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अच्छे लोगों के साथ बुरा क्यों होता है

अच्छे लोगों के साथ बुरा क्यों होता है

मित्रों, इस संसार में हर प्रकार के प्राणी रहा करते हैं, और उन सभी का जीवन जीने का तरीका भी अलग है। खास तौर से जब मनुष्य जाति की बात आती है तो इसे सभी प्राणियों में सर्वश्रेष्ठ माना जाता है क्योंकि इस पृथ्वी पर मनुष्य ही एक ऐसा प्राणी है जिसे जीवन जीने की एक अनोखी कला आती है।

क्योंकि अगर मनुष्य चाह ले तो वो सागर पर भी सेतु बना सकता है, अपने कठिन कर्मों द्वारा वो मुश्किल से मुश्किल कल्पना को साकार रूप प्रदान कर सकता है। ये सभी तब हो सकते हैं जब मनुष्य ने कर्म करने की ठान रखी है। ये तो मूल रूप से कर्म का सिद्धांत है जिसके बारे में आप सभी जानते ही होंगे, लेकिन जैसे एक सिक्के के दो पहलू होते हैं ठीक उसी तरह कर्म के भी दो रूप हैं।

जिन्हें हम अच्छे और बुरे कर्म के रूप में जानते हैं। हमारे पूर्वजो का ये वर्षों से मानना रहा है कि यदि अच्छे कर्म करोगे तो उसके सकारात्मक नतीजे मिलेंगे लेकिन अगर बुरे कर्म में अपनी बुद्धि लगाओगे तो परिणाम विनाशकारी ही मिलेंगे।

इस संदर्भ में हमें बहुत सारी शिक्षाएं हमारे धर्म शास्त्रों से ही मिल जाती है, जिसका प्रत्यक्ष उदाहरण रामायण और महाभारत में बड़ी आसानी से मिल जाता है। इसी बीच एक और बात जो अक्सर लोगों के मन और मस्तिष्क को परेशान करती है वो ये है कि अगर हमने हमेशा अच्छे कर्म किये हैं, कभी किसी का बुरा नही चाहा तो भी हमारे साथ बुरा ही क्यों होता है। शायद आपके मन मे भी ऐसा विचार कभी न कभी आता ही होगा कि मेरे साथ ही ऐसा क्यों होता है बल्कि मैने कभी किसी का बुरा नही सोचा।

आज की ये चर्चा इसी विषय पर आधारित है, जिसके बारे में हम विस्तार से बात करेंगे।

वैसे तो अच्छे और बुरे कर्म इंसान के ऊपर ही निर्भर ही करते है, उस इंसान का स्वभाव कैसा है उसकी विचारधारा कैसी है और साथ ही साथ उसकी परिस्थिति कैसी है, ये सारी बातें इंसान के कर्मों का निर्धारण करती है। उदाहरण के तौर पर अगर कोई मनुष्य स्वभाव से धार्मिक है , हमेशा दूसरों के हित की बात सोचता है लेकिन उसकी आर्थिक स्थिति बिल्कुल खराब होने के बावजूद उससे बुरे कर्म जैसे लूट मार, चोरी या हत्या जैसे पाप नही हो पायंगे। वो कुछ भी करने से पहले उसके हर पहलू पर विचार करेगा।

वहीं अगर कोई धनी व्यक्ति बहुत सुख से रहता है, लेकिन स्वभाव से लालची, जरूरत से ज्यादा चालाक या महत्वकांक्षी है, जिसके मन मे हमेशा धन और ऎश्वर्य को पाने की इच्छा छिपी है। ऐसे लोग किसी न किसी कीमत या कोई भी कर्म करके उन ऐश्वर्य को हासिल करने की कोशिश करते हैं। इन बातों को आप अच्छे और बुरे कर्मो की परिभाषा भी समझ सकते हैं। अब बात आती है कि अच्छे लोगो के साथ बुरा होने की, तो उसके संबंध में कुछ ऎसे मुख्य कारण हैं जिन्हें जानना भी बेहद जरूरी है।

1. पूर्व जन्म के कर्मो के नतीजे-
मित्रों, सनातन धर्म के शास्त्रों और पुराणों में, खास तौर से गरूण पुराण में बुरे कर्म और उससे संबंधित मिलने वाले दण्ड के बारे में बड़े ही विस्तार से वर्णन किया गया है। इसके अनुसार जो व्यक्ति बुरे कर्म करता है, पाप कर्म करता है उसे मृत्यु लोक में यमदूतों द्वारा दंडित तो किआ ही जाता है साथ ही साथ अगले जन्म में भी उस व्यक्ति को सुकून का जीवन नसीब नही होता।

यहाँ तक कि हो सकता है कि उसे अपने नए जन्म में मानव शरीर भी न प्राप्त हो। अब आप सोच रहे होंगे कि हम इस बात पर चर्चा क्यो कर रहे हैं, असल मे इस बात का संबंध हमारे आज के विषय को लेकर है। हो सकता है कि हमने अपने पूर्व जन्म में कुछ ऐसे कर्म किये हों जिनका दंड हमें इस तरह मिल रहा है कि हम कर्म तो अच्छे करते हैं लेकिन जीवन मे हमारे साथ कुछ भी अच्छा नही होता, कभी परिवार में क्लेश, कभी धन को लेकर चिंता, कभी शरीर मे किसी रोग का हो जाना या किसी के द्वारा ठगा जाना।

2. स्वार्थी लोगों का फायदा उठाना
अक्सर देखा गया है की जो अच्छे और सच्चे स्वभाव के व्यक्ति हैं उनमें दया और परोपकार की भावनाएं बहुत होती है। आमतौर पर उनकी सोच ये होती है कि उनके वजह से किसी को कोई तकलीफ न हो, और अगर कोई उसका मित्र या संबंधी किसी तकलीफ में है तो अच्छे स्वभाव के लोग ये सोचते है कि मैं कुछ ऐसा करूँ जिससे मेरे मित्र को किसी प्रकार का कष्ट न रहे।

यहां तक कि ऐसे लोग गैरो की मदद के लिए भी हमेशा खड़े रहते हैं। बस इसी सोच के चलते ऐसा होता है कि ऐसे ही अच्छे व्यक्तियों की भेंट कई बार उन लोगो से हो जाया करती है जो स्वार्थी और लालची स्वभाव के होते हैं। अपना काम निकल जाने के बाद वो उस इंसान की तरफ मुड़कर भी नही देखते जिन्होंने उसकी इतनी सहायता की। और फिर नेकी कर और दरिया में डाल जैसी कहावतों को अपने जीवन मे उतारकर अच्छे और भले लोग आगे बढ़ते रहते हैं और लोगो के हित की ही बातें सोचते हैं।

3. बुरा होने के पीछे अच्छे परिणाम का होना
ये तो ज़ाहिर सी बात है कि अच्छे कर्मों के नतीजे अच्छे और बुरे कर्मों के नतीजे हमेशा बुरे ही होते हैं। लेकिन जब किसी अच्छे व्यक्ति के साथ कुछ ऐसा बुरा होता है जो भगवान की मर्जी द्वारा किया होता है और बाद में उसका परिणाम कुछ ऐसा होता है जिसे देखकर इंसान भी ये कह उठता है की कुछ अच्छा होने के लिए ही मेरे साथ बुरा हुआ और ईश्वर को धन्यवाद करता है।

इस बात को सिद्ध करने के लिए सबसे अच्छा उदाहरण महाभारत का है, जिसमे पांडव हमेशा से ही धर्म के रास्ते पर रहे, दया और परोपकार की भावना उनमे हमेशा से ही थी और इसलिए उनके साथ ख़ुद भगवान श्रीकृष्ण थे, लेकिन इन सबके बावजूद उनके साथ छल हुआ। उनके अपनो द्वारा ही उन्हें ठगा गया और जिसके चलते उन्हें लक्ष्याग्रह और फिर बारह वर्ष का वनवास और तेरहवे वर्ष का अज्ञातवास जैसी बुरी परिस्थितियों का सामना करना पड़ा। लेकिन महाभारत युद्ध के बाद जब उनकी विजय हुई तो पांडवों ने पूरी धरती पर राज किआ।

महाभारत इसी मुख्य कथा पर आधारित है और ये कथा इस बात को पूरी तरह सिद्ध भी करती है कि अक्सर अच्छे व्यक्ति के साथ कुछ बुरा होता है तो उसके पीछे कभी कभी ईश्वर की मर्जी भी रहती है लेकिन मानव भविष्य को नही जानता और इसलिए वो वर्तमान में हो रही घटनाओं को देखकर हताश हो जाता है, और यही मानव स्वभाव भी है।

स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को उपदेश देते समय इस बात की भी व्यख्या की है कि अच्छे लोगों के साथ बुरा क्यो होता है। श्रीकृष्ण के अनुसार- मनुष्य और इस जगत के सभी प्राणी उनके द्वारा ही रचित है और सभी उनकी माया के चक्रव्यूह में बंधे हैं। एक साधारण मनुष्य अपने जीवन के वर्तमान और भूत काल से ही परिचित होता है, उसे न ही पिछले जन्म के बारे में कुछ ज्ञान होता है और न ही भविष्य के विषय मे। और इसलिए उसे ये समझ मे नही आता कि उसके साथ जो हो रहा है वो सही है या गलत।

इसी संदर्भ में एक और बात आती है और वो ये है कि ये बात बिल्कुल सत्य नही है कि बुरे व्यक्ति के साथ हमेशा अच्छा ही होता है या वो बुरा व्यक्ति जीवन भर सुखी रहता है। वो सिर्फ हमारे देखने का नजरिया है क्योंकि जब तक उस व्यक्ति के भाग्य में सुखी जीवन लिखा होगा तब तक वो सुखी रहेगा लेकिन जैसे ही उसके पूण्य का फल समाप्त हो जाएगा वैसे ही उसके पाप कर्मों के हिसाब से उसके जीवन मे बुराइयों का आना शुरू हो जाएगा।

इस बात को सिद्ध करने के लिए श्रीकृष्ण अर्जुन को एक कथा के सुनाते हैं कि- एक बार एक नगर में दो अलग अलग प्रकार के व्यक्ति रहा करते थे, एक व्यक्ति व्यापारी था, जो बहुत ही पूजा पाठी और धार्मिक प्रवृत्ति का था। वो रोज सुबह शाम मन्दिर जाया करता, गरीबों को भोजन करवाता। उसी नगर में एक और व्यक्ति रहता था जो किसी राजा के यहाँ छोटा सा कर्मचारी था, लेकिन उसके मन मे हमेशा लालच और कपट भरा रहता था।

वो जब भी मन्दिर जाता, वहां के दान पात्र से पैसे या अन्य सोने के आभूषण चुरा लेता। एक दिन वो दुष्ट कर्मचारी शाम के समय मन्दिर गया और वहाँ से कुछ धन चुराकर भागने लगा, वहीँ कुछ दूरी पर वही व्यापारी मन्दिर की ओर आ रहा था , उसे देख उस राजा के कर्मचारी ने चुपके से धन के कुछ सिक्के उसके करीब डाल दिये और भाग गया। उन सिक्कों को लेकर व्यापारी मन्दिर के तरफ बढ़ ही रहा था कि मंदिर से भागते कुछ लोगों ने उसे ही चोर समझ लिया और उसे पीटने लगे। बड़ी मुश्किल से उसने अपनी जान छुड़ाई और वहाँ से भाग निकला, इस वजह से उस व्यापारी को बहुत चोटें भी आईं। कुछ सालों बाद उस व्यापारी और राजा के कर्मचारी दोनों की मृत्यु हो गयी। दोनों मृत्यु के बाद जब यमलोक पहुचे तो उस व्यापारी ने यमराज से प्रश्न किआ की- हे प्रभु! मैंने जीवन भर धार्मिक कार्य किये, इसके बावजूद मेरे ऊपर चोरी का इल्जाम लगा और ये दुष्ट जिसने चोरी की ये तो बड़ा सुखी था।

इस पर यमराज बोले कि- तुम जो कह रहे हो ये आधा सत्य है, बात ये है कि जिस दिन तुम मंदिर के लोगों से मार खाये, वास्तव में उस दिन तुम्हारे साथ बहुत बड़ी दुर्घटना घटने वाली थी और उस दिन तुम्हारी जान भी जा सकती थी लेकिन तुम्हारे पूर्व जन्म के पूण्य कर्मों के कारण उस दिन तुम्हारी जान बच गयी। बल्कि इस कर्मचारी का उसी दिन से बुरा वक्त शुरू हो गया था क्योंकि इसने बहुत ही बुरे कर्म किये थे और जिस दिन इसने मन्दिर से चोरी की उस दिन के बाद से ये कंगाल होता चला गया, राजा ने भी इसे अपने दरबार से निकाल दिया।
इस कथा के द्वारा ये ज्ञान तो स्पष्ट हो ही जाता है कि इंसान को कभी भी ये बात मन मे नही लानी चाहिए कि वो अच्छा है इसलिये उसके साथ बुरा हो रहा है या वो पाप कर रहा है इसलिए वो सुखी है। क्योंकि समय अपनी गणना के अनुसार बदलता रहता है और सच्चे कर्म वाले मनुष्य के साथ हमेशा रहता है।

अच्छे लोगों के साथ बुरा क्यों होता है

https://youtu.be/MO1TLxscPm4

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