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जवाब उनको जो कहते हैं मंदिर क्यों आवश्यक है ?

हिंदू सनातन धर्म की पूजा पद्धति में मंदिरों का एक विशिष्ट स्थान है, जहाँ एक ओर बड़े-बड़े मंदिरों के अतिरिक्त छोटे-छोटे मंदिरों की मान्यतायें है वहीं घरों में भी पूजा पाठ के लिये बनाये विशेष स्थान को भी मंदिर का ही नाम दिया जाता है।

हालांकि ऐसा नहीं है कि भारत में मात्र मंदिरों को ही उचित मान्यता दी जाती है, अपितु यहाँ तो हर धर्म को एक समान अधिकार दिये गये हैं चाहे वह पूजा-पाठ से संबंधित ही क्यों न हो। ऐसे में विभिन्न गुरुद्वारों के अतिरिक्त अनेकों मस्जिद और गिरिजाघर जैसे धार्मिक स्थल भी भारत के लगभग प्रत्येक क्षेत्र में देखने को मिल ही जाते हैं, जो भारत के बड़े-बड़े मंदिरों की तुलना में किसी भी प्रकार से कम लोकप्रिय नहीं हैं, न तो प्रसिद्धी में और न ही होने वाली आय में। 

ऐसे में एक प्रश्न प्रायः ही सुनने को मिलता है कि मात्र मंदिरों को ही जीएसटी के अंतर्गत टैक्स भुगतान करना होता है, जबकि चर्चों और मस्जिदों को नहीं? आज हम इसी विषय पर प्रकाश डालने वाले हैं, साथ ही हम इस प्रश्न का उत्तर भी जानेंगे कि मंदिर क्यों आवश्यक हैं व जीवन में इनका क्या महत्व है? तथा भारत के विभिन्न चर्चित मंदिर अपनी होने वाली आय के माध्यम से देश को किस प्रकार से अपनी सहायता प्रदान कर रहे हैं?

विगत् कई वर्षों की लड़ाई और राम मंदिर के पक्ष में आये निर्णय के बाद व इसके पूर्व भी तथाकथित बुद्धिजीवियों की ओर से यह प्रश्न भी उठता रहा है कि मंदिर के लिये इतना संघर्ष क्यों? मंदिर की आवश्यकता क्या है? आदि इत्यादि। ऐसे प्रश्न हिंदू विरोधियों की ओर से तो उठते ही रहे हैं, साथ ही स्वयं को नवीन विचारधारा के मानने वाले युवा हिंदू भी इस प्रश्न को उठाते रहे हैं। बहुतों का तो यह भी कहना है कि पहले तो मंदिर और प्रतिमा का अस्तित्व ही नहीं था, परन्तु विभिन्न शोधों और ग्रंथों, पुराणों व प्राचीन महाकाव्यों से स्पष्ट हो जाता है कि भारत में मंदिरों का इतिहास बहुत ही प्रचीन है।

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मंदिरों का अस्तित्व-

सबसे पहले हम यह जान लेते हैं कि मंदिरों का अस्तित्व कितना प्राचीन है। बहुत से इतिहासकारों का मत है कि बौद्ध धर्म के उदय के पश्चात मंदिरों का निर्माण अस्तित्व में आया जबकि रामायण काल में भी मंदिर हुआ करते थे, जिसके प्रमाण विभिन्न ग्रन्थों व महाकाव्यों में भी उपलब्ध हैं।

भगवान राम का काल 5114 ईस्वी पूर्व माना जाता है जब श्रीराम ने रामेश्वरम में शिवलिंग की स्थापना की थी। इसका तात्पर्य तो यही हुआ कि उस काल से ही शिवलिंग पूजा की परंपरा चली आ रही है। उसी काल में माता सीता द्वारा माँ गौरी का पूजन करना भी इस बात का प्रमाण है कि उस काल में भी देवी-देवताओं के पूजन का कितना महत्व था और उनके पूजास्‍थल भी किसी विशेष स्थान पर हुआ करते थे।

वर्तमान युग की बात की जाये तो भारत को कभी ‘सोने की चिड़िया’ कहा जाता था और भारत के किसी भी राज्य के वैभव और समृद्धि का सबसे बड़ा प्रतीक वहाँ के मंदिर ही हुआ करते थे, जिसका सबसे बड़ा प्रमाण है विदेशी आक्रमणकारियों विशेषकर मुस्लिम आक्रांताओं द्वारा देश के मंदिरों को लगातार लूटा जाना। चूँकि भारत की समृद्धि और इसके राज्यों की अर्थव्यवस्था मंदिरों पर ही निर्भर थी इस कारण मंदिरों को लूटने के साथ-साथ इन आक्रांताओं ने उन्हें तोड़ भी डाला ताकि वह राज्य पुनः समृद्ध न हो सके। 

Temple-Science
Temple Science

मंदिरों से लाभ के वैज्ञानिक कारण-

धर्म वैज्ञानिक और शोधकर्ता पंडित वैभव जोशी के अनुसार हमारे देश में प्राचीन मंदिर धरती के धनात्मक अर्थात पॉजिटिव ऊर्जा केंद्रों पर बनाये गए हैं जो एक प्रकार से आकाशीय ऊर्जा के ग्रिड का कार्य करते हैं। चूँकि मंदिर में हमें नंगे पैर ही जाना होता है इस कारण हमारे शरीर में एक प्रकार से अर्थ का प्रवाह होने लगता है और जैसे ही हम अपने हाथ जोड़ते हैं तो हमारे शरीर का ऊर्जा चक्र चलने लगता है।

जैसे ही हम देव प्रतिमा के समक्ष अपने शीष झुकाते हैथ तो प्रतिमा से परावर्तित होने वाली पृथ्वी व आकाशीय तरंगे हमी मस्तक पर पड़ती हैं और मस्तक पर स्थित आज्ञा चक्र पर प्रभाव डालती है। जिससे हम अपने अंदर एक विशेष सकारात्मक ऊर्जा और शांति का अनुभव करने लगते हैं।

मंदिर के शिखर की भीतरी सतह से टकरा कर ऊर्जा तरंगें व ध्वनि हमारे मन को प्रभावित करती हैं। ये परावर्तित तरंगें हमारे तन की प्राकृतिक आवृति बनाये रखने में भी सहायक सिद्ध होती है। मन्दिरों में शंख, घण्टे और मन्त्रों की ध्वनि में भी एक विशेष आवृति बनती है। वह दैवीय ऊर्जा होती है जो हमें मानसिक शारीरिक और आत्मिक रूप से भी दृढ़ बनाती है।

मंदिर की बनावट और रहस्य-

मंदिर के गर्भगृह में सभी का प्रवेश क्यों नहीं होता इसके पीछे भी वैज्ञानिक कारण है। वास्तव में जो मंदिरों की दैवीय ऊर्जा होती है वो गर्भ गृह के माध्यम से ही पूरे मंदिर में प्रवाहित होती रहती है और इस तीव्र ऊर्जा को सहन करना सबके वश की बात नहीं होती है, इसी कारण सामान्य जनमानस बाहर से ही इसका दर्शन करते है।

मंदिरों के गुंबद पिरामिड के आकार जैसे होते हैं जो कास्मिक ऊर्जा के संपर्क में रहते हैं और प्रतिमा का लगातार उसी ऊर्जा से सीधा संबंध बना रहता है। जैसे ही हम प्रतिमा के समक्ष जाते हैं तो हमारा मस्तिष्क विशेष प्रकार से सक्रिय होने लगता है और उस समय की गयी प्रार्थना व संकल्प अवश्य फलित होते हैं।

इसके अतिरिक्त मंदिर के द्वार का भी एक रहस्य होता है। हालांकि वर्तमान में बन रहे मंदिरों के निर्माण में इनके द्वार पर विशेष ध्यान नहीं दिया जाता, जबकि प्राचीन मंदिर और गर्भ गृह का द्वार बड़ा नहीं होता था तथा एक बार में एक ही व्यक्ति प्रवेश कर सके, द्वार को कुछ इस प्रकार से बनाया जाता था, जिससे वहा कास्मिक ऊर्जा का संतुलन बना रहता था। इसी प्रकार मंदिर की चौखट का भी महत्व होता है जो सामान्य चौखट से ऊंची और चौड़ी होती है।

पत्थर व लकड़ी आदि से निर्मित इन चौखटों पर सोने, चांदी तथा पीतल जैसी धातुओं से ढक दिया जाता है ताकि मंदिर की दैवीय ऊर्जा मंदिर के अंदर ही रहे। यह तो हुई मंदिर की बनावट और वैज्ञानिक दृष्टिकोण से होने वाले लाभ की बात। आइये अब चलते हैं अपने मुख्य विषय की ओर।

मंदिरों पर आयकर का प्राविधान और छूट- 

सबसे पहले हम इस बात को जान लें भारत सरकार मंदिरों या किसी भी धार्मिक स्थल के किस आय पर कर लेती है। धार्मिक स्थलों को अधिकतर ट्रस्ट ही चलाते हैं, जिनके पास अन्य संपत्तियां भी होती हैं जैसे परांगण, कमरे और दुकानें इत्यादि, जो किसी भी आयोजन या अन्य कार्यों में वस्तुओं की बिक्री के लिए, यदि किराए पर दिये जाते हैं, तो इनसे हुई आय पर कर देने का प्राविधान बनाया गया है।

केंद्रीय अप्रत्यक्ष कर और सीमा शुल्क बोर्ड यानि सीबीआइसी की वेबसाइट के अनुसार, ‘धर्मार्थ और धार्मिक ट्रस्टों की ओर से दी जाने वाली सभी सेवाएं जीएसटी से मुक्त नहीं हैं, जैसे- तीर्थयात्रा के लिए यात्रियों के परिवहन की सेवाएं, आयोजन, समारोह व प्रतिस्पर्धायें तथा ऐसे प्रदर्शन जिनमें टिकट लगे या कोई प्रवेश शुल्क हो।

हालांकि आय की एक निश्चित सीमा से अधिक होने पर ही यह कर लागू किये जाते हैं साथ ही विभिन्न धाराओं के तहत इसमें छूट का भी प्राविधान है जो मात्र मंदिरों पर ही नहीं, सभी धर्मों के धार्मिक स्थलों पर लागू होते हैं।हालांकि यह कर मंदिरों से जिस प्रकार वसूल किये जाते हैं वैसी वसूली किसी भी अन्य धर्मों के धार्मिक स्थलों से भी की गयी हो ऐसी कोई चर्चा कभी सुनाई नहीं पड़ी।

इन करों से छूट प्राप्त करने के लिए, ट्रस्ट को इनकम टैक्स एक्ट, 1961 की धारा 12AA के तहत पंजीकृत होना चाहिए। इसके अतिरिक्त ऐसी कुछ गतिविधियाँ जिनमें सरकार द्वारा छूट दी गई है, उनमें धार्मिक समारोह का आयोजन व साधारण जनता हेतु बने धार्मिक स्थल के परिसर को किराए पर देना आदि प्रमुख हैं।

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Tax-Savings
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मंदिर द्वारा दिये जाने वाला आयकर-

यह आयकर कितने प्रतिशत और किस प्रकार सरकार को दिया जाता है इसे हम इस उदाहरण के माध्यम से समझ सकते हैं। दैनिक भास्कर समाचार पत्र में छपे एक लेख के अनुसार, मेरठ का ‘मंशा देवी मंदिर’ जहाँ नवरात्र में भक्तों की भारी भीड़ आती है ऐसे में मंदिर में चढ़ावे और दान में आए एक-एक पैसे का ब्यौरा सरकार को देना पड़ता है और मंदिर ट्रस्ट हर साल इनकम टैक्स भी जमा करता है।

मां मंशा देवी मंदिर के मुख्य पुजारी भगवत गिरी ने बताया- हर साल एक लाख रुपए से अधिक आयकर भरा जाता है जो दान और चढ़ावे में आने वाली धनराशि के अनुसार ही तय किया जाता है।उन्होंने यह भी बताया कि प्रतिशत के रूप में यह आयकर एक रुपए में 31 पैसे के बराबर होता है जो कि वर्ष 1992 से दिया जा रहा है।

यहाँ हम आपको यह भी बता दें कि मंदिर के पुजारी को ट्रस्ट द्वारा वेतन दिया जाता है और वह भी अपना आयकर भरते हैं।हालांकि अन्य बड़े मंदिर या अन्य धर्मों के धार्मिक स्थल कितना आयकर भरते हैं उनके आंकड़े तो हमारे पास नहीं हैं लेकिन भारत के विभिन्न बड़े-बड़े मंदिर किस रूप में अपनी होने वाली आय से देश को सेवायें दे रहे हैं उनके कुछ उदाहरण आपके सामने अवश्य रख सकते हैं।

जनकल्याण- जनता का धन जनता हेतु-

प्राचीन काल से ही मंदिर राज्यों के धन संचय का एक केंद्र हुआ करता था जो अपने राज्य में आयी आपदाओं, विकास कार्यों और युद्ध आदि के समय राजकोष के रूप में सहयोग प्रदान करने का कार्य करता था।

जनमानस द्वारा दान किया हुआ धन और चढ़ावा जिस प्रकार से प्राचीन काल में राजा के माध्यम से जनकल्याणकारी योजनाओं में लगाया जाता था वर्तमान समय में भी समय-समय पर विभिन्न मंदिरों द्वारा जनसेवा योजनाओं के रूप में देखने को मिलता ही रहता है। मंदिरों द्वारा विगत् वर्षों में किये जाने वाले ऐसे अनेकों सेवाकार्य हैं जिनमें से कुछ उदाहरण आपके समक्ष प्रस्तुत हैं।

सिद्धिविनायक मंदिर ट्रस्ट की छात्रवृत्ति योजना- इस योजना के तहत अपने सामाजिक दायित्व को निभाते हुए महाराष्ट्र के सबसे चर्चित मंदिरों में से एक इस मंदिर के ट्रस्ट ने मृत किसान परिवार की चिंताओं को दूर करने का बीड़ा उठाया है।

इस योजना के तहत मंदिर ट्रस्ट ने सूखे और बाढ़ से परेशान होकर आत्महत्या करने वाले किसानों के बच्चों की शिक्षा के लिये छात्रवृत्ति के रूप में आर्थिक सहायता प्रदान कर उनके स्नातक तक की पढ़ाई का का उत्तरदायित्व स्वयं पर लिया है। सिद्धिविनायक मंदिर ट्रस्ट ऐसे बच्चे जिनको सहायता की आवश्यकता है इसके लिये सभी जिलाधिकारियों के माध्यम से पीड़ित परिवारों तक पहुँचता है।

सिद्धिविनायक छात्रवृत्ति योजना में अनुदान हेतु मंदिर के ट्रस्ट ने एक करोड़ रुपये की सीमा तय की है। मंदिर की वार्षिक आय लगभग 65 करोड़ रुपये है और इस योजना के अतिरिक्त मंदिर ट्रस्ट सामाजिक सरोकारों से जुड़ी कई अन्य योजनाएं भी चला रहा है।

देश के अन्य विभिन्न मंदिरों द्वारा किये गये सामाजिक कार्य भी कम नहीं हैं। ‘तिरुपति बालाजी मंदिर’ की देखरेख करने वाला ‘तिरुमाला तिरुपति देवस्थानम’ ट्रस्ट तिरुपति के एस.वी. इंस्टीटय़ूट ऑफ ट्रेडिशनल स्कल्पचर एंड आर्किटेक्चर, एस.वी. पॉलिटेक्नीक फॉर द फिजिकली चैलेंज्ड, बालाजी इंस्टीटय़ूट ऑफ सजर्री, रिसर्च एंड रिहैबिलिटेशन फॉर द डिसेबल्ड, श्री वेंकटेश्वर पुअर होम, श्री वेंकटेश्वर स्कूल फॉर द डेफ, श्री वेंकटेश्वर ट्रेनिंग सेंटर फॉर द हैंडीकेप्ड सहित कई शिक्षा संस्थान संचालित करता है। साथ ही यह ट्रस्ट चुने हुए छात्रों को छात्रवृत्ति भी प्रदान करता है।

एक ओर देश के सबसे बड़े मंदिर ट्रस्ट में से एक सत्यसाई ट्रस्ट द्वारा आंध्र प्रदेश व चेन्नई में पूर्वी गोदावरी व पश्चिमी गोदावरी जल परियोजनाएं चलाई जा रही हैं, तो वहीं ‘अम्मा’ के नाम से विख्यात ‘सतगुरु माता अमृतानंदमयी’ सुनामी, चक्रवात, बाढ़, भूकंप में पीड़ित लोगों के लिए कई आपदा राहत कार्यक्रम चलाती हैं। अम्मा ने भारत में इंजीनयरिंग, मेडिकल, मैनेजमेंट, पत्रकारिता, आईटी के 60 से ज्यादा शैक्षणिक संस्थानों का एक विशाल नेटवर्क स्थापित किया है।

भारत के बड़े मंदिरों की आय कितनी है यह भी अपने आप एक जिज्ञासा का विषय है। आइये कुछ विशेष मंदिरों के आंकड़ों पर प्रकाश डालते हैं और साथ ही यह भी जानते हैं कि यह मंदिर देश में आने वाली विपदाओं के बाद किस प्रकार सरकार और जनमानस का सहयोग करते हैं।

तिरुपति तिरुमला वेंकटेश्वर, आंध्र प्रदेश- जिसकी संपत्ति है लगभग 1000 किलो सोना और 52,000 करोड़ रुपए। वार्षिक आय की बात करें तो यह 650 करोड़ रुपए के लगभग है। आंकड़ों के अनुसार इस मंदिर में हर वर्ष लगभग 300 करोड़ रुपए, 350 किलो सोना दान के रूप में प्राप्त होता है।

वैष्णो देवी मंदिर, जम्मू व कश्मीर- जम्मू-कश्मीर के कटरा स्थित इस मंदिर की वार्षिक आय 500 करोड़ रुपए के लगभग है। मंदिर का संचालन श्री माता वैष्णो देवी स्थापन बोर्ड द्वारा किया जाता है जिसे श्रइन बोर्ड भी कहा जाता है। पिछले पांच वर्षों में मंदिर की आय में सबसे अधिक वृद्धि हुई है।

शिरडी साईं बाबा, महाराष्ट्र-इस मंदिर की आय लगभग 450 करोड़ रुपए है जिसमें विगत वर्षों में 300 करोड़ रुपए के आभूषण और लगभग 4.5 अरब रुपए का वार्षिक निवेश भी प्रमुख है। इस मंदिर का संचालन शिरडी साईं बाबा संस्थान ट्रस्ट द्वारा किया जाता है।

सिद्धिविनायक मंदिर, महाराष्ट्र- इस मंदिर की वार्षिक आय 46 करोड़ रुपए है और 125 करोड़ रुपए का फिक्स्ड डिपॉजिट भी है। साथ ही हर वर्ष 10 से 15 करोड़ रुपए दान के रूप में प्राप्त होते हैं। मंदिर का संचालन सिद्धि विनायक मंदिर ट्रस्ट द्वारा किया जाता है।

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People in Pandemic at Temple

कोरोना महामारी से लड़ाई में मंदिरों की बड़ी भूमिका-

भारत में कोरोना महामारी के समय बड़े से लेकर छोटे व्यापारियों ने तो दान किये ही साथ ही भारत के विभिन्न मंदिरों ने भी बढ़ चढ़कर रुपए दान दिए और अन्य रूपों में भी कोरोना महामारी से लड़ने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है जिनमें से कुछ उदाहरण हम आपके समक्ष रख रहे हैं।

जम्मू और कश्मीर में वैष्णो देवी मंदिर श्रइन बोर्ड के नॉन गैजेटेड स्टाफ ने अपने एक दिन का वेतन तो वहीं गैजेटेड अधिकारियों ने अपने 2 दिन का वेतन राज्य के राहत कोष में दान दिया। इसके अलावा बोर्ड द्वारा कटरा बस्ती में आवश्यक लोगों को राशन भी बांटा गया साथ ही 600 बिस्तरों के आवास भी उपलब्ध कराये गये। हरियाणा के प्रमुख ‘श्री माता मनसा देवी मंदिर’ के ट्रस्ट द्वारा हरियाणा कोरोना राहत कोष में 10 करोड़ रुपए का दान दिए।

शिरडी के श्री साईबाबा संस्थान ट्रस्ट ने महाराष्ट्र में मुख्यमंत्री राहत कोष में 51 करोड़ रुपए दान दिए। इसके अलावा श्री साईं प्रसादालय के माध्यम से श्री साईनाथ चिकित्सालय, शिरडी अनाथालय, वृद्धाश्रम, बधिरों के लिए एक विद्यालय, निराश्रित व सेवा कार्य में लगे पुलिस कर्मियों और अन्य लोगों के लिए निःशुल्क भोजन उपलब्ध कराया। इसके अतिरिक्त सभी रोगियों और उनके रिश्तेदारों के लिये भी निःशुल्क भोजन की व्यवस्था कराई गयी।

छत्तीसगढ़ के ‘महामाया मंदिर’ ट्रस्ट ने छत्तीसगढ़ मुख्यमंत्री राहत कोष में 5,11,000 रुपए दान दिए। इसके अलावा कोरोना संकट से लड़ने हेतु रेड क्रॉस सोसायटी को 1,11,000 रुपए दिए। गुजरात के सोमनाथ मंदिर के ‘श्री सोमनाथ ट्रस्ट’ ने गुजरात मुख्यमंत्री राहत कोष में 1 करोड़ रुपए दान दिए।

पटना के महावीर मंदिर के ट्रस्ट ने राज्य में कोरोना महामारी से लड़ने के लिए मुख्यमंत्री राहत कोष में 1 करोड़ रुपए का दान दिया साथ ही लोगों को भोजन भी प्रदान किया। ट्रस्ट ने अयोध्या में राम मंदिर बनाने के लिए 10 करोड़ रुपए दान देने की भी घोषणा की थी।

तमिलनाडु के ‘कांची मुथ’ ट्र्स्ट ने प्रधानमंत्री राहत कोष और तमिलनाडु मुख्यमंत्री राहत कोष में से प्रत्येक को 10-10 लाख रुपए दान दिए। साथ ही राहत उपायों और समर्थन में योगदान के रूप में श्री कांची कामकोटि पीतम की ओर से प्रधानमंत्री राहत कोष और मुख्यमंत्री के जन राहत कोष में प्रत्येक में 10 लाख रुपए का योगदान दिया।

महाराष्ट्र के कोल्हापुर स्थित महालक्ष्मी मंदिर के देवस्थान प्रबंधन समिति ने मंदिर के माध्यम से 2 करोड़ रुपए दान किए जिसमें मुख्यमंत्री राहत कोष को 1.50 करोड़ रुपए की राशि दी गई, जबकि 50 लाख रुपए जिले में विभिन्न चिकित्सा सुविधाओं को बढ़ाने के लिए कलेक्टर को देने की घोषणा की गयी।

गुजरात के अंबाजी मंदिर ने गुजरात के मुख्यमंत्री राहत कोष में 1 करोड़ 1 लाख रुपए दान दिए। इसके अलावा मंदिर ट्रस्ट ने लॉकडाउन से प्रभावित लोगों के बीच भोजन भी वितरित किये।

गुजरात के 7 स्वामीनारायण मंदिरों ने मिलकर 1.88 करोड़ रु दान दिए साथ ही लोगों के लिये भोजन की व्यवस्था भी की। इसके अतिरिक्त गुजरात के वडताल स्वामीनारायण मंदिरों द्वारा संचालित विभिन्न मंदिरों द्वारा लोगों के लिये 500 कमरे भी उपलब्ध कराए गए। 

देश के विभिन्न मंदिर ट्रस्टों द्वारा आयकर भरने के साथ-साथ समय-समय पर ऐसे सेवाकार्य देखने को मिलते ही रहते हैं, परन्तु अन्य धर्मों के ट्रस्ट आयकर देते हैं या नहीं और देश के लिये क्या सहयोग करते हैं यह प्रश्न आना स्वाभाविक ही है क्योंकि सारे नियम और प्राविधान जितनी कठोरता के साथ मंदिरों पर लागू किये जाते हैं, उतनी ही कठोरता से अन्य किसी धर्म पर नहीं किये जाते जो कि हिंदुओं की आस्था के साथ अन्याय के जैसा ही है।

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Prabhath Shanker

Bollywood Content Writer For Naarad TV

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