्मों आज भले ही मुकेश ऋषि को ज्यादा काम नहीं मिलता है लेकिन अपनी अदाकारी से साउथ इंडस्ट्री में अब भी वो एक सुपरस्टार के तौर पर देखें जाते हैं।

हाल ही में मुकेश ऋषि ने महेश बाबू की फिल्म महर्षी में काम किया था और इस साल पवन कल्याण के साथ मुकेश ऋषि फिल्म वकील साहब में नजर आने वाले है।

100 से ज्यादा फिल्मों में काम करने वाले मुकेश ऋषि के सबसे यादगार किरदार की बात करें तो साल 1998 में आई फ़िल्म गुंडा में बुल्ला का किरदार आज भी सबको याद है।

शायरी की भाषा में लिखे गए संवादों से सजी इस फिल्म में मुकेश ऋषि का डायलॉग मैं हूं बुल्ला रखता हूं खुल्ला आज इंटरनेट की जनरेशन के बीच बहुत लोकप्रिय है, जिस पर कई मीम्ज भी बन चुके हैं।

बात करें इनकी निजी जिंदगी के बारे में तो मुकेश ऋषि के बेटे राघव ऋषि भी अपने पिता की तरह एक अभिनेता हैं।

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